सचिन पायलट को गांधी परिवार ने न सिंधिया बनने दिया, न ही सिद्धू बनाया!
सचिन पायलट (Sachin Pilot) की खुशी का इजहार महज राजनीतिक है, मन की बात नहीं. भले ही वो प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) का शुक्रगुजार मान रहे हों, लेकिन सच तो ये है कि नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के मुकाबले चवन्नी भी नहीं मिली - आगे का रास्ता भी बंद लगता है.
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'सचिन पायलट (Sachin Pilot) बहुत खुश होंगे', कांग्रेस की तरफ से पहले से ही ऐसा फिलर दिया जाने लगा था - और अब तो वो खुल कर खुशी भी जाहिर कर चुके हैं, "जो कमी थी वो पूरी हो गई!"
क्या वाकई ऐसा ही हुआ है? क्या सचिन पायलट को भी लगता है कि देर से ही सही, जो हुआ वो दुरूस्त हुआ है? 14 अगस्त 2020 को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विश्वास मत हासिल किया था. उससे ठीक पहले महीने भर से ज्यादा जो जोर आजमाइश चली थी, उस पर विराम तो लग गया लेकिन आगे भी वही सब हुआ जो अशोक गहलोत के मनमाफिक रहा, न कि कभी सचिन पायलट के हिसाब से.
विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान भी सचिन पायलट के साथ जो सलूक हुआ सबने देखा सुना और जाना ही. सचिन पायलट खामोश रहे. ये खामोशी भी काफी लंबी चली. सत्र के दौरान भी सचिन पायलट ने 2018 के विधानसभा चुनावों के दौरान राहुल गांधी की तरफ से राजस्थान की जनता से किये गये वादे पूरे किये जाने की बात दोहरायी. आगे भी याद दिलाते रहे. लंबे इंतजार के बाद नये सिरे से गांधी परिवार से मिल कर राहुल गांधी से मुलाकात में किये गये वादे याद दिलाने की कोशिश में दिल्ली में डेरा भी डाले रहे. दरवाजा नहीं खुला, लिहाजा बैरंग ही लौट गये.
पायलट को मिला ही क्या है: जिन सारी कमियों के पूरा होने की बात सचिन पायलट कह रहे हैं - क्या ये सब वास्तव में सचिन पायलट के मन की बात है? वो कमियां भला कहां पूरी हुई हैं. कहां सचिन पायलट मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए संघर्ष शुरू किये थे, कहां डिप्टी सीएम की कुर्सी भी सम्मान सहित वापस नहीं मिली. राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया, वो भी वापस नहीं मिला - फिर कैसे कह सकते हैं कि जो कमी थी सब पूरी हो गयी?
मीडिया के जरिये सचिन पायलट का जो बयान आया है, उनके मुस्कुराने का मतलब अंदर ही अंदर कोई गम छुपाने जैसा ही लगता है. और ये कोई रहस्यमय बात भी नहीं है. अशोक गहलोत ने बस इतना ही तो किया है कि सचिन पायलट गुट के कुछ विधायकों को मंत्री बना दिया है. ये तो अशोक गहलोत के थोड़े से पीछे कदम खींच कर सचिन पायलट को पैदल ही कर देने जैसा लगता है.
जैसा पहले से प्रचारित किया गया है और सचिन पायलट की बातों से भी वैसे ही संकेत मिलते हैं कि जो कुछ हुआ है सब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) की दखल से संभव हुआ है. ये भी सच है कि जब सचिन पायलट बागी बने हुए थे तो प्रियंका गांधी ने ही राहुल गांधी के सामने उनको बैठा कर पंचायत करायी थी.
सचिन पायलट को लेकर माना जा रहा था कि वो ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह बीजेपी जा सकते हैं, प्रियंका गांधी ने ऐसा तो नहीं होने दिया - लेकिन जैसे कांग्रेस नेतृत्व को नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) की हर बात मानते देखा गया है, सचिन पायलट की तो सुनी भी नहीं गयी - ये तो ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस में रहते हुए सचिन पायलट जो 'आजादी' चाह रहे थे, उसकी जगह 'भीख' में कुछ मुआवजा देकर चलता कर दिया गया हो!
