अनंतनाग में चुनावी मुद्दा अलगाववाद है, तो चुनाव न ही हो
अमित शाह के बयान पर पलटवार कर, जम्मू कश्मीर के रिश्ते भारत से खत्म करने की बात कहने वाली महबूबा मुफ़्ती, अलगाववाद की वो पुरोधा हैं जिनकी बदौलत कश्मीर के हालात दिन ब दिन बद से बदतर हो रहे हैं.
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17 वें लोकसभा चुनाव के लिए, जम्मू कश्मीर के अनंतनाग से अपना नामांकन दाखिल करने के बाद, पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने मोदी सरकार पर जमकर हमला बोला. महबूबा ने धारा 370 और 35 ए के मुद्दे पर मोदी सरकार पर प्रहार करते हुए कहा कि, अगर किसी ने भी जम्मू कश्मीर को स्पेशल स्टेटस देने वाली धाराओं के साथ छेड़छाड़ की तो भारत के साथ जम्मू कश्मीर के रिश्ते खत्म हो जाएंगे. माना जा रहा है कि महबूबा ने ये बयान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के उस बयान पर दिया है जिसमें उन्होंने घाटी से धारा 370 हटाने की वकालत की थी.
बातों और नीतियों से साफ है कि जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती अलगाववाद के समर्थन में हैं
ज्ञात हो कि अभी हाल ही में एक टीवी इंटरव्यू में अमित शाह से सवाल हुआ कि, 'कश्मीर में आर्टिकल 370 और 35 ए को खत्म करना बीजेपी की मांग रही है. क्या आपको लगता है कि क्या आप उसे इस बार फिर मेनिफेस्टो में लाएंगे? और पिछले 5 साल में आपकी सरकार इस दिशा में क्या कर पाई है?
सवाल का जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा था कि, 'जहां तक मेनिफेस्टो में लाने का सवाल है 1950 से भारतीय जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी के मेनिफेस्टो का हिस्सा रहा है हमारा देश की जनता के प्रति कमिटमेंट है इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है. जहां तक क्यों नहीं हुआ का सवाल है राज्य सभा में बहुमत नहीं है मुझे लगता है 20 तक ये भी हो जाएगा.'
अमित शाह के इस जवाब पर अनंतनाग में नामांकन दाखिल करने आईं महबूबा मुफ़्ती से सवाल हुआ. महबूबा मुफ़्ती ने भाजपा प्रमुख अमित शाह को आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि वो जो 370 को खत्म करने की बात कर रहे हैं दरअसल वह दिन में सपना देख रहे हैं. उन्होंने कहा कि स्पेशल दर्जा देने वाला यह प्रावधान भारत और घाटी में एक पुल के समान है अगर इस पुल को तोड़ा गया तो हम भारत के साथ रिश्ते को गंवा देंगे.
जब अमित शाह से सवाल हुआ तो उन्होंने कहा था कि कश्मीर मुद्दा बीजेपी के मेनिफेस्टो में रहेगा
ध्यान रहे कि जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं कश्मीर एक बड़ा मुद्दा बन रहा है. अभी बीते दिनों ही जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने घाटी के बांदीपोरा में एक रैली को संबोधित करते हुए ने एक अलग वजीर-ए-आजम की मांग की थी. जनता को संबोधित उस भाषण में उमर ने कहा था कि,'बाकी रियासत बिना शर्त के देश में मिले, पर हमने कहा कि हमारी अपनी पहचान होगी, अपना संविधान होगा. हमने उस वक्त अपने "सदर-ए-रियासत" और "वजीर-ए-आजम" भी रखा था, इंशाअल्लाह उसको भी हम वापस ले आएंगे.'
इसके अलावा उमर ने अपनी रैली में भाजपा पर तीखा हमला बोलते हुए अमित शाह और अरुण जेटली पर तमाम गंभीर आरोप भी लगाए थे. उमर ने कहा था कि आज हमारे ऊपर तरह-तरह के हमले हो रहे हैं. साजिशें रची जा रही हैं. बड़ी-बड़ी ताकतें लगी हैं कश्मीर की पहचान मिटाने में. 370 हटाने की बात कही जाती है. हाल ही में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने धमकी दी, कश्मीर से 35A और धारा 370 हटाने का काम होगा. हम भारत में मुफ्त में नहीं आए. हमने कई शर्तें दर्ज कराईं. हमारा झंडा अपना होगा. हमने अपनी पहचान बनाई रखी. लेकिन ये लोग हमें अन्य रियासतों की तरह समझ रहे हैं.
And @OmarAbdullah Abdullah says we want a situation where J&K has a separate PM.
