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Updated: 18 दिसम्बर, 2021 10:29 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) हाल ही में यूपी के निजी दौरे पर थे. एक शादी में शामिल होने पहले प्रयागराज गये, फिर वाराणसी होकर लौटे - घोर चुनावी माहौल में राहुल गांधी का ये गैर राजनीतिक दौरा काफी अजीब लगा था.

हर किसी को यही लगा था कि अमेठी (Amethi March) के लोगों से राहुल गांधी की नाराजगी कम नहीं हो पायी है. लगा जैसे राहुल गांधी अमेठी की नाराजगी के चलते पूरे यूपी चुनाव से ही दूरी बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

यूपी विधानसभा चुनाव में 40 फीसदी महिला उम्मीदवारों की घोषणा को भी प्रियंका गांधी का फैसला बताया गया था. बाद में राहुल गांधी ने बस इतना कहा था - अभी तो ये शुरुआत है. राहुल गांधी के यूपी से दूरी बनाने के पीछे कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) को यूपी चुनावों के लिए हर तरह की छूट देने जैसा समझा गया.

कांग्रेस की जयपुर रैली से ये तो समझ आया था कि राहुल गांधी को नये सिरे से लॉन्च करने की तैयारी है - और ये आगे चल कर फिर से राहुल गांधी की ताजपोशी की तैयारियों का हिस्सा भी लगा था, लेकिन ऐसा भी नहीं लगा था कि अगला पड़ाव अमेठी होने वाला है.

और अमेठी पहुंच कर राहुल गांधी सीधे यू-टर्न ले लेंगे ये तो कतई नहीं सोचा गया था. 2021 के ही केरल विधानसभा चुनावों के दौरान राहुल गांधी ने दक्षिण भारत के लोगों की राजनीतिक समझ को उत्तर भारतीयों से बेहतर बता कर बवाल मचा दिया था - लेकिन फिर ये कैसे मालूम हुआ कि तब जो सामने था वो सिर्फ भ्रमजाल था?

ऐसा क्यों लगता जैसे 2019 के लोक सभा चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी ने अमेठी से दूरी बना ली और 2021 में विधानसभा चुनाव में टांय टांय फिस्स होने के बाद केरल से दूरी बनाने लगे हैं - ध्यान देने वाली बात ये है कि केरल के ही वायनाड से राहुल गांधी लोक सभा सांसद हैं. 2019 में राहुल गांधी अमेठी सीट से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से हार गये थे.

अमेठी के लोगों ने राजनीति सिखायी, लेकिन सीखा कितना?

एक चीज तो पहले से ही साफ है कि परिवारवाद की राजनीति के गढ़ बने इलाकों पर संघ और बीजेपी लगातार काफी मेहनत कर रहे हैं. आजमगढ़ में अमित शाह की रैली और उसके बाद रायबरेली से अदिति सिंह का कांग्रेस पूरी तरह छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन कर लेना इसी का उदाहरण है. आजमगढ़ फिलहाल समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव का संसदीय क्षेत्र है, जबकि अदिति सिंह रायबरेली से आती हैं जहां से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सांसद हैं.

ये कैसी घर वापसी है: आम चुनाव में हार के करीब दो महीने बाद जुलाई, 2019 में राहुल गांधी अमेठी पहुंचे थे. तब शिकायती लहजे में सुनाया भी था कि एक कॉल पर उपलब्ध रहेंगे, लेकिन पहले की तरह नहीं क्योंकि वो उनके सांसद नहीं रहे. वो अमेठी की लड़ाई नहीं लड़ सकते. कहा था कि अमेठी के लोगों को खुद अपनी लड़ाई लड़नी पड़ेगी.

तब से लेकर अभी तक राहुल गांधी ने अमेठी का कोई दौरा नहीं किया, जबकि वहां की सांसद स्मृति ईरानी पहले की ही तरह आती जाती रही हैं. हां, कोविड 19 संकट के दौरान राहुल गांधी अमेठी के लोगों के लिए मास्क, सैनेटाइजर और जरूरी चीजें भिजवाते जरूर रहे हैं.

