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Updated: 12 नवम्बर, 2022 08:00 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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बीजेपी के लिए बिहार में हाल का सत्ता परिवर्तन बहुत बड़ा झटका रहा - और उसमें एक छोटी सी भूमिका AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की भी रही, लेकिन परोक्ष रूप से. बिहार में नीतीश कुमार ने जो खेल खेला उसमें असदुद्दीन ओवैसी के चार विधायकों का बड़ी ही चालाकी से इस्तेमाल कर लिया - और जो कुछ हुआ उस पर ओवैसी का कोई वश भी नहीं था. वो चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते थे.

ऐसे कम ही मौके होते हैं जब असदुद्दीन ओवैसी की वजह से भारतीय जनता पार्टी को कोई फायदा न हो पाता हो. वैसे जिन चार विधायकों का नीतीश कुमार ने इस्तेमाल किया, वे तो पहले ही अपना टास्क पूरा कर चुके थे. ये सभी उन सीटों पर ही जीते थे जो लालू यादव की पार्टी आरजेडी के हिस्से में चली जातीं, बीजेपी के साथ होने के कारण नीतीश कुमार के लिए भी जीत पाना संभव न था. नीतीश कुमार तो खुद बीजेपी नेतृत्व खास कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसे चुनाव लड़ रहे थे.

बिहार के बाद ओवैसी ने पश्चिम बंगाल में भी हाथ पांव मारे और यूपी चुनाव में भी पीछे नहीं दिखे, लेकिन दोनों ही जगह नाकामी ही हाथ लगी. बंगाल में तो ओवैसी फैक्टर बिलकुल भी नहीं चला और यूपी में भी तकरीबन वैसा ही हाल रहा - लेकिन हैदराबाद से बाहर असदुद्दीन ओवैसी की चुनावी भूमिका तो और ही समझी जाती रही है.

असदुद्दीन ओवैसी अब गुजरात विधानसभा चुनाव (Gujarat Election 2022) लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. ओवैसी की पार्टी की तरफ से दावा तो ऐसा किया जैसे गुजरात में चौतरफा मुकाबला होने जा रहा हो. असल में पहले गुजरात में बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही लड़ाई और हार जीत का फैसला हो जाया करता था, लेकिन अरविंद केजरीवाल के एक्टिव होने से आम आदमी पार्टी भी एक दावेदार बन गयी है - और ओवैसी के लोग अब AIMIM को भी एक मजबूत दावेदार साबित करने की कोशिश कर रहे हैं.

हाल ही में सीवोटर के सर्वे के नतीजे को देखें तो ओवैसी और उनके साथियों के सारे दावे हवा हवाई हो जाते हैं. सर्वे में सवाल तो बीजेपी और कांग्रेस को लेकर भी पूछे गये थे, लेकिन यहां पर असदुद्दीन ओवैसी से जुड़े सवाल से मतलब है. ये सवाल था - क्या गुजरात के मुस्लिम वोटर ओवैसी से प्रभावित हैं?

सवाल के जवाब में सर्वे में शामिल ज्यादातर लोगों की राय रही कि असदुद्दीन ओवैसी का गुजरात के मुसलमानों पर कोई प्रभाव नहीं है. लोगों की राय आंकड़ों के हिसाब से समझें तो सिर्फ 31 फीसदी लोगों का जवाब हां में रहा यानी गुजरात के मुस्लिम वोटर पर असदुद्दीन ओवैसी प्रभाव है, लेकिन 69 फीसदी यानी दो तिहाई लोगों की नजर में ऐसा कोई असर वे महसूस नहीं कर पा रहे हैं - और चुनावी राजनीति में दो-तिहाई ही सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर होता है.

और ठीक वैसे ही AIMIM का एक और दावा भी संदेह के घेरे में देखा जाने लगा. AIMIM प्रवक्ता वारिस पठान का इल्जाम था कि उनके नेता असदुद्दीन ओवैसी जिस ट्रेन से सफर कर रहे थे, उस पर लोगों ने हमला किया था. सूरत की एक रैली में वारिस पठान ने दावा किया कि असदुद्दीन ओवैसी वंदे भारत ट्रेन से अहमदाबाद से सूरत की यात्रा कर रहे थे, तभी कुछ लोगों ने ट्रेन के उस डिब्बे पर पत्थर फेंके जिसमें वो सवार थे. वारिस पठान ने ट्विटर पर ट्रेन के शीशे में आयी दरार वाल तस्वीरें भी शेयर किये थे.

लेकिन की तरफ से अलग ही मामला बताया गया. रेलवे पुलिस तो पथराव के पीछे किसी भी साजिश के आरोप को सिरे से ही खारिज कर दिया. बताया गया कि ट्रैक पर मरम्मत काम चल रहा था और वहां पड़े पत्थर उछल कर जा लगे थे.

