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Updated: 24 अप्रिल, 2017 04:25 PM
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पिछले 41 दिनों तमिलनाडु के 170 से अधिक किसानों ने राजधानी दिल्ली में जंतर मंतर पर धरना दे रखा था. तमिलनाडु में लगातार दो वर्षों तक गंभीर सूखे के कारण वे नरेंद्र मोदी सरकार से राहत पैकेज की मांग लेकर राजधानी में आए थे.

कई नायाब तरीकों से विरोध प्रदर्शन करने के कारण तमिलनाडु के ये किसान मीडिया में अपनी जगह बनाने में सफल हुए और लगातार सुर्खियों में बने रहने में भी कामयाब रहे. इनकी लगातार मांग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने की थी. अपने विरोध प्रदर्शनों में किसानों ने खोपड़ियों के साथ विरोध किया. नरमुंड के साथ उनका ये प्रदर्शन प्रतीकात्मक था और ये सरकार को बताना चाह रहे थे कि उनकी दुर्दशा कंकालों की तरह हो गई है.

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यही नहीं किसानों ने महिलाओं की तरह कपड़े पहन कर भी विरोध किया. नुकक्ड़-नाटक किए, बीच सड़क पर बैठकर भोजन किया, प्रधानमंत्री कार्यालय के पास नंगे होकर दौड़ लगाई, मुंह में मरा हुआ चूहा पकड़कर रखा, साँप का मांस खाया, और हद तो हद पेशाब भी पिया. लेकिन हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे नहीं मिले. थक हारकर इन किसानों ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई पालनीस्वामी से आश्वासन मिलने के बाद 25 मई तक के लिए अपने आंदोलन को स्थगित कर दिया है.

माना जाता है कि मोदी सरकार ने इस मामले पर उच्चतम स्तर तक चर्चा की है. लेकिन दिल्ली की चिलचिलाती गर्मी में सड़कों पर बैठकर विरोध करने वाले किसानों से पीएम खुद व्यक्तिगत तौर पर मिलने नहीं गए. लोग इस बात को मुद्दा बना रहे हैं. तो आइए आपको बताएं पीएम के किसानों से ना मिलने के पीछे की असल कहानी-

पीएम मोदी चाहते हैं कि सारे राज्य यूपी मॉडल को फॉलो करें

तमिलनाडु किसान, विरोध प्रदर्शन, दिल्लीकिसानों की ये हालत तो ठीक नहीं

1- पीएम के आंदोलनकर्ता किसानों से ना मिलने का सबसे बुनियादी तर्क जो दिया जा रहा है वो ये है कि संविधान में 'कृषि' राज्य का विषय है. और प्रधानमंत्री किसी राज्य विषय के संदर्भ में सीधे तौर पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहते हैं.

2- पीएम इस मामले में खुद सीधे तौर पर शामिल नहीं होना चाहते हैं क्योंकि इस क्षेत्र में लागत बहुत ज्यादा होती है और साथ ही ये उनके सहकारी संघवाद के विचार के खिलाफ भी जाता है. साथ ही पीएम किसानों के साथ बैठक के बाद उन्हें निराश नहीं करना चाहते.

3- सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं कि सभी राज्य ऋण माफी के लिए उत्तर प्रदेश मॉडल का पालन करें. अभी हाल ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य के राजकोष पर भार डालकर किसानों के ऋण माफी योजना की घोषणा की है.

यूपीए की ऋण माफी योजना का विफल होना

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4- मनमोहन सिंह सरकार ने 2008 में किसानों के लिए ऋण माफी योजना की घोषणा की थी लेकिन इससे किसानों की समस्या का निदान नहीं हुआ था. यही कारण है कि वित्त मंत्रालय इस तरह के केंद्रीय ऋण माफी योजना को सिर्फ एक लोकलुभावन राजनीति के तौर पर देखता है जिससे किसानों को कोई खास फायदा नहीं होता. खुद पीएम मानते हैं कि ऋण माफी एक अस्थायी उपाय है.

5- आज अगर सरकार ने तमिलनाडु के लिए एक ऋण माफी की घोषणा कर दी तो मुमकिन है कि देखा-देखी में कई अन्य राज्य भी ऋण माफ कराने की मांग करने लगेंगे. खासकर के गुजरात और अन्य राज्य जहां इस वर्ष के अंत तक या उसके बाद चुनाव होने वाले हैं. वर्तमान में देश के आधे से ज्यादा राज्यों में भाजपा सत्ता में है और प्रधान मंत्री मोदी बिल्कुल नहीं चाहते कि अन्य राज्य भी ऐसी मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन करना शुरु कर दें.

