राहुल गांधी जब शरद यादव को गुरु बताते हैं तो सलाह क्यों नहीं मान लेते?
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने जैसे ही शरद यादव (Sharad Yadav) को गुरु कह कर संबोधित किया, आरजेडी नेता ने कांग्रेस को कुछ टिप्स दे डाली - लेकिन वो कहां सुनने वाले थे. मौके पर ही भारत-चीन (India and China) की तुलना उक्रेन-रूस से करने लगे.
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने शरद यादव से मुलाकात की. फिर बताया कि वो अपने गुरु से मिलने पहुंचे थे. गुरु ने भी अपनी तरफ से मुलाकात को लेकर 'अपार हर्ष' व्यक्त किया - और लगे हाथ राजनीतिक सलाह भी दे डाली.
राहुल गांधी ने सरेआम स्वीकार किया कि उनको शरद यादव (Sharad Yadav) से राजनीति की काफी चीजें सीखने को मिली हैं. आंध्र प्रदेश के किसी कार्यक्रम के दौरान गाड़ी में दो-तीन घंटे साथ बिताने के वक्त का अनुभव भी सुनाया. बताये कि कैसे शरद यादव ने एक छोटे से सफर में ही भारत की राजनीति समझा डाली - और वो उसे कभी नहीं भूल सकते.
ये किस्सा राहुल गांधी ने बिहार चुनाव के दौरान भी शेयर किया था. असल में शरद यादव की बेटी सुभाषिनी यादव कांग्रेस के टिकट पर बिहारीगंज विधानसभा से चुनाव लड़ी थीं, लेकिन हार गयीं. राहुल गांधी के वोट मांगने के बाद सुभाषिनी यादव ने एक इमोशनल पोस्ट लिखी थी - और बताया कि कैसे राहुल गांधी ने बीमार पिता के नहीं पहुंच पाने की स्थिति में उनको बहन बताया और हौसलाअफजाई की. सुभाषिनी यादव की शादी हरियाणा में हुई है.
शरद यादव की ही तरह राहुल गांधी अलग अलग मौकों पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और असम में कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई को भी गुरु बता चुके हैं. भले ही कोई चर्चा नहीं होती और हो सकता है मनमोहन सिंह और तरुण गोगोई से राहुल गांधी ने राजनीति की थ्योरी सीखी हो, लेकिन प्रैक्टिकल ट्रेनिंग तो राहुल गांधी को दिग्विजय सिंह से ही मिली है.
2004 में राहुल गांधी पहली बार अमेठी से लोक सभा पहुंचे थे. ये तभी की बात है जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया था - और राहुल गांधी के साथ साथ दिग्विजय सिंह साये की तरह मौजूद देखे जाते रहे. दिग्विजय सिंह के ही साथ काम करने की वजह से ही राहुल गांधी ने 2009 में कांग्रेस को यूपी से ज्यादा सीटें दिलवा दी थी और खूब तारीफ बटोर रहे थे.
ये बात अलग है कि राहुल गांधी का गुरु बताये जाने पर दिग्विजय सिंह ने एक इंटरव्यू में कहा था, 'बड़ी गलतफहमी है आपको... मैं किसी का गुरु नहीं... अपने बेटे का भी नहीं...'
राहुल गांधी अगर शरद पवार की बात मान कर उस तबके को कांग्रेस से जोड़ने की कोशिश करते जो गुजरते वक्त के साथ दूर होते गये - और मनमोहन सिंह को फॉलो करते हुए कुछ मसलों पर खामोशी अख्तियार कर लेते तो भी कांग्रेस का कल्याण हो जाता. कम से कम भारत और चीन को लेकर राहुल गांधी ऐसा बयान देने से तो बच ही सकते थे, जिसके बाद वो अपने राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर होंगे.
गुरु की राहुल गांधी को सलाह
राहुल गांधी की तरफ से गुरु वाले भाव के इजहार को महसूस करते ही, शरद यादव ने कांग्रेस को फिर से खड़ा करने की सलाह दे डाली - लेकिन राहुल गांधी तो पहले से ही तय किये रहते हैं कि माइक पकड़ते ही क्या बोलना है.
राहुल गांधी चाहे जिस किसी को भी गुरु बताते फिरें, लगता तो नहीं कि वो किसी को मन से मानते भी हैं.
तभी तो कांग्रेस की तरफ से देश में तेजी से बढ़ती महंगाई पर रैली बुलायी जाती है - और राहुल गांधी सीधे सीधे बोल देते हैं कि महंगाई पर तो वो बोलेंगे ही, लेकिन पहले वो बात कहेंगे जो उनके मन में है. और फिर हिंदुत्व पर राहुल गांधी का भाषण शुरू हो जाता है. हिंदू, हिंदुत्व और हिंदूवादी के बीच का फर्क समझाते हैं और देखते ही देखते खुद को महात्मा गांधी जैसा साबित भी कर देते हैं.
