Rahul Gandhi के गरीबी हटाओ कार्यक्रम का डायरेक्ट बेनिफिट भी पॉलिटिकल ही है
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के डायरेक्ट कैश ट्रांसफर (Direct Cash Transfer) का एजेंडा करीब करीब कर्जमाफी जैसा ही है या फिर से इंदिरा गांधी के गरीबी हटाओ (Poverty Eradication) कार्यक्रम जैसा. राजनीति के हिसाब से गरीबी हटाओ जैसे कार्यक्रम वोट तो दिला देते हैं, लेकिन कभी गरीबों की हालत नहीं सुधार पाते.
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22 राजनीतिक दलों की बैठक में कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने कहा कि लॉकडाउन का कोई नतीजा सामने नहीं आया. विपक्षी खेमे की ये वीडियो बैठक सोनिया गांधी ने बुलायी थी. हमेशा की तरह इस मीटिंग में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की आलोचना की गयी. राहुल गांधी ने मीटिंग में कहा कि लॉकडाउन के दो मकसद थे - बीमारी को रोकना और इसके प्रसार को रोकना, लेकिन संक्रमण बढ़ रहा है. राहुल गांधी की बातें कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने बतायी. राहुल गांधी ने बताया - 'आज संक्रमण बढ़ रहा है लेकिन हम लॉकडाउन को हटा रहे हैं.' और जताया भी, 'इसका मतलब है कि लॉकडाउन को बिना सोचे समझे लागू किया गया और इसने सही परिणाम नहीं दिया.'
फिर राहुल गांधी अपने एजेंडे पर आये. लॉकडाउन से करोड़ों लोगों को हुए भारी नुकसान की बात करते हुए राहुल गांधी बोले, 'लेकिन सरकार उनकी मदद नहीं कर रही है और न ही 7,500 रुपये नकद उनके खातों में डाल रही है. अगर उन्हें राशन नहीं दिया जाता है... अगर प्रवासियों और MSME कामगारों की मदद नहीं की जाती है तो ये भयावह होगा.' मतलब ये कि राहुल गांधी को बाकी बातों में कोई खास दिलचस्पी नहीं है, बल्कि वो चाहते हैं कि जैसे भी हो गरीबों (Poverty Eradication) के खातों में पैसे (Direct Cash Transfer) डाले जायें - लेकिन क्या कांग्रेस नेता ने इसके साइड इफेक्ट के बारे में सोचा है?
गरीबी हटाओ जैसे राजनीतिक एजेंडे का मकसद नहीं बदलता
राहुल गांधी ने दिल्ली में प्रवासी मजदूरों से मुलाकात का वीडियो अपने यूट्यूब चैनल पर शेयर किया है. वीडियो को लेकर भी जानकारी वैसे ही एडवांस में दी थी जैसे रघुराम राजन और अभिजीत बनर्जी के साथ वीडियो चैट के बारे में ट्विटर पर बताया था - जरूर देखें ठीक 9 बजे.
वीडियो में राहुल गांधी के सवाल और दिल्ली के सुखदेव विहार फ्लाईओवर पर मिले मजदूरों के जवाब हैं - और जाहिर है वीडियो के जरिये वो सारी बातें सामने आयी हैं जो मजदूरों ने साझा किया है. वो कहां से आ रहे हैं, कहां जाने वाले हैं और किसी ने कोई मदद की या नहीं. राहुल गांधी ने ऐसे कई सवाल मजदूरों से पूछे हैं.
आर्थिक पैकेज के विरोध के पीछे इरादा मजदूरों का दर्द खत्म करने का है या बनाये रखने का?
बातचीत के जरिये राहुल गांधी ने लॉकडाउन का असर मजदूरों पर कैसा और कितना पड़ा ये भी समझने की कोशिश करते देखे जा सकते हैं. सवाल जवाब के जरिये ये भी समझाने की कोशिश है कि लॉकडाउन बगैर सोचे समझे लागू कर दिया गया. मजदूरों की राय भी ऐसी ही बन रही है. जाहिर है कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी यही चाहते हैं.
