क्या सचिन और लता का राजनीतिक इस्तेमाल किया जा सकता है?
ब्लैकमेल और इस्तेमाल जैसी चीजें सियासत में सतत प्रक्रिया रही हैं, लेकिन राजनीतिक विरोधियों के बीच ही - किसान आंदोलन (Farmers Protest) के बीच क्या सचिन तेंडुलकर (Sachin Tendulkar) और लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) जैसी हस्तियों के साथ भी ऐसा संभव है?
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भगवान तो भगवान होते हैं - और अगर हम किसी को भगवान जैसा मानते हैं तो उसके प्रति श्रद्धा, स्नेह और भावनाएं भी वैसी ही होती हैं, होनी भी चाहिये. सचिन तेंडुलकर (Sachin Tendulkar) को उनके फैंस क्रिकेट का भगवान मानते हैं - और भगवान की ही तरह मन से पूजते भी हैं, लेकिन मास्टर ब्लास्टर को ट्रोल किये जाने के बाद कम से कम दो बातें तो साफ हो ही गयी हैं - एक, सचिन तेंडुलकर को भगवान नहीं मानने वालों की तादाद भी कम नहीं है - और दो, जो सचिन तेंडुलकर को भगवान मानते हैं उनका एक पैरामीटर भी सेट है और उसमें जरा भी हेर फेर उनको बर्दाश्त नहीं है - सचिन तेंडुलकर के ऐसे प्रशंसकों के लिए उनको एक दायरे में बंध कर ही व्यवहार करना चाहिये.
सचिन तेंडुलकर को कोई ऐसा वैसा व्यवहार नहीं करना चाहिये जो उनको क्रिकेट के भगवान के तौर पर गढ़ी गयी परिभाषा से मेल न खाती हो - जब भी कभी सचिन तेंडुलकर ने ऐसे लोगों की तरफ से परिभाषित लक्ष्मण रेखा लांघी वो तत्काल प्रभाव से निशाने पर आ जाएंगे!
सचिन तेंडुलकर को लेकर ट्विटर पर एक बंटवारा भी देखने को मिला, जब किसान आंदोलन (Farmers Protest) को लेकर सचिन तेंडुलकर ने पॉप सिंगर रिहाना और ग्रेटा थनबर्ग जैसे विदेशियों की टिप्पणी को भारत के मामले में दखल मानते हुए कमेंट किया, तो एक तबका ऐसा भी रहा जो देखते ही देखते सचिन तेंडुलकर के सपोर्ट में मोर्चा संभाल लिया और दो हैशटैग और भी ट्रेंड करने लगे - #IstandwithSachin और #NationwithSachin.
ऐसा ही बंटवारा भारतीय राजनीति में भी देखने को मिला है. सचिन तेंडुलकर को लेकर राजनीति रिएक्शन बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक चालू हो गया - एक पॉलिटिकल लाइन ऐसी रही जिसके निशाने पर सचिन तेंडुलकर देखे गये तो दूसरी राजनीतिक विचारधारा सचिन तेंडुलकर के बचाव में मोर्चे आ डटी.
ऐसी टिप्पणी करने वाले सचिन तेंडुलकर अकेले नहीं रहे, बल्कि लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) जैसी हस्तियां भी विदेशी सेलीब्रिटी के खिलाफ खुल कर मैदान में आ गये. राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप के बीच बहस इस बात पर भी शुरू हो गयी कि सचिन तेंडुलकर और लता मंगेशकर जैसी मशहूर हस्तियों का राजनीतिक तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा है - बड़ा सवाल ये है कि क्या सचिन तेंडुलकर और लता मंगेशकर जैसे लीजेंड किसी को इतनी इजाजत देंगे कि उनका कोई अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर सके? अगर प्रोडक्ट एनडोर्समेंट को अपवाद के तौर पर देखें तो!
न हाई न लो, ये राजनीति का नया लेवल है
किसान आंदोलन को लेकर पॉप सिंगर रिहाना और क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग के ट्वीट पर रिएक्ट तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और विदेश मंत्रालय ने भी किया था, जबकि ये काम किसी एक्टिव वॉलंटियर की तरह कंगना रनौत पहले ही कर चुकी थी - और केंद्र सरकार के स्तर पर ऐसी कोई जरूरत भी नहीं बची थी, लेकिन तभी फिल्म और खेल जगत की मशहूर हस्तियां भी विदेशी सेलीब्रिटी को काउंटर करने खड़ी हो गयीं - बाकियों के नाम पर तो नहीं लेकिन जैसे ही सचिन तेंडुलकर और लता मंगेशकर की एंट्री हुई राजनीति मोर्चेबंदी भी शुरू हो गयी. विरोध में विपक्षी पार्टियों के नेता और बचाव में बीजेपी के नेता
सीएनएन की एक रिपोर्ट को टैग करते हुए रिहाना ने ट्विटर पर पूछा कि कोई इस मुद्दे पर बात क्यों नहीं करता. जो रिपोर्ट रिहाना ने टैग किया था, उसमें किसानों के विरोध प्रदर्शन वाली जगहों के आस पास के इलाके में सरकारी आदेश से इंटरनेट बंद किये जाने के बारे में लिखा था.
