New

होम -> सियासत

 |  कर्निका कहेन...  |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 21 अक्टूबर, 2015 11:28 AM
कनिका मिश्रा
कनिका मिश्रा
  @cartkanika
  • Total Shares

अभी दो हफ्ते भी नहीं गुजरे कि देश के महामहिम राष्ट्रपति ने देश को फिर से चेताया है. उन्होंने कहा कि हमारी पांच हज़ार पुरानी सभ्यता के अब तक कायम रहने का राज़ 'अनेकता में एकता' और 'सहनशीलता' में ही छिपा हुआ है और किसी भी कीमत पर हमें इन से समझौता नहीं करनी चाहिए. राष्ट्रपति जी ने बढ़ती असहनशीलता और असहिष्णुता के प्रति चिंता जताई. नवदुर्गा के अवसर पर उन्होंने रामकृष्ण परमहंस के विश्व को सन्देश 'जितने मत, उतने पथ' की भारत की जनता को याद दिलाई, उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति हमें सारे धर्म और विचारों का एक समान आदर करना सिखाती है और जहां सारा विश्व हमारी विभिन्नताओं को एक साथ लेकर चलने के गुण से प्रेरणा लेता है, वहीं आजकल की घटनाएं खुद हमारे अन्दर इन मूल्यों के ह्रास की तरफ संकेत कर रही हैं.

राष्ट्रपति की ये चिंता बेवजह नहीं है. आज पूरा देश अराजकता की आग में जल रहा है, हैवानियत का नंगा नाच अपने चरम पर है और देश से लॉ और आर्डर का साया उठता दिख रहा है. ऐसा नहीं है कि पहले कभी हिंसा की घटनाएं नहीं हुई हैं पर जिस तरह से आजकल चारों और बस यही हो रहा है, उससे ये लगने लगा है कि अराजक तत्वों को खुली छूट मिली हुई है और वो निरंकुश और उद्दण्ड हो चुके हैं. उन्हें पता है कि सत्ता में बैठे उन के आका उनका कुछ बिगड़ने नहीं देंगे.

 width=

कोई किसी को स्याही पोत रहा है, तो कोई किसी को पीट पीट कर जान से मारे डाल रहा है, कहीं दलित का घर जला कर उसके मासूम बच्चों को मौत के हवाले किया जा रहा है, तो कहीं उनको सरेआम नंगा किया जा रहा है,  कहीं बच्चे को घोड़े से बांध कर घसीटा जा रहा है तब तक, जब तक कि वो दम न तोड़ दे. हैवानियत का मंज़र देखिये कि दूधमुंही बच्चियों का रेप हो रहा है, लेकिन मंत्री संस्कृति की दुहाई दे रहा है. गौ हत्या के शक में तीन बेगुनाहों की जान जा चुकी है और हमारे राजनेता अब भी सिर्फ गाय माता के लिए चितित है. अब क्या कहें, ये ऐसा दौर है जब अपराधी देशप्रेमी होने का स्वांग धर रहे हैं और गुंडे देश की संस्कृति के रखवाले बन गए हैं.

हमेशा की तरह तर्क दिया जा सकता है कि इस सब में केंद्र की क्या भूमिका है लेकिन ये एक सच्चाई है कि इस तरह की घटनाएं हाल ही में बहुत तेज़ी से बढ़ी हैं और सत्ता में बैठे राजनेताओं और उस से जुड़े कुछ संगठनों ने आग में घी डालने का काम किया है. प्रधानमंत्री की अपील के बाद भी अगर मोहन भागवत फिर से कहते हैं कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र बनना चाहिये, इजराइल जैसा बनना चाहिए या जब रामदेव कहते हैं कि विधायक राशिद के चेहरे पर स्याही की बजाए पत्थर भी फेंक दिया जाता तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए और या जब गांधी जी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के जन्मदिन को बलिदान दिवस की तरह मनाने की तैयारी चल रही हो, तो ये समझ लेना चाहिए कि बात हाथ से निकल चुकी है.

सवाल तो देश के मुखिया से पूछे ही जायेंगे, भले ही बुरा लगे या भला. ये भी पूछा जाएगा की इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाने की उनकी क्या योजना है. ये प्रधानमंत्री जी का व्यक्तिगत मामला नहीं है जिस पर चाहे वो बोलें और चाहे शांत रहें, ये 125 करोड़ भारतीयों के भविष्य का सवाल है. ये हमारा हक है कि जब देश इतने नाज़ुक दौर से गुज़र रहा है, आप हमें बताएं कि आप इस स्थिति से निपटने के लिए क्या कर रहे हैं? हम लोग प्रधानमंत्री से बोलने की गुजारिश करते करते थक चुके हैं लेकिन प्रधानमन्त्री इस मामले में, अभी तक जनता से सीधे संवाद बनाने में असफ़ल रहे हैं.

प्रधानमन्त्री जी, कृपया बोलिये, वैसे ही जैसे आप रैली और रेला में बोलते हैं, बोलने की औपचारिकता भर न करिये, बोलिए.

#साम्प्रदायिकता, #दादरी, #राष्ट्रपति, सांप्रदायिकता, दादरी, राष्‍ट्रपति

लेखक

कनिका मिश्रा कनिका मिश्रा @cartkanika

बेबाक कार्टूनिंग के लिए CRNI अवार्ड पाने वाली पहली महिला

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय