योगी आदित्यनाथ-अखिलेश यादव तो मैदान में उतर चुके, प्रियंका गांधी के पास कोई प्लान क्यों नहीं?
सबको मालूम है प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) अगले आम चुनाव की तैयारी कर रही हैं, अभी तो कांग्रेस को आजमा भर रही हैं - योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) और अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की तरह वो भी चुनाव लड़ने का प्लान करें तो ज्यादा फायदे में रहेंगी.
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महिलाओं के मुद्दे पर प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) ने एक वर्चुअल सेशन में लंबा चौड़ा भाषण दिया है - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) तक को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है.
असल में हस्तिनापुर से कांग्रेस उम्मीदवार अर्चना गौतम को ट्रोल किये जाने से प्रियंका गांधी वाड्रा बेहद खफा हैं. और ये स्वाभाविक भी है. अर्चना गौतम का बचाव करना कांग्रेस महासचिव का हक भी बनता है - लेकिन कांग्रेस के यूपी कैंपेन की पोस्टर गर्ल प्रियंका मौर्य ने तो ऐसे हकों की हवा ही निकाल दी है.
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का कहना है, योगी आदित्यनाथ महिलाओं की ऊर्जा को नियंत्रित करने की बात करते हैं... ये बीजेपी, योगी आदित्यनाथ और उनकी पार्टी के नेताओं की महिलाओं के प्रति विचारधारा को स्पष्ट करता है.'
प्रियंका गांधी कहती हैं, 'मैं इससे सहमत नहीं हूं... महिलाओं की ऊर्जा देश को बदल सकती है... योगी आदित्यनाथ होते कौन हैं, महिलाओं की ऊर्जा को नियंत्रित करने वाले.'
कांग्रेस के बाकी उम्मीदवारों की तरह अर्चना गौतम को लेकर भी प्रियंका गांधी ने कहा, 'हस्तिनापुर में जो चुनाव लड़ रही हैं... बहुत संघर्ष किया है और इस जगह पहुंची हैं... उन पर कीचड़ उछाला जा रहा है.'
फिर कांग्रेस महासचिव का सवाल होता है - "मीडिया जिस तरह सवाल कर रहा है... मैं कहना चाहती हूं... आप नरेंद्र मोदी या किसी पुरुष से ऐसा सवाल क्यों नहीं पूछते?"
तभी 'लड़की हूं... लड़ सकती हूं' कैंपेन के पोस्टर से निकल कर बगावत कर चुकीं प्रियंका मौर्य कांग्रेस के टिकट बंटवारे को लेकर ही सवाल खड़े कर देती हैं - और तत्काल प्रभाव से कांग्रेस छोड़ भी देती हैं.
प्रियंका बनाम प्रियंका: प्रियंका मौर्य पेशे से डॉक्टर हैं और अब बीजेपी की सदस्यता भी ग्रहण कर चुकी हैं. प्रियंका गांधी वाड्रा के दावों के विपरीत प्रियंका मौर्य का इल्जाम है कि जो कुछ भी प्रोजेक्ट किया जा रहा है, वो महज दिखावा है क्योंकि हकीकत से उसका कोई वास्ता ही नहीं है.
जब प्रियंका मौर्य से पूछा जाता है कि क्या अपनी समस्या को लेकर वो प्रियंका गांधी वाड्रा से बात करने की कोशिश कीं, तो उनके कहने का मतलब यही होता है कि वहां सुनने वाला कौन है.
प्रियंका मौर्य के मुताबिक, कांग्रेस का यूपी चुनाव में 'लड़की हूं... लड़ सकती हूं' स्लोगन एक खोखला नारा है.
बीजेपी में शामिल होने के बाद प्रियंका मौर्य का कहना रहा, 'कांग्रेस ने मेरे चेहरे... मेरे नाम और मेरे 10 लाख सोशल मीडिया फॉलोअर्स का इस्तेमाल प्रचार के लिए किया... मुझे कहा गया कि सरोजिनी नगर क्षेत्र में काम कीजिये, लेकिन जब टिकट की बात आई तो यह किसी और को दे दिया गया.'
