राहुल गांधी की केरल में 'मोदी' बनने की कोशिश
राहुल गांधी उत्तर भारत के मुकाबले ज्यादा सहज और खुश नजर आते हैं. चेन्नई के स्टेला कॉलेज से लेकर मौजूदा केरल दौरे तक हर कदम पर राहुल गांधी मुस्कुराते देखे जा सकते हैं - और मोदी स्टाइल में उन्हें टक्कर देते भी.
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राहुल गांधी को लेकर अगर अमेठी के लोग अब भी कोई उम्मीद पाले हुए हैं तो भूल जायें. राहुल गांधी अब केरल से इस हद तक जुड़ाव महसूस कर कर रहे हैं कि उन्हें तो जन्म-जन्मातर का रिश्ता महसूस होने लगा है. वैसे भी कहां केरल कहां अमेठी भौगोलिक हिसाब से भी बिलकुल अलग है. अब कोई छुट्टी मनाने अमेठी तो जाता नहीं - घूमने का प्लान भी करता है तो केरल की कुदरती खूबसूरती बरबस ही खींच लेती है. राहुल गांधी भी केरल के पूरे मन से कायल हो गये हैं.
चुनाव बीत जाने के बाद भी केरल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी दोनों ही उसी मोड में नजर आये. राहुल गांधी के केरल यात्रा की सबसे खास बात रही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाली स्टाइल में लोगों से कनेक्ट होने की बेहतरीन कोशिश - 'लगता तो ऐसा है...'
'जैसे जन्म से यहीं रहा हूं'
राहुल गांधी जैसी आत्मीयता वायनाड और केरल के लोगों के प्रति प्रदर्शित कर रहे हैं - लगता तो नहीं कि वो कभी अमेठी लौटने वाले हैं. बाद में मन बदलने या जख्मों के भर जाने के बाद की बात और है, लेकिन फिलहाल तो ऐसा कुछ बिलकुल नहीं लगता.
लोगों से कनेक्ट होने के मामले में राहुल गांधी तो सीधे सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टक्कर देते लग रहे हैं - कहने लगे हैं 'लगता है जैसे बचपन से नाता हो.' प्रधानमंत्री मोदी को तो इसमे महारथ हासिल है - वाजपेयी और नेहरू जैसे स्टेट्समैन बनने की कोशिश में तो वो अब जाकर लगे हैं, किसी भी इलाके में लोगों से सीधे सीधे जुड़ जाने की कला तो उन्हें खूब आती है. कम ही ऐसी जगहें होती हैं जहां वो किसी न किसी मजबूत दलील से खुद को न जोड़ देते हों - और मजाल क्या कि किसी को कोई ऐतराज हो. विरोधी भी कुछ नहीं बोल पाते. बस मन मसोस कर रह जाते हैं.
राहुल गांधी केरल में भी प्रधानमंत्री मोदी को वैसे ही टारगेट कर रहे हैं जैसे चुनावों के दौरान किया करते थे. थोड़ा फर्क ये है कि 'चौकीदार चोर है' वाले नारे नहीं लगा रहे. शायद लोगों ने खुद चौकीदार बन कर मोदी का सपोर्ट कर दिया है - और कांग्रेस के दावों को खारिज कर दिया है इसलिए भी.
हालांकि, राहुल गांधी के हमले के अंदाज में कोई तब्दीली नहीं नजर आ रही है. वायनाड के रोड शो में राहुल गांधी बोले, 'राष्ट्रीय स्तर पर हम जहर से लड़ रहे हैं. नरेंद्र मोदी देश को बांटने के लिए नफरत के जहर का इस्तेमाल करते हैं. इस देश के लोगों को बांटने के लिए वह नफरत और गुस्से का प्रयोग करते हैं. चुनाव को जीतने के लिए झूठ बोलते हैं.'
केरल के लोगों से जुड़ने के लिए मोदी की कॉपी कर रहे हैं राहुल गांधी
प्रधानमंत्री मोदी पर हमले में राहुल गांधी का रवैया भले ही पहले जैसा ही हो, लेकिन लोगों से जुड़ने की कोशिश में मोदी की नकल करते ही नजर आ रहे हैं. केरल के लोगों से मुताबिक राहुल गांधी इमोशनल कार्ड भी खुल कर खेल रहे हैं, कहते हैं - 'आपने मुझे जितना प्यार दिया उसे देखकर ऐसा महसूस हो रहा है कि मैं यहां जन्म से रह रहा हूं.'
