आरएसएस के मामले में यू-टर्न का राहुल और कांग्रेस पर असर
शब्दों की इस बाजीगरी से राहुल गाँधी शायद न्यायिक प्रक्रिया के दाव पेंच से बच जाएँ पर क्या यह उनके राजनितिक जीवन के लिए ये लाभदायक होगा?
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महात्मा गांधी की हत्या में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम जोड़ने के कारण मानहानि का केस झेल रहे राहुल गांधी ने 24 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उन्होंने संस्थान के तौर पर संघ पर कभी आरोप नहीं लगाया, लेकिन इससे जुड़े उन लोगों पर आरोप लगाया था जिन्होंने महात्मा गांधी की हत्या की थी.
राहुल का बचाव कर रहे उनके वकील कपिल सिब्बल के इस वक्तव्य से उनको कुछ रहत मिली है. कोर्ट ने कहा कि वह राहुल के उस बयान से संतुष्ट है कि उन्होंने महात्मा गांधी की हत्या के लिए आरएसएस संस्थान को हत्यारा नहीं कहा था. अब सुप्रीम कोर्ट 1 सितंबर को मामले में मुकदमा रद्द करने को लेकर अपना फैसला सुनाएगी.
सुप्रीम कोर्ट के रुख में बदलाव स्पस्ट दिख रहा है. 19 जुलाई 2016 को न्यायालय ने बोला था वो या तो माफ़ी मांगे या ट्रायल के लिए तैयार रहें. पर अब ना केवल उनके स्टैंड में बदलाव दिखा बल्कि कोर्ट का रुख भी नरम था. कोर्ट से राहत तो शायद मिल जाये पर क्या राहुल गाँधी ने इस मुद्दे पर अपना स्टैंड बदल दिया है? क्या उन्होंने ऐसा अपने आप को बचाने के लिए किया है ?
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6 मार्च 2014 को मुंबई के भिवंडी इलाक़े में एक रैली में राहुल गांधी ने बयान देते हुए कहा था कि 'संघ के लोगों ने गांधी की हत्या की थी और आज ये लोग (भाजपा) उनकी (गांधी की) बात करते हैं. उन्होंने सरदार पटेल और गांधी जी का विरोध किया था.' अब राहुल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उन्होंने संस्थान के तौर पर संघ पर कभी आरोप नहीं लगाया, लेकिन इससे जुड़े उन लोगों पर आरोप लगाया था जिन्होंने महात्मा गांधी की हत्या की थी.
राहुल गांधी (फाइल फोटो) |
कपिल सिब्बल ने बॉम्बे हाई कोर्ट में रखे गए हलफनामे का एक हिस्सा पढ़ा. इसमें लिखा था, “मैंने एक संस्था के तौर पर आरएसएस पर गांधीजी की हत्या में शामिल होने का आरोप नहीं लगाया. मैंने कुछ लोगों की बात कही थी जो आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित थे.”
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अपने भिवंडी के भाषण में तो उन्होंने पूरे संघ को इस मामले में लपेट लिया था पर अब कह रहें हैं की उन्होंने सिर्फ संघ के कुछ लोगों के बारे में कहा था. इस 'कुछ' शब्द के इस्तेमाल से पूरा मतलब ही बदल जाता है. उनका मूल वक्तव्य पूरे संगठन के बारे में था पर अब वो केवल इस संघठन से जुड़े व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों के बारे में बात कर रहे हैं.
हालाँकि राहुल कुछ भी बोलें पर यह पूरा का पूरा यू टर्न हैं. पहले वो आरएसएस के साथ दो-दो हाथ करने की मुद्रा में थे. अब वह अपने आपको बचाते नजर आ रहे हैं. जब कोर्ट ने माफ़ी मांगने को कहा था तो कांग्रेस कह रही थी की 'राहुल गांधी के माफ़ी मांगने का सवाल ही नहीं उठता'. लगता है की कांग्रेस पार्टी ने माफ़ी एवं अपने शब्दो को वापस लेने के बीच का मार्ग ढूंढा है. और वो मार्ग है शब्दो की बाजीगरी का.
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शब्दों की इस बाजीगरी से राहुल गाँधी शायद न्यायिक प्रक्रिया के दाव पेंच से बच जाएँ पर क्या यह उनके राजनितिक जीवन के लिए ये लाभदायक होगा? क्या लोग ये नहीं बोलेंगे अथवा सोचेंगे की जो नेता अपने ही वक्तव से अपने आपको बचाने की लिये हट सकता है वो जनता से किया वादों को क्या निभाएगा?
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