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Updated: 22 सितम्बर, 2022 07:11 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के हिसाब से भारत जोड़ो यात्रा का राजस्थान में भी अच्छा खासा प्रोग्राम बना हुआ है, लेकिन उससे पहले ही वो कोच्चि पहुंच रहे हैं. कहने को तो वो प्रतीकात्मक रूप से यात्रा में शामिल हो रहे हैं, लेकिन असल मकसद राहुल गांधी से मुलाकात करनी है.

24 सितंबर को होने वाले कांग्रेस अध्यक्ष (Congress President) पद के नामांकन से पहले अशोक गहलोत और राहुल गांधी की ये मुलाकात काफी महत्वपूर्ण है. वैसे तो अशोक गहलोत एक दिन रुक जाते तो राहुल गांधी से दिल्ली में ही उनकी मुलाकात हो सकती थी. असल में सोनिया गांधी से मिलने राहुल गांधी दिल्ली पहुंच रहे हैं, लेकिन प्रचारित ये किया जा रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया से वो दूरी बनाये रखेंगे.

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश के मुताबिक, राहुल गांधी 23 सितंबर को दिल्ली आएंगे, लेकिन उनका अपनी मां सोनिया गांधी से मिलने के लिए ही कार्यक्रम बना है - कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के लिए होने वाले नामांकन से इसका कोई लेना देना नहीं है.

कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए 24 से 30 सितंबर के बीच पार्टी के दिल्ली मुख्यालय में नामांकन दाखिल किया जा सकेगा - और उस दौरान राहुल गांधी फिर से भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हो जाएंगे. कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए वोटिंग 17 अक्तूबर को होगी - और वोटों की गिनती 19 अक्तूबर को.

ऐसे में कोच्चि जाकर राहुल गांधी से अशोक गहलोत का मिलना ये तो बता ही रहा है कि खास विचार विमर्श होना है. अगर अब तक सामने आयी खबरों और जारी चर्चाओं के हिसाब से देखें तो राहुल गांधी से अशोक गहलोत राजस्थान की राजनीति (Rajasthan Politics) में दखल बने रहने देने की छूट चाहेंगे. वैसे सार्वजनिक तौर पर तो वो यही बता रहे हैं कि वो राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए मनाने जा रहे हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष के सवाल पर राहुल गांधी के मीडिया को दिये बयान और जयराम रमेश की बातों को समझें तो लगता नहीं कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बारे में बिलकुल भी सोच रहे हैं. वो खुद ही बता चुके हैं कि साफ तौर पर वो फैसला कर चुके हैं - और कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव हो जाने के बाद ये सब साफ भी हो जाएगा.

खबर इस बीच ये भी आ रही है कि कांग्रेस में एक व्यक्ति, एक पद' के सिद्धांत से कांग्रेस नेतृत्व के टस से मस न होने की स्थिति पैदा हुई तो अशोक गहलोत ने प्लान-बी भी तैयार कर लिया है - ताकि दिल्ली शिफ्ट हो जाने पर भी कंट्रोल न छूटे. और ऐसा तभी हो सकता है जब किसी भी सूरत में वो सचिन पायलट को अपना उत्तराधिकारी न बनने दें.

देश के मौजूदा राजनीतिक माहौल को देखें तो अगले कांग्रेस अध्यक्ष की कामयाबी पर तो पहले से ही सवालिया निशान लगा हुआ है. किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ऐसी कोई सूरत भी बनी कि कांग्रेस को सत्ता का स्वाद चखने का मौका मिलता है, तब तक तो नये कांग्रेस अध्यक्ष की पारी भी खत्म हो चुकी होगी.

एक बार बातचीत में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बड़ी उम्मीदों के साथ कहा था कि उनके कार्यकाल का मूल्यांकन तो इतिहास करेगा, और इस बात पर भी जोर रहा कि इतिहास ये काम उदारतापूर्वक करेगा - अशोक गहलोत के कार्यकाल की पैमाइश हुई तो राजस्थान की राजनीति से मूव ऑन न कर पाना उनके लिए सबसे कमजोर कड़ी साबित हो सकती है.

गहलोत तो मूव-ऑन करना ही पड़ेगा

जयपुर में विधायकों के साथ मीटिंग के बाद अशोक गहलोत दिल्ली पहुंचे और सोनिया गांधी से मुलाकात की. ये मुलाकात करीब दो घंटे चली. हाल फिलहाल ये दूसरी चर्चित मुलाकात रही. इससे पहले अशोक गहलोत सोनिया गांधी के विदेश दौरे पर रवाना होने से ठीक पहले मिले थे - और उसी के बाद मीडिया में खबर आयी कि कांग्रेस नेतृत्व गहलोत को कामकाज संभालने का संकेत दे दिया है. फिर भी अशोक गहलोत पूछे जाने पर बार बार राहुल गांधी का ही नाम लेते रहे.

ashok gehlot, sonia gandhi, rahul gandhiराजस्थान की राजनीति के मामले में अब अशोक गहलोत अपनिी बात मनवाते रहे, अब राहुल गांधी और सोनिया गांधी की बाद माननी ही होगी.

राजस्थान के कांग्रेस विधायकों से मिलने के बाद पहली बार बोले कि अगर राहुल गांधी नहीं माने तो वो कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरेंगे - और अगर ऐसा हुआ तो सारे ही विधायकों को दिल्ली पहुंचना होगा. ये तो साफ हो चुका है कि शशि थरूर और अशोक गहलोत नामांकन भरने जा रहे हैं, लेकिन ये देखना बाकी है कि राजस्थान से कितने विधायक दिल्ली पहुंचते हैं?

10, जनपथ से निकलने के बाद अशोक गहलोत ने मुंबई की फ्लाइट पकड़ ली - और अगली मंजिल कोच्चि बतायी गयी है. कोच्चि में वो राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में हिस्सा लेंगे और मौका मिलते ही मुद्दे की बात होगी. राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से जब यात्रा शुरू की थी तो कांग्रेस के करीबी नेताओं के साथ अशोक गहलोत भी मौजूद थे. फिर राजस्थान में यात्रा की तैयारियों में लग गये थे.

अब अशोक गहलोत भले कह रहे हों कि वो राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए मनाने जा रहे हैं, लेकिन ये काम तो वो पिछले तीन साल से कर रहे हैं. अब तो ऐसा लगता है जैसे वो राहुल गांधी के सामने कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए शर्तें रखने जा रहे हैं - जी हां, वही शर्तें जो सोनिया गांधी से मुलाकात में वो रख चुके होंगे. और दोनों का मन रखने के लिए सोनिया गांधी ने बोल दिया होगा - एक बार राहुल से भी बात कर लो!

कांग्रेस सूत्रों के हवाले से अब भी खबर यही आ रही है कि पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद भी अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे रहना चाहते हैं. मीडिया के ऐसे सवालों के जवाब में जोर देकर कहते हैं, मैं मुख्यमंत्री तो हूं ही. और ज्यादा कुरेदे जाने पर वैसी ही बातें करते हैं जैसे राहुल गांधी खुद के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के सवालों पर कहते हैं - वो तो देखने वाली बात होगी. अशोक गहलोत कहते हैं कि आगे क्या होगा वो नहीं जानते. अंतिम सत्य तो यही होता है. कोई जानता कहां है. प्रयास जरूर करता है. प्रयास के नतीजे ताकत के हिसाब से तय होते हैं. अब तक तो राजस्थान के मामले में अशोक गहलोत ही ताकतवर नजर आये हैं - सच में आगे का कौन जानता है? लिहाजा, अशोक गहलोत एक छोटा सा पुट भी पिरो देते हैं - वो वही काम करेंगे जिससे कांग्रेस को फायदा होगा.

लेकिन ऐसा भी तो नहीं कि अशोक गहलोत अकेले गांधी परिवार के करीबी हैं, सचिन पायलट के मामले में संभव है मनमानी की छूट मिल जाये, लेकिन हर मामले में तो ऐसा होने से रहा - और वो भी तब जब दिग्विजय सिंह की वापसी हो चुकी है. नर्मदा परिक्रमा से सीवी मजबूत हो जाने के बाद वो कांग्रेस के नये ड्रीम प्रोजेक्ट भारत जोड़ो यात्रा के संयोजक बनाये गये हैं. मुमकिन है दिग्विजय सिंह का राहुल गांधी पर पहले की तरह भी प्रभाव बनने लगा हो. दिग्विजय सिंह की कांग्रेस खेमे में धमक तो तभी सुनायी देने लगी थी जब प्रशांत किशोर प्रजेंटेशन दे रहे थे. वैसे दिग्विजय की धमक के साथ अशोक गहलोत की भी मजबूत मौजूदगी दर्ज हुई थी.

कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर मीडिया के सवाल को दिग्विजय सिंह अपने हिसाब से तपाक से लपक लेते हैं और पूछ बैठते हैं - आप मेरा नाम खारिज क्यों कर रहे हैं? मजाकिया लहजे में ही सही, लेकिन दिग्विजय सिंह का ये बयान तो अशोक गहलोत को ध्यान में रख कर ही दिया गया लगता है. शशि थरूर के लिए तो बिलकुल नहीं.

लगे हाथ, दिग्विजय सिंह ये भी साफ कर देते हैं कि अगर अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष बनते हैं तो वो एडिशनल चार्ज जैसा तो बिलकुल नहीं होगा. दिग्विजय सिंह ने अपनी तरफ से ये तो साफ कर ही दिया है कि अशोक गहलोत के अध्यक्ष बनने पर राजस्थान के मुख्यमंत्री का पद छोड़ना ही होगा.

दिग्विजय सिंह इस मुद्दे पर उदयपुर के कांग्रेस चिंतन शिविर के प्रस्तावों की भी याद दिलाते हैं कि एक शख्स के पास एक ही पद रहेगा. मध्य प्रदेश की मिसाल देते हुए दिग्विजय सिंह याद भी दिलाते हैं कि कमलनाथ को एक पद छोड़ना ही पड़ा था. लेकिन वो ये भूल रहे हैं कि कमलनाथ ने इस्तीफा देने में बहुत देर कर दी थी. कमलनाथ ने इस्तीफा तो दिया, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ देने के बाद ही. हो सकता है कमलनाथ ने देर नहीं की होती तो सिंधिया उतना बड़ा कदम नहीं उठाये होते.

मतलब, अब मान कर चलना चाहिये कि कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर अशोक गहलोत को इस्तीफा देना ही होगा, लेकिन वो ऐसा नहीं मानते. 'एक व्यक्ति, एक पद' के नियम की याद दिलाये जाने पर अशोक गहलोत का कहना है, ये ओपन चुनाव है. कोई भी लड़ सकता है. ये नियम नॉमिनेटेड पदों के लिए है. जब हाईकमान नॉमिनेट करता है, तब दो पद की बात आती है, लेकिन चुनाव है. कोई भी खड़ा हो सकता है. कोई भी विधायक, सांसद, मंत्री कहता है कि वो चुनाव लड़ना चाहता है, तो वो लड़ सकता है - लेकिन सबसे ज्यादा जोर एक ही बात पर रहता है, 'वो मंत्री भी रह सकता है.'

अशोक गहलोत का प्लान-बी भी तैयार है: सचिन पायलट को रोकने के लिए अशोक गहलोत अपनी तरह से हर तरकीब आजमाना चाहते हैं - और यही देखकर पहले से ही राजस्थान में अपने उत्तराधिकारी के लिए वैकल्पिक योजना भी बना चुके हैं.

खबर तो सूत्रों के हवाले से ही आई है लेकिन सच के काफी करीब लगती है. बताते हैं कि सोनिया गांधी के साथ हुई मुलाकात में अशोक गहलोत ने सचिन पायलट की जगह सीपी जोशी का नाम सुझाया है. लंबे समय तक राष्ट्रीय राजनीति में और यूपीए की केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे, सीपी जोशी फिलहाल राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष हैं.

सीपी जोशी का नाम तब भी सर्खियों में रहा जब अशोक गहलोत और सचिन पायलट अपने अपने विधायकों के साथ होटलों में डेरा डाले हुए थे. 2020 में उठापटक की हुई कोशिशों के दौरान सीपी जोशी ने सचिन पायलट समर्थक 19 विधायकों को नोटिस जारी कर दिया था - और अशोक गहलोत सरकार को बचाये रखने में तब जोशी की भूमिका को काफी महत्वपूर्ण माना गया था. स्पीकर के नोटिस का मामला अदालत तक भी पहुंचा था, लेकिन विधायक तो पहले ही दबाव में आ गये थे और उनके खिसकते ही सचिन पायलट कमजोर पड़ने लगे थे.

एक खास बात और भी सामने आ रही है, अगर अशोक गहलोत की बिलकुल नहीं चली तो आखिरी दांव भी वो चल चुके हैं. अशोक गहलोत चाहते हैं कि राजस्थान सरकार के मौजूदा कार्यकाल का आखिरी बजट वही पेश करें. ऐसा हुआ तो वो फरवरी, 2023 तक राजस्थान के मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं. अशोक गहलोत को ये भी लग रहा होगा कि राजस्थान में अगली पारी तो बीजेपी को मिलने वाली है - और पांच-छह महीने का मौका मिला तो अशोक गहलोत कोई नयी तरकीब भी निकाल लेंगे.