सचिन के लिए सब्र का फल तो कड़वा ही रहा
सचिन पायलट बोलें भी तो क्या बोलें? कहते हैं, कांग्रेस में कोई गुट नहीं है. अच्छी बात है. मान लेते हैं, लेकिन ये तो वो भी मानते होंगे कि जो बोल रहे हैं वो आधा सच भी नहीं है. कह रहे हैं, कांग्रेस पार्टी ने पिछले 20 वर्षों में मुझे जो भी जिम्मेदारी दी है, मैंने उसे पूरा करने की कोशिश की है. और कहें भी तो क्या कहें? दावा भी तो करना ही पड़ता है, 'हम लोग परिपाटी से अलग जाकर 2023 में दोबारा सरकार बनाने के लिए काम कर रहे हैं.'
सचिन पायलट क्या प्रियंका गांधी वाड्रा को भी राहुल गांधी के पैरामीटर से सिद्धू के मुकाबले डरपोक लगते हैं?
ये बात तो सही कह रहे हैं कि 'मैंने हमेशा मुद्दों की बात की है... मैं कभी भी व्यक्ति विशेष की बात नहीं करता... मेरी ओर से जो भी सवाल उठाए गये थे, उन पर संज्ञान लिया गया है. ठीक ही है चलेगा.
सचिन पायलट बीते दिनों की बातें भी करते हैं, 'जब 2018 का चुनाव हुआ तो हम सबके साथ मिल कर चुनाव लड़े और सबके साथ मिल कर सरकार बनायी.'
1. पुरानी बातें हैं, बातों का क्या: ऐसा इसलिए हो पाया होगा क्योंकि तब सचिन पायलट को पूरी उम्मीद रही होगी कि मुख्यमंत्री पद उनको ही मिलेगा - क्योंकि तब अशोक गहलोत, केसी वेणुगोपाल की तरह कांग्रेस के संगठन महासचिव हुआ करते थे. 2017 के गुजरात चुनाव के बाद मन ही मन कांग्रेस अध्यक्ष बन चुके राहुल गांधी ने अपने हिसाब से सचिन पायलट को राजस्थान और अशोक गहलोत को दिल्ली में सेट करने की कोशिश की थी, लेकिन गहलोत ने दिल्ली की तैनाती का इस्तेमाल अपने हिसाब से ही किया. गांधी परिवार से करीबी को नयी ताजगी दी और आगे मनमानी करते रहे. सचिन पायलट ने तो सब कुछ झेला ही है.
सचिन पायलट का ये भी कहना है कि 2018 में कलेक्टिव लीडरशिप पर चुनाव लड़ा गया था और 2023 में सोनिया गांधी की अगुवाई में चुनाव में जाएंगे. दरअसल, ये अशोक गहलोत को सचिन की तरफ से नया मैसेज है, लेकिन संदेह है कि गांधी परिवार भी अशोक गहलोत के खिलाफ सचिन पायलट को ये सब सोचने की भी इजाजत देगा?
भरत मिलाप की तरह बने प्रायोजित माहौल में भी ये सवाल भी सबके मन में था कि अब पायलट का क्या भविष्य होगा? लिहाजा पूछ भी लिया गया, तो बोले, 'कांग्रेस पार्टी जहां भी मुझे जिम्मेदारी देने के लिए उचित समझेगी, वहां जाकर मैं काम करूंगा.' ये तो किसी भी पार्टी का हर नेता कहते हुए सुना जाता है.
2. मौका चूके तो बाजी हाथ से फिसल गयी: वैसे सचिन पायलट के हाल की गतिविधियां तो यही बता रही हैं कि वो यूपी चुनाव के लिए राजस्थान से डेप्युटेशन पर भेजे जाने वाले हैं. कहा ये भी जा रहा है कि जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस में रहते 2017 में पश्चिम यूपी का प्रभारी बनाया गया था, सचिन पायलट के लिए भी प्रियंका गांधी ने ऐसा ही कुछ सोच रखा है.
सिंधिया ने तो कांग्रेस छोड़ी और बीजेपी में जाकर अब केंद्र में कैबिनेट मंत्री भी बन चुके हैं, लेकिन सचिन पायलट तो हमेशा ही बीजेपी में जाने से इंकार करते रहे. परिस्थितियां भी सचिन पायलट की सिंधिया से काफी अलग रहीं. सचिन पायलट तब गहलोत सरकार गिराने के लिए सिंधिया की तरह जरूरी नंबर नहीं जुटा पाये. बल्कि कहें कि अपने समर्थक विधायकों को एकजुट नहीं रख पाये.