रिहाना की टिप्पणी पर पलटवार करते हुए कंगना रनौत ने बोल दिया कि चूंकि ये आंतकवादी हैं इसलिए कोई ऐसे मुद्दे पर बात नहीं कर रहा है. फिर कंगना रनौत और उनको ललकारने वाले काफी देर तक भिड़े रहे.
क्या सचिन तेंडुलकर और लता मंगेशकर परस्पर विरोधी राजनीतिक लड़ाई का शिकार हो रहे हैं?
सचिन तेंडुलकर का कहना रहा, 'भारत की संप्रभुता से समझौता नहीं किया जा सकता है... बाहरी ताकतें दर्शक तो बन सकती हैं भागीदार नहीं हो सकतीं... भारतीय अपने मुल्क को समझते हैं और इसके हित में फैसले कर सकते हैं - देश के तौर पर हमें एकजुट रहना चाहिये.'
टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली और फिल्म स्टार अक्षय कुमार की तरफ से भी मिलती जुलती ही टिप्पणियां आयीं - और सचिन के साथ साथ ये सभी ट्रोल हुए, आरोप लगा कि ये सब किसान आंदोलन के खिलाफ हैं. यहां तक कि सचिन ने भी न तो किसान आंदोलन का सपोर्ट किया था न विरोध. सचिन तेंडुलकर का तो बस ये कहना रहा कि भारत से जुड़े संवेदनशील मुद्दों पर बाहरी लोगों को बयान देने से बचना चाहिये.
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता राज ठाकरे पूछने लगे हैं कि किसान आंदोलन पर रिहाना के ट्वीट करने से पहले देश में उसके बारे में कोई जानता था क्या?
राज ठाकरे ने तो सीधे सीधे मोदी सरकार को टारगेट करते हुए कहा है कि सचिन तेंडुलकर और लता मंगेशकर जैसे भारत रत्न प्राप्त लोगों का इस्तेमाल करना गलत है. राज ठाकरे का कहना है कि ऐसे लोगों को सपोर्ट में ट्वीट करने के लिए नहीं कहना चाहिये था.
लगे हाथ राज ठाकरे सलाह भी देते हैं कि ऐसी निजी मुहिम के लिए अक्षय कुमार जैसे कलाकारों का ही इस्तेमाल करना चाहिये क्योंकि वो इस तरह के काम के लिए सही हैं.
फेक न्यूज के खिलाफ मुहिम चलाने वाले प्रतीक सिन्हा ने अक्षय कुमार और बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल के ट्वीट के स्क्रीनशॉट शेयर किये हैं - मजे की बात ये है कि दोनों के ही ट्वीट एक दूसरे के कॉपी पेस्ट लगते हैं - क्या ये महज संयोग हो सकता है?
#IndiaAgainstPropaganda pic.twitter.com/VovU3PwQbv
— Pratik Sinha (@free_thinker) February 3, 2021
रिहाना को लेकर राज ठाकरे कहते हैं, 'ये महिला कौन है? मुझे यह भी पता नहीं है कि उसने कभी क्या कहा - लेकिन ये आश्चर्यजनक है कि यहां की सरकार भी उसका जवाब देती है.'
और फिर दलील पेश करते हैं, किसान आंदोलन पर ट्वीट हमारे आंतरिक मामलों में दखल देने जैसा था, तो डोनाल्ड ट्रंप के समर्थन में PM मोदी का नारा 'अगली बार ट्रंप सरकार' क्या था?
सचिन तेंडुलकर को सलाह तो एनसीपी नेता शरद पवार ने भी दी है, लेकिन वो राज ठाकरे की तरह मोदी सरकार को टारगेट नहीं कर रहे हैं. शरद पवार कहते हैं, देश के सेलेब्रिटीज जो स्टैंड लेते हैं, उस पर बहुत से लोग तेजी से रिएक्ट करते हैं - मैं सचिन तेंडुलकर को सलाह दूंगा कि किसी दूसरी फील्ड के बारे में बोलने से पहले सतर्क रहना चाहिये.'
बिहार में आरजेडी के सीनियर नेता शिवानंद तिवारी ने तो सचिन तेंडुलकर की टिप्पणी को भारत रत्न का ही अपमान करार दिया - और तभी आमने सामने के मुकाबले में बीजेपी सांसद सुशील मोदी भी कूद पड़े.