चाहे वो प्रियंका मौर्य हों या फिर प्रियंका गांधी दोनों को अपनी अपनी बात कहने का पूरा हक है, लेकिन प्रियंका मौर्य का ये कहना कि कांग्रेस में उनका इस्तेमाल किया गया - राजनीति का आधा सच ही है.
क्योंकि प्रियंका मौर्य ने जो दूसरा ठिकाना चुना है, वहां क्या उनका इस्तेमाल नहीं होगा - कभी सोचा है? सच तो ये है कि प्रियंका मौर्य के साथ कहीं भी कुछ भी बदलने वाला नहीं है. अगर वो कांग्रेस पर अपने 10 लाख सोशल मीडिया फॉलोवर्स के राजनीतिक इस्तेमाल का आरोप लगा रही हैं, तो बीजेपी में क्या होने वाला है? निश्चित तौर पर वो बेहतर जानती होंगी - और हां, पहले भी कांग्रेस के साथ जुड़ने का फैसला सोच समझ कर ही लिया होगा, बीजेपी में जाने के पीछे भी खास वजह ही होगी.
लेकिन ये भी तो जरूरी नहीं कि कांग्रेस में टिकट नहीं मिला तो बीजेपी में मिल ही जाएगा. कांग्रेस में राष्ट्रीय पदाधिकारी रहे, इमरान मसूद का केस भी तो प्रियंका मौर्य को पता ही होगा. जब वो कांग्रेस में थे, अक्सर कहा करते थे कि सबको मिल कर अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री के रूप में सपोर्ट करना चाहिये - और जब लाल टोपी पहनने को तैयार हो गये तो टिकट ही कट गया.
फिर भी ऐसा लगता है कि अपर्णा यादव की वजह से अखिलेश यादव को हुए नुकसान के मुकाबले, प्रियंका गांधी वाड्रा को प्रियंका मौर्य के कांग्रेस छोड़ने का ज्यादा नुकसान हो सकता है - क्योंकि अपर्णा यादव की तरह वो किसी राजनीतिक परिवार की सदस्य या समाजवादी पार्टी की नेता नहीं, बल्कि प्रियंका मौर्य उस बड़े मुद्दे की नुमाइंदगी कर रही थीं जिसके बूते प्रियंका गांधी वाड्रा यूपी के जरिये देश की राजनीति को बदलने के लिए फील्ड में उतरी हैं.
प्रियंका गांधी की पोस्टर गर्ल प्रियंका मौर्य की बगावत कांग्रेस के लिए यूपी चुनाव में बड़ी मुसीबत है!
आरोप-प्रत्यारोप अपनी जगह हैं. राजनीति में ऐसे वाकये होते ही रहते हैं, लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा के मकसद को लेकर लोगों के बीच जो निगेटिव मैसेज जा रहा है, उसे न्यूट्रलाइज करने के लिए नये सिरे से मोर्चा संभालना होगा - मुफ्त की सलाहियत ये है कि प्रियंका गांधी वाड्रा चाहें तो खुद चुनाव मैदान में उतर कर ये काम आसानी से कर सकती हैं.
योगी आदित्यनाथ गोरखपुर सदर से विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं - और अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट से. ऐसे में अगर प्रियंका गांधी वाड्रा विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला करती हैं तो अलग से मैसेज जाएगा - जो बातें वो ट्वीट कर और भाषण देकर भी नहीं कर पा रही हैं उससे कहीं ज्यादा मजबूत मैसेज लोगों तक उनके चुनाव मैदान में उतर जाने से पहुंचेगा - और हां, 2024 के आम चुनाव के लिए भी वो बहुत ही फायदेमंद होगा.
चुनाव लड़ने में संकोच किस बात का
लगा तो 2019 के आम चुनाव में ही था कि प्रियंका गांधी चुनाव लड़ सकती हैं - और वो भी वाराणसी संसदीय सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ. ये बात भी किसी और ने नहीं बल्कि उनके मुंह से ही निकल कर आयी थी. हंसी मजाक के बीच से ही सही.
