New

होम -> सियासत

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 11 अगस्त, 2018 12:55 PM
अमित अरोड़ा
अमित अरोड़ा
  @amit.arora.986
  • Total Shares

एससी/एसटी कानून संशोधन विधेयक को संसद के दोनों सदनों की मंजूरी मिल गई है. इस कानून के बनते ही उच्चतम न्यायालय का आदेश निरस्त हो गया है. दलित अत्याचार का मामला दर्ज होने के तुरंत बाद गिरफ्तारी का प्रावधान अब फिर दोबारा उपलब्ध होगा. अब किसी भी आरोपी को दलित अत्याचार के नाम पर बिना प्रारंभिक जांच के गिरफ्तार किया जा सकता है. इस विषय में उच्चतम न्यायालय ने 20 मार्च 2018 को जो निर्णय दिया था वह पूर्णतः न्याय संगत, प्रगति शील व भेदभाव को मिटाने वाला था.

एससी/एसटी कानून का देश में बड़े पैमाने पर नजायज फायदा उठाया जा रहा था. दो लोगों के बीच के विवाद को जाति आधारित झगड़ा बता कर बड़ी आसानी से बिना जांच के सामान्य वर्ग के व्यक्ति को गिरफ्तार करा दिया जाता था. सवर्ण समाज का यह आरोप था की दलित उत्पीड़न के नाम पर सामान्य वर्ग के साथ दुर्व्यवहार हो रहा है. सामान्य वर्ग का उत्पीड़न न हो तथा दलित समुदाय को भी न्याय मिले इसीलिए ही उच्चतम न्यायालय ने 20 मार्च 2018 को इस कानून में परिवर्तन किए थे. वह बदलाव पूर्णतः संतुलित तथा समाज की हर वर्ग को सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम थे.

एससी- एस टी बिल, भाजपा, संसद, नरेंद्र मोदी इस बिल द्वारा आरोपी को दलित अत्याचार के नाम पर बिना प्रारंभिक जांच के गिरफ्तार किया जा सकता है

दुख की बात है की राजनीति के चलते न्याय व्यवस्था में हुआ एक महत्वपूर्ण सुधार हार गया. विपक्ष और दलित अधिकारों के ठेकेदारों ने एक पूर्णतः संतुलित तथा न्याय संगत निर्णय को भी दलित विरोधी घोषित कर दिया. भारत का दुर्भाग्य है कि यहां जिस चीज को एक बार दलित विरोधी घोषित कर दिया जाए, उस पर कितने ही तर्क दे दो, वह कभी भी राजनीतिक मान्यता नहीं पा सकती है.

मोदी सरकार के मंत्री आधिकारिक तौर पर चाहे कुछ न बोलें परंतु यह बात उन्हे भी ज्ञात है कि यह सब 2019 चुनाव में मत पाने के लिए हो रहा है. विपक्ष के दल मोदी सरकार को दलित विरोधी घोषित करने में लगे हैं जबकि सरकार स्वयं को दलितों का हितैषी और उनकी चिंता करने वाला प्रस्तुत करना चाहती है.

नरेंद्र मोदी के कुछ राजनीतिक विरोधी 'मुस्लिम दलित' गठजोड़ को साधने में लगे हैं. वह दलितों और मुसलमानों की आर्थिक, सामाजिक स्थिति को एक समान प्रस्तुत करना चाहते हैं. जमीनी स्तर पर 'मुस्लिम दलित' गठजोड़ जैसी कोई चीज़ नहीं है, फिर भी मोदी सरकार का यही प्रयास है कि 'मुस्लिम दलित' गठजोड़ के विचार को न पनपने दिया जाए. 'मुस्लिम दलित' एकता का विचार भाजपा के संगठित हिंदू समाज वाले विचार को भी कमजोर करता है.

भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जाति के भेदभाव से ऊपर उठकर सशक्त हिंदू समाज पर बल देते हैं. दलित, हिंदू समाज का अभिन्न अंग है, भाजपा इस तथ्य को सशक्त करना चाहती है. इसके विपरीत विपक्ष, अत्याचार और उत्पीड़न के नाम पर दलितों को हिंदू समाज से अलग, मुस्लिम समुदाय के साथ जोड़ना चाहता है.

विपक्ष की इस रणनीति को तोड़ने के लिए ही शायद मोदी सरकार ने यह 'गलत' निर्णय लिया है. 2019 के चुनावों में राजनीतिक नुकसान न हो इसलिए भाजपा को यह फैसला लेना पड़ा. उम्मीद तो यही करनी चाहिए कि दलित समाज और दलित अधिकारों के ठेकेदार स्वयं समझेंगे की एससी/एसटी कानून से सामान्य वर्ग के साथ दुर्व्यवहार न हो. उम्मीद यही है कि भविष्य में जब इस कानून में सुधार होगा तो दलित अधिकारों के ठेकेदार बाधा उत्पन्न नहीं करेंगे.

ये भी पढ़ें -

2019 चुनाव नजदीक देख मौसम का अनुमान लगाने लगे हैं पासवान

'दलित-किसान-सैनिकों' आंदोलन का दूसरा चरण मोदी सरकार को कितनी मुश्किल में डालेगा?

दलित दावत के बहाने बुआ-बबुआ गठबंधन को काट पाएंगे योगी आदित्यनाथ?

   

लेखक

अमित अरोड़ा अमित अरोड़ा @amit.arora.986

लेखक पत्रकार हैं और राजनीति की खबरों पर पैनी नजर रखते हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय