स्मृति ईरानी के टारगेट पर प्रियंका गांधी के बजाय राहुल हैं, क्योंकि...
स्मृति ईरानी (Smriti Irani) को महिलाओं के मुद्दे पर कायदे से तो प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) को घेरने की कोशिश करनी चाहिये, लेकिन वो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को टारगेट कर रही हैं - क्योंकि बीजेपी के लिए यही सेफ पैसेज भी तो है.
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स्मृति ईरानी (Smriti Irani) और प्रियंका गांधी वाड्रा को एक ही दिन मुरादाबाद में होना था. 15 नवंबर को आयोजित दोनों नेताओं के कार्यक्रम स्थल के बीच महज तीन किलोमीटर का फासला होता, लेकिन तेज बुखार के चलते कांग्रेस महासचिव ने अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया था.
तय कार्यक्रम के मुताबिक सब कुछ हुआ होता तो कुछ दिलचस्प तकरार ही देखने को मिलती. स्मृति ईरानी ने मुरादाबाद पहुंचकर रिसोर्स हब का उद्घाटन किया, दस्तकारों से मिली और निर्यातकों को मदद का आश्वासन दिया - स्मृति ईरानी ने राजनीतिक बयानों से परहेज भी किया. हो सकता है कुछ बातें उनको प्रियंका गांधी की मौजूदगी में ही कहनी रही होंगी. प्रियंका गांधी वाड्रा का भी 2006 के बाद कार्यक्रम बना था जब वो एक निजी कार्यक्रम में ससुराल पहुंची थीं.
प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi Vadra) के स्लोगन 'लड़की हूं... लड़ सकती हूं...' पर स्मृति ईरानी के मुरादाबाद दौरे से पहले के रिएक्शन पर अब प्रियंका गांधी का भी जवाब आ गया है - और कांग्रेस नेता ने बीजेपी नेता को महिलाओं को मोटिवेट करने की सलाह दी है.
अव्वल तो स्मृति ईरानी को सीधे सीधे प्रियंका गांधी को ही घेरने की कोशिश करनी चाहिये. योगी आदित्यनाथ जैसे बीजेपी के कई नेताओं के लिए प्रियंका गांधी से पंगे लेना थोड़ा मुश्किल हो सकता है, लेकिन स्मृति ईरानी के साथ ऐसी कोई समस्या तो है नहीं.
आखिर क्यों स्मृति ईरानी प्रियंका गांधी की तरफ से उठाये गये महिलाओं के मुद्दे पर भी राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को बीच में लाने की कोशिश कर रही हैं - क्या इसलिए कि वो राहुल गांधी को अमेठी में शिकस्त देने के बाद ज्यादा कम्फर्टेबल हैं या ये सब राजनीति का कोई अन्य पहलू है?
मैदान में प्रियंका तो निशाना राहुल पर क्यों
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी महिलाओं को 40 फीसदी टिकट देने मुद्दे को अपने हिसाब से ट्विस्ट करने की कोशिश की थी, लेकिन प्रियंका गांधी अपने स्टैंड पर फोकस दिखाई पड़ रही हैं. ध्यान देने वाली बात ये है कि प्रियंका गांधी न तो उकसावे में आयी हैं, न ही बहकावे में. ये तो कोई भी समझ सकता है कि स्मृति ईरानी ने कमजोर नस पर चोट करने की कोशिश की है. अमेठी के जख्मों को कुरेद कर ऐसी कोशिश की है कि प्रियंका गांधी गुस्से में रिएक्ट करें और बीजेपी मुद्दे को अपने फायदे के हिसाब से हाइजैक कर ले.
