हिंदू-हिंदुत्व का फर्क स्पष्ट करने वाले राहुल गांधी 'राष्ट्रवाद' पर मार्गदर्शन कब देंगे?
मनीष तिवारी (Manish Tewari) ने कांग्रेस में राष्ट्रवाद पर बहस वैसे ही शुरू की है, जैसे सलमान खुर्शीद (Salman Khurshid) ने हिंदू-मुस्लिम विमर्श - महत्वपूर्ण ये देखना होगा कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) क्या नजरिया पेश करते हैं क्योंकि कांग्रेस का राजनीतिक पथ प्रदर्शन तो उसी से होगा.
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हिंदुत्व के बाद कांग्रेस में राष्ट्रवाद विमर्श भी शुरू हो ही गया. हालांकि ये दोनों परस्पर विरोधी छोर से उठाये गये हैं. हिंदुत्व का मुद्दा उठाया है प्रियंका गांधी वाड्रा की टीम के एक्टिव मेंबर सलमान खुर्शीद (Salman Khurshid) ने, लेकिन राष्ट्रवाद का मसला सामने लाया है मनीष तिवारी (Manish Tewari) ने जिनकी हाल फिलहाल G-23 के सदस्य के रूप में पहचान बनी है. ये दोनों ही बातें दोनों नेताओं की किताबों के जरिये सामने आयी हैं.
मनीष तिवारी ने मुंबई हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ तब की मनमोहन सरकार के स्टैंड को लेकर कांग्रेस को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है. उड़ी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार में सेना के सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर कांग्रेस नेताओं ने जो दावों किये थे, मनीष तिवारी ने उनको भी घेरे में ला दिया है - और ऐसे नेताओं में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) भी शामिल हैं.
आइए समझने की कोशिश करें कि मनीष तिवारी ने कांग्रेस में राष्ट्रवाद की जो बहस शुरू की है वो किस दिशा में बढ़ रही है - और कांग्रेस के लिए इसकी क्या अहमियत है या फिर कैसे नतीजे सामने आ सकते हैं?
राष्ट्रवाद के आईने में कांग्रेस कहां है?
2016 में उड़ी कैंप पर हमले के बाद जब पाकिस्तान के खिलाफ सेना का सर्जिकल स्ट्राइक हुआ तो कांग्रेस ने शुरू में तो सपोर्ट किया, लेकिन सेना के नाम पर. फिर राहुल गांधी और उनकी टीम ने मोदी सरकार को दो तरीके से टारगेट किया.
कांग्रेस के कुछ नेता आगे आये और दावा किया गया कि मोदी सरकार ने कोई नया काम नहीं किया है. सर्जिकल स्ट्राइक जैसे ऑपरेशन यूपीए की मनमोहन सरकार में भी हुए थे, लेकिन किसी ने मोदी सरकार की तरह ढिंढोरा नहीं पीटा. और ऐसा सिर्फ एक बार ही नहीं हुआ था.
तब राहुल गांधी यूपी चुनाव की तैयारियों में जुटे थे और यूपी में किसान यात्रा के बाद दिल्ली लौटे तो अब हिसाब से बम ही फोड़ डाले. सीधा इल्जाम रहा - 'आप खून की दलाली करते हो!'
मनमोहन सिंह की दूसरी पारी में कैबिनेट साथी रहे मनीष तिवारी ने अपनी किताब (10 Flash Points, 20 Years) में मुंबई हमले के बाद कांग्रेस सरकार के स्टैंड पर सवाल उठाया है. लिखते हैं, 26/11 हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सख्त एक्शन न लेना किसी धैर्य या संयम जैसी बात नहीं थी, बल्कि कमजोरी की निशानी थी.
मनीष तिवारी ने राहुल गाधी को हॉट सीट पर बैठकर ऑप्शन भी नहीं छोड़ा है!
मनीष तिवारी की दलील है अगर पाकिस्तान को बेकसूर लोगों की हत्या का कोई अफसोस नहीं है तो संयम दिखाने जैसी बातें कमजोरी की निशानी हैं, न कि ताकत की. मुंबई हमले की अमेरिका के 9/11 से तुलना करते हुए मनीष तिवारी की राय जाहिर की है कि भारत को मुंहतोड़ जवाब देना चाहिये था.
