जानिए, बेगूसराय से कन्हैया कुमार की जीत की कितनी संभावना है
लोकसभा चुनाव 2019 का एक दिलचस्प मुकाबला बेगूसराय में होने जा रहा है. सत्ताधारी बीजेपी के प्रत्याशी गिरिराज सिंह हैं, तो उनके सामने प्रमुख विकल्प के रूप में खड़े हैं कम्युनिस्ट पार्टी के कन्हैया कुमार. जिन्होंने अचानक आरजेडी उम्मीदवार तनवीर हसन को हाशिए पर धकेल दिया है.
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कन्हैया कुमार के चलते बिहार की बेगूसराय सीट सुर्खियों में तो पहले से ही रही, गिरिराज सिंह ने उसे और चर्चित बना दिया. एनडीए के गिरिराज सिंह और महागठबंधन की ओर से डॉ. तनवीर हसन के बाद अब जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार भी सीपीआई उम्मीदवार के तौर पर नामांकन कर चुके हैं. बेगूसराय में मतदान के चौथे चरण में 29 अप्रैल को वोटिंग होनी है.
अनुशासन सबसे जरूरी है
अपने नामांकन की पूर्व संध्या पर कन्हैया कुमार ने एक फेसबुक पोस्ट के जरिये लोगों से समर्थन तो मांगा ही, फेसबुक पर ही समर्थकों से एक विशेष अपील भी की - 'आज नामांकन रैली में आने वाले समर्थकों और कार्यकर्ताओं से अनुरोध है कि वे अनुशासित रहें और ट्रैफिक नियमों का पालन करें. कृपया एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड जैसी इमरजेंसी सेवा की गाड़ियों, स्कूल बस आदि को पहले निकलने दें. बहुत-बहुत शुक्रिया.'
बेगूसराय के लोगों से समर्थन मांगते हुए कन्हैया कुमार ने कहा है, 'यह चुनाव मैं अकेले नहीं लड़ रहा, बल्कि वे सभी मेरे साथ उम्मीदवार के तौर पर खड़े हैं जो समाज की सबसे पिछली कतार में खड़े लोगों के अधिकारों के साथ संविधान को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.'
कन्हैया ने खुद की हौसलाअफजाई के साथ ही उम्मीद जतायी है कि लोगों का समर्थन अवश्य मिलेगा, 'ताकत कितनी भी बड़ी हो, एकजुटता के उस जज्बे के सामने छोटी पड़ ही जाती है जो आपकी हर बात में झलकता है. हमेशा की तरह इस बार भी मुझे पक्का यकीन है कि कल मुझे आपका प्यार और समर्थन ज़रूर मिलेगा.'
कन्हैया कुमार की कितनी संभावना है?
बेगूसराय में भी सभी पार्टियों के उम्मीदवार अपने अपने एजेंडे के साथ चुनाव मैदान में उतरे हैं, लेकिन सबसे बड़ा सच ये है कि सफलता उसे ही मिलनी है जो जातीय समीकरणों में भी फिट बैठे. बेगूसराय में मुस्लिम और ओबीसी से कहीं ज्यादा भूमिहार वोट मायने रखता है. अधिक आबादी होने के चलते अब तक सबसे ज्यादा भूमिहार उम्मीदवार ही जीतते आये हैं. बेगूसराय में 19 लाख वोटर हैं जिनमें 19 फीसदी भूमिहार, 15 फीसदी मुस्लिम, 12 फीसदी यादव और 7 फीसदी कुर्मी समुदाय के लोग हैं.
नेता नहीं बेटा बन कर वोट मांग रहे हैं कन्हैया
NDA और CPI दोनों ने भूमिहार वोटों पर भरोसा किया है, जबकि महागठबंधन की नजर मुस्लिम वोटों पर टिकी है. आरजेडी उम्मीदवार तनवीर हसन को 2014 में सीपीआई सहित सभी पार्टियों में रहे भोला सिंह ने 58 हजार वोटों से शिकस्त दी थी. तब तनवीर हसन के 3.69 लाख वोटों के मुकाबले भोला सिंह को 4.28 लाख वोट मिले थे.
कन्हैया से पहले 2014 में सीपीआई उम्मीदवार राजेंद्र प्रसाद सिंह को 1.92 लाख वोट मिले थे. कन्हैया कुमार और गिरिराज सिंह दोनों भूमिहार जरूर हैं लेकिन ये भी जरूरी नहीं कि वोट बंटे ही. कन्हैया पर जहां जेएनयू विवाद के चलते 'देशद्रोही' होने का ठप्पा लगा हुआ है, वहीं गिरिराज सिंह बीजेपी के एजेंडे राष्ट्रवाद की दुहाई दे रहे हैं. पहले गिरिराज सिंह बेगूसराय से चुनाव लड़ने को तैयार नहीं थे क्योंकि वो अपनी सीट नवादा से ही टिकट चाहते थे. गठबंधन के चलते नवादा सीट जेडीयू के हिस्से में चली गयी जिसके चलते बीजेपी ने गिरिराज सिंह को बेगूसराय भेज दिया. गिरिराज ने पहले तो आनाकानी की लेकिन बीजेपी नेतृत्व की सख्ती के बेगूसराय जाना ही पड़ा.
राष्ट्रवाद के एजेंडे के साथ गिरिराज सिंह मैदान में
एकबारगी तो ये मान कर चला जा सकता है कि बेगूसराय में मुकाबला त्रिकोणीय होने जा रहा है - लेकिन बिलकुल ऐसा ही होगा दावा नहीं किया जा सकता. बेगूसराय में कम से कम तीन तरह की संभावनाएं नजर आ रही हैं.
1. गिरिराज सिंह की जीत की संभावना: कन्हैया कुमार के ऊपर देशद्रोह के आरोपी का जो धब्बा लगा है उसके चलते अगर सारा भूमिहार वोट गिरिराज के हिस्से में चला जाय तो राष्ट्रवाद के नाम पर उनकी जीत की सबसे ज्यादा संभावना बनती है.
2. तनवीर हसन की जीत की संभावना: अगर कन्हैया कुमार और गिरिराज सिंह दोनों के बीच भूमिहार वोट बंट जाये और आरजेडी उम्मीदवार तनवीर हसन को ओबीसी वोट एक मुश्त मिल जायें तो उनके जीत की प्रबल संभावना बनती दिखती है.
मुस्लिम वोटों का भरोसा
3. कन्हैया कुमार की जीत की संभवाना: कन्हैया कुमार खुद को नेता नहीं बल्कि बेगूसराय का बेटा बता रहे हैं. अगर कन्हैया लोगों को ये समझाने में कामयाब हो जाते हैं कि अब तक वो सिर्फ सियासी साजिश के शिकार हुए हैं - और एक बार फिर उसी तरीके से उन्हें घेरा जा रहा है तो लोगों की सहानुभूति मिल सकती है. अपनी बात के पक्ष में कन्हैया चार्जशीट फाइल करने में दिल्ली पुलिस की देरी का हवाला देते रहे हैं. जेल से छूटने के बाद कन्हैया ने एक किताबी भी लिखी है - 'बिहार से तिहाड़ तक'.
ऐसी सूरत में अगर लोगों की सहानुभूति कन्हैया के प्रति हुई तो बाकी वो विरोधी दोनों उम्मीदवारों को पछाड़ कर चुनाव जीत भी सकते हैं.
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