जब राहुल गांधी ने शरद यादव को गुरु बताया तो ये भी सवाल हुआ कि उनके कांग्रेस का नेतृत्व करने को लेकर क्या सलाह होगी. शरद यादव ने न सिर्फ हामी भरी, बल्कि ये भी बता डाला कि कैसे कांग्रेस को 24 घंटे चलाने वाला कोई है तो वो राहुल गांधी ही हैं.
शरद यादव की ये भी सलाह रही कि कांग्रेस को चाहिये कि वो राहुल गांधी को अध्यक्ष बना कर कमान सौंप दे. शरद यादव की इस सलाह पर राहुल गांधी ने सिर्फ इतना ही कहा, 'ये देखने वाली बात है.'
कांग्रेस अध्यक्ष बनने को लेकर राहुल गांधी के कुछ बोल देने का ये मौका तो नहीं था, लेकिन जिस अंदाज में रिएक्शन आया, लगा नहीं कि राहुल गांधी फिर से अध्यक्ष पद संभालने को लेकर किसी तरह का मन बना चुके हों. ये सुन कर भी कि कांग्रेस को 24 घंटे चलाते भी वही हैं, राहुल गांधी ने कोई टिप्पणी नहीं की. ठीक भी है, जब ऐसे ही सब काम चल रहा हो तो कोई औपचारिक जिम्मेदारी लेकर फजीहत बढ़ाने का क्या मतलब है. ऐसे तो दायें बायें चल भी जाता है, बतौर कांग्रेस अध्यक्ष तो कई सारी औपचारिकताएं निभानी ही पड़तीं. अभी संसद में बजट सत्र के अंतिम दिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी नेताओं से मुलाकात की तो सोनिया गांधी गयी थीं, अध्यक्ष रहते तो राहुल गांधी को ही जाना पड़ा होता. अगर न जाने का फैसला करते तो भी सवाल उठाये ही जाते.
गुरु की सलाह पर फोकस क्यों नहीं: शरद यादव की राहुल गांधी को सबसे बड़ी सलाह रही, "कांग्रेस को कमजोर वर्गों को पकड़ना जरूरी है... जो कांग्रेस के पास थे. राहुल गांधी दिल से ये काम कर सकते हैं..."
राहुल गांधी ने सलाह तो बड़े धैर्य के साथ सुनी लेकिन जब बोलने की बारी आयी तो कमजोर वर्गों पर जोर देकर कुछ कहने के बजाय अपने फेवरेट टॉपिक की ओर बढ़ गये. हिंदुत्व की बात तो नहीं की, लेकिन नफरत की राजनीति का जिक्र कर संघ, बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर ले ही लिया.
राहुल गांधी ने 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस की हार और अपनी अमेठी सीट गंवाने के बाद पूरी जिम्मेदारी लेते हुए कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद भी तमाम चुनाव हुए हैं, लेकिन हर चुनाव कांग्रेस हारती चली गयी है - यहां तक कि यूपी चुनाव में भी कांग्रेस को 2017 में मिली 7 सीटों के मुकाबले महज 2 सीटों से ही संतोष करना पड़ा.
सच तो यही है कि शरद यादव अपनी तरफ से राहुल गांधी को आईना दिखाने की कोशिश कर रहे थे. ये सही है कि शरद यादव ने जिंदगी भर पिछड़े तबके की ही राजनीति की है, लिहाजा सलाहियत भी तो अनुभव से ही निकल कर आएगी - लेकिन सबसे बड़ा सच भी यही है कि राहुल गांधी को अगर वास्तव में कांग्रेस को खड़ा करने की कोई ख्वाहिश बची है तो उसी तरफ रुख करना पड़ेगा जिधर शरद यादव इशारा कर रहे हैं.
श्रीलंका और रूस-यूक्रेन जैसे हालात!
देश की अर्थव्यवस्था के सवाल पर राहुल गांधी ने बोले, 'जो आने वाला है, वो आपने पूरी जिंदगी में नहीं देखा है.' राहुल गांधी ने कहा कि 'आप हिंदुस्तान की आर्थिक स्थिति की कल्पना ही नहीं कर सकते हैं.'
अर्थव्यवस्था पर राहुल गांधी की राय: कांग्रेस नेता से मीडिया का सवाल था - क्या देश के हालात श्रीलंका की तरह होते जा रहे हैं?