26 नवंबर 2008 को हुए मुंबई हमलों के दौरान तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने भी कांग्रेस की कम फजीहत नहीं करायी थी. हमले के आगे पीछे कई बार उनके सूट बदलने को लेकर विपक्ष ने काफी शोर मचाया और उनकी कुर्सी पर बन आयी. आखिरकार इस्तीफा देना पड़ा. हमले के दौरान जिंदा पकड़े गये पाकिस्तानी आतंका कसाब के खिलाफ मुकदमा चला और दोषी पाये जाने पर फांसी दी गयी थी.
सर्जिकल स्ट्राइक ही नहीं, पुलवामा हमले के बाद हुए बालाकोट एयर स्ट्राइक से लेकर जम्मू-कश्मीर में धारा 370 खत्म करने तक कांग्रेस अपने स्टैंड को लेकर एक ही मोड़ पर खड़ी नजर आयी है - और कांग्रेस नेतृत्व के रुख का पार्टी के एक धड़े ने कभी सपोर्ट नहीं किया है.
1. जब पुलवामा आतंकी हमला हुआ: फरवरी, 2019 में जब आम चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी थीं और कांग्रेस ने औपचारिक तौर पर प्रियंका गांधी वाड्रा को महासचिव बना कर यूपी के मोर्चे पर तैनात किया, सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकवादी हमला हो गया. प्रियंका गांधी बीच में ही यूपी दौरा छोड़ कर दिल्ली लौट गयीं.
पहले तो कांग्रेस थोड़ी सहमी रही, लेकिन विपक्षी दलों की एक मीटिंग के बाद राहुल गांधी मीडिया के सामने आये और मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए जो कुछ कहा उसे पाकिस्तानी मीडिया ने हाथों हाथ लिया - और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तब बीजेपी अध्यक्ष रहे अमित शाह चुनावी रैलियों में राहुल गांधी सहित पूरे विपक्ष को पाकिस्तान परस्त बताने लगे.
कांग्रेस के पास बचाव के बहुत ऑप्शन नहीं बचे थे. बीजेपी नेता चुनावों में घूम घूम कहने लगे थे कि विपक्ष के बयानों से पाकिस्तान में टीवी बहसों के लिए मसाला मिल जाता है. कांग्रेस को 2019 के आम चुनाव में लगातार दूसरी बार हार का मुंह देखना पड़ा और राहुल गांधी अपनी अमेठी सीट भी गंवा बैठे.
साल भर बाद पुलवामा हमले की बरसी पर राहुल गांधी ने फिर से मोदी-शाह को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की - ये पूछ कर कि फायदा किसे हुआ?
राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा - आज जब हम पुलवामा के चालीस शहीदों को याद कर रहे हैं - हमे पूछना चाहिये.
A. पुलवामा आतंकी हमले से किसे सबसे ज्यादा फायदा हुआ?
B. पुलवामा आतंकी हमले को लेकर हुई जांच से क्या निकला?
C. हमले की वजह बनी सुरक्षा में चूक के लिए बीजेपी सरकार में किसकी जवाबदेही तय हुई?
Today as we remember our 40 CRPF martyrs in the #PulwamaAttack , let us ask:1. Who benefitted the most from the attack?2. What is the outcome of the inquiry into the attack?3. Who in the BJP Govt has yet been held accountable for the security lapses that allowed the attack? pic.twitter.com/KZLbdOkLK5
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) February 14, 2020
सरकार के कामकाज पर सवाल खड़े करना विपक्ष का हक है, लेकिन राहुल गांधी दो बार चूके - उड़ी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर भी और पुलवामा हमले के बाद बालाकोट स्ट्राइक को लेकर भी. सबसे बड़ा नुकसान ये हुआ कि लोगों में मैसेज कांग्रेस के खिलाफ गया और बीजेपी को पूरा फायदा मिला.
2. जब जम्मू-कश्मीर में धारा 370 खत्म हुआ: आम चुनाव के बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में लौटे तो अमित शाह का मिशन कश्मीर शुरू हुआ - और धारा 370 को संसद के जरिये खत्म कर दिया गया.
कांग्रेस नेतृत्व ने कड़ा विरोध जताया - और आज भी अपने स्टैंड पर कायम नजर आता है. कांग्रेस कार्यकारिणी में हुई बहस में कई ऐसे नेता रहे जो पार्टी के स्टैंड का साथ देने को तैयार नहीं हुए. ऐसे नेताओं का कहना रहा कि ये जनभावनाओं के खिलाफ है. ऐसे ही नेताओं में तब ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद भी हुआ करते थे. कुछ और भी नेता रहे जो नेतृत्व की तरफ से डपट दिये जाने पर खामोश हो गये और बाद में कुछ भी नहीं बोले. कुछ तब तो खामोश रहे, लेकिन बाद में कांग्रेस छोड़ने का फैसला कर लिया.