राज्य को सहायता राशि पहले ही दी जा चुकी है

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6- केंद्र सरकार ने तमिलनाडु को सूखा राहत और अन्य कार्यों के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया फंड (एनडीआरएफ) की तरफ से 2014.45 करोड़ रुपये की सहायता राशि पहले की जारी कर दी है. 31 मार्च को ये राशि जारी की गई थी. जंतर-मंतर पर तमिलनाडु के किसानों के विरोध प्रदर्शन शुरू होने के 15 बाद ही सरकार ने इतनी बड़ी राशि राज्य सरकार को दे दी थी.

7- इसके साथ ही तमिलनाडु को 24,538 करोड़ रुपये राजस्व बंटवारे के तौर पर केन्द्रीय सहायता के रुप में प्राप्त हुए हैं.

आंदोलनकारियों से राष्ट्रपति और वरिष्ठ मंत्री मुलाकात कर चुके हैं

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8- आंदोलनकारी किसानों ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों जैसे वित्त मंत्री अरुण जेटली और कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह से मुलाकात की है. दोनों वरिष्ठ मंत्रियों ने किसानों को केंद्र सरकार की तरफ से हर संभव राहत पहुंचाने का प्रयास करने का आश्वासन दिया है. ऐसे में विरोध प्रदर्शन को खत्म करने के बजाए किसानों का पीएम से मिलने की हठ करना कहीं से भी तर्कसंगत नहीं है.

9- कुछ रिपोर्टों के अनुसार तमिलनाडु के किसानों को केन्द्र सरकार द्वारा 2,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की राहत राशि देने से वहां के किसान संतुष्ट हैं और दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे किसानों के आंदोलन के लिए जन-समर्थन कम हो गया. इस कारण से विरोध करने रहे किसानों का पक्ष कमजोर हुआ है.

किसानों की इस स्थिति का फायदा गैर-सरकारी संगठन उठा रहे हैं

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10- माना जा रहा है कि विरोध करने वाले किसान असल में मोदी सरकार के खिलाफ एक राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे हैं. साथ ही ये भी माना जा रहा है कि कुछ गैर-सरकारी संगठन किसानों के इस आंदोलन का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं. कथित तौर पर कुछ एनजीओ किसानों को अपना आंदोलन जारी रखने के लिए पैसे दे रहे है ताकि मोदी सरकार की छवि खराब की जा सके.

किसानों की मांगे बचकाना हैं

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11- जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन में बैठे किसानों ने अनोखी मांग रखी है और इनका कहना है कि जब तक इनकी मांगे नहीं मानी जाएगी तब तक आंदोलन वापस नहीं लिया जाएगा. किसानों ने केंद्र से लगभग 40,000 करोड़ रुपये की एक राहत पैकेज की मांग की है. साथ ही एक सरकारी बैंक के माध्यम से कृषि ऋण में छूट की घोषणा की जाए. इतना ही नहीं इनकी मांग ये भी है कि कावेरी प्रबंधन बोर्ड की स्थापना की जाए और नदियों को जोड़ा जाए.

12- तमिलनाडु के किसानों को अगर केन्द्र ने 40,000 करोड़ रुपये का राहत पैकेज दिया तो फिर ये बवाल का घर हो जाएगा. फिर हर राज्य ऐसे ही मांग सामने रखने लगेंगे और इसी वजह से ऋण माफी योजना सही कदम नहीं है.

13- कावेरी प्रबंधन बोर्ड की मांग इस समय पर संभव नहीं है. राजनीतिक कारणों की वजह से कावेरी ट्रिब्यूनल अवार्ड को लागू करने में संबंधित राज्य सरकारों और केंद्र को मुश्किलों का सामना कर पड़ रहा है. यही नहीं ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.

14- राजधानी में कुछ किसानों के साथ एक बैठक करके पीएम नदियों को जोड़ने का फैसला नहीं ले सकते. ये और बात है कि तमिलनाडु के किसान 140 वर्षों में अबतक की सबसे बुरी सूखे की मार झेल रहे हैं. पिछले साल दिसंबर में आए वर्धा चक्रवात ने इनकी स्थिति और खराब कर दी थी.

तमिलनाडु सरकार ने राज्य के सभी 32 जिलों को सूखा प्रभावित के रूप में घोषित किया है. लेकिन तमिलनाडु के किसानों को घोषणाओं से कहीं ज्यादा की जरुरत है.

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