Rahul Gandhi को Aarogya Setu app में राफेल नजर आ रहा है - लेकिन कहां तक ले जा पाएंगे?
COVID-19 को लेकर बनाये गये सरकारी ऐप आरोग्य सेतु (Aarogya Setu) को लेकर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार पर राफेल जैसा ही हमला बोला है. बीजेपी ने हमले का बचाव तो किया है लेकिन गलतियां भी हो जा रही हैं.
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को आरोग्य सेतु (Aaarogya Setu) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार पर हमले का नया हथियार मिला है. राहुल गांधी ने बिलकुल राफेल डील वाले अंदाज में ही आरोग्य सेतु ऐप पर सवाल खड़े किये हैं.
2019 के आम चुनाव में राफेल अटैक तो काम नहीं आया और हाल ये हुआ कि राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद भी छोड़ दिया. ऐसा तो नहीं कि कोरोना वायरस के लिए बने आरोग्य सेतु को मुद्दा बनाने का भी वही नतीजा होगा जो राफेल को लेकर हुआ?
राहुल गांधी इस मुद्दे को कहां तक ले जाते हैं वो बात अलग है, लेकिन पलटवार के चक्कर में बीजेपी से बड़ी चूक हो गयी - और जब महसूस हुआ तो ट्वीट भी डिलीट करना पड़ा.
राहुल गांधी को घेरने में घिरी बीजेपी
अब न तो कभी राहुल गांधी राफेल का नाम लेते हैं न 'चौकीदार चोर है' के नारे ही लगवाते हैं. माना जा सकता था कि ऐसा कोरोना और लॉकडाउन के चलते कर रहे हैं, लेकिन जब नीरव मोदी और मेहुल चोकसी से जुड़ा पुराना वीडियो शेयर करके वो हमला बोल देते हैं तो ऐसी भी कोई गलतफहमी नहीं बचती. हालांकि, फिलहाल ऐसा लग रहा है कि बीजेपी राहुल गांधी के हमलों को गंभीरता से लेने लगी है. ऐसा बीजेपी के रिएक्शन से लगता है. वरना, वित्त मंत्री निर्मला सीतारणण को राहुल को समझाने के लिए 13 ट्वीट करने की क्या जरूरत रही?
अब राहुल गांधी को नया मामला आरोग्य सेतु के मिला है, जिसमें वो शुरुआती 'आधार' जैसी खामियां खोज निकाले हैं. आरोग्य सेतु ऐप को निजी और सरकारी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य कर दिया गया है.
राहुल गांधी ने ऐप को लेकर डाटा सुरक्षा और गोपनीयता संबंधी सवाल उठाया है और उसे निजता के अधिकार से जोड़ते हुए मोदी सरकार पर लोगों की निगरानी की कोशिश का इल्जाम लगाया है. एक ट्वीट में राहुल गांधी ने कहा, 'आरोग्य सेतु ऐप एक जटिल निगरानी प्रणाली है, जिसे एक प्राइवेट ऑपरेटर के लिए आउटसोर्स किया गया है, जिसमें कोई संस्थागत चेक करने का इंतजाम नहीं है... तकनीक हमें सुरक्षित रखने में मदद कर सकती है, लेकिन नागरिकों की सहमति के बिना उनको ट्रैक करने के लिए डर का फायदा नहीं उठाया जाना चाहिए.'
राहुल गांधी के इस ट्वीट को टैग करते हुए बीजेपी के ट्विटर हैंडल से एक तस्वीर ट्वीट की गयी - लेकिन बाद में उसे डिलीट भी कर दिया गया. तस्वीर में पानी टंकी को कांग्रेस बताया गया है.
बीजेपी का ट्वीट जो डिलीट करना पड़ा
बीजेपी को लगा होगा कि ट्वीट डिलीट करने के बाद मामला शांत हो जाएगा. बाकी दायें-बायें के काम देखने के लिए तो रविशंकर प्रसाद मोर्चे पर डट ही चुके थे. हमेशा की तरह राहुल गांधी के दावों को खारिज करते हुए बता दिया कि सब सेफ है, किसी को फिक्र करने की जरूरत नहीं है - और राहुल गांधी की बातों पर तो ध्यान देने की कतई जरूरत नहीं है.