गरीबी हटाओ जैसे नारों की खासियत ये होती है कि ये जितने बिकाऊ होते हैं, उतने ही टिकाऊ भी. बिकाऊ इस हिसाब से कि सुनने में अच्छे लगते हैं. सुनने वाले सपने पूरे होने जैसी उम्मीदों से भर देते हैं. टिकाऊ इस मायने में कि गरीबी हटाओ की राजनीति गरीबों की हालत सुधारने से ज्यादा उनको गरीब बनाये रखने में ज्यादा दिलचस्पी होती है. अगर गरीब की हालत सुधर जाएगी तो वो एहसान कहां मानने वाला. एहसान वैसे भी कम ही लोगों को याद रहता है, राजनीति में इसे पब्लिक मेमरी कही जाती है. पब्लिक मेमरी में बातें ज्यादा दिन नहीं टिकती हैं. किसान, दलित, गरीब - ये सब शुरू से ही राहुल गांधी के राजनीतिक पसंद रहे हैं और अब इसमें मजदूर भी शुमार हो चुका है. वैसे भी गरीबी हटाओ तो कांग्रेस के लिए इंदिरा गांधी के जमाने से शुभ साबित हुआ है. सोनिया गांधी के जमाने में भी मनरेगा ने कमाल दिखाया ही - और अब तो NYAY स्कीम भी छत्तीसगढ़ में लांच हो चुकी है.
गरीबों की मदद जरूरी है - लेकिन क्या मदद के पीछे भी सिर्फ राजनीतिक हित ही होना चाहिये - इंसानियत या गरीबों की भलाई नहीं.
आत्मनिर्भरता बनाम नकद मदद!
प्रधानमंत्री मोदी के आर्थिक पैकेज को विपक्षी दलों की मीटिंग में सोनिया गांधी ने देश के साथ क्रूर मजाक करार दिया. सोनिया गांधी लॉकडाउन लागू होने के बाद से ही लगातार NYAY योजना लागू करने की मांग करती रही हैं. सोनिया गांधी इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिख चुकी हैं - और राहुल गांधी तो किसी न किसी बहाने हाल के हर मौकों पर ये मांग करते रहे हैं. अब तो छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार राजीव गांधी किसान न्याय योजना लागू भी कर चुकी है और किसानों को पहली किस्त भी भेजी जाने की बात बतायी गयी है.
सवाल ये है कि मोदी सरकार के आर्थिक पैकेज को खारिज करना महज सत्ता पक्ष और विपक्ष की रोजमर्रा की लड़ाई का हिस्सा भर है या वैचारिक टकराव या वास्तव में इसका आधार गुण-दोष जैसे पैमाने हैं?
एकबारगी तो ये आत्मनिर्भर भारत अभियान बनाम डायरेक्टर कैश बेनिफिट मुहिम की जंग भी लगती है. थोड़ा ध्यान देने से ये बात भी अच्छे से समझ में आ जाती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्थिक पैकेज के ऐलान के साथ ही कहा था कि कोरोना संकट काल में मुसीबतों का सामना कर रही अर्थव्यवस्था को नई रफ्तार देने के लिए ये पैकेज अहम भूमिका निभा सकता है. साथ ही, प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि दुनिया की वर्तमान परिस्थिति भारत के लिए एक अवसर बन सकती है - ऐसे में हमें आत्मनिर्भर होना जरूरी है.'
आत्मनिर्भर भारत के लिए प्रधाननमंत्री मोदी ने पांच खंभों को मजबूत करने पर भी जोर देने की बात कही - इकॉनोमी, इंस्फ्रास्ट्रक्चर, सिस्टम, डेमोग्राफी और डिमांड शामिल. बाद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान के बारे में अपनी प्रेस कांफ्रेंस में विस्तार से बताया भी. आत्मनिर्भर भारत अभियान पर बने एक गीत को ट्वीट करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा - 'यह गीत हर किसी को उत्साहित और प्रेरित करने वाला है. इसमें आत्मनिर्भर भारत के लिए सुरों से सजा उद्घोष है.'