राजम्मा से मुलाकात वाले भावुक पल
केरल के कोझिकोड में राहुल गांधी ने राजम्मा से भी मुलाकात की. राजम्मा का पूरा नाम राजम्मा वावथिल है. 72 साल की राजम्मा वही नर्स हैं जो राहुल के जन्म के समय 19 जून 1970 को दिल्ली के होली फेमिली अस्पताल में मौजूद थीं. तब वो नर्सिंग की ट्रेनिंग ले रही थीं लेकिन अब वो रिटायर हो चुकी हैं राजम्मा से मुलाकात की तस्वीर राहुल गांधी ने ट्विटर पर शेयर की है.
ജനനം മുതൽ @RahulGandhi ക്ക് വയനാടിനോടുള്ള സ്നേഹം ഓർത്തെടുത്ത് കൊണ്ട് മൂന്നാം ദിന പര്യടനത്തിന് ആരംഭം. തന്റെ ജനന സമയത്ത് ആശുപത്രിയിൽ നഴ്സായി സേവനം ചെയ്ത് വിരമിച്ച ശ്രീമതി രാജമ്മ രാജപ്പനോടൊപ്പം നന്ദിയുടെ നിമിഷങ്ങൾ പങ്കിട്ട് @RahulGandhi#RahulGandhiWayanad pic.twitter.com/HT95rO55Yx
— Rahul Gandhi - Wayanad (@RGWayanadOffice) June 9, 2019
लोक सभा चुनाव 2019 के दौरान जब जब राहुल गांधी की नागरिकता को लेकर विवाद होने लगा था तो राजम्मा ने कहा आगे बढ़ कर राहुल गांधी के सपोर्ट में बयान दिया था और किसी को उनकी नागरिकता पर शक न करने की सलाह दी थी. अपने जन्मदिन से ठीक दस दिन पहले राजम्मा से राहुल गांधी की मुलाकात के वक्त माहौल बड़ा भी भावनात्मक हो गया था - तस्वीरें बोल भी रही हैं.
चाहें तो प्रियंका भाई की हार का बदला लें
अब तो कम ही आसार हैं कि राहुल गांधी कभी अमेठी का रूख करेंगे - लेकिन क्या प्रियंका गांधी वाड्रा भाई की हार का बदला लेना नहीं चाहेंगी?
प्रियंका वाड्रा चाहें तो अमेठी में राहुल गांधी की हार का बदला ले सकती हैं - और इसमें कोई हड़बड़ी वाली बात भी नहीं है. पूरे के पूरे पांच साल पड़े हैं. पांच साल राजनीति में वैसे भी कम नहीं होते. तब तक तो न जाने कितने उलटफेर होंगे. 2024 से पहले तो 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव भी तो हैं ही.
अमेठी पर वापस कब्जा करने के लिए प्रियंका वाड्रा को सबक लेने के लिए भी कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं. जितनी मुश्किल ये जीत स्मृति ईरानी के लिए रही होगी, उससे तो प्रियंका के लिए आसान ही रहेगा. आखिर प्रियंका गांधी बचपन से अमेठी जाती रही हैं और वहां के लोग भी राहुल की तरह उन्हें भइयाजी कह कर ही बुलाते हैं.
बेहतर तो ये होगा कि सोनिया गांधी भी जब कभी रायबरेली जाने का प्लान बनायें - अमेठी होते हुए ही जायें. लोग बड़े उदार होते हैं. वोटर की तो स्मृतियां भी बड़ी कच्ची होती हैं. बड़ों को देखेंगे तो बच्चे की गलती को माफ कर देंगे. हालांकि, ऐसी गलतियों की माफी भी पांच साल बाद ही मिल पाती है.
ध्यान से देखें तो लगता भी है कि राहुल गांधी उत्तर भारत के मुकाबले दक्षिण में ज्यादा कम्फर्टेबल नजर आते हैं. यूपी-एमपी, बिहार और राजस्थान में तो हर जगह वो गुस्से में ही नजर आते हैं, लेकिन दक्षिण में हरदम चेहरे पर मुस्कान और गालों पर डिंपल देखे जा सकते हैं - जरा याद कीजिए चेन्नई के स्टेला कॉलेज में छात्राओं से उनका वार्तालाप - 'नाम तो सुना ही होगा!'
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