लेकिन बीजेपी को नहीं मालूम रहा होगा कि राहुल गांधी को बैकअप फायर देने के लिए प्रियंका गांधी अचानक प्रकट हो जाएंगी. प्रियंका गांधी तो वैसे भी बीजेपी विशेष रूप से योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मुद्दों की तलाश में इंतजार करती ही रहती हैं - भदोही के जिलाधिकारी ने आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करने के साथ साथ सौ-सौ रुपये PM Cares फंड में देने के लिए चिट्ठी लिख डाली थी. प्रियंका गांधी ने वो चिट्ठी अटैच कर बड़े बड़े सवाल खड़े कर दिये.
एक सुझाव:
जब जनता त्राहिमाम कर रही है। राशन, पानी, नकदी की किल्लत है। और सरकारी महकमा सबसे सौ सौ रुपए पीएम केयर के लिए वसूल रहा है तब हर नजरिए से उचित रहेगा कि पीएम केयर की सरकारी ऑडिट भी हो?
देश से भाग चुके बैंक चोरों के 68,000 करोड़ माफ हुए उसका हिसाब होना चाहिए।..1/2 pic.twitter.com/NLnA27CmR3
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) May 2, 2020
बीजेपी के हैंडल से ट्वीट के बाद यूपी में बीजेपी की ही सरकार को रिपोर्ट करने वाले अफसर की चिट्ठी ने नये सिरे से फंसा दिया. तब से जिलाधिकारी सफाई नेताओं वाले अंदाज में सफाई देते फिर रहे हैं कि जो कहा गया वो कहे जाने का मतलब नहीं था और भूल सुधार किया जा चुका है.
आरोग्य सेतु न तो आधार है, न ही राफेल
सवाल है कि क्या राहुल गांधी आरोग्य सेतु को बड़ा मुद्दा बना पाएंगे? जिस तरीके से आधार धीरे धीरे सरकार के मनमाफिक रूप बदलता गया और सुप्रीम कोर्ट से भी सरकार को बारी बारी सारी छूट मिलती गयी, निश्चित तौर पर उन्हीं दलीलों से आरोग्य सेतु को भी ग्रीन सिग्नल मिल ही जाएगा. पहले आरोग्य सेतु में भी शुरुआती आधार की ही तरह मनमर्जी की बातें थीं, अभी निजी और सरकारी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य है - आगे से बाकी चीजों के लिए भी होता जाएगा ही.
राहुल गांधी जिस तरफ ध्यान दिला रहे हैं वो बिलकुल वाजिब वजहें हैं, लेकिन बड़ा सवाल तो ये है कि किसी का ध्यान जाये तब तो.
सियासत में भी कई बार चीजें मार्केट की ही तरह चलती या नहीं चल पाती हैं. मुद्दे भी प्रोडक्ट की तरह होते हैं - अगर मार्केटिंग ठीक से नहीं हुई तो प्रोडक्ट जरा भी चल नहीं पाता. स्टीव जॉब्स का इस मामले में हमेशा नाम इसीलिए लिया जाता है क्योंकि वो प्रोडक्ट पर भी खूब मेहनत करने थे और मार्केटिंग पर भी - बाकी सब तो सबको पता ही है.
ऐसा भी नहीं कि राहुल गांधी हमेशा गलत मुद्दे ही तलाश लेते हैं - कुछेक गलतियों को छोड़ दें तो मुद्दे सही उठाते हैं, लेकिन सही तरीके से उठाने में चूक जाते हैं. या फिर उठाते भी हैं तो उसके फॉलो-अप में गलतियां हो जाती हैं - या गुस्से में कभी कभी मुद्दे ट्विस्ट हो जाते हैं और अर्थ का अनर्थ हो जाता है. गुस्सा भले ही प्रजेंटेशन का हिस्सा हो, लेकिन मेथड एक्टिंग के खतरे भी तो बहुत होते हैं. हर किसी के वश की बात तो होती नहीं. जैसे ही राहुल गांधी जोश में आते हैं बम फोड़ने और भूकंप आने के दावे करने लगते हैं. बम तो फोड़ते हैं, लेकिन भूकंप नहीं आता. जाहिर है फजीहत तो होनी ही है. वैसे भी अभी लॉकडाउन है.
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