कश्मीर पर प्रधानमंत्री मोदी की कथनी और करनी में अंतर
मोदी जी को सरकार चलाते तीन साल से ज्यादा का वक्त गुजर गया, लेकिन उन्होंने अभी तक ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जिससे प्रतीत हो कि वो वाकई कश्मीर का हल बातचीत के जरिए सुलझाना चाहते हैं.
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लाल किले की प्राचीर से आजादी की 71वीं वर्षगांठ के मौके पर देश को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि गाली या गोली से नहीं, कश्मीरियों को गले लगाकर अलगाववाद को हराया जा सकता है. बिल्कुल, प्रधानमंत्री जी का स्वागत योग्य वक़्तव्य है. लेकिन मोदी जी को सरकार चलाते तीन साल से ज्यादा का वक्त गुजर गया, लेकिन उन्होंने अभी तक ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जिससे प्रतीत हो कि वो वाकई कश्मीर का हल बातचीत के जरिए सुलझाना चाहते हैं.
लाल किले पर भाषण देते प्रधानमंत्री
ऐसा मोदी जी पहली बार नहीं बोले हैं
वर्ष 2016 में स्वतंत्रता दिवस से मात्र एक सप्ताह पहले उन्होंने मध्यप्रदेश में कहा था कि उनकी सरकार अटल बिहारी वाजपेयी के ‘इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत’ के मंत्र में भरोसा रखती है. उन्होंने अलगाववादियों पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा था कि कश्मीर के युवकों के हाथों में किताब होनी चाहिए लेकिन उनकी हाथों में पत्थर हैं. उन्होंने कहा था कि यह देखना बहुत दुखदायी है कि जिन युवाओं के पास लैपटाप, क्रिकेट गेंद होनी चाहिए, उन्हें पत्थर थमा दिये गये हैं. लेकिन इस कदम में आगे कोई सकारात्मक पहल सरकार द्वारा नहीं की गई.
हुर्रियत नेताओं के साथ कोई बात नहीं
जब से नरेंद्र मोदी कि सरकार सत्ता में आयी है तब से हुर्रियत नेताओं के साथ कोई बातचीत की पहल नहीं की गई. जहां तक वाजपेयी जी का सवाल है तो उन्होंने हुर्रियत नेताओं से बातचीत की थी. पहली बार ऐसा हुआ था कि 1999-2004 के वाजपेयी कार्यकाल में आतंकवादी संगठन हिज़्बुल मुजाहिदीन को भी बातचीत की टेबल पर लाया गया था.
अनुच्छेद 35(ए) को हटाने की बात
कुछ भाजपा नेता संविधान के अनुच्छेद 35(ए) को कश्मीर से हटाना चाहते हैं. इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका लंबित है. ऐसे में कश्मीर मुद्दा सुलझने के बजाए उलझता ही नजर आ रहा है और सियासी गतिविधियां तेज हो गयी हैं. हालांकि केंद्र सरकार ने इसपर अभी तक कुछ साफ-साफ स्टैंड नहीं लिया है, जबकि उन्हें इसपर अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए क्योंकि केंद्र में मौजूद बीजेपी की गठबंधन सरकार जम्मू और कश्मीर में भी चल रही है. खुद भाजपा का सरकार में पार्टनर पीडीपी भी इसके खिलाफ खड़ा है.
अनुच्छेद 35A से जम्मू-कश्मीर सरकार और वहां की विधानसभा को स्थायी निवासी की परिभाषा तय करने का अधिकार मिलता है. इसका मतलब है कि राज्य सरकार को ये अधिकार है कि वो आजादी के वक्त दूसरी जगहों से आए शरणार्थियों और अन्य भारतीय नागरिकों को जम्मू-कश्मीर में किस तरह की सहूलियतें दे अथवा नहीं दे.
अनुच्छेद 370 हटाने कि कवायद
लोकसभा में चुनाव प्रचार के दौरान जम्मू की रैली में मोदी ने ही धारा 370 पर कम से कम बहस करने की बात कही थी. उधमपुर के लोकसभा सदस्य डॉ. जीतेंद्र सिंह को पीएमओ में राज्यमंत्री बना दिया था और डॉ. जीतेंद्र धारा 370 पर बहस की बात करने लगे थे. लेकिन अब हालत ये हैं कि एक तरफ जहां भाजपा जम्मू-कश्मीर की प्रमुख धारा 370 को हटाने की कवायद कर रही हैं वहीं दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती सरकार को चेताते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 को कमजोर करना सबसे बड़ा राष्ट्रविरोधी कार्य होगा.
अफ्सपा पर सरकार का सख्त रवैया
मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के अलावा नेशनल कांफ्रेंस भी विवादित सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून, अफ्सपा, को खत्म करने की मांग करते आये हैं लेकिन मोदी सरकार इसे हटाने के मूड में नहीं है. इस कानून को लेकर भी कश्मीर में नाराजगी रहती है. इस कानून के तहत जम्मू-कश्मीर की सेना को किसी भी व्यक्ति को बिना कोई वारंट के तलाशी या गिरफ्तार करने का विशेषाधिकार है. यदि वह व्यक्ति गिरफ्तारी का विरोध करता है तो उसे जबरन गिरफ्तार करने का पूरा अधिकार सेना के जवानों को प्राप्त है.
राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने कहा कि गोली से नहीं, गाली से नहीं लेकिन गोली और गाली दोनों उनके यहां से चल रही हैं क्योंकि बगैर गोली और गाली के हम लोगों का सुझाव था कि बातचीत के दरवाजे खुले रखने चाहिये. आपने दरवाजा भी बंद किया है, खिड़की भी बंद की है, वेंटिलेटर भी बंद किया है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या मोदीजी वाकई में बगैर गोली चलाये, गले लगाकर कश्मीर समस्या का हल चाहते हैं? अभी तक तो ऐसा प्रतीत नहीं हुआ. तो अब क्या यह उनका पॉलिसी शिफ्ट माना जाए?
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