महिलाओं के मुद्दे पर स्मृति ईरानी सीधे टकराने की बजाय राहुल गांधी को निशाना बना कर बायपास करने की कोशिश कर रही हैं - क्योंकि बीजेपी के लिए प्रियंका गांधी से और वो भी महिलाओं के मुद्दे पर काउंटर करना मुश्किल हो सकता है. मगर, जिस तरीके से प्रियंका गांधी ने स्मृति ईरानी को महिलाओं के मुद्दे पर उलझाने का प्रयास किया है, जाहिर है बीजेपी इसे काउंटर करने के लिए किसी और रणनीति पर विचार कर रही होगी.
जब प्रियंका गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस करके 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में 40 फीसदी महिलाओं को कांग्रेस उम्मीदवार बनाने की घोषणा की, बीजेपी ने जिन नेताओं को काउंटर करने के लिए आगे किया उनमें प्रमुख नाम रीता बहुगुणा जोशी रहीं. रीता बहुगुणा जोशी महिला नेता होने के साथ साथ कांग्रेस से ही बीजेपी में आयी हैं, लिहाजा उनकी बातों का अलग से असर होने की संभावना रही. रीता बहुगुणा जोशी यूपी कांग्रेस की अध्यक्ष रह चुकी हैं.
स्मृति ईरानी आखिर राहुल गांधी की तरह प्रियंका गांधी से आमने-सामने क्यों नहीं भिड़ पा रही हैं?
अपनी मिसाल पेश करने के साथ ही रीता बहुगुणा जोशी ने कांग्रेस छोड़ने वाली सुष्मिता देव तक का उदाहरण देकर कांग्रेस में महिलाओं की हालत की तस्वीर दिखाने की कोशिश की. बीजेपी सांसद रीता बहुगुणा जोशी का कहना रहा, मुझ जैसी जिन महिलाओं ने ईमानदारी से कांग्रेस की सेवा की उनको वहां अपमान और तिरस्कार ही मिला. ये बात अलग है कि अब बीजेपी में भी रीता बहुगुणा जोशी की पहले जैसी पूछ नहीं रह गयी है. हां, बीएसपी के एक पूर्व विधायक को बीजेपी ज्वाइन कर लेन के बाद हटा जरूर दिया गया है. रीता बहुगुणा जोशी का आरोप रहा है कि जब वो जेल में थीं, उस नेता ने उनके घर को आग के हवाले कर दिया था. पांच साल पहले बीजेपी ने रीता बहुगुणा जोशी को विधानसभा चुनाव जीतने के बाद योगी सरकार में मंत्री भी बनाया था, लेकिन 2019 में उनको सांसद बना कर पैदल ही कर दिया है.
रीता बहुगुणा जोशी का सवाल है कि जिन महिलाओं ने कांग्रेस के लिए काम किया पार्टी उनको रोक नहीं पायी. पूछती हैं - सुष्मिता देव ने कांग्रेस क्यों छोड़ी? प्रियंका चतुर्वेदी ने कांग्रेस क्यों छोड़ी?
जिन महिलाओं का रीता बहुगुणा जोशी जिक्र कर रही हैं, हाल ही में एक इंटरव्यू में प्रियंका गांधी से सवाल भी पूछा गया था तो उनका कहना था, 'जिनका आपने नाम लिया उनमें एक महिला कांग्रेस अध्यक्ष रहीं, उत्तर प्रदेश कांग्रेस की दो बार अध्यक्ष रहीं, तो एक कई बार कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ीं, जीतीं भी, एक महिला कांग्रेस अध्यक्ष और सांसद रहीं - उपेक्षित तो किसी हालात में नहीं थीं.'
प्रियंका गांधी वाड्रा लंबे समय तक कांग्रेस की बागडोर इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी के हाथों में होने के बावजूद पार्टी महिलाओं को महत्व न मिलने के सवाल पर बचाव में कहती हैं, यूपी में सुचेता कृपलानी का पहली महिला मुख्यमंत्री और सरोजिनी नायडू का पहली महिला गवर्नर बनना आखिर कैसे देखा जाना चाहिये.
हाल ही में स्मृति ईरानी ने प्रियंका गांधी वाड्रा की तरफ से महिलाओं का मुद्दा उठाये जाने पर उसका राजनीतिक मतलब समझाने की कोशिश की थी.
1. कांग्रेस का स्लोगन: यूपी चुनाव में प्रियंका गांधी का स्लोगन है - 'लड़की हूं... लड़ सकती हूं.' स्मृति ईरानी इसे अपने तरीके से पेश कर रही हैं, 'इसका मतलब ये है कि घर पर लड़का है, पर लड़ नहीं सकता.'
2. महिलाओं को 40 फीसदी टिकट: यूपी चुनाव में 40 फीसदी महिलाओं को कांग्रेस उम्मीदवार बनाये जाने के प्रस्ताव पर भी, स्मृति ईरानी की अलग ही सवाल है, 'इसका मतलब है कि वो कह रही हैं कि वो महिलाओं को 60 फीसदी टिकट नहीं देना चाहती हैं.'
राहुल गांधी को लेकर स्मृति ईरानी के बयान पर अब प्रियंका गांधी का भी जवाब आ चुका है. प्रियंका गांधी कह रही हैं, 'उन्हें महिलाओं का सम्मान करना चाहिये... उन्हें भी कहना चाहिये कि महिलाएं आगे आयें... वे अपने हक के लिए लड़ें और समाज में आगे बढ़ें... महिला होकर इस तरह का बयान तो गलत है. उनको महिला को प्रोत्साहित करना चाहिये... उनको कहना चाहिये कि लड़कियों को अपने हक के लिए लड़ना चाहिये.'
क्या स्मृति ईरानी के लिए महिलाओं के मुद्दे पर काउंटर करना मुश्किल हो रहा है, इसलिए ऐसी बातें कर रही हैं या फिर वो बीजेपी के लिए कांग्रेस के ट्रैप में फंस जाने वाली बात होगी?
ऐसी कई चीजें हैं जिन्हें समझना जरूरी है क्योंकि ये चीजें ही चुनावों में पॉलिटिकल लाइन भी तय करने वाली हैं और वे मुद्दे भी जिन पर विधानसभा चुनाव लड़ा जाना है - और ये भी है कि बीजेपी के लिए राहुल गांधी के बहाने ऐसे गंभीर मुद्दों को कमतर बताना काफी मुश्किल हो सकता है.
क्या ये एजेंडा सेट करने की लड़ाई है?
प्रियंका गांधी जिस रास्ते चल कर कांग्रेस को यूपी में खड़ा करने की कोशिश कर रही हैं, काफी दुरूह है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस पहले से ही अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है - और आलम ये है कि राजनीतिक हालात ऐसे हैं कि आम चुनाव की तरह ही विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस का किसी भी राजनीतिक दल के साथ गठबंधन नहीं हो पाया. पहले तो प्रियंका गांधी ने ही चुनावी गठबंधन की पहल की थी लेकिन कुछ हवाई मुलाकातों के बाद ये सब कोई औपचारिक शेप नहीं ले सका, लिहाजा कांग्रेस महासचिव को अकेले यूपी की सभी 403 सीटों पर कांग्रेस के लड़ने की घोषणा करनी पड़ी.
लखीमपुर खीरी हिंसा का मुद्दा लपक लेने के बाद से प्रियंका गांधी लगातार महिलाओं और छात्राओं के बीच बने रहने की कोशिश कर रही हैं. बाराबंकी में खेतों में काम करने वाली महिलाओं से प्रियंका गांधी चुनाव लड़ने को लेकर उनके मन में क्या है टटोलती रहीं, तो बाद के कार्यक्रमों में ऐसी महिलाओं से भी मिलीं जो चुनाव लड़ने में दिलचस्पी दिखा रही हैं.
