PM Modi की चिट्ठी आयी है - हौसलाअफजाई और नया टास्क लाई है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने अपनी सरकार की दूसरी पारी में एक साल पूरे होने पर देशवासियों को चिट्ठी (Letter to India) लिखी है, जिसके आखिर में खुद को प्रधानसेवक बताया है. चिट्ठी के जरिये प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों आत्मनिर्भर (Self Reliant) होना का नुस्खा भी बताया है.
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मोदी सरकार 2.0 के एक साल पूरा होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने देश के लोगों को एक चिट्ठी (Letter to India) लिखी है. चिट्ठी लिखने की वजह भी शुरू में ही साफ कर दी है, 'यदि सामान्य स्थिति होती तो मुझे आपके बीच आकर आपके दर्शन का सौभाग्य मिलता. लेकिन वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से जो परिस्थितियां बनी हैं, उन परिस्थितियों में, मैं इस पत्र के द्वारा आपके चरणों में प्रणाम करने और आपका आशीर्वाद लेने आया हूं.'
अपनी चिट्ठी में प्रधानमंत्री मोदी ने जिक्र तो पूरे छह साल के शासन का किया है, लेकिन खास जोर बीते एक साल पर है, 'बीते एक वर्ष में कुछ महत्वपूर्ण निर्णय ज्यादा चर्चा में रहे और इस वजह से इन उपलब्धियों का स्मृति में रहना भी बहुत स्वाभाविक है.'
मोदी लिखते हैं, 'देशवासियों की आशाओं-आकांक्षाओं की पूर्ति करते हुए हम तेज गति से आगे बढ़ ही रहे थे, कि कोरोना वैश्विक महामारी ने भारत को भी घेर लिया,' और लगे हाथ हौसलाअफजाई भी करते हैं, 'जैसे भारत ने अपनी एकजुटता से कोरोना के खिलाफ लड़ाई में पूरी दुनिया को अचंभित किया है, वैसे ही आर्थिक क्षेत्र में भी हम नई मिसाल कायम करेंगे. 130 करोड़ भारतीय, अपने सामर्थ्य से आर्थिक क्षेत्र में भी विश्व को चकित ही नहीं बल्कि प्रेरित भी कर सकते हैं.'
2014 अच्छे दिनों की उम्मीद जगाते हुए सत्ता में आये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नया टास्क भी दे दिया है - आत्मनिर्भर (Self Reliant) बनने का.
अच्छे दिन से होते हुए आत्मनिर्भरता की ओर
2014 में नरेंद्र मोदी 'अच्छे दिनों' की उम्मीद और भरोसा दिलाते हुए प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे और पांच साल के शासन के बाद पहले के मुकाबले ज्यादा बहुमत के साथ सत्ता में लौटे. प्रधानमंत्री मोदी ने विशेष रूप से इसका उल्लेख भी किया है, 'आज से एक साल पहले भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक नया स्वर्णिम अध्याय जुड़ा. देश में दशकों बाद पूर्ण बहुमत की किसी सरकार को लगातार दूसरी बार जनता ने ज़िम्मेदारी सौंपी थी. इस अध्याय को रचने में आपकी बहुत बड़ी भूमिका रही है.'
कोरोना संकट से उबारने के मकसद से 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा करते वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकट को अवसर में बदलने की बात कही थी - और साथ में जोड़ा भी था कि ये पैकेज देश को आत्मनिर्भर बनाने में सबसे बड़ा मददगार साबित होगा. प्रधानमंत्री मोदी ने चिट्ठी में भी ये बात दोहरायी है, 'अभी हाल में आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिए दिया गया 20 लाख करोड़ रुपये का पैकेज, इसी दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम है.'
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी चिट्ठी में आर्थिक पैकेज का बखान करते हुए समझाया है कि कैसे ये नये मौके लेकर आएगा - हर देशवासी के लिए, श्रमिक, लघु उद्यमी, स्टार्ट अप से जुड़े नौजवान और हर किसी के लिए.
30 मई, 2019 को जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद की दोबारा शपथ ले रहे थे तब उनकी मां घर पर टीवी पर थीं - और टीवी पर देख कर ताली बजा रही थीं.
