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Updated: 20 नवम्बर, 2018 06:47 PM
बिजय कुमार
बिजय कुमार
  @bijaykumar80
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22 नवंबर को नई दिल्ली में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ विपक्षी दलों की होने वाली बैठक फिलहाल टल गयी है. ऐसा माना जा रहा था कि इसमें एनडीए के तमाम विरोधी दल शामिल होने वाले थे. वैसे तो 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर विपक्षी दल एक साथ आने की कोशिश में हैं लेकिन 5 राज्यों में जारी विधानसभा चुनाव के बीच आयोजित होने वाली इस बैठक से चुनावी राज्यों में मतदाताओं के बीच विपक्षी एकता का सन्देश जाता. जिससे इन राज्यों में बीजेपी को नुकसान पहुंचाया जा सकता था लेकिन अब यह बैठक टल गयी है जो एक लिहाज से विपक्षी एकता के लिए ठीक ही है.

बता दें कि फिलहाल राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. इसमें से इस बैठक से पहले छत्तीसगढ़ में आखिरी चरण में 20 नवंबर को मत डाले जा चुके हैं. इस बैठक से पहले इस मुहिम को गति देने में शामिल आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 19 नवंबर को मुलाकात कर इसे इन राज्यों में होने वाले चुनावों के मद्देनजर टाल दिया है. लेकिन सवाल ये था कि क्या वाकई इस बैठक का असर जारी पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों पर पड़ता. क्योंकि जिन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं उनमें से तीन राज्यों में तो सीधे-सीधे बीजेपी और कांग्रेस की बीच मुकाबला है.

oppositionएनडीए के खिलाफ विपक्षी दलों की होने वाली बैठक फिलहाल टल गयी है

इन राज्यों में कांग्रेस के पास उत्तर प्रदेश के दो बड़े दलों एसपी और बीएसपी को साथ लाने का मौका था, जिससे कि उसका पक्ष कुछ और मजबूत हुआ होता साथ ही 2019 में भी महागठबंधन बनने पर मुहर लग जातीस, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है. जिससे इस बैठक में इन दोनों दलों की ओर से उपस्थिति दर्ज करने वाले नेताओं पर सबकी नजरें लगीं थीं. क्योंकि इन दोनों ही दलों के शीर्ष नेता चुनावी राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी दोनों पर हमलावर दिख रहे हैं. अखिलेश ने हाल ही में छत्तीसगढ़ में एक रैली के दौरान कहा कि भाजपा-कांग्रेस दोनों का नजरिया एक जैसा है और दोनों के नेता मिले हुए हैं तो वहीं, मायावती ने भी रायपुर में कहा कि भाजपा और कांग्रेस एक समान हैं, एक सांपनाथ है तो एक नागनाथ. वैसे ऐसा माना जा रहा था कि एसपी और बीएसपी की ओर से कोई न कोई तो इसमें जरूर शामिल होता क्योंकि उनकी नजर 2019 के महासंग्राम पर है.

बता दें कि इसी साल मार्च महीने में तेलंगाना के मुख्यमंत्री टी चंद्रशेखर राव ने नॉन-कांग्रेस और नॉन-बीजेपी के विकल्प की बात कह विपक्ष को साथ लाने की कवायद की थी जो नहीं चल पायी, जिसके बाद विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की पहल करते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी सहित कई दलों के शीर्ष नेताओं के साथ मुलाकत की और अब इस मुहिम को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू उनके साथ मिलकर आगे बढ़ा रहे हैं जिसमें कांग्रेस भी शामिल है. लेकिन कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में जो विपक्षी एकता देखने को मिली थी वैसा कुछ करने के लिए विपक्ष खासकर कांग्रेस को काफी कुछ करना पड़ेगा क्योंकि वहां कांग्रेस की त्याग की वजह से बीजेपी को सत्ता से दूर होना पड़ा था.

ये भी माना जा रहा था कि टाली गयी बैठक में विपक्ष 11 दिसंबर से शुरू होने जा रहे संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार को घेरने की रणनीति पर भी चर्चा करता, जो कि 2019 लोकसभा चुनाव के लिहाज से विपक्ष के लिए ठीक है. कह सकते हैं कि जारी विधानसभा चुनावों पर इस बैठक का असर होता या नहीं लेकिन विपक्षी एकता का सन्देश तो नहीं ही जाता क्योंकि इसमें भाग लेने वाले दल ही इन चुनावों में आमने सामने हैं.

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बिजय कुमार बिजय कुमार @bijaykumar80

लेखक आजतक में प्रोड्यूसर हैं.

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