बच्चों को हिंदुओं के प्रति नफरत पढ़ाने वाला पाकिस्तान भारत का दुश्मन ही रहेगा
70 के दशक से पाकिस्तान में मुसलमानों को भारत और हिंदुओं के खिलाफ नफरत पढ़ाई गई है, तो उनसे हमें सद्भावना नहीं, जेहाद ही मिलेगा.
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पाकिस्तान के रेेेलमंत्री शेख रशीद यदि भारत को चेतावनी देते हुए ये कहते हैं कि 'युद्ध हुआ तो भारत के मंदिरों में घंटियां नहीं बजेंगी.' पाकिस्तान के कट्टरपंथी हाफिज सईद और मौलाना मसूद अजहर अकसर ही भारत के खिलाफ जेहाद की बात करते हैं. तो सवाल ये उठता है कि इनमें भारत के खिलाफ इतना जहर क्यों है? और ये आता कहां से है?
पुलवामा आंतकी हमले के बाद से ही जिस तरह से पाकिस्तान और हिंदुस्तान की नफरत का नया रूप देखा जा रहा है वो सालों से दिल में जमी हुई नफरत का नतीजा है. पाकिस्तान नागरिकों का बचपन भारत, खासकर हिंदुओं के प्रति नफरत को सीखता हुआ गुजरता है. पाकिस्तानी स्कूलों में बच्चों को बचपन से ही सिखाया जाता है कि हिंदुओं से कैसे नफरत की जाए. पाकिस्तान के बड़े अखबार Dawn का लेेेेख इस बात की पुष्टि करता है. यह लेख पाकिस्तानी स्कूलों पर की गई एक स्टडी के आधार पर है. इस स्टडी में सामने आया था कि पाकिस्तानी स्कूलों में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के बारे में गलत पढ़ाया जाता है.
स्टडी में जो बातें सामने आईं वो ये बताने के लिए काफी हैं कि पाकिस्तान में कट्टर इस्लाम को किस तरह बच्चों के दिमाग में डाला जा रहा है. शायद ये समझने के लिए काफी है कि क्यों पाकिस्तान में आतंकवादियों को इतना सपोर्ट किया जाता है.
पाकिस्तानी स्कूलों में जिस तरह बच्चों के दिमाग में नफरत भरी जाती है वो बताता है कि उस देश में क्यों इतने आतंकवादी खुले घूमते हैं.
अगर बच्चों को शुरुआत से ही भेद-भाव पढ़ाया जाएगा तो बच्चे बड़े होकर क्या सीखेंगे यही न कि कैसे कट्टर बना जाता है और कैसे दूसरे धर्मों से नफरत की जाती है.
क्या पढ़ाया जाता है पहली से दसवीं क्लास तक के बच्चों को?
US government commission की इस स्टडी में पहली से दसवीं तक के बच्चों की 100 किताबों का निरीक्षण किया गया था. 37 पब्लिक स्कूलों के 277 स्टूडेंट्स, टीचर्स के इंटरव्यू हुए. साथ ही साथ 19 मदरसों में 226 स्टूडेंट्स और टीचर्स से भी बात की गई.
रिपोर्ट में सामने आया कि सभी अल्पसंख्यक खास तौर पर हिंदुओं को पाकिस्तान में बहुत गलत तरह से दिखाया जा रहा है. ईसाई समुदाय के लोगों के लिए भी गलत बातें लिखी हैं, लेकिन हिंदुओं को दुश्मन के तौर पर दिखाया गया है.
किताबों में अल्पसंख्यकों को कमतर दर्जे का या फिर दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है. बच्चों को ये पढ़ाया जाता है कि पाकिस्तानी मुसलमानों द्वारा अन्य धर्मों के नागरिकों को कम अधिकार दिए गए हैं, लेकिन उनके लिए भी उन्हें मुसलमानों का शुक्रगुजार होना चाहिए. ये सोचने वाली बात है कि कैसे इतनी कम उम्र में बच्चों को ये सब सिखाया जाता था.
कक्षा चौथी की एक बुक में लिखा था, 'एंटी-इस्लामिक ताकतें हमेशा दुनिया से इस्लाम का राज खत्म करने की कोशिश करती हैं. इससे इस्लाम की मौजूदगी पर ही खतरा मंडरा रहा है. पाकिस्तान और इस्लाम का बचाव बहुत जरूरी है.' ये किताब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की थी जो पाकिस्तान का सबसे ज्यादा आबादी वाला इलाका है.
इन किताबों में हिंदुओं, सिखों या ईसाइयों द्वारा किए गए अच्छे कामों का तो जिक्र ही नहीं. मतलब अगर कोई अल्पसंख्यक बच्चा इन स्कूलों में पढ़ रहा है तो उसे अपने धर्मों के द्वारा किए गए अच्छे कामों की ही जानकारी नहीं होगी.