राजस्थान जैसे झगड़े कांग्रेस में और भी हैं

सचिन पायलट के केस से तो अशोक गहलोत निजी तौर पर जुड़े हुए हैं, लेकिन ऐसे मामले कई राज्यों में हैं जहां कांग्रेस नेतृत्व को जूझना पड़ रहा है. मध्य प्रदेश और पंजाब गवांने के बाद कांग्रेस को अभी अभी गोवा में भी जबरदस्त झटका लगा है - ऐसे में अशोक गहलोत को राजस्थान के साथ साथ बाकी झगड़े भी सुलझाने ही होंगे.

सचिन पायलट के मामले में अग्नि परीक्षा देनी होगी: अग्नि परीक्षा तो अशोक गहलोत को राजस्थान के मामले में ही देनी होगी, लेकिन बाकी मामलों में भी आग के दरिया से गुजरने जैसा ही अनुभव हो सकता है.

बाकी बातें अपनी जगह हैं, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने के बाद अशोक गहलोत को बड़ा दिल दिखाना होगा. तब तो सचिन पायलट के साथ की पुरानी दुश्मनी भी भुलानी होगी. अब तक वो सचिन पायलट को एक प्रतियोगी मानते रहे हैं, लेकिन अब सचिन पायलट को कांग्रेस का एक क्षेत्रीय जनरल समझ कर प्रमोट करना होगा. अब तक वो भले ही सचिन की काबिलियत को खारिज करते रहे हों, लेकिन आगे से तो फील्ट में खड़े होकर प्रोटेक्ट भी करना होगा.

लेकिन क्या अशोक गहलोत वास्तव में ऐसा करेंगे भी? या कहें कि कर पाएंगे भी? कर पायें या नहीं, करना तो पड़ेगा ही. और इतना ही नहीं, जो काम राहुल गांधी नहीं कर सके या जिन फैसलों की वजह से वो फेल हुए उसमें जितना भी सुधार ला सकते हों अशोक गहलोत पर वो सब भी बेहतर करने का दबाव होगा.

बाकी झगड़े भी तो निबटाने ही होंगे: ये तो तय है कि अशोक गहलोत को राहुल गांधी की ही बात माननी होगी, लेकिन राहुल गांधी भी तो सलाहकारों की बात मान कर ही कुछ भी करते हैं. और एक सलाहकार तो अशोक गहलोत भी हैं. ये बात अलग है कि राजस्थान में भी राहुल गांधी अब तक अशोक गहलोत की सलाह से ही फैसले लेते रहे हैं.

कहने की जरूरत नहीं राहुल गांधी के मुकाबले अशोक गहलोत का राजनीतिक अनुभव ज्यादा है - और राजनीतिक जोड़ तोड़ की समझ तो कांग्रेस के कई नेताओं से भी ज्यादा है. अब अगर राहुल गांधी और अशोक गहलोत मिल कर कुछ करें तो चीजें अच्छी हो सकती हैं. बशर्ते चैरिटी की शुरुआत राजस्थान से ही हो सके.

राजस्थान जैसा ही मामला छत्तीसगढ़ का भी हो रखा है. मध्य प्रदेश से तो कमलनाथ के रास्ते का कांटा पहले ही निकल चुका है और पंजाब में भी करने को अभी ज्यादा कुछ नहीं बचा है. हरियाणा में फिलहाल पूरी कमान भूपिंदर सिंह हुड्डा के हाथों में है, लेकिन ऐसे बहुत सारे राज्य हैं जहां कांग्रेस को पूरे घर को दुरूस्त करना है.

गोवा, मणिपुर, असम और अरुणाचल प्रदेश ही नहीं, बिहार जैसे राज्य भी हैं जहां संगठन को मजबूत करने के साथ साथ गठबंधन को भी लेकर चलना होगा. कन्हैया कुमार को कैसे इस्तेमाल किया जाता है ये भी देखना होगा. ये तो साफ है कि बिहार में कन्हैया कुमार को लालू यादव खड़े नहीं होने देंगे. ऐसे में कन्हैया कुमार को कहीं और इस्तेमाल करना होगा. वो केरल के लिए भी काम के हो सकते हैं - और राष्ट्रीय स्तर पर कई नेताओं के कांग्रेस छोड़ कर चले जाने के बाद सबसे ज्यादा उपयोगी हो सकते हैं.

कुल मिलाकर मुद्दे की बात ये है कि अशोक गहलोत को बड़ा बन कर दिखाना होगा, वरना - राहुल गांधी की तरह पिडि के साथ खेलते रहे तो न जाने कितने हिमंत बिस्वा सरमा 2024 के आम चुनाव से पहले ही राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बन चुके होंगे.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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