महिलाओं से संवाद के क्रम में चित्रकूट पहुंची प्रियंका गांधी ने एक कविता सुनायी. कविता सुनाने का प्रियंका गांधी का मकसद तो महिलाओं की हौसलाअफजाई करना रहा, लेकिन ये बात उस कवि को ही नागवार गुजरी है जिसकी वो रचना है - 'सुनो द्रौपदी...'
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो अब गोविंद न आएंगे
तुम कब तक आस लगाओगी तुम बिके हुए अखबारों से,
कैसी रक्षा मांग रही हो दुशासन दरबारों से,
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो अब गोविंद न आएंगे.
कविता के रचयिता पुष्यमित्र उपाध्याय प्रियंका गांधी पर आग बबूला हो गये है और उनको ट्विटर पर टैग करते हुए लिखते हैं, 'ये कविता मैंने देश की स्त्रियों के लिए लिखी थी न कि आपकी घटिया राजनीति के लिए, न तो मैं आपकी विचारधारा का समर्थन करता हूं और न आपको ये अनुमति देता हूं कि आप मेरी साहित्यिक संपत्ति का राजनैतिक उपयोग करें. कविता भी चोरी कर लेने वालों से देश क्या उम्मीद रखेगा?'
देखा जाये तो कवि ने अपनी कविता के विरोध का आशय भी स्पष्ट कर दिया है कि वो कांग्रेस की विचारधारा का समर्थन नहीं करते. जरूरी नहीं कि स्मृति ईरानी के कविता पढ़ने पर भी कवि की तरफ से ऐसी ही प्रतिक्रिया होती? बहरहाल, कवि के पास कॉपीराइट भी है और अभिव्यक्ति की आजादी भी.
1. ताकि वो 'पप्पू' की बहन बनी रहें: एक बात तो काफी हद तक साफ हो चुकी है, बीजेपी के लिए राहुल गांधी के मुकाबले प्रियंका गांधी को घेरना ज्यादा मुश्किल हो रहा है. राहुल गांधी संघ, बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कहीं ज्यादा आक्रामक नजर आते हैं, जबकि प्रियंका गांधी सहज होकर सिर्फ सवाल पूछती हैं और ये तरीका किसी को भी ज्यादा असहज करने वाला होता है.
हो सकता है स्मृति ईरानी के बयान पर राहुल गांधी को रिएक्ट करना होता तो वो आपे से बाहर होकर कुछ और बोल दिये होते, लेकिन प्रियंका गांधी ने स्मृति ईरानी को अपने सेट किये एजेंडे में ही उलझाये रखा है. वो स्मृति ईरानी को सलाह देने लगी हैं कि महिलाओं के मुद्दे पर बीजेपी नेता को क्या करना चाहिये और जो वो कह रही हैं वो क्यों गलत है.
अब तक यही देखने को मिला है कि योगी आदित्यनाथ तो कभी कभार प्रियंका गांधी की पॉलिटिक्स पर रिएक्ट भी करते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी तो बिलकुल ही नहीं बोलते. योगी आदित्यनाथ की बात और है, लेकिन बीजेपी नेताओं का कहना है कि प्रियंका गांधी पर बोल कर मोदी भला क्यों उनको बड़ा नेता बनायें?
लगता तो ऐसा है कि 'पप्पू' बोल बोल कर राहुल गांधी को आसान शिकार बना चुकी बीजेपी की कोशिश यही है कि प्रियंका गांधी को भी उनके जैसी ही उनकी बहन के तौर पर प्रचारित किया जाये, लेकिन प्रियंका गांधी ने फील्ड में डेरा डाल कर बीजेपी के लिए ये सब आसान नहीं रहने दिया है.