ऐसा भी नहीं कि प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने की बात सिरे से तत्काल ही खारिज भी कर दी गयी, काफी दिनों तक ये बात चर्चा में रही. जब तक वाराणसी सीट पर नामांकन की आखिरी तारीख नहीं आयी कांग्रेस के लोग भी मानने को तैयार न थे.
लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा को चुनाव लड़ना ही नहीं था. हर नेता अरविंद केजरीवाल की तरह थोड़े ही सोचता है - और हर नेता ममता बनर्जी बनर्जी भी तो नहीं होता. प्रियंका गांधी तो बस लोगों का मूड भांपने की कोशिश कर रही थीं. राहुल गांधी भी शायद यही सोच कर हवा देते रहे.
ममता से प्रेरणा ले सकती हैं: योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव तो अपनी अपनी पार्टियों के सीएम फेस हैं, प्रियंका गांधी के साथ ऐसा नहीं है. वैसे कांग्रेस की बनारस रेली में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मुंह से कांग्रेस ने कहलवाया जरूर था कि यूपी चुनाव पार्टी प्रियंका गांधी के नेतृत्व में ही लड़ेगी. चाहें तो प्रियंका गांधी के चेहरे पर ही लड़ने जैसा समझ सकते हैं.
वैसे भूपेश बघेल के कहने का मतलब वैसा तो बिलकुल नहीं है जैसा सचिन पायलट या नवजोत सिंह सिद्धू कहते रहे हैं - भला राजस्थान और पंजाब चुनाव सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व में लड़े जाने का क्या मतलब होता है.
अरविंद केजरीवाल ने भी वाराणसी में प्रधानमंत्री मोदी को एक चुनाव जीतने के बाद चैलेंज किया था. वाराणसी संसदीय सीट से नामांकन भरने से पहले अरविंद केजरीवाल दिल्ली में तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हरा चुके थे.
ममता बनर्जी को प्रियंका गांधी वाड्रा कम से कम इस मामले में प्रेरणास्रोत चाहें तो कुछ देर के लिए मान सकती हैं - नंदीग्राम से पश्चिम बंगाल चुनाव में लड़ कर हारने की आशंका तो ममता बनर्जी को भी रही ही होगी, लेकिन विधानसभा चुनाव के नतीजे तो उनके मनमाफिक ही रहे. खुद हार कर पार्टी को सत्ता दिला दी.
यूपी में बंगाल फॉर्मूला वैसे नहीं लागू हो सकता क्योंकि प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने या नहीं से लड़ने कांग्रेस के सत्ता में आने की संभावनाएं जैसी अभी हैं, वो नहीं बदलने वाली हैं - लेकिन ये जरूर है कि मैसेज अलग जाएगा.
महिला संघर्ष को सलामी होगी: प्रियंका गांधी ने चुन चुन कर यूपी भर में जिन महिलाओं को कांग्रेस उम्मीदवार बनाया है, उनके उत्साह में कांग्रेस महासचिव के मैदान में डटे होने से इजाफा जरूर होगा.
कांग्रेस उम्मीदवार बनायी गयीं महिलाओं का बेशक अपना संघर्ष रहा है, लेकिन अगर कांग्रेस स्लोगन की पोस्टर गर्ल रहीं प्रियंका मौर्य को लगता है कि जिनको टिकट मिला है, उनका इस्तेमाल नहीं किया गया है, तो वो सही नहीं सोच रही हैं. सच तो यही है कि कांग्रेस महिलाओं की कहानी सुना कर उनका राजनीतिक इस्तेमाल ही तो कर रही है - और ऐसा करने वाली कांग्रेस अकेले भी नहीं है.
निजी तौर पर प्रियंका गांधी को चुनाव लड़ने से हो सकता है नुकसान भी हो, लेकिन संघर्ष की प्रतीक के रूप पेश की गयीं कांग्रेस की महिला उम्मीदवारों का जोश अपनेआप हाई हो जाएगा. मुमकिन है इसी बहाने कांग्रेस की कुछ सीटें भी बढ़ जायें.
