भाजपा के 3 करोड़ 'गायब' सदस्य कहीं उसके असल वोटबैंक तो नहीं ?
2014 के बाद से भाजपा का लगातार सफलता अर्जित करना ये बता देता है कि उसे पता है कि समर्थकों को कैसे रिझाया जाये और उससे वोट हासिल करा जाए.
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बात अगर कुशल राजनीति की हो तो मौजूदा वक्त में अच्छा केवल उसे ही माना जाएगा जो साम, साम, दंड, भेद एक कर विजय पताका फहराना जानता हो. बात भाजपा की हो तो वो इस खेल में वाकई अच्छी है. 2014 से लेकर अब तक यदि भाजपा की कार्यप्रणाली पर नजर डालें तो मिलता है कि उसने अपना लश्कर बड़ा करने के लिए पूरी निष्ठा के साथ आश्चर्यजनक रूप से बड़ी मेहनत की है. सवाल आ सकता है कि ये बातें क्यों? तो इसका जवाब है एक रिपोर्ट. एक प्रतिष्ठित वेबसाइट में छपी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि भाजपा ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों की संख्या को लेकर लगातार झूठ बोला है. रिपोर्ट ने कुछ आंकड़े पेश किए हैं और कहा है कि वर्तमान में, भाजपा के खेमे से 3 करोड़ के आस आस के सदस्य 'गायब' हैं.
एक बड़े वर्ग का मानना है कि कार्यकर्ताओं के हितों का दावा करने वाली भाजपा को ये नहीं पता कि उससे जुड़े सदस्यों की संख्या कितनी है
रिपोर्ट में इस बात का साफ जिक्र किया गया है कि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को उनके पार्टी के सदस्यों की संख्या का अंदाज़ा नहीं है. साथ ही रिपोर्ट ने इस बात पर भी बल दिया है कि अगर बात संख्या की हो तो शाह कार्यकारिणी में सदस्यों की संख्या 8 करोड़ तो कभी 9 करोड़ बताते हैं. जबकि 2015 में भारतीय जनता पार्टी द्वारा सदस्यों की संख्या 11 करोड़ बतायी थी.
आलोचक कुछ कहें. आंकड़े कुछ बताएं मगर वर्तमान में सत्य यही है कि भाजपा तमाम मोर्चों पर सफल हो रही है. 2014 के बाद से पार्टी को लगातार मिल रही सफलताओं पर अगर गौर करिए. भाजपा को वाकई इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कार्यकारिणी में सदस्यों की संख्या घटी है. या फिर उसमें इजाफा हुआ है. पार्टी को जीत से मतलब है. वो सभी प्रमुख दुर्ग जीत चुकी हैं और जो बचे हैं उनको अपने कब्जे में कैसे लिया जाए इसके लिए लगातार रणनीति बना रही है.
चूंकि यहां बात कार्यकारिणी में सदस्यों की संख्या की हो रही है. ऐसे में यहां ये बताना बेहद जरूरी है कि इस मुद्दे पर संख्या कम या ज्यादा होने से न तो सरकार तो फर्क पड़ रहा है और न ही आम जनता को. ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि इससे सरकार द्वारा दी जा रही बुनियादी सुविधाओं पर कोई विशेष प्रभाव पड़ेगा या फिर उनमें कोई कटौती होगी.
वर्तमान परिदृश्य में भाजपा जिस तरह सफल हो रही है कहना गलत नहीं है कि उसे संख्या से कोई मतलब नहीं है
भाजपा आज इतनी सफल क्यों है? यदि ऐसा या इससे मिलता जुलता प्रश्न हमारे सामने हो तो इसका जवाब बस इतना होगा कि 2014 के बाद से भाजपा ने अपने को लगातार बड़ा करने और बताने का काम किया है. पार्टी ने हैरतअंगेज रूप से अपने को बड़ा दिखाया और समर्थकों की फ़ौज जुटाई. अच्छा चूंकि भाजपा लगातार शीर्ष पर जा रही है तो ऐसे लोगों की भी बड़ी संख्या है जो भेड़ चाल का परिचय देते हुए खुद-ब-खुद भाजपा के खेमे में आ गई और इसे और विशाल बनाने का काम किया.
उपरोक्त बात कितनी प्रभावी है, यदि इसे समझना हो हमें पूर्वोत्तर के त्रिपुरा का रुख करना चाहिए. लम्बे समय तक त्रिपुरा में वाम शासन रहा. मगर जिस तरह इसी साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में त्रिपुरा से लेफ्ट का सफाया हुआ, वो खुद बता देता है कि विजय के लिए भाजपा के इरादे कितने मजबूत हैं. त्रिपुरा में न सिर्फ मोदी और शाह का जादू चला बल्कि इस जीत में एक बड़ी भूमिका 'सदस्यता' ने निभाई. त्रिपुरा में सबसे दिलचस्प ये रहा कि कब केवल फोन कॉल और मेसेज के जरिये भाजपा ने यहां बड़ी सेंधमारी की लेफ्ट कोइसकी कानों कान खबर नहीं हुई.
एक बात निश्चित है कि चाहे सदस्य हो या न हो भाजपा का कोर वोटर केवल उसे ही वोट देगा
आज के परिदृश्य में ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि भाजपा के लिए संख्या बिल्कुल भी मायने नहीं रखती. मगर संख्या ही उसे चुनाव जिता भी रही है. ये बात शायद विचलित कर जाए. इस पर ध्यान दीजिये. मिलेगा कि आज समाज में ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है जिसने कागजों या फिर आंकड़ों पर तो भाजपा की सदस्यता नहीं ली है. मगर परिस्थिति कैसी भी हो इनका वोट भाजपा के ही खाते में जाता है.
बहरहाल बात की शुरुआत हमने एक रिपोर्ट के हवाले से की थी. तो हम बस ये कहकर अपनी बात को विराम देंगे कि जिन गायब सदस्यों की बात रिपोर्ट ने की है, क्या पता वही भाजपा के लॉयल वोटर हो. ऐसे वोटर जो हर कीमत पर अपनी पार्टी को सबसे आगे देखने की इच्छा रखते हों.
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