बीजेपी का दामादश्री पार्ट-2
वाड्रा के खिलाफ जमीन घोटाले के आरोपों की धुंधली सतहें साफ दिखने लगी हैं. लोगों में चर्चा है कि अगर राबर्ट वाड्रा ने बीकानेर में जमीनें नहीं खरीदी होतीं तो क्या सरकार को सौ करोड़ से ज्यादा का फायदा होता?
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राजस्थान में अगले साल चुनाव हैं, लिहाजा राबर्ट वाड्रा के जमीन घोटाले का जिन्न बीजेपी के आकाओं ने चार साल से बंद कर रखी अपनी सियासी बोतल से निकालकर सीबीआई के पिंजरे में कैद कर दिया है. राजस्थान विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीकानेर जमीन घोटाले पर दामाद जी के नाम से जारी बीजेपी की सीडी ने चुनावी बाक्स आफिस पर धूम मचाई थी.
2013 में रिलीज़ की गई सीडी के दौरान रविशंकर प्रसाद और अर्जुन मेघवाल
तब के प्रधानमंत्री के पद के उम्मीदवार और अब प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान नरेंद्र मोदी के मुंह से दामाद जी निकलते ही जिस तरह से रैलियों में हूंटिंग की आवाजों का शोर होता था और तालियों की गड़गड़ाहट होती थी उसकी गूंज बीजेपी नेताओं को फिर से याद आने लगी है. लिहाजा चार साल बाद राजस्थान सरकार ने वाड्रा जमीन सौदे की फाईलें झाड़-पोंछ कर फिर से निकाली हैं और चोरी-चुपके सुप्रीम कोर्ट के घोषित तोते सीबीआई को पकड़ा दी है. लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या काठ की हांडी फिर से चढेगी.
बीकानेर लैंड डील की जांच अब सीबीआई करेगी
पिछले चार सालों में बीकानेर के रेगिस्तान के दरिया में रेत की कई परत उड़ गई हैं. वाड्रा के खिलाफ जमीन घोटाले के आरोपों की धुंधली सतहें साफ दिखने लगी हैं. लोगों में चर्चा है कि क्या अगर राबर्ट वाड्रा ने बीकानेर में जमीनें नहीं खरीदी होतीं तो सरकार को सौ करोड़ से ज्यादा का फायदा होता? वाड्रा के नाम जुड़ने भर से किस तरह से सरकार को करोड़ों का फायदा हुआ ये भी एक दिलचस्प किस्सा है. इसके लिए हमें समझना होगा कि बीकानेर की ये लैंड डील है क्या.
क्या है बीकानेर की लैंड डील
2008 में राजस्थान की तत्कालिन बीजेपी सरकार ने बीकानेर के कोलायत और गजनेर तहसील में महाजन फायरिंग रेंज में विस्थापितों को सरकारी जमीन आवंटित करने का फैसला किया. 1400 बीघा जमीन महाजन फायरिंग रेंज के प्रभीवितों के नाम सरकार ने 2009 तक आवंटित किए. तब तक राज्य में कांग्रेस की भी सरकार बन गई थी. इसबीच 2010 में इसी 1400 बीघा जमीन में से 275 बीघा जमीन वाड्रा की कंपनी स्काई लाईट हास्पेटिलिटी ने भी अपने एजेंट के जरीए खरीदी और मोटा मुनाफा कमाते हुए 2012 में बेच दी.
इस बीच बीजेपी के बीकानेर के उस समय के सांसद अर्जुन मेघवाल को पता चला कि यहां वाड्रा ने जमीनें खरीदी हैं. इस तरह से ये मामला सुर्खियों में आया. तब तक सरकार ने राजस्थान के रेगिस्तान में सोलर पार्क की नीति भी घोषित कर दी और सोलर के नाम से जमीनें खूब बिकने लगीं और दाम भी आसमान पर पहुंच गए.
केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल मामले को लेकर दिल्ली पहुंचे और ये राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा बना
केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल को पता चला कि बीजेपी के कुछ स्थानीय नेताओं ने फर्जी लोगों को किसान और प्रभावित बताकर लोगों को 1400 बीघा सरकारी जमीन आवंटित करा ली है. मेघवाल को अपने पार्टी के विरोधी नेताओं के साथ-साथ वाड्रा पर भी वार करने का मौका मिल गया. बीजेपी के स्थानीय नेताओं को पता था कि वाड्रा के अलावा ये मामला कुछ और ही है तो चुप ही रहना बेहतर समझा. लेकिन मेघवाल मामला लेकर दिल्ली पहुंच गए और ये राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा बन गया. आरोपों के निशाने पर तत्कालिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत थे इसलिए गहलोत ने फटाफट जांच के आदेश दे दिए और इसबीच सरकार चली गई.
