सपा को हार ने दिये हौसले और भाजपा को जीत ने किया चिंतित
जल्द ही उत्तर प्रदेश में उपचुनाव होने वाला है जो न सिर्फ योगी आदित्यनाथ के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि जिसे मायावती, अखिलेश यदव और प्रियंका गांधी तक के लिए खासा अहम माना जा रहा है.
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उत्तर प्रदेश को देश की सियासत की प्रयोगशाला कहा जाता है. दलितों-पिछड़ों को अपना बनाने और हिन्दुत्व का पहला पत्ता खेलने के लिए भाजपा यूपी की सरज़मीन ही चुनती है और सफल भी होती है. 'गेम ऑफ पॉलिटिक्स' की ऐसी हिस्ट्री पर ग़ौर करिए तो मिलेगा कि भाजपा का ये गेम सफल तो है पर यह वक्त के साथ फीका पड़ता जा रहा है. साथ ही जातियों के बीच ज्यादा दिन तक सामंजस्य ना बनने से हिन्दुत्व की एकता भी अब बिखरने लगी है. नब्बे के दशक में कुछ ऐसा ही हुआ था. मौजूदा भाजपा की पारी लम्बी रेस का घोड़ा साबित हो सकती है. इस बार मोदी मैजिक के खंभे पर हर जाति की लतायें गले मिलते हुए एकजुट और मज़बूत हो रही हैं. लोकसभा चुनाव से पहले एक दूसरे के धुर विरोधी यूपी के क्षेत्रीय दल हिन्दू समाज को जातियों के आधार पर बांटने की कोशिश मे एकजुट हो गये थे. किंतु हिंदू समाज के मोदी मोह के आगे जातिवादी राजनीति की एक नहीं चली थी. अब यूपी में 11 सीटों पर उप चुनाव होना है. हमीरपुर सीट पर हुए चुनाव के नतीज़े ने बहुत सारे इशारे किए हैं. पहला ये कि मोदी लहर बर्करार है. जनता भाजपा को कश्मीर पर 370 के फैसले का इनाम देने को तैयार है. हमीरपुर की एक सीट पर भाजपा ने अपना कब्जा बर्करार रखा है.
उत्तर प्रदेश में उप चुनावों को सभी दलों के लिए अहम माना जा रहा है
यूपी में प्रियंका का जादू नहीं चल पा रहा है. बसपा पर मुसलमानों का विश्वास नहीं रहा.और दलितों-अति पिछड़ों का भाजपा पर विश्वास बना हुआ है. इस चुनावी नतीजे की मुख्य बात ये है कि यहां भाजपा का वोट प्रतिशत घटा है और सपा का वोट प्रतिशत बढ़ा है. उप चुनाव की एक सीट का नतीजा तो यही बता रहा है कि फिलहाल भाजपा के मुकाबले मे सपा मुख्य विपक्षी दल के रूप मे उभर सकती है. जानकारों का कहना है कि सपा-बसपा गठबंधन तोड़ने से बसपा सुप्रीमों मायावती को आगे भी नुकसान उठाना पड़ सकता है.
बसपा का दलित-मुस्लिम फार्मूला जम नहीं पा रहा है. जांच एजेंसियों के दबाव से घिरी बसपा सुप्रीमों मायावती ने धारा 370 हटाये जाने में मोदी सरकार का साथ दिया. नतीजतन मुस्लिम समाज का बड़ा तबका हमीरपुर के मुस्लिम प्रत्याशी को भी अस्वीकार कर सपा के समर्थन में एकजुट हो गया. बकि इस सीट के मुस्लिम चेहरे से बसपा को नुकसान पंहुच गया. दलित और अति पिछड़े वर्ग के अपने पारंपरिक वोट बैंक को बसपा मोदी मोह से बाहर निकालने में कामयाब नहीं हो सकी.
फिलहाल उत्तर प्रदेश के उप चुनाव की हमीरपुर सीट पर समाजवादी पार्टी की हार उसे जीत का अहसास कराने लगी है. इस एक सीट को यदि यूपी की सियासत की पकती खिचड़ी के एक चावल का सैम्पल मान लें तो सपा मुख्य विरोधी दल के रूप में उभरी है. इस सीट के नतीज़ों में सपा का वोट 4.32 प्रतिशत बढ़ा है. सपा को 2017 के चुनाव में यहां 24.97 प्रतिशत वोट मिले थे जो बढ़कर 29.29 फीसद हो गये.
यदि आप हमीरपुर की सीट को यूपी की सियासत का प्रतीक मानें तो इस सूबे में कांग्रेस की प्रियंका गांधी वाड्रा का ज़रा भी जादू नहीं चल पा रहा है. कांग्रेस के साथ बसपा की भी यहां ज़मानत ज़ब्त हो गई है. हमीरपुर सीट पर विजयी भाजपा का वोट प्रतिशत कम होने और सपा का बढ़ने का विशलेषण दूर की कौड़ी दिखा रहा है. जानकारों का कहना है कि भाजपा पर दलितों-अति पिछड़ों का विश्वास जमा है लेकिन भाजपा का पारंपरिक सवर्ण वर्ग का वोटर खफा होकर सपा को विकल्प चुन रहा है.
हमीरपुर की एक सीट को सैम्पल की तरह देखने वाले कुछ चुनावी विश्लेषकों का कहना है कि दलितों-पिछड़ों को ज्यादा तवज्जो देने वाली भाजपा के अपनों की नाराजगी सपा को मरहम दे रही है. हमीरपुर के स्थानीय जानकारों की मानें तो सवर्ण वर्ग की अपेक्षाओं में सरकार खरी नहीं उतर पा रही है. नतीजतन हमीरपुर चुनाव में अपनों से नाराज़ ब्राहमण समाज का एक तबका सपा का वोट प्रतिशत बढ़ाने और भाजपा का घटाने का सबब बना.
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