2. ताकि एजेंडा बीजेपी ही सेट करे: अगर स्मृति ईरानी भी प्रियंका गांधी की बातों का रीता बहुगुणा जोशी की तरह जवाब देतीं तो मैसेज ये जाता कि कांग्रेस एजेंडा सेट कर रही है और बीजेपी को जवाब देते नहीं बन रहा है - और ऐसी स्थिति से बचने के लिए ही बायपास की मदद लेनी पड़ी रही है. राहुल गांधी का नाम लेकर प्रियंका गांधी को महत्वहीन बताने की स्मृति ईरानी की कोशिश भी ऐसी ही है.
लखीमपुर खीरी हिंसा को लेकर प्रियंका गांधी लोगों को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ रही हैं. लड़की हूं... लड़ सकती हूं जैसे स्लोगन के जरिये प्रियंका गांधी ने महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा उठाया है - और हाल ये है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को योगी आदित्यनाथ का बचाव करना पड़ रहा है.
और जब अमित शाह ऐसे दावे करते हैं कि '16 साल की गहनों से लदी लड़की 12 बजे रात को आराम से घूम सकती है', तो ट्विटर पर लोग टूट पड़ते हैं. कोई उन्नाव और हाथरस गैंग रेप पीड़ितो की 16-17 के ही होने का उदाहरण दे रहा होता है तो कोई पूछता है कि अपनी ही सरकार पर ऐसा व्यंग्य वो कैसे कर लेते हैं?
मतलब तो यही हुआ कि प्रियंका गांधी के सेट किये एजेंडे पर अमित शाह तक को मैदान में उतर कर योगी सरकार का बचाव करना पड़ रहा है - और स्मृति ईरानी अगर महिलाओं के मुद्दे पर सीधे सीधे उलझती हैं तो कांग्रेस के ट्रैप में फंसने का खतरा हो सकता है.
3. ताकि महिला आरक्षण का मुद्दा न उठे: महिला आरक्षण को लेकर अलग अलग वक्त पर 2019 के आम चुनाव से पहले सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख चुके हैं. कांग्रेस नेताओं की तरफ से ये भी बताया गया है कि राज्य सभा में तो कांग्रेस सरकार में महिला आरक्षण विधेयक पास भी हो गया लेकिन लोक सभा में लटक गया - अब बीजेपी को चैलेंज किया जा रहा है कि वो बहुमत में है और महिला आरक्षण बिल लोक सभा में पेश करे और कांग्रेस उसका सपोर्ट करेगी.
बीजेपी सत्ता में वापसी के बाद तीन तलाक बिल के जरिये मुस्लिम महिलाओं पर तो एहसान थोप देती है, लेकिन बाकी महिलाओं के मामले में चुप्पी साध लेती है. कांग्रेस ने बीजेपी की ये कमजोर नस पकड़ ली है - और अगले आम चुनाव को लेकर अपना इरादा भी जाहिर कर दिया है.
राहुल गांधी बीजेपी के लिए आसान शिकार बन जाते हैं, लेकिन प्रियंका गांधी मुश्किल लगने लगी हैं. महिलाओं को 40 फीसदी टिकट देने को लेकर राहुल गांधी कह चुके हैं कि ये तो अभी शुरुआत है - और प्रियंका गांधी अब उसे आगे भी बढ़ाने लगी हैं, '40 फीसदी टिकट महिलाओं को टिकट देने की बात तो एक शुरुआत है, मैं चाहती हूं 2024 चुनाव में महिलाओं की आधी आबादी पचास फीसदी सीट पर लड़े.'
प्रियंका गांधी के जरिये कांग्रेस अपना एजेंडा सेट करना चाहती है. महिलाओं की सुरक्षा, महिलाओं को राजनीति में हिस्सेदारी देने का मुद्दा ऐसा है कि बीजेपी क्या किसी के लिए भी खारिज करना असंभव है - लेकिन लगता है बीजेपी महिलाओं की भूमिका साइलेंट वोटर से ज्यादा फिलहाल नहीं देखना चाहती - हो सकता है महिलाओं के मुद्दे पर कांग्रेस के क्रेडिट ले लेने का डर भी हो.
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