अब वापस राजस्थान में बीजेपी सरकार बन गई थी इसलिए मुख्य चुनावी मुद्दे की जांच का एलान करना जरुरी था. लेकिन करे कौन. बीजेपी को शुरु से सब मालूम था. इसलिए मीडिया में जांच का एलान करने के लिए उस दिन पार्टी दफ्तर में भूपेंद्र यादव को भेजा गया. बीकानेर के तत्कालीन कलेक्टर आरती डोगरा के नेतृत्व में जांच शुरु हुई. जांच शुरु हुई तो कोलायत और गजनेर थाने में 18 एफआरआई दर्ज की गई. इस मामले में चार सरकारी अधिकारी-कर्मचारी, तीन दलाल और एक बीजेपी नेता और पूर्वमंडी सचिव जयप्रकाश की गिरफ्तारी हुई. कलेक्टर ने पूरी जांच रिपोर्ट रेवेन्यू डिपार्टमेंट और कार्मिक विभाग को भेज दी जिसमें राबर्ट वाड्रा और उसकी कंपनी का कोई जिक्र नही था.
कलेक्टर की रिपोर्ट पर कारर्वाई करते हुए सरकार ने सभी फर्जी ढंग से आवंटित1400 बीघा जमीन वापस ले ली. इस बीच वाड्रा के नाम जुड़ने से बंजर पड़ी ये जमीनें कई गुना महंगी हो गईं. सरकार को 1400 बीघा की 100 करोड़ से ज्यादा की वो जमीनें वापस मिल गईं. शायद वाड्रा ने 1400 बीघा में से 275 बीघा जमीन नहीं खरीदी होती तो किसी को पता भी नहीं चलता.
इसबीच ईडी और सीबीआई के अधिकारी मनी लांडरिंग की जांच के नाम पर बीकानेर में कई जगह छापा मारते रहे. जबकि सरकार की तरफ से कोई जांच इन्हें नहीं दी गई थी. न तो इन छापों के बारे में इन संस्थानों ने कभी कुछ कहा और न ही सरकार ने. बस मीडिया में सुर्खियां बनती रही कि वाड्रा जमीन मामले में सीबीआई-ईडी का छापा. इसबीच हमने कई बार गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया और रेवेन्यू मीनिस्टर अमरा राम से इस जांच के बारे में पूछा. वाड्रा का नाम सुनकर वो ऐसे भागते थे जैसे वाड्रा नहीं किसी बीजेपी नेता के जमीन घोटाले पर सवाल पूछ रहे हों.
लेकिन आखिरकार राजस्थान सरकार ने चुनावी साल को देखते हुए जमीन सौदे की जांच सीबीआई को दे दी. वो भी इतने गुपचुप तरीके से दी कि गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया और रेवेन्यू मीनिस्टर अमरा राम से 22 अगस्त की सुबह हमने पूछा कि क्या वाड्रा के बीकानेर के जमीन सौदे की जांच सीबीआई को दी है तो उनका जवाब था कि हमें तो पता नहीं है कि उस जमीन की जांच का क्या हो रहा है. दोपहर दो बजे कटारिया ने बताया कि हां हमने 17 अगस्त को ही सीबीआई जांच की सिफारिश की थी क्योंकि मल्टिपल डील उसमें इनवल्व था.
बड़ा सवाल है कि जो विभाग इसकी जांच कर रहे थे उनके मंत्रियों को ही पता नहीं था तो किसने ये जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश केंद्र को भेजी है और कैसे इतनी फूर्ती के साथ महज सात दिनों में सीबीआई ने ये जांच ले भी ली, और मामले से जुड़ी सभी 18 फाईलें भी ले गई. सीबीआई की यह फुर्ती हैरान करने वाली है क्योंकि बीकानेर की दलित छात्रा डेल्टा मेघवाल की हत्या की सीबीआई जांच की सिफारिश किए दो साल हो गए. जैसलमेर के चतुर सिंह एनकाउंटर की सीबीआई जांच की सिफारिश किए एक साल हो गए और नागौर के आनंदपाल एनकाउंटर की जांच की सिफारिश किए एक महीना हो गया मगर सीबीआई ने अबतक जांच हाथ में भी नहीं ली है.
खैर, पूरे मामले का लब्बो-लुवाब ये है कि वाड्रा का तो जाने क्या होगा मगर वाड्रा के नाम आने से सरकार को 1400 बीघा की करोड़ों की विकसित जमीन मिल गई. जनता तो बस इतना जानती है कि वाड्रा बंजर जमीन लेकर गया था विकसित जमीन वापस कर गया.
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