भारत में 1% लोगों के पास 73 फीसदी दौलत क्यों ? दो अर्थशास्त्रियों का जवाब...
जो सवाल राहुल गांधी ने पीएम मोदी से पूछा है अगर वह एक बार वही सवाल सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह से भी पूछें तो शायद उन्हें इसका सही जवाब मिलेगा.
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हाल ही में ऑक्सफेम की एक रिपोर्ट आई है, जिसके अनुसार 2017 में कुल जितनी दौलत पैदा हुई, उसका 73% हिस्सा सिर्फ 1% लोगों के पास है. यह आंकड़े साफ दिखाते हैं कि देश में आय को लेकर कितनी असमानता है. इन्हीं आंकड़ों को आधार बनाते हुए राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर हमला बोला है. आपको बता दें राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए लिखा है- 'प्रिय प्रधानमंत्री, स्विटजरलैंड में स्वागत है ! कृपया दावोस के यह बताएं कि सिर्फ 1% लोगों के पास ही देश की 73 फीसदी दौलत क्यों है?' राहुल गांधी ने इसके साथ एक रिपोर्ट भी साझा की थी.
Dear PM,Welcome to Switzerland! Please tell DAVOS why 1% of India’s population gets 73% of its wealth? I’m attaching a report for your ready reference. https://t.co/lLSNOig5pE
— Office of RG (@OfficeOfRG) January 23, 2018
लेकिन अगर राहुल गांधी पीएम मोदी से सवाल पूछने से पहले अपने गिरेबां में भी झांक लेते तो अच्छा होता. अगर वह एक बार यही सवाल सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह से भी पूछें तो शायद उन्हें इसका सही जवाब मिलेगा. गरीब और अमीर के बीच की ये खाई सिर्फ इन साढ़े तीन सालों में नहीं बनी है, जिसमें मोदी सरकार सत्ता में रही है. इस खाई के लिए खुद कांग्रेस ही जिम्मेदार है, जिसके शासनकाल में यह खाई लगातार गहरी होती गई. यह निष्कर्ष भी उसी रिपोर्ट में जाहिर किया गया है जिसका हवाला देकर राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी पर आरोप लगाया था.
कांग्रेस के समय में अमीरों को हुआ खूब फायदा
मशहूर अर्थशास्त्री Lucas Chancel और Thomas Piketty ने अपनी एक रिपोर्ट में इसी ओर इशारा किया है. उनकी रिपोर्ट में कहा गया है कि लिब्रलाइजेशन (liberalisation) से अमीरों को फायदा हुआ, जबकि अन्य लोग पहले की तरह ही संघर्ष करते रह गए. इनका रिसर्च पेपर 'Indian income inequality, 1922-2014: from British Raj to Billionaire Raj?' नाम से छपा है. इस रिसर्च पेपर में बताया गया है कि आय की असमानता 1922-2014 के दौरान सबसे अधिक 2014 में रही है, जब 10% भारतीयों के पास देश की कुल दौलत का 56% हिस्सा था. 1991 में कांग्रेस ने सरकारी नियमों में नरमी की, जिसे लिब्रलाइजेशन कहा गया. लिब्रलाइजेशन के साथ-साथ कांग्रेस ने प्राइवेट कंपनियों को पब्लिक सेक्टर कंपनियों के मालिकाना हक भी ट्रांसफर किए (प्राइवेटाइजेशन) और विदेशी कंपनियों को भी भारत में बिजनेस करने की आजादी (ग्लोबलाइजेशन) दी.
खुद राजीव गांधी ने माना था आय की असमानता को
देश के पूर्व प्रधानमंत्री और राहुल गांधी के पिता स्वर्गीय राजीव गांधी भी यह बात कह चुके हैं कि जब केन्द्र सरकार से एक रुपया चलता है तो वह जनता तक पहुंचते-पहुंचते सिर्फ 15 पैसे ही रह जाता है. इतना ही नहीं, खुद राहुल गांधी भी कह चुके हैं केन्द्र सरकार से जब एक रुपया चलता है तो आम जनता तक पहुंचते-पहुंचते वह सिर्फ 5 पैसे रह जाता है. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि आय की असमानता पहले से ही चली आ रही है. बस फर्क यह है कि समय बीतने के साथ-साथ अमीरों और गरीबों के बीच की ये खाई और भी गहरी हो गई है.
दुनिया में हालत और भी खराब
देश के करीब 67 करोड़ भारतीयों की कुल दौलत 2017 में सिर्फ 1% बढ़ी है. दुनिया भर में यह स्थिति और भी खराब है, जहां 82% दौलत सिर्फ 1% लोगों के पास है. यह बात आपको और भी हैरान कर सकती है कि दुनिया भर के कुल 3.7 अरब लोगों की दौलत में तो कोई बढ़ोत्तरी ही नहीं हुई. भारत में इस समय ये हालत है कि किसी कपड़े बनाने की एक बड़ी कंपनी का उच्च अधिकारी साल भर में जितने पैसे कमाता है, उतने पैसे किसी मजदूर को कमाने में 941 साल लग जाएंगे.
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने भी भारत में आय की असमानता होने की बात कही है और इंक्लूसिव डेवलपमेंट इंडेक्स में भारत को 62वें स्थान पर रखा गया है. भले ही इस इंडेक्स में भारत का इतने निचले पायदान पर होने का अकेला कारण आय की असमानता नहीं है, लेकिन यह भी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि मोदी सरकार के कार्यकाल में अमीरों और गरीबों के बीच आय की असमानता नहीं बढ़ी, लेकिन इसकी शुरुआत कांग्रेस के दौरान ही हुई है. ऐसे में राहुल गांधी को पीएम मोदी से सवाल पूछने से पहले खुद भी इन सवालों के जवाब ढूंढ़ने चाहिए. क्योंकि आज जो सवाल वह पीएम मोदी से पूछ रहे हैं, वही सवाल जनता उनसे भी पूछ सकती है.
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