अमेठी के लोगों के बीच पहुंच कर राहुल गांधी बोले, 'कुछ दिन पहले प्रियंका मेरे पास आई और उसने मुझे कहा कि लखनऊ चलो... मैंने बहन से कहा कि लखनऊ जाने से पहले मैं अपने घर जाना चाहता हूं... लखनऊ से पहले अपने परिवार से बात करना चाहता हूं.'

rahul gandhi, priyanka gandhi vadraघर वापसी की ये पहल राहुल गांधाी की ही है - अमेठी के लोगों की मुहर लगना बाकी है!

शाम तक न सही, साल भर बाद भी कोई परिवार में लौटे तो शिकायतें कम जरूर हो जाती हैं, लेकिन खत्म नहीं होतीं. ऊपर से संदेह भी बना रहता है. परिवार से बाहर के लोगों को शक शुबहे भी होते हैं. राहुल गांधी को भी ये बातें मालूम होंगी ही.

राजनीति सीखी या चुनाव जीतते रहे: यूपी प्रभारी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ अमेठी पहुंचे राहुल गांधी ने लंबी पदयात्रा भी की है - और पदयात्रा में अमेठी के लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा भी लिया है.

अमेठी में भीड़ के बीच खुद को पाकर राहुल गांधी बेहद खुश थे और अपनी बातों से शुक्रगुजार भी लगे. बोले, '2004 में मैं राजनीति में आया... और पहला चुनाव मैंने यहां से लड़ा था... आपने मुझे बहुत कुछ सिखाया... आपने मुझे राजनीतिक रास्ता दिखाया और मेरे साथ आप इस रास्ते पर हमेशा चले... इसलिए, मैं आपको धन्यवाद देना चाहता हूं.'

लोक सभा चुनाव जीतने के बाद वायनाड पहुंचे राहुल गांधी ने नये मतदाताओं को भी तकरीबन इसी अंजाद में शुक्रिया अदा किया था - 'आपने मुझे जितना प्‍यार दिया उसे देखकर ऐसा महसूस हो रहा है कि मैं यहां जन्‍म से रह रहा हूं.'

अमेठी के लोग गूगल करके राहुल गांधी का वो भाषण पढ़ेंगे या यूट्यूब पर देखें तो उनको कैसा लगेगा? उनके मन में क्या सवाल होंगे, राहुल गांधी ने पहले कभी सोचा होगा या आगे सोचेंगे?

कोझिकोड में राहुल गांधी ने तब राजम्मा वावथिल से भी मुलाकात की थी, लेकिन वो तो हक बनता था. 72 साल की राजम्मा वही नर्स हैं जो राहुल के जन्म के समय 19 जून 1970 को दिल्ली के होली फेमिली अस्पताल में मौजूद थीं. तब वो नर्सिंग की ट्रेनिंग ले रही थीं. रिटायर हो चुकी हैं राजम्मा से मुलाकात की तस्वीर राहुल गांधी ने ट्विटर पर शेयर की थी.

राहुल गांधी ने इंदिरा का रास्ता चुना था चुनाव नतीजे आने के बाद से ही लोगों के मन में सवाल था कि राहुल गांधी अपने चाचा संजय गांधी को फॉलो करेंगे या या अपनी दादी इंदिरा गांधी वाला रास्ता अख्तियार करेंगे?

आगे जो भी हो, लेकिन अब तक तो राहुल गांधी की तरफ से सवाल का जवाब यही लगा था कि वो इंदिरा गांधी के दिखाये रास्ते पर चलते रहे हैं. बाकी चीजें न सही अमेठी के मामले में तो बिलकुल ऐसा ही रहा.

राहुल गांधी की ही तरह संजय गांधी 1977 में चुनाव हार गये थे, लेकिन अमेठी को नहीं छोड़े - और अगले ही चुनाव में अमेठी के लोगों ने भी भूल सुधार कर लिया, संजय गांधी लोक सभा चुनाव जीत गये थे.

बेटे संजय गांधी की तरह इंदिरा गांधी ने 1977 में रायबरेली सीट गंवा दी थी, लेकिन फिर कभी भूल सुधार का मौका भी नहीं दिया. 1977 की चुनाव हार के बाद 1984 तक इंदिरा गांधी ने कभी भी रायबरेली का रुख नहीं किया. 31 अक्टूबर 1984 को सुरक्षा गार्डों ने ही प्रधानमंत्री रहते इंदिरा गांधी की गोली मार कर हत्या कर दी थी.