हिंदुओं के बारे में लिखी बेहद निराशाजनक बातें-
रिपोर्ट के अनुसार हिंदुओं को हमेशा कट्टर बताया गया था साथ ही उन्हें इस्लाम का दुश्मन कहा जाता है. रिपोर्ट बताती है कि बच्चों के सिलेबस में इस बात को शामिल किया गया है कि हिंदुओं का समाज कट्टर, क्रूर और नाइंसाफी से भरा हुआ है जब्कि इस्लाम हमेशा भाईचारे और अमन की बात करता है. और भाईचारे की सोच भी हिंदुओं के गले नहीं उतरती.
उन किताबों में ईसाई समुदाय के बारे में ज्यादा नहीं लिखा गया है, बस इतनी जानकारी कि बच्चों को पता चल जाए कि ऐसा कोई भी है. ये इसलिए गलत है क्योंकि ईसाई समुदाय पाकिस्तान का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है.
पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या 1% है और ईसाइयों की 2%. बाकी कुछ सिख और बौद्ध धर्म के लोग भी पाकिस्तान में रहते हैं. रिसर्च में ये भी सामने आया कि किताबों में ऐसा लिखा हुआ था कि पाकिस्तान का अस्तित्व हमेशा से खतरे में है. अधिकतर किताबों में इस्लाम की बढ़ाई और अन्य अल्पसंख्यकों की बुराई दिखाई गई है.
कब से शुरू हुआ किताबों का इस्लामीकरण?
किताबों का इस्लामीकरण रिपोर्ट के अनुसार जनरल जिया उल हक के समय से शुरू हुआ जो अपने राज को स्थापित करने के लिए कट्टर इस्लाम की वकालत करते थे. 1970 के दशक से पाकिस्तान एकदम हिंदू विरोधी होता चला गया. हालांकि, 2006 में ये मुहिम जरूर शुरू हुई थी कि किताबों को बदला जाए, लेकिन फिर भी कुछ हुआ नहीं क्योंकि इस्लामिक कट्टर समाज और पाकिस्तान का राइट विंग इसकी इजाजत नहीं दे रहा था और उसके बाद सरकार ने भी उसका कोई हल नहीं निकाला.
1947 में पाकिस्तान के बनने के साथ-साथ ये कहा गया था कि वहां अल्पसंख्यक भी पूरे अधिकारों के साथ जी सकेंगे, लेकिन तीन जंग जो तीनों ही भारत के साथ हुई हैं उसके बाद पाकिस्तान इतना कट्टर होता चला गया कि वहां के लोग अब आतंकवादियों को पनाह देने से भी बाज नहीं आते.
अल्पसंख्यकों को भी पढ़ाया जा रहा इस्लामिक कट्टरपंथ
इस रिसर्च में एक और चौंकाने वाली बात सामने आई थी. वो कहा गया था कि न सिर्फ मुसलमान बच्चों को बल्कि हिंदुओं और ईसाई और अन्य अल्पसंख्यकों को भी पाकिस्तानी समाज में यही पढ़ाया जा रहा था कि इस्लाम कितना बेहतर है. ये तो पूरी तरह पाकिस्तानी संविधान के ही खिलाफ है जो कहता है कि किसी भी विद्यार्थी को धर्म के आधार पर शिक्षा नहीं मिलनी चाहिए.
रिपोर्ट में सिर्फ यही नहीं सामने आया था. बल्कि पाकिस्तान में तो शिक्षकों की सोच भी वैसी ही है. कट्टर. वहां के शिक्षक भी असहिष्णुता का पाठ ही पढ़ाते हैं. इसमें कोई दोराय नहीं कि अगर शिक्षक ऐसे होंगे तो बच्चे भी ऐसे ही होंगे. 2011 की ही Pew Research Center study के अनुसार पाकिस्तान दुनिया का तीसरा सबसे ज्यादा असहिष्णु देश है.
तो क्या इसीलिए पाकिस्तान में फैली है इतनी नफरत?
इस सवाल का जवाब अब शायद आप समझ ही गए होंगे. भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई बच्चे सभी धर्म के आधार पर नहीं बल्कि सिलेबस के आधार पर शिक्षा लेते हैं. Middle East Media Research ( MEMRI ) की रिपोर्ट जो 2013 में आई थी वो भी कहती है कि पाकिस्तानी स्कूल बुक्स में लिखा गया है कि जिहाद के नाम पर हिंदु, ईसाई और अन्य अल्पसंख्यकों का कत्ल भी मंजूर है.
पाकिस्तानी मंत्री कहते हैं कि वहां अल्पसंख्यकों को बेहतर तरीके से रखा जाता है, लेकिन जितनी भी रिपोर्ट्स सामने आई हैं वो सभी पाकिस्तान के खिलाफ ही हैं और इस बात का समर्थन करती हैं कि पाकिस्तान में शुरू से ही बच्चों को नफरत सिखाई जाती है.
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