जाहिर है हकीकत असदुद्दीन ओवैसी को तो मालूम होगी ही, राजनीतिक बयानबाजी की बात अलग है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि असदुद्दीन ओवैसी गुजरात में चुनाव लड़ने क्यों जा रहे हैं. बिहार में तो तुक्का लग गया था, लेकिन उसके बाद तो कहीं कोई करिश्मा दिखा नहीं सके, फिर गुजरात में दावे और उम्मीद की असल वजह आखिर क्या हो सकती है?

जहां तक असदुद्दीन ओवैसी के प्रभाव की बात है, तो अभी 3 नवंबर को हुए गोपालगंज विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव असर जरूर दिखा है. ये असर भी करीब करीब वैसा ही है जैसा आजमगढ़ लोक सभा सीट पर हुए उपचुनाव में देखने को मिला था. मतलब, गोपालगंज में ओवैसी का उम्मीदवार की वोटकटवा की भूमिका में नजर आया, जैसे आजमगढ़ में बीएसपी नेता मायावती (Mayawati) का उम्मीदवार. और आजमगढ़ की ही तरह गोपालगंज में भी फायदा बीजेपी को ही मिला है - फिर तो मान कर चलना होगा कि असदुद्दीन ओवैसी गुजरात चुनाव में बिलकुल वैसा ही रोल निभाने के लिए तैयार हैं जो यूपी चुनाव 2022 में मायावती की भूमिका देखने को मिली थी.

गोपालगंज और आजमगढ़ के नतीजे एक जैसे

बिहार की गोपालगंज सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजों को देखें तो गुजरात में असदुद्दीन ओवैसी की भूमिका साफ तौर पर समझी जा सकती है. गोपालगंज सीट पर हार जीत का फैसला महज 1.07 फीसदी वोटों के अंतर से हुआ है - और कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश की आजमगढ़ लोक सभा सीट पर हुए उपचुनाव में भी हार और जीत के बीच का फासला करीब करीब ऐसा ही रहा - सिर्फ 0.95 फीसदी का.

asaduddin owaisi, mayawatiअसदुद्दीन ओवैसी और मायावती को संदेह का लाभ भी मिलना चाहिये, बशर्ते लोग ये समझें कि दोनों नेताओं के उम्मीदवारों के मैदान में होने का फायदा बीजेपी बड़े आराम से उठा लेती है.

गोपालगंज उपचुनाव में आरजेडी उम्मीदवार मोहन गुप्ता को को 40.53 फीसदी वोट मिले थे, जबकि बीजेपी उम्मीदवार कुसुम देवी ने 41.6 फीसदी - और बीजेपी ने सीट अपने नाम कर ली. अब जरा असदुद्दीन ओवैसी के उम्मीदवार अब्दुल सलाम के हिस्से के वोटों को देखें तो उनको कुल 7.25 फीसदी यानी 12,214 वोट मिले थे - और हार-जीत का फर्क 1,794 वोट रहा.

ठीक ऐसी ही स्थिति आजमगढ़ उपचुनाव में भी दर्ज की गयी थी. आजमगढ़ उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ को 34.39 फीसदी वोट मिले थे, जबकि समाजवादी पार्टी उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव को 33.44 फीसदी - और बीएसपी कैंडिडेट शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को 29.27 फीसदी वोट हासिल हुए हैं.

गोपालगंज विधानसभा सीट पर जहां बीजेपी और आरजेडी प्रत्याशी को मिले वोटों का फासला जहां दो हजार से भी कम रहा, आजमगढ़ उपचुनाव में दिनेश लाल यादव निरहुआ और धर्मेंद्र यादव की जीत हार का अंतर 10 हजार से भी कम रहा - आजमगढ़ उपचुनाव में निरहुआ ने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को 8, 679 वोटों से हराया था.

देखा जाये तो उपचुनाव में महागठबंधन प्रत्याशी के लिए चुनाव प्रचार से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी पेट में लगी चोट का हवाल देकर दूरी बना ली थी, लेकिन असली सवाल तो असदुद्दीन ओवैसी की भूमिका पर ही उठ रहे हैं - और सवाल तो नतीजे आने से पहले ही बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने ही उठा दिया था.

चुनाव प्रचार के लिए गोपालगंज पहुंचे आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM को बीजेपी की B टीम करार दिया था - और नतीजे आये तो मालूम हुआ कि असदुद्दीन ओवैसी पर तेजस्वी यादव का इल्जाम महज राजनीतिक नहीं था.