अमेठी बुला रही है
ये सही है कि अमेठी चुनाव राहुल गांधी हार गये, लेकिन सोनिया गांधी ने रायबरेली में जीत हासिल तो की ही. ऐसा भी तो नहीं लगता कि पूरे यूपी में प्रियंका गांधी के लिए कोई सुरक्षित सीट ही न हो - अगर पहली बार में वो हार का जोखिम नहीं उठाना चाहतीं तो भी.
1. लड़की तो लड़ ही सकती है: अरसा बाद, राहुल गांधी भी प्रियंका गांधी के साथ एक दिन के लिए अमेठी के दौरे पर गये थे. भाई बहन ने मिल कर अमेठी के लोगों से नये सिरे से जुड़ने की कोशिश भी की. राहुल गांधी ने ये तक स्वीकार कर लिया कि अमेठी में ही वो राजनीति का ककहरा भी सीखे. बात भी सही है. अगर किसी के मन में संशय होता है तो उसके लिए भी केरल विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तर भारतीयों की राजनीतिक समझ को लेकर राहुल गांधी का ही बयान है.
राहुल गांधी ने गिले शिकवे दूर करने की कोशिश तो की लेकिन ऐसा कोई संकेत नहीं दिया कि वो अमेठी अगली बार लौटने ही वाले हैं - लेकिन जिस तरीके से प्रियंका गांधी यूपी चुनाव में जुटी हैं, माना जा सकता है कि वो स्मृति ईरानी से बदला जरूर लेना चाह रही होंगी.
स्मृति ईरानी से बदला लेने की बात है तो राहुल गांधी में वो जज्बा नहीं नजर आता. वो कोशिश तो करते हैं, लेकिन राजनीति का जो जुनून प्रियंका ने यूपी में दिखाया है - राहुल गांधी में ऐसा कभी नहीं देखने को मिला है. राहुल गांधी ने जब राजनीति की शुरुआत की तब कांग्रेस की केंद्र में सरकार बनी थी - और पूरे दस साल उनके पास बेहतरीन मौका था, लेकिन वो पार्ट टाइम तफरीह ही करते रहे.
स्मृति ईरानी तो कांग्रेस के स्लोगन का मजाक भी उड़ा चुकी हैं - घर में लड़का है, लेकिन लड़ नहीं सकता, प्रियंका गांधी के लिए अपने स्लोगन को चरितार्थ करने का बेहतरीन मौका विधानसभा चुनाव हो सकता है - अगर अभी अमेठी की किसी सीट से चुनाव मैदान में उतर कर प्रियंका गांधी एक बार इंदिरा गांधी वाला करिश्मा दिखा देती हैं तो राहुल गांधी का भी दर्द कम हो जाएगा - और आगे के लिए रास्ता भी काफी हद तक साफ हो जाएगा.
2. स्मृति को प्रियंका टक्कर दे सकती हैं: प्रियंका गांधी वाड्रा का केस तो योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव से बिलकुल ही अलग है, लेकिन जिस डर की वजह से अखिलेश यादव प्रेस कांफ्रेंस में विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर आजमगढ़ के लोगों की इजाजत लेने की बात कर रहे थे और अब मैनपुरी इलाके से चुनाव लड़ने जा रहे हैं - चुनौतियां तो बिलकुल वैसी ही प्रियंका गांधी के सामने भी खड़ी हैं.
अगर प्रियंका गांधी का स्मृति ईरानी से सीधे टकराने का इरादा न भी हो तो मान कर चलना चाहिये कि अगली बार रायबरेली में भी बीजेपी अमेठी दोहराने की कोशिश करने जा रही है. अगर प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में गांधी परिवार का किला बचाये रखने के बारे में वाकई सीरियस हैं तो विधानसभा चुनाव में उतर कर मुश्किलें काफी आसान कर सकती हैं - और जो दहशत फिलहाल बीजेपी को लेकर गांधी परिवार में है, खेल उलटा भी हो सकता है.
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