3. सिद्धू बल्ले-बल्ले और सचिन के साथ सौतेला व्यवहार: कायदे से तो सचिन पायलट को नवजोत सिंह सिद्धू से भी ज्यादा तवज्जो मिलनी चाहिये थी. सचिन पायलट ने तो कभी कहा भी नहीं कि वो 'दर्शानी घोड़ा' बन कर नहीं रहने वाले या आलाकमान ने उनकी बातें नहीं मानी तो 'ईंट से ईंट खड़का' देंगे - फिर भी सिद्धू के कहने पर गांधी परिवार ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटा दिया और अब चरणजीत सिंह चन्नी सरकार को फैसले बदलने के लिए मजबूर किया जाने लगा है.
पंजाब और राजस्थान का मामला करीब करीब एक जैसा ही रहा है. बल्कि मध्य प्रदेश का भी मिलता जुलता ही रहा क्योंकि कांग्रेस में रहते सिंधिया भी तो चुनावी वादे पूरे करने के लिए ही तब की कमलनाथ सरकार पर दबाव बना रहे थे - और अब तक सचिन पायलट की भी यही मांग रही. कहने को तो सिद्धू भी पंजाब के लोगों के लिए ही लड़ाई रहते रहे हैं, लेकिन सचिन पायलट के साथ तो गांधी परिवार कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह पेश आता रहा है, जबकि अशोक गहलोत के साथ नवजोत सिंह सिद्धू की तरह - ये भी हो सकता है कि कैप्टन और सचिन हमेशा ही गांधी परिवार की बातें कुछ हद तक मान लेते रहे और गहलोत-सिद्धू तो कभी सुनने को ही तैयार नहीं लगते.
नवजोत सिंह सिद्धू ने नया विवाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को अपना बड़ा भाई बताकर शुरू किया है - और कांग्रेस के भीतर से ही विरोध के स्वर भी फूट पड़े हैं, लेकिन फिर भी सिद्धू की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, अभी तक तो ऐसा ही लगता है.
कांग्रेस के सीनियर नेता मनीष तिवारी ने ट्विटर पर लिखा है, 'इमरान खान किसी के बड़े भाई हो सकते हैं, लेकिन भारत के लिए वो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और फौजी गठजोड़ की कठपुतली भर हैं, जो पंजाब में ड्रोन के जरिये हथियार और ड्रग्स भेज रहा है... वो हर रोज जम्मू कश्मीर में एलओसी पर आतंकियों को भेज रहा है - क्या हम पुंछ में अपने जवानों की शहादत इतनी जल्दी भूल गये?'
.@ImranKhanPTI may be anybody’s elder brother but for India he is that cat’s paw of Pak Deep State ISI-Military combine that drones arms & narcotics into Punjab & sends terrorists on a daily basis across LOC in J&K. Have we forgotten martyrdom of our soldiers in Poonch so soon ?
— Manish Tewari (@ManishTewari) November 20, 2021
बाकी सब तो ठीक है, लेकिन चुनाव बाद?
यूपी चुनाव ने अगर बीजेपी नेतृत्व को झुकाया है तो कांग्रेस को भी अंदर तक हिला रखा है. राजस्थान में पायलट-गहलोत विवाद का ऐसा फटाफट निपटारा भी तो यही कहानी कह रहा है. पंजाब और राजस्थान में कांग्रेस नेतृत्व ने अलग अलग स्टैंड लिया है - और अब लगता है छत्तीसगढ़ में भी ऐसा ही कुछ हो सकता है. ये भी हो सकता है कोई तीसरा ही तरीका निकाला जाये भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के बीच समझौते के लिए.
2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर सचिन पायलट अभी से बता रहे हैं कि राजस्थान में भी उत्तर प्रदेश की तर्ज पर महिलाओं और युवाओं को टिकट देने में तरजीह दी जाएगी. मन बहलाने का ख्याल अच्छा हो सकता है, लेकिन तब तक कांग्रेस के भीतर राजनीति कई करवटें बदल चुकी होगी, अभी तो सचिन पायलट को भी अंदाजा नहीं ही होगा.
