मोदी की बातों पर कश्मीरियों को वाजपेयी जैसा यकीन क्यों नहीं होता?
जम्मू-कश्मीर के लोग अब तक वाजपेयी फॉर्मूले को बड़ी उम्मीद के साथ देखते रहे हैं. क्या अब उनके सामने जल्द ही कोई मोदी फॉर्मूला भी आने वाला है?
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जम्मू-कश्मीर के लोगों को गले लगाने की प्रधानमंत्री की पहल का चौतरफा स्वागत हुआ है. यहां तक कि अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारूक ने भी प्रधानमंत्री की पहल की तारीफ की है. पाकिस्तानी मीडिया भी प्रधानमंत्री के बयान को कश्मीर को लेकर मोदी सरकार की नीति में परिवर्तन के संकेत की तरह देख रहा है.
जम्मू-कश्मीर के लोग अब तक वाजपेयी फॉर्मूले को बड़ी उम्मीद के साथ देखते रहे हैं. क्या अब उनके सामने जल्द ही कोई मोदी फॉर्मूला भी आने वाला है?
बात भरोसे की
जम्मू-कश्मीर को लेकर अपडेट की बात करें तो टेरर फंडिंग केस में जम्मू कश्मीर के अलगाववादी नेता और इसमें उनके तमाम साथी एनआईए के शिकंजे में हैं. पिछले एक साल में बुरहान वानी और उसके साथी के अलावा हिज्बुल और लश्कर के कई कमांडर सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में ढेर हो चुके हैं - और धारा 35 A से छेड़छाड़ को लेकर कश्मीर में बहस जारी है.
अभी स्वतंत्रता दिवस से दो दिन पहले ही 13 अगस्त को कश्मीर के तीन बड़े अलगाववादी नेताओं सैयद अली गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक और यासीन मलिक ने घाटी में हड़ताल की कॉल दी थी - और आम जनजीवन पर उसका असर भी देखा गया. ये हड़ताल धारा 35 A के साथ संभावित छेड़छाड़ को लेकर ही बुलाई गयी थी. लेकिन लाल किले से जब मोदी ने कश्मीर के लोगों को गले लगाने की बात की तो मीरवाइज ने आगे बढ़कर तारीफ की.
न गाली, न गोली - बस, गले लग जा!
पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री से महबूबा की मुलाकात के बाद उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें कोई भरोसा दिलाया गया है, उनका कहना था, "हमारा गठबंधन इसी आधार पर हुआ था कि धारा 370 के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी - इसलिए हम में से कोई भी इसके खिलाफ नहीं जाएगा."
उससे पहले में महबूबा मुफ्ती ने कहा था कि अगर अनुच्छेद 35 A से छेड़छाड़ की गई तो कश्मीर में भारत का झंडा थामने वाला कोई नहीं बचेगा. असल में 35 A जम्मू कश्मीर के 1927 और 1932 के शासनादेशों में जो बातें कही गयीं थी उन्हें कानूनी संरक्षण देता है जिससे राज्य के लोंगों को विशेष अधिकार हासिल है. एक गैर सरकारी संगठन द्वारा इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिये जाने के बाद कश्मीर में इस पर बहस शुरू हो गयी है. वहां एक आम भावना पनप रही है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इशारे पर इसके जरिये धारा 370 को खत्म करने की तैयारी चल रही है. उमर अब्दुल्ला भी समझा रहे हैं कि बीजेपी को मालूम हो गया है कि वो विधायिका के जरिये इसे खत्म नहीं कर सकती इसलिए कानून का सहारा ले रही है. हालांकि, महबूबा मुफ्ती कह रही हैं उन्हें सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा है क्योंकि पहले भी वहां से ऐसे कई अपील खारिज हो चुके हैं.
महबूबा कोर्ट पर भरोसे की बात जरूर करती हैं लेकिन ये भी कहती हैं कि जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे के बचाव में मुख्यधारा की पार्टियों में सत्ता की लड़ाई आड़े नहीं आएगी. 35-A को बचाने के लिए संयुक्त रणनीति तैयार करने के लिए वो फारूक का अब्दुल्ला का आभार भी जताती हैं और कहती हैं कि फारूक ने उन्हें एक पिता की तरह सलाह और प्यार दिया. महबूबा का ये पैंतरा काफी दिलचस्प लगता है. फारूक अब्दुल्ला के हाल के बयान देखें तो उनकी हर बात अलगाववादियों की ही जबान लगती है.