यह गीत हर किसी को उत्साहित और प्रेरित करने वाला है। इसमें आत्मनिर्भर भारत के लिए सुरों से सजा उद्घोष है। https://t.co/N6qy4BaCfI
— Narendra Modi (@narendramodi) May 17, 2020
राहुल गांधी लगातार और बार बार एक ही बात कहते आये हैं - 'हम पैकेज को स्वीकार नहीं करते हैं, लोग ऋण नहीं बल्कि सहायता चाहते हैं.' पैकेज स्वीकार न करना राहुल गांधी का राजनीतिक हक है. विपक्ष अपनी एक जिम्मेदारी ये भी समझता है कि उसे सरकार की हर बात का जैसे भी संभव हो विरोध करना है. विपक्ष उसके लिए अच्छी दलील गढ़ता है. दलील भी ऐसी जो किसी के भी समझ में आने वाली हो.
अब ये जानना जरूरी हो जाता है कि राहुल गांधी के आर्थिक पैकेज को गलत और डायरेक्ट कैश ट्रांसफर को सही बताने के पीछे क्या मकसद हो सकता है?
राहुल गांधी साफ तौर पर समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि लॉकडाउन के चलते सड़क पर आ चुके गरीबों और मजदूरों को तत्काल मदद की जरूरत है. मदद मतलब सिर्फ नकद सीधे उनके खाते में डाले जायें.
राहुल गांधी ये भी समझा रहे हैं कि मोदी सरकार का आर्थिक पैकेज बतौर कर्ज है. कर्ज वो रकम होती है जिसे देर सवेर लौटाना होता है. या विशेष परिस्थितियों में कर्जमाफी भी हो सकती है. जैसे राहुल गांधी चुनावों के वक्त किसानों के लिए कर्जमाफी की बात किया करते रहे.
यही वो बिंदु है जहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच टकराव की नौबत आ जाती है. कांग्रेस किसानों की कर्जमाफी की पक्षधर है. बीजेपी किसानों की आय बढ़ाने की हिमायती है. ठीक वैसे ही कांग्रेस गरीबों के खाते में सीधे नकद भेजने की वकालत कर रही है. मोदी सरकार आर्थिक पैकेज दे रही है.
तात्कालिक तौर पर तो राहुल गांधी की बातें बड़ी अच्छी लगती हैं, लेकिन क्या राहुल गांधी के नजरिये से मोदी सरकार की पॉलिसी को हमेशा के लिए खारिज किया जा सकता है.
बीजेपी का किसान कर्जमाफी को लेकर अपना पक्ष रहा है कि अगर कर्ज माफ किये जाएंगे तो वे फिर कर्ज लेंगे - और कभी भी वो अपनी आमदनी बढ़ाने की कोशिश नहीं करेंगे. आर्थिक मदद और सुविधाएं मिलने पर वो कर्ज की रकम लौटाने के साथ ही आमदनी बढ़ाने की भी कोशिश करेंगे.
असल बात ये है कि ये एक तरीके से आत्मनिर्भरता और निर्भरता बनाये रखने की लड़ाई बन चुकी है. अगर गरीब आत्मनिर्भर बन जाएंगे तो क्या वोट नहीं देंगे - फिर तो बीजेपी नेतृत्व बहुत बड़ा जोखिम ले रहा है. अगर गरीब किसी न किसी बहाने हर बार नकद मदद लेते रहे तो वे आत्मनिर्भर तो कभी बनने से रहे, जाहिर है फिर कभी भी गरीबी हटाओ जैसे नारे और कार्यक्रम पुराने नहीं पड़ेंगे - सीधी सी बात तो इतनी भर ही है. है कि नहीं?
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