Rajya Sabha elections में कांग्रेस ने जो बोया था अब वही काट रही है!
राज्यसभा चुनाव (Rajyasabha Election) को लेकर खींचतान जारी है. विधायकों कि लुका छिपी जारी है और सियासी पंडित खूब गुणागणित में जुटे हुए हैं. राज्यसभा चुनाव के नाम पर सियासत में सबकुछ हो जाता है. राजनीतिक उठापटक के साथ साथ सत्ता तक को हिला कर रख देने वाला यह चुनाव हमेशा से ही सुर्खियां बटोरता है वह भी नए नए हथकंडो से.
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राज्यसभा चुनावों (Rajya Sabha Elections) में हमेशा राजनैतिक तोड़फोड़ और उठापटक देखने को मिलती रहती रहती है, जिसे एक आदर्श लोकतंत्र के लिए उचित नहीं कहा जा सकता है. जनता के द्वारा चुने गए विधायकों की करतूत लोकतंत्र के चेहरे पर तमांचा जड़ने का कार्य किया करती हैं. इस चुनाव में राजनैतिक दल भी लोकतंत्र के सबसे बड़े दुश्मन के रूप में नज़र आते हैं. 19 जून 2020 को राज्यसभा के 18 सीटों पर चुनाव होने हैं. इस चुनाव से पहले ही हर एक राज्यों में विधायकों की छिपाछिपाई का खेल जारी है. लोकतंत्र को धाराशाई करके विधायकों की बोली तक लगाई जा रही है. राज्यसभा की सीट हथियाने के लिए हर तरह के हथकंडे सियासी दलों की ओर से अपनाए जाते रहे हैं. इस खेल को खेलने में कोई भी सियासी दल किसी से कम नहीं नज़र आता है. और इसी चुनाव के चलते राज्य की सत्ता तक को हिला कर रख दिया जाता है.
इसी राज्यसभा चुनावों को नज़र में रखते हुए हाल ही में मध्य प्रदेश में राजनीतिक घमासान दिखा. जिसने सत्ता पर काबिज कांग्रेस की जड़ें हिला कर रख दी और मुख्यमंत्री कमलनाथ का बोरिया बिस्तर तक बंध गया. मध्य प्रदेश सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसा स्तंभ कांग्रेस से अलग होकर भाजपा में शामिल हो गया और वहां भाजपा की सरकार बन गई. कमलनाथ की कांग्रेस सरकार का पतन हो गया.
केमोबेश यही रणनीति राजस्थान में भी दोहराए जाने का अंदेशा साफ जाहिर होने लगा था. लेकिन वहां भाजपा के पास मुखर चेहरा न होने की वजह से ऐसा कुछ हो नहीं पाया. भाजपा किसी भी तरह से राज्यसभा में एक बड़ा खेल खेलने को लगभग तैयार नज़र आ रही है इसीलिए राजस्थान में भाजपा के पास महज एक ही सीट जीतने की संख्या है लेकिन उसने मैदान में अपने दो उम्मीदवार उतार दिए हैं.
राज्य सभा चुनावों के मद्देनजर अगर किसी को परेशानी हो रही है तो वो केवल कांग्रेस और राहुल गांधी हैं
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की दो सीटों पर जीत तय है लेकिन यह जीत तब होगी जब भाजपा अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाएगी. क्योंकि राजस्थान में राज्यसभा के महज तीन सांसद ही चुने जाने हैं लेकिन मैदान में चार उम्मीदवार उतर गए हैं. भाजपा के इस राजनीतिक दांव से कांग्रेस सकते में आ गई है और कोरोना संकट के बावजूद अपने विधायकों को होटलों में छिपा चुकी है ताकि भाजपा उनसे संपर्क साध बड़ा खेल न खेल जाए.