कार्यकारिणी की उस मीटिंग में राहुल गांधी ने ऐसे नेताओं की बात नहीं सुनी - और प्रियंका गांधी ने ऐसे नेताओं को पार्टी विरोधी होने जैसा ट्रीट किया. प्रियंका गांधी कांग्रेस नेताओं को ऐसे समझाती रहीं जैसे मोदी सरकार के खिलाफ अकेले राहुल गांधी ही लड़ते दिखाई दे रहे हैं. लगता है कालांतर राहुल गांधी के निडर और डरपोक नेताओं की कैटेगरी तय करने में इसी से मदद मिली होगी.
ध्यान देने वाली बात ये है कि कांग्रेस की कश्मीर पॉलिसी का चेहरा गुलाम नबी आजाद ही रहे लेकिन विडबंना तो देखिये, निशाने पर राहुल गांधी आ जाते हैं. वैसे भी गुलाम नबी आजाद का स्टैंड हमेशा ही अब्दुल्ला पिता-पुत्र और महबूबा मुफ्ती से अलग तो रहा ही है.
3. कैप्टन के कांग्रेस छोड़ने के बाद: जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर कांग्रेस के स्टैंड के साथ कायम रहने के बावजूद गुलाम नबी आजाद कभी राष्ट्रवाद के मुद्दे पर पर बाकी कांग्रेस नेताओं की तरह बीजेपी के निशाने पर नहीं आये. गुलाम नबी आजाद को लेकर भी बीजेपी का स्टैंड कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसा ही रहा है. कैप्टन जहां कांग्रेस से पूरी तरह अलग हो चुके हैं, वहीं गुलाम नबी करीब करीब आधा ही 'आजाद' नजर आते हैं.
कांग्रेस में राष्ट्रवाद की जो मशाल कैप्टन थामे हुए थे, उनके पार्टी छोड़ देने के बाद गुलाम नबी आजाद भी उसी मोड़ पर खड़े हो गये हैं. मनीष तिवारी किताब के जरिये उसी बहस को मुंबई हमले से जोड़ कर मजबूत कर रहे हैं - और ये पूरी तरह कांग्रेस के खिलाफ जा रहा है. ध्यान रहे, सुनील जाखड़ के बाद नवजोत सिंह सिद्धू की जगह मनीष तिवारी ही पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर कैप्टन की पसंद के रूप में बताये गये थे - मतलब, ऐसे भी समझ सकते हैं कि कैप्टन के राष्ट्रवाद को पंजाब की धरती से मनीष तिवारी आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. जैसे जम्मू-कश्मीर की धरती से गुलाम नबी आजाद.
4. जब सिद्धू ने इमरान को बड़ा भाई बताया: ये मनीष तिवारी ही हैं जो नवजोत सिंह सिद्धू के इमरान खान को बड़ा भाई बताने पर खुल कर रिएक्ट किये थे - और समझाने की कोशिश रही कि इमरान खान किसी के बड़े भाई हो सकते हैं, लेकिन वो देश के दुश्मन हैं जो हर रोज भारत के खिलाफ सारी साजिशें रचता है. कहने का मतलब, ये भी कि जो इमरान खान को भाई बता रहा हो, उसके बारे में लोग अपनी राय खुद बना सकते हैं.
और उसी नवजोत सिंह सिद्धू के पीछे पूरा गांधी परिवार खंभा बन कर खड़ा है. पंजाब के मामले में काफी दिनों तक गांधी परिवार की जबान बने रहे हरीश रावत को भी सिद्धू के पाकिस्तान प्रेम ले न कोई परहेज रही है, न बाजवा से गले मिलने में कोई बुराई दिखती है.
5. जब सोनिया को पवार ने चुप कराया: गलवान घाटी संघर्ष के बाद चीन के मुद्दे पर राहुल गांधी के लगातार आक्रामक बने रहने के बीच सर्वदलीय बैठक में सोनिया गांधी ने सवाल तो उठाये लेकिन जैसे अकेले पड़ गयीं क्योंकि सोनिया गांधी के सवालों पर टिप्पणी करते हुए शरद पवार ने कांग्रेस पार्टी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया था - निशाने पर निश्चित तौर पर राहुल गांधी ही रहे.