1. प्रियंका गांधी की छाप कहां है: राजस्थान कैबिनेट में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, केसी वेणुगोपाल और अजय माकन के साथ कई दौर की बातचीत के बाद अशोक गहलोत ने जो मंत्रिमंडल का खाका खींचा है, उसमें सचिन पायलट तो 'प्रियंका गांधी की छाप' देखने और बताने लगे हैं. राजस्थान के नये मंत्रिमंडल में 30 मंत्री हैं जिनमें 15 नये चेहरे हैं - और महिलाएं तीन हो गयी हैं. अगर पहले एक महिला मंत्री के मुकाबले देखें तो मान भी सकते हैं, लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा ने तो यूपी में 40 फीसदी भागीदारी देने की बात उठायी है और 2024 तक इसे 50 फीसदी करने की बात कर चुकी हैं.
2. बलि का बकरा भी तो चाहिये: 2022 के यूपी चुनाव को लेकर जिस तरह से प्रियंका गांधी सक्रिय हैं, अगर नतीजे संतोषजनक या कहें सम्मानजनक नहीं आये तो सारा दारोमदार भी उन पर ही आएगा. 2019 में कांग्रेस महासचिव बनने के बाद राहुल गांधी की अमेठी की हार से प्रियंका गांधी जो झटका खा चुकी हैं वो खुद भी उससे उबरने की कोशिश कर रही हैं और गांधी परिवार भी दोबारा ऐसी शर्मिंदगी से बचाने की कोशिश करेगा ही.
सचिन पायलट को सिंधिया की तरह ही पश्चिम यूपी की कमान सौंपे जाने की खबरों के पीछे भी कांग्रेस नेतृत्व की ऐसी ही मंशा लगती है. फिर तो ये भी मान कर चलना चाहिये कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए भी प्रियंका गांधी ने ऐसा कोई इंतजाम सोच ही रखा होगा जिसके सिर नाकामियों का ठीकरा फोड़ा जा सके.
अभी तो यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू भी उसी भूमिका में हैं, लेकिन हो सकता है सचिन पायलट के औपचारिक तौर पर काम संभाल लेने के बाद वो पूर्वांचल पर ही फोकस करें - या फिर किसी और को भी ये जिम्मेदारी दी जा सकती है.
3. पायलट प्रोजेक्ट तो शुरू हो ही चुका है: संभावित औपचारिक जिम्मेदारी मिलने से पहले सचिन पायलट महीने भर में यूपी का कम से कम चार बार दौरा कर चुके हैं. वो संभल के कल्कि पीठ में संतों को भी संबोधित कर चुके हैं, लेकिन राशिद अल्वी की तरह उनका भाषण नहीं रहा इसलिए ज्यादा चर्चित भी नहीं रहा. राशिद अल्वी ने वहीं कहा था कि जय श्रीराम का नारा लगाने वाले राक्षस होते हैं.
सचिन पायलट को अपने गांव नोएडा के वेदपुरा में होने वाले गोवर्धन पूजा में शामिल होना भी प्रियंका गांधी की चुनावी मुहिम का ही हिस्सा रहा. सचिन पायलट लखीमपुर खीरी जाने की कोशिश में रोके जाने पर बड़ी संख्या में अपने समर्थकों के साथ गिरफ्तारी भी दे चुके है.
पश्चिम यूपी में दबदबा तो जाट वोटों का है लेकिन सचिन पायलट की गुर्जर बिरादरी भी कई विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में होती है - किसान आंदोलन में जाट, गुर्जर और सैनी सभी मतदाताओं को अपने पाले में मिलाने की हर राजनीतिक दल की कोशिश है - बीजेपी के लिए तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने खुद ही पश्चिम यूपी की कमान संभाल ली है.
गांधी परिवार जिस तरह से सचिन पायलट के साथ पेश आ रहा है, लगता तो ऐसा ही है जैसे उनकी राजस्थान से छुट्टी कर दिये जाने की स्क्रिप्ट पहले ही लिखी जा चुकी है - और यूपी चुनाव के बाद उस पर अमल भी हो जाना है. जब सचिन पायलट बगावती तेवर अपनाये हुए थे तब भी ऐसी ही खबरें आ रही थीं - क्या कांग्रेस के कल्चर में कभी कुछ बदलता नहीं है?
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