चुनाव नतीजे से साफ है कि अगर असदुद्दीन ओवैसी ने अलग से गोपालगंज चुनाव में उम्मीदवार नहीं खड़ा किये होते तो क्या आरजेडी उम्मीदवार के लिए दो हजार मुस्लिम वोट जुटा पाना मुश्किल होता. बेशक ये दलील दी जा सकती है कि यूपी और बिहार में अब मुस्लिम वोट एकजुट नहीं पड़ रहे हैं - या फिर दोनों ही राज्यों में चुनावी जीत के लिए पक्का फॉर्मूला मुस्लिम-यादव समीकरण धीरे धीरे फेल होता जा रहा है.

लिहाजा जो सवाल आजमगढ़ में मायावती की भूमिका को लेकर उठ रहा था, गोपालगंज में बीजेपी की जीत के साये में असदुद्दीन ओवैसी पर उठ रहा है. फर्ज कीजिये गोपालगंज सीट पर असदुद्दीन ओवैसी ने उम्मीदवार नहीं उतारा होता तो क्या कुसुम देवी विधायक बन पातीं? यूपी में भी तब यही सवाल उठा था - चुनाव मैदान में गुड्डू जमाली न होते तो निरहुआ का क्या हाल हुआ होता? क्या निरहुआ इस बार भी आजमगढ़ से संसद पहुंच पाते?

तमाम दलीलों के बीच साबित तो यही हो रहा है कि जैसे आजमगढ़ में मायावती की बीएसपी का प्रत्याशी वोटकटवा ही साबित हुआ, गोपालगंज में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM का उम्मीदवार भी तो वोटकटवा ही लग रहा है

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान बीएसपी के ज्यादातर उम्मीदवारों की भूमिका बीजेपी की मददगार के तौर पर ही समझी गयी, खासकर पश्चिम उत्तर प्रदेश की विधानसभा सीटों पर. तब किसान आंदोलन की वजह से पश्चिम यूपी के जाटों की नाराजगी से बीजेपी डरी हुई थी - और ऐसे कई उदाहरण मिले जहां मायावती के उम्मीदवारों ने बीजेपी के जीत की राह प्रशस्त की थी.

कहने को तो कुछ लोग इसे ऐसे भी पेश कर रहे हैं कि जिस तरह तेजस्वी यादव ने असदुद्दीन ओवैसी के विधायकों को आरजेडी में शामिल कर झटका दिया था, मौका मिलते ही असदुद्दीन ओवैसी ने बदला ले लिया है - लेकिन ये दलील भी असदुद्दीन ओवैसी को क्लीन चिट देने जैसी ही लगती है.

कैसा गुजरेगा ओवैसी का, गुजरात में?

AIMIM यानी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन की तरफ से बताया गया है कि गुजरात में असदुद्दीन ओवैसी ने 30 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है - और उनमें से पांच सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा भी कर दी गयी है.

पहले असदुद्दीन ओवैसी ने संकेत दिया था कि एआईएमआईएम 40 से 45 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है, लेकिन बाद में ये संख्या 30 के रूप में सामने आयी है. वैसे गुजरात की करीब 40 विधानसभा सीटें मुस्लिम आबादी के प्रभाव वाली मानी जाती हैं.

जिन सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी ने AIMIM के प्रत्याशियों की घोषणा की है, उसमें अहमदाबाद की तीन और सूरत की दो सीटें हैं. 2021 में हुए स्थानीय निकाय चुनाव में AIMIM को 26 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. लगता है बंगाल और यूपी में झटका खाने के बाद भी गुजरात में चुनाव लड़ने का फैसला करने में ये दलील ज्यादा मजबूत साबित हुई होगी.

ओवैसी की पार्टी ने अहमदाबाद की मुस्लिम बहुत पांच सीटों पर लड़ने का फैसला किया है, ये विधानसभा क्षेत्र हैं - वेजलपुर,दरियापुर, जमालपुर खाड़िया और दानीलिमड़ा. ऐसे ही कच्छ जिले की अबडासा, मांडवी, भुज, अंजार और गांधीधाम. बनासकांठा की वडगाम और पाटण जिले के सिद्धपुर विधानसभा सीट. द्वारका की खेड़ब्रह्मा के साथ जूनागढ़, पंचमहाल, गिर सोमनाथ, भरूच, सूरत, अरवल्ली, जामनगनर, आणंद और सुरेंद्र नगर की कुछ विधानसभा सीटें शामिल हैं.

गुजरात विधानसभा में 182 सीटें हैं और 30 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रहे असदुद्दीन ओवैसी को भी ये तो अंदाजा होगा ही कि उनके उम्मीदवारों का प्रदर्शन कैसा रहने वाला है? फिर भी अगर चुनाव मैदान में उतर रहे हैं तो, जाहिर है कुछ तो मकसद होगा ही - देखना होगा कि असदुद्दीन ओवैसी का चुनावी वक्त कैसा गुजरता है गुजरात में?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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