इस बीच सीनियर कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर के बयान के बाद भी सोशल मीडिया पर लोग राहुल गांधी की चीन के राजदूत से गुप्त मुलाकात याद दिलाने लगे हैं. ट्विटर पर लोग कहने लगे हैं कि मणिशंकर अय्यर चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस की मिट्टी पलीद कराते रहे हैं. अय्यर ने एक कार्यक्रम में कहा था, '...सात साल से हम देख रहे हैं कि गुटनिरपेक्षता, शांति की बात ही नहीं होती है... अमेरिका के गुलाम बन बैठे हैं और कहते हैं कि हमें बचा लो... किससे बचाओ? वो कहते हैं कि चीन से बचो.'
ये अय्यर ही हैं जिनके बयान के बाद बीजेपी के कैंपेन में मोदी को 'चायवाला' के तौर पर प्रोजेक्ट किया गया - और 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए 'नीच' शब्द के इस्तेमाल पर एक्शन लिया गया था. तब भी राहुल गांधी को बचाव की मुद्रा में आने पड़ा था.
ये कहां जा रही है कांग्रेस?
सलमान खुर्शीद की किताब के जरिये कांग्रेस ने बोको हराम और आईएसआईएस से हिंदुत्व की तुलना करके जो बहस छेड़ी है - और राहुल गांधी ने हिंदू धर्म और हिंदुत्व पर जो निजी थ्योरी पेश की है, वो रिवर्स-पोलराइजेशन जैसी एक कोशिश ही लगती है. मतलब, कांग्रेस भी चाहती है कि वोटों का ध्रुवीकरण हो और मुस्लिम वोट का मेजर शेयर उसे मिल जाये. ये तो बीजेपी ने भी माना था कि पश्चिम बंगाल में ऐसा होने के चलते ही हार का मुंह देखना पड़ा था. हो सकता है कांग्रेस को लगता हो कि जैसे बंगाल में ममता बनर्जी को फायदा हुआ, पूरी तरह न सही, यूपी में उसे भी थोड़ा बहुत फायदा हो जाये. ये तो कांग्रेस को भी मालूम है कि अखिलेश यादव की कोशिश होगी कि मुस्लिम वोट हर हाल में समाजवादी पार्टी को मिले, लेकिन ऐसा भी तो नहीं कि पूरा का पूरा एक ही जगह पोल हो जाएगा. ऐसा कभी होता तो है नहीं.
ऐसा भी नहीं कि ये सारी कवायद सिर्फ 2022 के शुरू में होने जा रहे पांच राज्यों के चुनावों तक सीमित हो या छह महीने बाद के गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनावों के लिए - असल में तो ये सब 2024 के आम चुनाव को ध्यान में रख कर किया जा रहा है. ये हो सकता है, मनीष तिवारी पंजाब चुनाव को देखते हुए मुंबई हमले की याद दिला रहे हों और राशिद अल्वी यूपी चुनाव के मद्देनजर जय श्रीराम का नारा बोलने वालों को राक्षस बता रहे हों.
ये भी साफ है कि कांग्रेस के भीतर हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर बहस भी बीजेपी को मिल रहे सपोर्ट से उपजी राजनीतिक परिस्थितियों के चलते ही शुरू हो रही है, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि कांग्रेस नेतृत्व इसे कैसे हैंडल कर रहा है?
1. देखना है कि राहुल गांधी भी मुंबई हमले को लेकर शुरू हुई बहस में कूद कर उसे आगे बढ़ाते हैं या राष्ट्रवाद के मुद्दे पर कांग्रेस में मनीष तिवारी जैसे नेताओं का गुट एक अलग प्रेशर ग्रुप के तौर पर खड़ा होने वाला है?
2. राहुल गांधी या सोनिया गांधी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ही सही मनीष तिवारी का नाम लेकर या बगैर नाम लिये वैसे ही अपनी राय रखें तभी सही तस्वीर सामने आ पाएगी - अगर राहुल गांधी ने आगे बढ़ कर डैमेज कंट्रोल के लिए कोई पहल नहीं की तो मनीष तिवारी की बातें भी मणिशंकर अय्यर जैसी ही घातक साबित हो सकती हैं.
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