राहुल गांधी ने बताया कि जो हाल हो रखा है, उसके नतीजे दो, तीन, चार साल में देखने को मिलेंगे - भयंकर रिजल्ट आएगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट करते हुए राहुल गांधी ने कहा, 'वो दूसरे देशों को देख कर अपना प्लान बनाते हैं... प्रधानमंत्री के माइंड में है कि साउथ कोरिया ने क्या किया है? हमें भी करना चाहिये... वो बाहर देखते हैं... वैसे काम नहीं हो सकता... हमें पहचानना होगा कि हम क्या हैं और यहां क्या चलता है.'
भारत-चीन विवाद और संबंध पर राहुल गांधी की राय: राहुल गांधी ने आशंका जतायी है कि यूक्रेन जैसे हालात भारत में भी हो सकते हैं - और देश के साथ चीन भी वैसी ही हरकत कर सकता है जैसा चीन ने किया है.
राहुल गांधी कहते हैं, 'सरकार ने खुद स्वीकार किया है कि चीन देश के पावर ग्रिड को हैक करने की कोशिश कर रहा है... पिछले चार महीने में ही चीन ने तीन बार ऐसी कोशिश की लेकिन वो अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हो पाया.'
यूक्रेन की जगह भारत को रख कर राहुल गांधी ने ये समझाने की कोशिश की कि कैसे चीन भी भारत के साथ वैसा ही व्यवहार कर रहा जैसा रूस ने यूक्रेन के साथ किया है. राहुल गांधी बोले, 'रूस कहता है कि डोनबास और लुगांस्क रीजन को यूक्रेन नहीं मानते... यही थ्योरी चीन हिंदुस्तान पर अप्लाई कर रहा है... जैसे रूस ने कहा है कि डोनबास और लुगांस्क यूक्रेन का नहीं है, वैसे ही चीन कह रहा है कि लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश आपका नहीं है - और अपनी सेना बिठा रखी है.'
राहुल गांधी ने इल्जाम लगाया कि केंद्र की बीजेपी सरकार इसे नजरअंदाज कर रही है. सच्चाई को स्वीकार नहीं कर रही है. अगर आपने सच्चाई को स्वीकार नहीं की और तैयारी नहीं की तो जब मामला खराब होगा आप रिएक्ट नहीं कर पाएंगे.
राहुल गांधी फिलहाल गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों की तैयारी कर रहे हैं. हाल ही में कर्नाटक भी हो आये हैं, लेकिन फिर से वैसी बातें करने लगे हैं जिसे लेकर बीजेपी तत्काल प्रभाव से घेर सकती है.
श्रीलंका और भारत की अर्थव्यवस्था की तुलना तो नहीं हो सकती, हां, बढ़ती महंगाई को देखते हुए वैसे हालात की तरफ बढ़ने की आशंका जरूर लगती है. लेकिन रूस और यूक्रेन की तरह भारत और चीन की तुलना भी तो नहीं की जा सकती.
अव्वल तो चीन की नीति सीधे सीधे युद्ध से परहेज की ही रही है. सरहदों पर काम वो भी पाकिस्तान जैसे करता रहता है, लेकिन वो अपनी विस्तारवादी नीतियों को अंजाम देने के लिए आर्थिक उपायों पर ज्यादा भरोसा करता है.
बेशक चीन से सतर्क रहने और श्रीलंका की तरह किसी भी तरह के झांसे में फंसने से बचने की जरूरत है, लेकिन भारतीय सैन्य शक्ति से वो भी पूरी तरह वाकिफ है. मालूम नहीं राहुल गांधी को कैसे लगता है कि चीन भी किसी दिन भारत पर वैसे ही हमला कर देगा जैसे यूक्रेन पर रूस ने किया है.
मान लेते हैं कि गलवान घाटी पर सरकार की तरफ से जो भी बयान आये, विपक्ष ही नहीं कई स्ट्रैटेजिक एक्सपर्ट को भी भरोसा नहीं हुआ. लेकिन कांग्रेस के ही सहयोगी एनसीपी नेता शरद पवार ने जो कहा उसका जवाब तो कांग्रेस की तरफ से भी नहीं आया. शरद पवार के देश के रक्षा मंत्री रहे होने की वजह से उनकी बातों को काफी अहमियत भी दी गयी.
रही बात चीन की तो, तो वहां के राजदूत से राहुल गांधी की मुलाकात को लेकर जिस तरीके से रिएक्ट किया गया और पहले इनकार के बाद भी फिर मान लिया गया - राहुल गांधी ने अपने विरोधियों को एक बार फिर हमल का मौका दे दिया है.
अब तो बीजेपी की तरफ से राहुल गांधी के बयान को सेना का मनोबल गिराने वाला बताया जाएगा - और फिर से चीन का सवाल उठाने का दांव राहुल गांधी को उलटा पड़ सकता है.
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