क्या फिर से हिंदी-चीनी भाई भाई होने की तैयारी है?
डोकलाम, भारत और चीन, दोनों के लिए अपनी ताकत का आंकलन करने वाला था. ये एक सच्चाई है कि सैन्य ताकत के मामले में चीन भारत से कहीं आगे है. लेकिन फिर भी भारत नहीं झुका इस बात का विश्व पर खास असर पड़ा.
-
Total Shares
विदेश नीति के क्षेत्र में एक प्रमुख कूटनीतिक सफलता हासिल करते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, 27 और 28 अप्रैल को चीन के दौरे पर हैं. वहां चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ एक शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे. लगभग एक वर्ष के तनावपूर्ण संबंधों के बाद मोदी-शी शिखर सम्मेलन एशिया के दो प्रमुख ताकतवर देशों के संबंधों में नई जान फूंकेगा.
EAM @SushmaSwaraj : Prime Minister of India @narendramodi will visit China on 27 & 28 April for an Informal Summit with President of China Xi Jinping in the city of Wuhan. pic.twitter.com/SUs2VSAVDO
— Raveesh Kumar (@MEAIndia) April 22, 2018
प्रधान मंत्री मोदी के लिए डोकलाम में 73 दिनों के तनाव के बाद देश की मनोदशा पर विचार करने के मकसद से एक बड़ा कदम है. अगर ये अनौपचारिक शिखर सम्मेलन सफल हो जाता है, तो यह एक गेम चेंजर होगा और शायद दोनों देशों के सीमा संबंधी टकराव को खत्म कर सकता है. वार्ता अब दशकों से खींचीं आ रही है और 16/17 राउंड के बाद भी दोनों पक्ष एक स्थायी समाधान के करीब दिखाई नहीं दे रहे हैं. अगर ऐसा नहीं होता है, तो भी ये निश्चित रूप से एशिया में दीर्घकालिक स्थिरता का कारण बनेगा.
इसके साफ संकेत सभी के सामने हैं. सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक उस पत्र का लीक होना था जिसमें वरिष्ठ सरकारी मंत्रियों और अधिकारियों से आग्रह किया था कि वो निर्वासित तिब्बती सरकार द्वारा घोषित "धन्यवाद भारत" कार्यक्रम में भाग न लें. कार्यक्रम के स्थान को भी चुपचाप दिल्ली से धर्मशाला शिफ्ट कर दिया गया था. हालांकि बीजेपी के वरिष्ठ कार्यकर्ता राम माधव और संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने आखिरकार इस समारोह में भाग लिया था. लेकिन इसे वैसी कवरेज नहीं जैसी अगर बैठक दिल्ली में होती और वरिष्ठ एनडीए मंत्री इसमें शामिल हुए होते तब मिलती.
संबंधों की बर्फ अब पिघलनी चाहिए
चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने रविवार को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मोदी की चीन यात्रा के बारे में घोषणा की. सुषमा स्वराज, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की एक बैठक में हिस्सा लेने के लिए चीन में हैं. रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण भी चीन में एससीओ के रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन में हैं. पिछले हफ्ते, तैयारियों का जायजा लेने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल ने चीन का दौरा किया था.
बीजिंग में संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए वांग यी ने कहा, "हम यह सुनिश्चित करेंगे कि अनौपचारिक शिखर सम्मेलन (पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी के बीच) पूर्णत: सफल होगा और चीन-भारत संबंधों में मील का पत्थर साबित होगा."
वांग यी ने बताया कि अनौपचारिक शिखर सम्मेलन का मकसद द्विपक्षीय और अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर विचारों का आदान-प्रदान करना और दोनों नेताओं के बीच आपसी संवाद और संचार बढ़ाने देना है. उन्होंने कहा, "दोनों नेताओं के बीच एक शताब्दी में दुनिया भर में बदलावों के बारे में एक रणनीतिक बातचीत होगी. वे चीन-भारत संबंधों के भविष्य से संबंधित दीर्घकालिक और रणनीतिक सहयोग को बढ़ाने के लिए विचारों का आदान-प्रदान करेंगे."
बैठक चीन के केंद्रीय शहर वुहान में होगी. प्रधान मंत्री को चीन के राष्ट्रपति द्वारा निमंत्रण भेजा गया था. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "दोनों देशों के नेताओं के लिए ये बैठक ऐसा महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करेगी जिसमें वो द्विपक्षीय और अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर विचारों का आदान-प्रदान करेंगे. इससे हमारे नेताओं के बीच पारस्परिक संवाद को बढ़ाने में बहुत मदद मिलेगी."
भारत में चीन के राजदूत लुओ झाहुई ने ट्विटर पर अपने पहले ट्वीट के साथ ही घोषणा की:
विदेश मंत्री वांग यी और उनके भारतीय समकक्ष स्वराज के साथ बीजिंग में मीटिंग में हिस्सा लेकर खुश हूं. उन्होंने 27, 28 अप्रैल को वुहान शहर में राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पीएम मोदी के बीच एक अनौपचारिक समिट की घोषणा की.
Glad to have attended the meeting between Foreign Minister Wang Yi and his Indian counterpart Swaraj in Beijing. They announced the informal summit between President Xi Jinping and PM Modi to be held in Wuhan city, on April 27 to 28. @narendramodi @SushmaSwaraj pic.twitter.com/W0CBAkKD8c
— Luo Zhaohui (@China_Amb_India) April 22, 2018
डोकलाम, भारत और चीन, दोनों के लिए अपनी ताकत का आंकलन करने वाला था. ये एक सच्चाई है कि सैन्य ताकत के मामले में चीन भारत से कहीं आगे है. साथ ही ये एक आर्थिक पावर हाउस भी है. लेकिन फिर भी डोकलाम में, भारत रणनीतिक रूप से फायदेमंद स्थिति में था और भारतीय सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) का मुकाबला करने की स्थिति में थी.
70 दिनों से भी ज्यादा समय के लिए दोनों ही पक्ष पीछे नहीं हटे. 1962 की लड़ाई की तरह में इस बार भारत को हराना चीन के लिए आसान नहीं था. और न ही नई दिल्ली अपने कदम वापस खींच सकता था. ऐसा करने से सभी दक्षिण एशियाई पड़ोसियों को गलत संकेत जाता. डोकलाम में मजबूती से खड़े रहकर भारत ने भूटान को साफ संदेश दिया था: "हम आपके लिए लड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं."
अगर भारत पीछे हट जाता तो भूटान सहित नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश के सामने भारत की कमजोर छवि प्रस्तुत होती. एक देश की छवि जो चीन की शक्ति का सामना करने में असमर्थ है. हालात सामान्य होने तक दोनों ही पक्ष अपनी अपनी बंदूकें लिए मुस्तैदी से जमे रहे. बीजिंग भी इस समय भारत के साथ किसी भी तरह सैन्य संघर्ष करने के मूड में नहीं है. क्योंकि अभी उसका ध्यान महत्वाकांक्षी बेल्ट और रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) के साथ-साथ समुद्री सिल्क रूट पर टिका है. हालांकि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) आगे बढ़ रहा है. चीन वैसे भी पाकिस्तान के ग्वादर क्षेत्र में बलूच प्रतिरोध से परेशान है.
हालांकि भारत ही इकलौता बड़ा देश था जिसने मई 2017 में सिल्क रुट इनीशिएटिव सम्मेलन में हिस्सा लेने से मना कर दिया था. बीजिंग ने राष्ट्रपति शी के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए भारत से कई बार संपर्क किया था. भारत ने संप्रभुता के आधार पर इस सम्मेलन का विरोध किया, क्योंकि सीपीईसी पाक अधिकृत कश्मीर से होक गुजरती है जिसे भारत अपना हिस्सा मानता है.
हालांकि, अब भारत और चीन, बीआरआई की कुछ परियोजनाओं में नेपाल में एक साथ काम कर सकते हैं. जिससे भारत को फायदा ही होगा. इससे संकेत ये मिल रहे हैं कि संबंधों को सुधारा जा सकता है.
हालांकि यह भी नहीं कहा जा सकता कि भारत और चीन के बीच कोई मतभेद नहीं होगा. मूल राष्ट्रीय हितों के मुद्दे पर कोई भी पक्ष नहीं झुकेगा. चीन, पाकिस्तान का समर्थन जारी रखेगा. साथ ही इस्लामाबाद के परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह का हिस्सा बनने की सिफारिश भी करता रहेगा. फिर भी मोदी और शी दोनों को एहसास हो चुका है कि युद्ध किसी बात का हल नहीं है. हालांकि भारत में कई संस्थाएं हैं जो 1962 की अपमानजनक हार को भूलकर चीन को चुनौती देना पसंद करेंगे.
लेकिन फिर भी मोदी और शी जैसे व्यावहारिक राजनीतिक नेताओं को अब यह सुनिश्चित करना है कि दोनों एशियाई दिग्गजों के बीच संबंध स्थिर रहे.
( ये लेख सीमा गुहा ने DailyO के लिए लिखा था)
ये भी पढ़ें-
शी जिनपिंग सरकार का अब इंटरनेट पर वार!
आपकी राय