केरल में ईसाईयों के दो वर्गों का संघर्ष शिया-सुन्नी, दलित-सवर्ण से भी पेचीदा है!
अब तक जहां देश में दलित सवर्ण और शिया सुन्नी के नाम पर चल रही बहस थमी नहीं है. ऐसे में केरल के दो ईसाई समुदायों के सामने आने और उनके बीच की वर्चस्व की लड़ाई ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है.
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एक ऐसे वक़्त में जब हम सवर्ण दलित, शिया सुन्नी, बरेलवी वहाबी हिन्दी बनाम इंग्लिश का मुद्दा नहीं सुलझा पा रहे हैं सुदूर दक्षिण में जो हो रहा है उसने एक नई बहस का आगाज कर दिया है. केरल चर्चा में है. कारण है केरल के चर्च और ईसाईयों के दो समुदायों ऑर्थोडॉक्स और जैकबाइट्स के बीच का तनाव. जिसने शिया सुन्नी और सवर्ण दलितों के बीच जारी तनाव को मात दे दी है. लड़ाई का आलम कुछ यूं है कि अब ये थमने का नाम नहीं ले रही है और इसने केरल में सियासी सरगर्मियां तेज कर दी हैं. मामला केरल के पिरवोम स्थित चर्च का है जहां हालात उस समय बद से बदतर हो गए जब चर्च में ऑर्थोडॉक्स ग्रुप ने नियंत्रण लेने की कोशिश की और जैकबाइट्स ने नियंत्रण देने से इनकार कर दिया. मामला वर्चस्व का बताया जा रहा है जहां चर्च का संचालन अपने हाथ में लेने के लिए जैकोबाइट ईसाई और ऑर्थोडॉक्स ईसाई एक-दूसरे से लड़ रहे हैं. फ़िलहाल चर्च पर जैकोबाइट ईसाइयों का नियंत्रण है.
केरल में चर्च पर अधिकार को लेकर दो पक्षों में विवाद तेज हो गया है
फसाद का इतिहास:
केरल में ऑर्थोडॉक्स और जैकबाइट्स के बीच का विवाद कोई आज का नहीं है. दोनों के बीच अपने अपने वर्चस्व की लड़ाई चल रही है और मामला कोर्ट तक गया था. इसी के मद्देनजर उच्चतम न्यायालय ने 2017 में एक फैसला दिया था. फैसले में 1934 के मलनकारा गिरजाघर दिशा-निर्देशों का हवाला दिया गया था. कोर्ट ने कहा था कि इन दिशा निर्देशों के तहत 1,100 चर्च का नियंत्रण ऑर्थोडॉक्स ईसाइयों के पास चला गया.
कैसे हुआ विवाद:
ऑर्थोडॉक्स समुदाय को चर्च में कब्ज़ा लेना था मगर जैकबाइट्स इस बात को मान नहीं रहे थे. मामले में केरल उच्च न्यायालय ने दखल दिया और स्थानीय पुलिस को निर्देश दिए कि वह अनुयायियों को गिरजाघर जाने और वहां धार्मिक क्रियाकलाप करने में उन्हें सुरक्षा दे. आपको बताते चलें कि ऑर्थोडॉक्स समुदाय ने केरल हाई कोर्ट में याचिका डाली थी कि चर्च में धार्मिक सभाएं और प्रार्थना करने में उन्हें पुलिस सुरक्षा मुहैया कराई जानी चाहिए. जैकोबाइट पादरियों ने ऑर्थोडॉक्सईसाइयों पर मानवाधिकार उल्लंघन करने का आरोप लगाया है. जैकोबाइट धड़े का आरोप है कि ऑर्थोडॉक्स उनके मृत रिश्तेदारों की अंतिम क्रिया में भी बाधा पहुंचा रहे हैं.
मामले में सबसे दिलचस्प बात ये है कि फैसला आए हुए दो साल हो चुका है और अब भी ऑर्थोडॉक्स समुदाय को चर्च में पूजा की अनुमति नहीं है. कोर्ट के आदेश की इस तरह नाफ़रमानी ये साफ़ बताती है कि मामले में दोनों ही पक्षों को इंसाफ देने में राज्य सरकार नाकाम रही है.
कौन हैं ऑर्थोडॉक्स:
ऑर्थोडॉक्स समुदाय के ईसाई वो ईसाई हैं जो आज भी प्रारंभिक चर्च की पंक्तियों को सर्वोपरी मानते हैं और इसे के तहत पूजा करते हैं. इन्हें रूढ़िवादी माना जाता है और कहा यहां तक जाता है कि इनका पूजा करने का तरीका भी काफी अलग होता है.
कौन हैं जैकबाइट्स:
जैकबाइट्स ईसाईयों का एक दूसरा वर्ग है जो ये Syriac Orthodox Patriarch Of Antioch को मानते हैं और इनका मूल सीरिया से है. इनका चर्च एक स्वायत्त इकाई के रूप में काम करता है और शायद यही वो कारण है जिसके तहत ये ऑर्थोडॉक्स समुदाय से काफी भिन्न हैं.
बहरहाल अब जबकि ये मामला प्रकाश में आ गया है तो कहा यही जा सकता है कि जैसे जैसे दिन बढ़ेंगे इस मामले पर राजनीति और होगी. राज्य में उपचुनाव होने हैं ऐसे में नेताओं का प्रयास है कि वो कैसे भी करके इस मामले को भुना लें और इसे वोटों में तब्दील कर दें.
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