राहुल गांधी के शिक्षक, जो बता रहे हैं उनमें आए बदलाव के बारे में...
यहां तक पहुंचने के लिए राहुल ने बहुत मेहनत की है. और मेहनत का फल मिलना कोई गलत बात नहीं है. ऐसे में अगर अब राहुल को लगता है कि वो पार्टी का अध्यक्ष बनने के लिए तैयार हैं तो इस पर हंगामा करने की क्या जरुरत है?
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कभी कभी मैं सोचता हूं कि अब राहुल गांधी कैसा महसूस करते होंगे. ये सच है कि सेंट स्टीफन में पढ़ने वाले छात्र से अब तक राहुल ने एक लंबा सफर तय किया है. मेरे लिए छात्रों की पारिवारिक पृष्ठभूमि कभी मायने रखती थी. इसलिए राहुल भी मेरे लिए बाकी छात्रों की तरह एक आम छात्र ही थे. और इस बात का श्रेय मैं उन्हें भी देना चाहूंगा कि उन्होंने खुद को भी इसी तरह रखा. बिल्कुल सादगी से और एक आम युवक की तरह रहे.
हो सकता है कि इसी कारण से मैं कभी ये सोच ही नहीं पाया कि एक दिन वो देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी का नेतृत्व करेंगे. और हो सकता है कि यही कारण हो कि उन्हें उस पार्टी का नेतृत्व करना चाहिए. क्या मैं ये सोचता था कि एक 'खास' तरह के लोग ही राजनीति में सफल हो सकते हैं. और हम सभी जानते हैं कि वो 'खास' क्या होता है. है ना? इसलिए ही मुझे बड़ी बेसब्री से इंतजार है कि राहुल मेरी इस सोच को गलत साबित करें.
लेकिन राहुल को इस नए सफर में मैं अपनी शुभकामनाओं के साथ सिर्फ एक ही बात कहना चाहूंगा- वंशवाद का नाम लेकर तुम्हें ब्लैकमेल करेंगे लेकिन तुम कभी डरना मत और न ही शर्मिंदा होना. हमारे यहां वंशवाद कल्चर से किसी को फर्क नहीं पड़ता. न ही कोई इसपर ध्यान देता है. जो बात मायने रखती है वो आपकी काबिलियत है.
हमें किस घर, घराने, देश, धर्म या जाति पैदा होंगे ये हम तय नहीं करते. मृत्यु की तरह जन्म पर भी किसी का वश नहीं चलता. और न ही किसी खास घर में जन्म लेने पर किसी को दोष दे सकते हैं. लेकिन ये बहाना मैं राहुल के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहता. आखिर वंशवाद हमारी राजनीति में कलंक की तरह क्यों देखा जाता है? मुझे शक है कि राहुल इसका जवाब जानते होंगे. और सिर्फ राहुल ही नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी का कोई भी बड़ा नेता इसके बारे में जानकारी रखता होगा. तो इसको सीना ठोंककर स्वीकार करने में कोई बुराई नहीं है.
वंशवाद और किसी कुल में पैदा होने के बीच संबंध वो नहीं जो आज लोगों को बताया जा रहा है. बल्कि ये पूरी तरह से एक संयोग है. राजनीतिक तौर पर लोगों को बताया जा रहा है कि वंशवाद की वजह से लोगों के अधिकारों का हनन होता है. और इसके साथ ही जनता की आजादी और विकास के रास्तों को बंद कर दिया जाता है.
राहुल पर हमला उनके लिए वरदान न हो जाए
लोगों के व्यक्तिगत स्वतंत्रता और कल्याण के सिर्फ दो ही मतलब होते हैं. पहला है 'अधिकार' की अवधारणा. पदों पर बैठे व्यक्तियों को जनता के मौलिक अधिकारों के हनन करने की स्वतंत्रता नहीं होनी चाहिए. ऐसा करके वो शासन करने के अधिकार का हनन करते हैं.
सुरक्षा का दूसरा मतलब है चुनाव. वंशवाद में चुनाव की कोई जगह नहीं होती. यहां राजनीतिक अधिकार विरासत में मिलते हैं. यह अंतर ही दुनिया को अलग बनाता है जब सर्वोच्च अधिकारियों को समय-समय पर चुनाव के माध्यम से लोगों की इच्छा के लिए जवाबदेह बनाया जाता है. राहुल को लोकतंत्र के नजरिए से वंशवादी व्यवस्था अवतार तभी माना जाएगा जब वो अपना काम करना शुरु कर देंगे. और उनका समय शुरु हो चुका है.
एक बात हम सभी को समझ लेनी चाहिए कि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक व्यक्ति या संस्था वंशवादी है या नहीं इसका निर्धारण लोगों के प्रति उसके व्यवहार से होता है. वो लोगों पर शासन करता है या उनका नेतृत्व करता है? वो लोगों के विकास के लिए काम करता है या फिर जन्म के वजह से मिली अपनी इस पदवी का घमंड कर रहा है?
राहुल गांधी को निर्विरोध कांग्रेस अध्यक्ष पद पर चुना गया. ये अच्छा है या फिर बुरा? मेरे हिसाब से ये बुरा है. क्यों? क्योंकि इससे पार्टी में होनहार नेताओं की कमी साफ पता चलती है. किसी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी में पार्टी के अध्यक्ष पद के लायक एक इंसान नहीं होना शर्मिन्दा करने वाली बात है. ये बताता है कि पार्टी में लोगों की कितनी कमी है.
कांग्रेस की ये हालात अपने ही सदस्यों की अनदेखी करने और उनके विकास को अवरुद्ध करने की वजह से हुई है. अब आप कहेंगे की सारी पार्टियां ऐसा करती हैं. हो सकता है कि करती हों. लेकिन इसका ये मतलब नहीं कांग्रेस भी इस गलती को दोहराए. राहुल गांधी की मेरी नजर में इज्जत तब और बढ़ जाती जब वो पार्टी के सदस्यों को अपने खिलाफ खड़े होने के लिए प्रोत्साहित करते. दिखावे के लिए ही सही चुनाव कराते. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
मुझे पता है यहां तक पहुंचने के लिए राहुल ने बहुत मेहनत की है. और मेहनत का फल मिलना कोई गलत बात नहीं है. ऐसे में अगर अब राहुल को लगता है कि वो पार्टी का अध्यक्ष बनने के लिए तैयार हैं तो इस पर हंगामा करने की क्या जरुरत है? वैसे मेरे हिसाब से इस पद के लिए प्रियंका ज्यादा मुफीद उम्मीदवार थी. उनमें नेतृत्व की प्राकृतिक क्षमता है. उनकी छवि प्रभावकारी है. राहुल में इन्ही चीजों की कमी है. लेकिन इस कमी को उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से दूर किया है. और सबसे अच्छी बात ये है कि राहुल अपने को साबित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं.
इसके बाद बीजेपी का दूसरा हमला होता है कि राहुल पार्ट टाइम नेता है. वो राजनीति सिर्फ मन बहलाने के लिए करते हैं. अगर ऐसा है तो बीजेपी के लिए ये खुशी की खबर है. और कांग्रेस के लिए दुख की खबर है. इसलिए जितना ज्यादा बीजेपी कांग्रेस पर हमला करेगी, राहुल गांधी उतने ही विश्वास से भरते जाएंगे.
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