मामला किसान आंदोलन से जुड़ा है, इसलिए किसान नेता राकेश टिकैत की प्रतिक्रिया भी महत्वपूर्ण हो जाती है. राकेश टिकैत का कहना है, 'सचिन तेंडुलकर को इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए... इस मामले में उनको नहीं पड़ना चाहिये... वो सबके हैं. वो खिलाड़ी हैं, देश उनका बहुत सम्मान करता है, उन्हें इन सब में नहीं पड़ना चाहिये.'
क्या सचिन और लता को इस्तेमाल किया गया?
सचिन तेंडुलकर की मुश्किल ये है कि वो भारत रत्न और संसद की सदस्यता भी एक ही राजनीतिक दल के शासन में पाये थे. हालांकि, ऐसी ही सिचुएशन लता मंगेशकर के साथ देखने को मिलती है. दरअसल, ये दोनों ही भारत रत्न और राज्य सभा के लिए मनोनीत अलग अलग राजनीतिक दलों के शासन में हुए जो एक दूसरे के कट्टर विरोधी हैं.
सचिन तेंडुलकर को 2012 में राज्य सभा में मनोनीत किया गया था और 2014 में भारत रत्न दिया गया - ये दोनों ही तब की बातें हैं जब देश में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए 2 की मनमोहन सिंह सरकार रही. लता मंगेशकर 1999-2005 तक राज्य सभा की मनोनीत सदस्य रहीं और उसी दौरान 2001 में लता मंगेशकर को भारत रत्न भी दिया गया - ये दोनों वाकये तब की है जब देश में एनडीए की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी.
अब वो बात यहां याद करना जरूरी है जो सचिन तेंडुलकर के स्टैंड को लेकर खबरों के जरिये सामने आयीं.
सचिन तेंडुलकर को जब राज्य सभा के लिए मनोनीत करने की बात चल रही थी, तभी ये कयास भी लगाये जाने लगे कि कांग्रेस पार्टी उनका राजनीतिक इस्तेमाल भी करना चाहेगी ही. ये चर्चा सचिन तेंडुलकर तक भी पहुंची. मालूम हुआ कि सचिन तेंडुलकर ने साफ तौर पर मना कर दिया कि वो कांग्रेस पार्टी के लिए चुनाव प्रचार तो हरगिज नहीं करेंगे. कांग्रेस की मुश्किल ये रही कि चर्चा इतनी हो चुकी थी कि पीछे हटना भी मुश्किल होता, मामला सचिन तेंडुलकर से जो जुड़ा था - ये वो दौर रहा जब मनमोहन सरकार घोटालों को लेकर राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर बैठ गयी थी. अरविंद केजरीवाल तो भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर प्रेस कांफ्रेंस किया करते थे - और रामलीला मैदान पहुंच कर अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ दहाड़ने लगे थे.
अब अगर कोई कहता है कि सचिन तेंडुलकर ने रिहाना और ग्रेटा जैसी विदेशी हस्तियों के ट्वीट पर जो रिएक्ट किया है वो उनके मन की बात नहीं है, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल हुआ है - सवाल घूम फिर कर वहीं पहुंच जाता है कि क्या सचिन तेंडुलकर को किसी तरह के दबाव से प्रभावित किया जा सकता है?
सत्ताधारी बीजेपी की नरेंद्र मोदी सरकार और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर तो उनके राजनीतिक विरोधी CBI, ED और आयकर जैसी एजेंसियों को राजनीतिक फायदे के लिए उनके बेजा इस्तेमाल के आरोप लगाते रहते हैं - ऐसा तो नहीं लगता कि सचिन तेंडुलकर और लता मंगेशकर को ऐसी चीजों से डरने की कहीं कोई जरूरत होनी चाहिये - वैसे राजनीति में भी अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी जैसे नेता भी हैं जिनकी इमानदारी का सुरक्षा कवच ऐसी कोशिशों के खिलाफ वैक्सीन की तरह असरदार होती है.
क्या सचिन तेंडुलकर और लता मंगेशकर को संसद सदस्यता और भारत रत्न मिलने में परस्पर विरोधी राजनीतिक विचारधारा की लड़ाई में पिसना पड़ रहा है? और ऐसी कीमत चुकानी पड़ रही है जो उनकी छवि पर भी असर डाल रही है?
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या सचिन तेंडुलकर और लता मंगेशकर जैसी हस्तियों से भी उनकी मर्जी के विरुद्ध कोई काम कराया जा सकता है - और क्या वे किसी को अपना इस्तेमाल किये जाने की इजाजत देंगे?
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