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Updated: 24 फरवरी, 2022 12:14 PM
प्रभाष कुमार दत्ता
प्रभाष कुमार दत्ता
  @PrabhashKDutta
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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी सरकारी नीति के रूप में जो योजना बनाई है उसमें इतिहास की बेहद अहम और मजबूत भूमिका है. रूसी सेना को यूक्रेनी क्षेत्रों में मार्च करने के लिए पुतिन का आदेश जिसे उन्होंने 'इंडिपेंडेंट' के रूप में मान्यता दी थी, इतिहास की उनकी व्याख्या से आता है. रूस यूक्रेन विवाद पर पैनी नजर बनाए रखने वाले पहले से ही कह रहे हैं कि व्लादिमीर पुतिन इतिहास को द्वितीय विश्व युद्ध की तर्ज पर फिर लिख रहे हैं.

सवाल यह है कि, अगर हम भारत के पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के परिदृश्य से देखें, क्या पुतिन की कार्रवाई का न्याय करने में इतिहास दयालु होगा?

Russia, Ukraine, War, Vladimir Putin, History, Europe, Poland, World Warजैसे हालात रूस और यूक्रेन के बीच बने हैं उसके बाद राष्ट्रपति पुतिन पर पूरी दुनिया की नजर है

यूक्रेन में आक्रामक कदम

2014 के बाद से, पुतिन ने यूक्रेन में अपने आक्रामक कदमों के साथ पूर्वी यूरोप में संप्रभु क्षेत्रीय मानचित्र को बदल दिया है. उन्होंने 2014 में यूक्रेन के क्रीमियन प्रायद्वीप पर कब्जा किया और एक ऐतिहासिक गलती को ठीक करने का दावा किया.

पुतिन दक्षिण और पूर्वी यूक्रेन में अलगाववादी विद्रोहियों को रूसी आपूर्ति सक्रिय रूप से मुहैया करा रहे हैं. इस सप्ताह की शुरुआत में, पुतिन ने रूस की सीमा से लगे पूर्वी यूक्रेन में विद्रोहियों के कब्जे वाले दो क्षेत्रों की आजादी की घोषणा की थी.

रूस 2019 से विद्रोही-नियंत्रित क्षेत्रों में यूक्रेन के लोगों को पासपोर्ट जारी कर रहा है. पुतिन ने इस आशय के साथ एक डिक्री पर हस्ताक्षर भी किए. जब आलोचना की गई, तो पुतिन ने स्पष्ट रूप से पूछा कि अगर उन्होंने उन क्षेत्रों में रहने वाले रूसियों की देखभाल की तो उन्होंने क्या गलत किया.

हाल के सप्ताह में, पुतिन ने रूसी सेना को बेलारूस भेजा, जो यूक्रेन के साथ एक सहयोगी सीमा को साझा करता है. यह कदम रणनीतिक है क्योंकि बेलारूस की सीमा यूक्रेन की राजधानी कीव से बहुत दूर नहीं है.

यूक्रेन और उसके नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) के सहयोगियों में डर है कि पूर्ण युद्ध की स्थिति में, पुतिन राजधानी कीव पर रूसी कब्जे के लिए जाएंगे. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद उभरे एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में यूक्रेन के लिए यह अंतिम दांव हो सकता है.

सोवियत संघ की रक्षा

सोवियत संघ के पूर्व जासूस, पुतिन टिप्पणियों के प्रति संवेदनशील रहे हैं, विशेष रूप से वे जो ऐतिहासिक घटनाओं के लिए अपने देश को दोषी ठहराते हैं. हालांकि, यूरोप ने हाल ही में उन्हें कई बार इस मुद्दे पर घेरा है. बताते चलें कि ऐसा ही एक मिलती जुलती घटना 2019 में हुई थी.

जिक्र 2019 का हुआ है तो बता दें कि सितंबर 2019 में यूरोपीय संघ की संसद ने 'यूरोप के भविष्य' के बारे में बात करते हुए एक प्रस्ताव अडॉप्ट किया था. यूरोपीय प्रस्ताव ने द्वितीय विश्व युद्ध शुरू करने के लिए सोवियत संघ और एडॉल्फ हिटलर के जर्मनी को दोषी ठहराया. इसने पुतिन के रूस पर 'सोवियत अधिनायकवादी शासन द्वारा किए गए अपराधों को साफ़ करने' का भी आरोप लगाया.

पुतिन ने तीन महीने बाद दिसंबर 2019 में सीआईएस शिखर सम्मेलन में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी. उस अनौपचारिक शिखर सम्मेलन में, पुतिन ने इस आरोप को खारिज कर दिया कि सोवियत संघ ने युद्ध शुरू किया और सम्पूर्ण घटनाक्रम के लिए पोलैंड को दोषी ठहराया.

उन्होंने कहा कि पोलैंड ने यूरोप में 'अत्यधिक महत्वाकांक्षाओं का पीछा करते हुए' द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत की. पुतिन ने मई 2021 में इस मुद्दे पर फिर से चर्चा की, तब उन्होंने चेतावनी दी कि कुछ देश द्वितीय विश्व युद्ध से 'सबक' नहीं सीख रहे हैं, साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि वे कभी 'माफी' के लायक नहीं होंगे.

पुतिन ने कहा कि, 'युद्ध ने इतने असहनीय परिणाम, दुख और आंसू दिए हैं कि उन्हें भुलाया नहीं जा सकता. और उन लोगों के लिए कोई माफी और बहाना नहीं है जो फिर से आक्रामक योजनाओं का पोषण कर रहे हैं.'

उन्होंने नाजी जर्मनी पर सोवियत संघ की जीत की 76 वीं वर्षगांठ के लिए समर्पित एक समारोह के दौरान मॉस्को के रेड स्क्वायर पर सैन्य परेड की समीक्षा करते हुए उस खेल की बड़ी मछलियों के लिए 'कोई माफी नहीं' का वादा किया, जिसे रूसी महान राष्ट्रवादी युद्ध की संज्ञा देते हैं.

रूस बनाम नाटो

रूस के पड़ोस में नाटो के विस्तार पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए, पुतिन का स्पष्ट लक्ष्य अमेरिका-प्रभुत्व वाला सैन्य गठबंधन था. ध्यान रहे कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पैदा हुए शक्ति संतुलन को खतरे में डालने वाले यूक्रेन को लेकर रूस और नाटो के बीच स्थिति उफान पर आ गई है.

जैसा कि मालूम दे रहा है पुतिन ने यूरोप में अपने प्रभाव को गहरा करने के लिए एड़ी से लेकर चोटी तक का जोर लगा दिया है, भू-रणनीतिक विचारकों के बीच यह बहस तेज है कि वह सोवियत संघ, कम्युनिस्ट रूस के सोवियत संस्करण के पुनरुद्धार पर नजर गड़ाए हुए हैं. यूक्रेन का भविष्य तय कर सकता है कि इतिहास व्लादिमीर पुतिन के प्रति दयालु है या नहीं.

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लेखक

प्रभाष कुमार दत्ता प्रभाष कुमार दत्ता @prabhashkdutta

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्टेंट एडीटर हैं.

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