वैसे जिस तरीके से भारत और चीन सरहद पर तनाव बना हुआ है, उसमें दुश्मन को शिकस्त देने में आत्मनिर्भरता के प्रयास काफी उपयोगी साबित हो सकते हैं. चीन के लिए भारत एक बड़ा बाजार है. भारत भी चीन से आयात होने वाले रोजमर्रा के बहुतेरे सामानों पर निर्भर है. मोबाइल से लेकर रोजाना इस्तेमाल होने वाले तमाम सामान और कल-पुर्जे तक चीन से आयात होकर आ रहे हैं. यहां तक कि मच्छर मारने वाला रैकेट भी मेड इन चाइना है. अगर फोकस आत्मनिर्भरता की ओर शिफ्ट हो जाता है तो ये भी चीन को शिकस्त देने वाली ही बात होगी. वैसे भी चीन का राजनीतिक नेतृत्व इसी थ्योरी में भरोसा करता है कि या उपाय खोजता रहता है कि कैसे सीधे मुकाबले के बगैर ही जंग में दुश्मन को मात दे दी जाये. अगर भारत में ऐसा हो जाता है तो उसे शठे शाठ्यम् समाचरेत ही समझा जाएगा.
सोशल मीडिया पर लगातार मुहिम चलायी जा रही है कि चीन में बने सामानों का बहिष्कार किया जाये. मगर, अचानक ये मुमकिन है क्या? ये तभी संभव है जब भारत, चीन में बने सामानों से सस्ता नहीं तो कम से कम उतनी ही लागत पर रोजमर्रा के सामान या अन्य वस्तुएं बनाने लगे. बहिष्कार की मुहिम तभी संभव हो सकती है, जब विकल्प मौजूद हो. भूखे पेट भजन करना मुश्किल नहीं, नाममुकिन ही होता है.
प्रधानमंत्री मोदी जिस तरीके से आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाना चाहते हैं उसमें सरकार से ज्यादा जनता की जिम्मेदारी बनती है. आत्मनिर्भर होने का पहला सबक तो यही लगता है कि जैसे भी संभव हो, हर कोई खुद के पैरों पर खड़ा होने की कोशिश करे - और इसके लिए किसी का मुंह न देखे. ये तो भूल ही जाये कि कोई मदद मिलेगी तभी वो आत्मनिर्भरता की तरफ कदम बढ़ा पाएगा.
दरअसल, ये कर्तव्य बोध का, कर्तव्यनिष्ठ होने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से दिया गया टास्क है - जैसे महाकवि जयशंकर प्रसाद हौसलाअफजाई करते हैं -
हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती,
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती.
'अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!'
अपने पत्र में प्रधानमंत्री मोदी ने भी लिखा तो यही है - 'आज समय की मांग है कि हमें अपने पैरों पर खड़ा होना ही होगा. अपने बलबूते पर चलना ही होगा और इसके लिए एक ही मार्ग है - आत्मनिर्भर भारत.'
थोड़ा ध्यान देने पर ये भी समझ में आता है कि प्रधानमंत्री मोदी के आत्मनिर्भरता के मंत्र में सिर्फ जयशंकर प्रसाद की हौसलाअफजाई ही नहीं है, अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी के सबक कर्तव्य परायणता का भाव भी कूट कूट कर भरा हुआ है - "ये मत पूछो कि तुम्हारा देश तुम्हारे लिए क्या कर सकता है? पूछो कि तुम अपने देश के लिए क्या कर सकते हो?"
लेकिन राम मंदिर का फैसला तो सुप्रीम कोर्ट का था!
अपनी चिट्ठी के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी ने बड़े ही विनम्र भाव से कुछ बातें स्वीकार भी की हैं - 'देश के सामने चुनौतियां अनेक हैं, समस्याएं अनेक हैं. मैं दिन-रात प्रयास कर रहा हूं. मुझ में कमी हो सकती है लेकिन देश में कोई कमी नहीं है. और इसलिए, मेरा विश्वास स्वयं से ज्यादा आप पर है, आपकी शक्ति, आपके सामर्थ्य पर है.'
सड़क पर पैदल चलते हुए जगह जगह जान गंवाते मजदूरों, गरीबों और अचानक आयी महामारी के चलते लॉकडाउन की वजह से रोजी रोटी के लिए बेहाल परेशान लोगों की फिक्र भी प्रधानमंत्री मोदी को है, ऐसा पत्र से मालूम होता है, 'निश्चित तौर पर, इतने बड़े संकट में कोई ये दावा नहीं कर सकता कि किसी को कोई तकलीफ और असुविधा न हुई हो. हमारे श्रमिक साथी, प्रवासी मजदूर भाई-बहन, छोटे-छोटे उद्योगों में काम करने वाले कारीगर, पटरी पर सामान बेचने वाले, रेहड़ी-ठेला लगाने वाले, हमारे दुकानदार भाई-बहन, लघु उद्यमी, ऐसे साथियों ने असीमित कष्ट सहा है.'
चिट्ठी के जरिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोदी सरकार 2.0 की एक साल की उपलब्धियों में धारा 370 से लेकर नागरिकता संशोधन कानून तक सभी का जिक्र किया है - लेकिन एक चीज पर थोड़ी हैरानी होती है - राम मंदिर निर्माण का फैसला.
सवाल है कि क्या राम मंदिर निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी मोदी सरकार की उपलब्धियों में शुमार किया जाएगा? अगर ऐसा है तो ये अपने आपमें सवाल खड़े करता है. किसी विवादित मुद्दे पर संवैधानिक तरीके से देश के कानून के आधार पर न्यायपालिका के फैसले का श्रेय भला विधायिका कैसे ले सकती है?
धारा 370 को संसद ने बहुमत के फैसले से खत्म कर दिया. निश्चित तौर पर ये मोदी सरकार की उपलब्धि है.
तीन तलाक और नागरिकता संशोधन कानून भी संसद में बहुमत से पारित कानून हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र अगर इसे अपनी सरकार की उपलब्धि बताते हैं तो शायद ही किसी को किसी भी तरीके से ऐतराज हो. कानून का विरोध अगर कोई विचारधारा की मजबूरी या राजनीतिक वजहों से करता है तो वो अलग बात है, लेकिन ये पूरी तरह देश की जनता की चुनी हुई सरकार के बहुमत से लिया गया फैसला है.
ऐसा नहीं है कि राम मंदिर का जिक्र पहली बार मोदी सरकार की उपलब्धियों में शामिल किया जा रहा है. 2019 में जब सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर निर्माण को लेकर अपना फैसला सुनाया था उसी दौरान झारखंड विधानसभा के चुनाव हो रहे थे - और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बार बार चुनावी रैलियों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्रेडिट लेने की कोशिश की. ये सवाल तो तब भी बनता था लेकिन बात ये थी कि ऐसे सवालों का जवाब एक ही बार में अमित शाह पहले ही दे चुके थे. 2014 के आम चुनाव में विदेशों में जमा काला धन लाकर लोगों को 15-15 लाख रुपये देने की जो बातें नरेंद्र मोदी के भाषणों में सुनने को मिली थीं, अमित शाह ने उसे जुमला बताया था. राम मंदिर निर्माण के सवाल पर भी वही जवाब लागू होता है, लेकिन ये तो प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों के नाम अपनी चिट्ठी में लिखी है और ये राष्ट्र के नाम संबोधन का ही एक रूप समझा जाएगा.
अगर प्रधानमंत्री मोदी SC-ST एक्ट को भी अपनी सरकार की उपलब्धियों में शामिल करते तो कोई बड़ी बात नहीं मानी जाती. एससी-एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को तो सरकार ने संवैधानिक तरीके से और बहुमत से पलट दिया गया था - लेकिन राम मंदिर निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मोदी सरकार के फैसले में कैसे शामिल किया जा सकता है. राम मंदिर पर फैसला आने से पहले उत्तर प्रदेश के एक बीजेपी विधायक का बयान खूब चर्चित हुआ था - सुप्रीम कोर्ट भी अपना ही है. बाद में वो विधायक सफाई देने के नाम पर अपने बयान से पलट गया. जब मुख्य न्यायाधीश के पद से रिटायर होने के बाद जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा का सदस्य बनाया गया तो भी सवाल उठे. हालांकि, जस्टिस गोगोई को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मनोनीत किया है - क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राम मंदिर निर्माण को उपलब्धियों के फेहरिस्त में शामिल करना बीते दिनों उठाये गये सवालों को नये सिरे से प्रासंगिक नहीं बना रहा है?
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