यही हाल गुजरात का भी है जहां चार सांसद चुने जाने हैं, कांग्रेस ने दो तो भाजपा ने तीन उम्मीदवार मैदान में उतार दिए हैं. यहां भी भाजपा कांग्रेस के खेमे में सेंध लगाने को घात लगाए बैठी हुयी है. राज्यसभा के चुनाव में पहली बार ऐसा नहीं हो रहा है, ऐसा हर बार होता है. केंद्र की सत्ता पर काबिज सरकार उच्च सदन में भी खुद की मजबूती चाहती है वह भी हर हाल में. इसीलिए विधायकों के जुटाने का कार्य पर्दे के पीछे होता है लेकिन सबकुछ बिल्कुल साफ-साफ नज़र आता है.
कहते हैं कि राजनीति में सबकुछ जाएज़ है. लेकिन लोकतंत्र को अलोकतांत्रिक स्थिति में धकेलने का कार्य भी यही राजनीति ही कराती है. इस राजनीतिक अराजकता पर अंकुश लगाया जाना जरूरी है, वरना यह हमेशा ही अपना गंदा खेल दिखाती रहेगी. दल बदलने वाले या धनबल के लोभ में विधायिका से इस्तीफा देने वाले विधायकों को न तो लोकतंत्र की परवाह होती है और न ही जनमत का डर. उनके लिए तो बस धनबल बड़ा है, यह खेल राजनीति में कैसे खेला जाता है इसकी एक ताजा मिसाल गुजरात है.
गुजरात में राज्यसभा की सीट की खाातिर अभी तक आठ कांग्रेसी विधायक अपनी विधायिका से इस्तीफा दे चुके हैं. इस राज्य से चार राज्यसभा सदस्य चुने जाने हैं। इन विधायको के इस्तीफे के बाद कांगेस 1 और भाजपा तीन सीट जीतने की स्थिति में दिखाई दे रही है जबकि अगर वह विधायक इस्तीफा न देते अपने ही पार्टी के उम्मीदवार को वोट करते तो दोनों ही पार्टी के हाथ दो-दो सीट आ जाती, लेकिन अब भाजपा को पूरे एक सीट का फायदा हो गया और कांग्रेस को सीधे नुकसान.
अब सवाल उठता है कि आखिर कांग्रेस अपने ही विधायकों को क्यों नहीं संभाल पा रही है. साल दर साल कांग्रेस पार्टी क्यों सिकुड़ती जा रही हैं. कांग्रेस भले ही जनता को अपनी ओर नहीं आकर्षित कर पा रही है लेकिन लोकतंत्र के नाम पर इन खेलों पर वह इतनी मजबूर और बेबस क्यों नज़र आ रही है वह खुलकर इस लोकतंत्र के खुले बाजार के खिलाफ क्यों नहीं बोल पाती है इसकी वजह भी कांग्रेस खुद ही है.
कांगेस इसके खिलाफ आवाज उठाए भी तो किस मुहं से क्योंकि यह सारे बीज उसी के बोए हुए हैं. कांग्रेस ने समय समय पर ऐसे खेल खूब खेले हैं और मौका मिलने पर अभी भी खेलती हुयी दिखाई दे जाती है. कल तक भाजपा लोकतंत्र के इस बाजार पर खूब होहल्ला मचाया करती थी लेकिन अब भाजपा भी कांग्रेस के ही अंदाज में कांग्रेस को मात देती हुयी नज़र आ रही है. अब सवाल उठता है कि आखिर ये सारा खेल कब तक चलता रहेगा, कब तक विधायकों की बोलियां लगाई जाएंगी और कब तक लोकतंत्र का गला घोंटा जाएगा.
क्या इसके लिए कोई कड़े कदम उठाए जा सकते हैं. जिससे राज्यसभा चुनाव की गरिमा बनी रहे. तो इसका एक ही उपाय है कि राज्यसभा के चुनावों में भी आदर्श आचार सहिंता लगाने पर विचार होना चाहिए ताकि चुनाव से ऐन वक्त पहले तक विधायकों की लुका-छिपाई का खेल न होने पाए. लोकतंत्र का सबसे बड़े देश कहलाए जाने वाले भारत में उच्च सदन का चुनाव हर बार एक नई कहानी लिखता है जिसपर लगाम कसना अब ज़रूरी है लेकिन सबसे बड़ा सवाल अभी भी यही है कि इसकी पहल करेगा कौन?
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