आ गले लग जा
पिछले तीन साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर के लोगों को कई बार संबोधित किया है जिनमें तीन बातें ध्यान देने वाली हैं. मोदी की पिछली बातों और उनके ताजा बयान पर गौर करें तो उनमें एक नीतिगत शिफ्ट नजर आता है जिसे बड़े करीने से गढ़ा गया हो.
35 A पर कोई पार्टीलाइन नहीं...
जम्मू-कश्मीर में जब बीजेपी और पीडीपी की गठबंधन सरकार बनी तो मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के फॉर्मूले 'कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत' को आगे बढ़ाने की बात कही थी. उसके बाद कई मौकों पर दोनों दलों की ओर से इस फॉर्मूले का जिक्र हुआ और माना गया कि कश्मीर के लोगों के जख्मों पर ये एक मरहम की तरह असर करता है.
अप्रैल में चेनानी-नशरी सुरंग के उदघाटन के मौके पर मोदी ने कश्मीरी युवाओं को टूरिज्म और टेररिज्म में से किसी एक को चुनने का सुझाव दिया था. लेकिन फारूक अब्दुल्ला को मोदी का ये बयान नागवार गुजरा था और युवाओं की बात करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें टूरिज्म से कोई वास्ता नहीं - वे भूख से मर जाएंगे लेकिन अपने हक के लिए पत्थर बरसाते रहेंगे.
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कश्मीर मुद्दे पर प्रधानमंत्री ने कहा, "हम स्वर्ग को फिर से अनुभव कर सकने की स्थिति में लाने के लिए कटिबद्ध हैं. कश्मीर समस्या न गाली से, न गोली से सुलझेगी, समस्या सुलझेगी कश्मीरियों को गले लगाने से."
अलगाववादी नेता मीरवाइज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान का स्वागत करते हुए कहा कि अगर गोली और गाली की जगह इंसानियत और इंसाफ आ जाए तो शांत कश्मीर का सपना हकीकत में बदल सकता है.
अगर महबूबा मुफ्ती को देखें तो कभी वो कहती हैं कि मोदी ही कश्मीर समस्या सुलझा सकते हैं, कभी वो इंदिरा गांधी को सबसे बड़ा लीडर बताती हैं - और जब बात धारी 35 A पर आ जाती है तो अपने राजनीतिक विरोधियों नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के साथ खड़ी नजर आती हैं. जाहिर है केंद्र में भी सत्ताधारी बीजेपी इन सारी बातों पर गौर कर रही होगी. ऐसे में प्रधानमंत्री के गले लगाने की बात क्या मोदी सरकार की कश्मीर नीति में कुछ बदलाव के संकेत तो देती ही है.
महबूबा कश्मीर को लेकर बातचीत पर हमेशा जोर देती आई हैं. वो बातचीत में अलगाववादियों के साथ साथ पाकिस्तान को भी शामिल करने की पक्षधर नजर आती हैं. जब प्रधानमंत्री पूछते हैं कि पाकिस्तान में बात की जाये तो किससे - क्या नॉन-स्टेट एक्टर्स से? इस बात का महबूबा के पास कोई जवाब नहीं होता. अलगाववादियों से जब बातचीत की पहल होती है तो वे नेताओं को दरवाजे से ही वापस भेज देते हैं.
'प्रधानमंत्री मोदी ही कश्मीर समस्या को हल करने में सक्षम हैं' कहने वाली महबूबा को क्या अब अपने ही यकीन में भरोसा नहीं रहा? क्या वाजपेयी पर महबूबा को इसलिए ज्यादा यकीन रहा क्योंकि उन्होंने लाहौर यात्रा जैसी पहल की थी? लेकिन मोदी भी तो नवाज शरीफ को बर्थडे विश करने गये थे. ऐसा तो नहीं कि महबूबा को जबसे इंदिरा गांधी की याद आने लगी है और फारूक अब्दुल्ला पिता तुल्य नजर आने लगे हैं - मोदी में उन्हें वाजपेयी का अक्स दिखना बंद हो गया है? यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी की जादू की झप्पी में नीतिगत बदलाव के संकेत मिल रहे हैं.
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