PM takes him to the cleaners at Secunderabad, asks Mahagathbandhan leaders to come come clean whether they support this statement.#IndiaSaysNaMoAgain pic.twitter.com/jRemnLSEFE
— Chowkidar Suresh Nakhua ???????? (@SureshNakhua) April 1, 2019
यानी कश्मीर की सियासत कुछ ऐसी चल रही है कि एक तरफ उमर अब्दुल्ला अपने लिए अलग प्रधानमंत्री की मांग कर रहे हैं. तो वहीं महबूबा मुफ़्ती भारत के साथ कश्मीर के रिश्ते तोड़ने की बात करती नजर आ रही हैं. यदि घाटी के इन दोनों ही बड़े नेताओं की बातों का अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि, दोनों ही नेता और उनके दल कश्मीर के उस वर्ग को आकर्षित करना चाह रहे हैं. जिसका काम कश्मीर को अलगाववाद की आंच में धकेलना और उसपर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकना है.
बात चूंकि महबूबा मुफ़्ती की चल रही है तो हमारे लिए ये बताना बेहद जरूरी है कि अनंतनाग लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने वाली जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री बड़े ही गर्व से अपने को अलगाववादी कह रही हैं. ट्विटर पर अरुण जेटली के एक भाषण को रि ट्वीट करते हुए महबूबा ने कहा है कि, अस्वीकार्यता नया भारत है, जहां धर्म के नाम पर लोगों की हत्या और उन्हें लिंच करने वालों को फूल माला पहननी जाती है, उनका सम्मान किया जाता है. अगर लोगों के साथ खड़ा होना और उनका समर्थन करना मुझे अलगाववादी और राष्ट्रद्रोही बनाता है तो इस लेबल को मैं सम्मान के साथ पहनूंगी.
Unacceptable is a new India where those who kill and lynch in the name of religion are feted and garlanded. If standing up for my people makes me a separatist and anti national then its a badge I will wear with honour. https://t.co/7KJAHfrOe5
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) April 3, 2019
कश्मीर का मुद्दा गरमाया है और सियासत इसपर जारी है तो हमें कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद के एक बयान को भी लगे हाथों देख लेना चाहिए. कुपवाड़ा में एक रैली को संबोधित करते हुए आजाद ने कहा है कि क्या वजह है कि 2014 तक हालात ठीक हो गए थे ? क्या वजह है कि 2014 से लेकर आजतक हालात फिर 1990-91 की तरह हुए? उसके लिए अगर कोई एक आदमी जिम्मेदार है , इस देश का प्रधानमंत्री जिम्मेदार है.
कश्मीर पर मच रहे सियासी घमासान के लिए कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद ने देश के प्रधानमंत्री को जिम्मेदार ठहराया है
कश्मीर मसले को मुद्दा बनाकर अपनी राजनीति को अंजाम देने वाले गुलाम नबी आजाद शायद ये भूल गए कि जिस समस्या की बात वो कर रहे हैं वो समस्या असल में 2010 में ही शुरू हुई. देश के इतिहास में 2010 ही वो वर्ष था जब कश्मीरी अलगाववादियों ने अपनी नाजायज मांग मनवाने के लिए पत्थरबाजी का सहारा लिया.
बहरहाल, महबूबा किस तत्परता से अलगाववाद की सेवा कर रही हैं, और कैसे अलगाववादी इनका समर्थन कर रहे हैं. इस सवाल का जवाब खुद अनंतनाग लोकसभा सीट ने दे दिया है. ज्ञात हो कि इससे पहले इसपर 2014 में चुनाव हुए थे जहां महबूबा मुफ़्ती ने जीत दर्ज की थी. फिर विधानसभा चुनावों के बाद महबूबा को ये सीट छोड़नी पड़ी.
बाद में इस सीट पर उपचुनाव कराने के प्रयास किये गए जो अलगाववाद की भेंट चढ़ गए. माना जाता है कि इलाके के अलगाववादियों के चलते ही ये सीट अब तक खाली पड़ी थी और अब जबकि महबूबा ने इस सीट से नामांकन दाखिल कर दिया है साफ हो गया है कि अलगाववादियों और महबूबा दोनों को एक दूसरे का संरक्षण मिला हुआ है.
कह सकते हैं कि. अमित शाह के बयान के बाद कश्मीर और कश्मीर की राजनीति पर जो रुख महबूबा सरीखे लोगों का है वही असली समस्या है. यदि केंद्र सरकार वाकई इस समस्या के प्रति गंभीर है और इस पर लगाम लगाना चाहती है तो सबसे पहले उसे घाटी के इन नेताओं पर नकेल कसनी पड़ेगी और इन्हें किसी भी हाल में चुनाव लड़ने से रोकना होगा.
ऐसा इसलिए भी क्योंकि अलगाववाद के समर्थक इन नेताओं की सबसे बड़ी ताकत वो जनाधार है जो इन्हें अलगाववादियों से मिल रहा है. यदि इन लोगों को चुनावी मैदान में आने से रोक दिया जाए तो कश्मीर की समस्या एक हद तक अपने आप ही खत्म हो जाएगी.
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