बरसों बाद जब राहुल गांधी के लिए अमेठी छोड़ कर सोनिया गांधी रायबरेली पहुंची तो लोगों ने निराश नहीं किया बल्कि सिर आंखों पर ही बिठाया. 2004 से लेकर 2019 तक सोनिया गांधी रायबरेली से चुनाव जीतती आ रही हैं, लेकिन राहुल गांधी गच्चा खा गये.

देखना होगा राहुल गांधी और कांग्रेस के साथ अमेठी के लोग रायबरेली जैसा ही व्यवहार करते हैं या कुछ अलग?

सवाल ये है कि आखिर राहुल और प्रियंका का अमेठी को लेकर अचानक हृदय परिवर्तन कैसे हुआ? कहीं ये अदिति सिंह के कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में चले जाने - और अपर्णा यादव के रायबरेली में सक्रिय होने के कारण तो नहीं है?

दक्षिण भारत में खुद को सहज पाते हैं राहुल गांधी

आप सभी ने भी ध्यान दिया होगा, राहुल गांधी दक्षिण भारत में बाकी जगहों के मुकालबे ज्यादा सहज महसूस करते हैं. जैसे कोई कंफर्ट जोन हो. यूपी, बिहार या गुजरात की तरह गुस्से का इजहार भी नहीं करते और स्कूल कॉलेजों में तो पूरी रंगत ही अलग नजर आती है - "नाम तो सुना ही होगा!"

लेकिन केरल विधानसभा चुनाव के दौरान जब यही फीलिंग जबान पर आ गयी तो जैसे बवाल ही मच गया. बीजेपी नेता तो टूट ही पड़े थे, कांग्रेस नेताओं ने भी राहुल गांधी का सपोर्ट नहीं किया. सलाह दी कि भेदभावपूर्ण बातों से बचने की कोशिश करनी चाहिये.

क्या अमेठी के लोगों के बारे में नजरिया बदला है 2021 के विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी के दौरे की शुरुआत तो तमिलनाडु से हुई थी, लेकिन बाद में ज्यादा जोर केरल पर देखने को मिला - नदी में मछुआरों के साथ छलांग लगाकर राहुल गांधी ने मसल पावर भी दिखाया और सिक्स पैक्स भी.

बातों बातों में ही केंद्र की सत्ता में आने पर मछुआरों के लिए अलग से मंत्रालय बनाने का वादा कर डाला. फिर क्या था, गिरिराज सिंह बरस पड़े और बताने लगे कि मंत्रालय भी है और वही मंत्री भी हैं. ये बात भी आयी गयी हो गयी, जो बात नहीं भूलने वाली है वो तो अलग ही है.

एक चुनाव सभा में राहुल गांधी बोल पड़े, ‘शुरुआती 15 साल मैं उत्तर भारत से सांसद था... मुझे अलग तरह की राजनीति की आदत हो गई थी लेकिन केरल आना ताजगी भरा अनुभव रहा है.’

राहुल गांधी भी शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह स्थानीय लोगों से कनेक्ट होने की कोशिश कर रहे थे. ऐसी कोशिशें होनी भी चाहिये. कोई बुराई नहीं हैं, लेकिन किसी भी चीज की अति हमेशा ही नुकसानदेह होती है.

राहुल गांधी की जिस बात पर बवाल मच गया वो थी, ‘मैंने केरल में पाया कि यहां के लोग मुद्दों में रुचि रखते हैं और न केवल सतही तौर पर बल्कि मुद्दों की विस्तार से समझ रखते हैं.’

अब सवाल ये है कि क्या राहुल गांधी लोगों की राजनीतिक और मुद्दों की समझ को लेकर अपनी पुरानी राय पर कायम हैं या नजरिया बदल चुका है? सवाल ये भी है कि क्या अमेठी के लोगों को लेकर राहुल गांधी की राय बदल चुकी है?

अमेठी यात्रा में उमड़ी भीड़ देख कर राहुल ने कहा, 'आज भी हर गली वैसी ही है... दिलों में आज भी पहले सी जगह है... आज भी एक हैं हम, अन्याय के खिलाफ!'

सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि क्या राहुल गांधी की घर वापसी की कोशिश को अमेठी के लोग भी मंजूर करेंगे?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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