कांग्रेस में कितने लोगों को राहुल गांधी से सचिन तेंदुलकर जैसी अपेक्षा है?
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता संजय झा (Sanjay Jha) ने कामयाबी का नुस्खा सुझाया है... और ये है सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar) के क्रिकेट एक्सपेरिमेंट को कांग्रेस में अप्लाई करने की सलाह - क्या किसी को मंजूर है?
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कांग्रेस को जल्दी ही नया अध्यक्ष मिलने वाला है. मुमकिन है नया कांग्रेस अध्यक्ष G-23 नेताओं की उम्मीदों पर खरा उतरने की भी कोशिश करे - मतलब, वास्तव में काम करता हुआ दिखे भी.
कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव को लेकर उन नेताओं का एक्टिव होना भी इशारा कर रहा है जिन पर ये जिम्मेदारी सौंपी गयी है - और हाल ही में नये यूपीए चेयरमैन की तलाश की चर्चाओं से भी ऐसा ही संकेत मिलता है. अब लगने लगा है सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष और यूपी चेयरपर्सन दोनों ही जिम्मेदारियों से मुक्त होने का फैसला कर चुकी हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में फिर से राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के ही कमान संभालने की चर्चा है - यूपीए चेयरमैन को लेकर शरद पवार के रेस में आगे होने की बातों को एनसीपी की तरफ से ही खारिज कर दिया गया है. हालांकि, शिवसेना नेता संजय राउत के बयान से लगता है कि शरद पवार को लेकर चली चर्चा कोरी अफवाह भी नहीं है.
ऐसे में जबकि राहुल गांधी मन ही मन कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के लिए तैयार हो चुके हैं, पार्टी के पूर्व प्रवक्ता संजय झा (Sanjay Jha) ने अपने नेता को एक पत्र लिखा है जो टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित हुआ है. पत्र के आखिर में संजय झा ने खुद को राहुल गांधी का शुभेच्छु और एक सच्चा कांग्रेसी होने का दावा भी किया है.
संजय झा को कांग्रेस की हालत को लेकर लिखे उनके आलोचनात्मक लेख के बाद प्रवक्ता पद से हटा दिया गया था और फिर बाद में पार्टी से भी बाहर कर दिया गया. हालांकि, संजय झा की सियासी सेहत पर कांग्रेस के एक्शन का कोई खास असर नहीं पड़ा. सबसे पहले संजय झा ने ही सोनिया गांधी को कांग्रेस नेताओं की तरफ से लिखी गयी चिट्ठी की जानकारी ट्विटर पर शेयर की थी. बाद में भी, कभी पूछे जाने पर तो कभी ट्वीट के जरिये संजय झा कांग्रेस नेतृत्व को सलाह देने की लगातार कोशिश करते रहे हैं.
संजय झा की राहुल गांधी को नयी सलाह है कि वो कांग्रेस में मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar) की तरह पेश आयें. जैसा सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट को लेकर फैसला लिया था, संजय झा चाहते हैं कि राहुल गांधी भी कांग्रेस में वैसा ही फैसला लें - देखा जाये तो संजय झा, राहुल गांधी को उनके मन की बात की ही याद दिला रहे हैं.
सचिन तेंदुलकर से क्या क्या सीखना होगा?
सचिन तेंदुलकर की मिसाल देकर संजय झा, राहुल गांधी को ये समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि वो दिली ख्वाहिश को पूरी करने के लिए दिमाग का इस्तेमाल करें. हाथ दिल पर रख कर भले ही फैसला करें, लेकिन दिमाग से एक बार पूछें जरूर. ऐसा करके संजय झा, ऐसा लगता है, राहुल गांधी को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि वो किसी तरह के दबाव में या लिहाज वश या फिर किसी इमोशनल अत्याचार के दबाव में कोई फैसला न लें - क्योंकि मन को मार कर लिया गया फैसला जिंदगी भर सालता रहता है और हालत जैसी नीयत वैसी बरकत वाली हो जाती है.
एक पुराने कांग्रेसी ने राहुल गांधी को सचिन तेंदुलकर जैसी उम्दा सोच दिखाने की सलाह दी है - मानेंगे या रद्दी की टोकरी में डाल देंगे?
राहुल गांधी को संजय झा ने कांग्रेस में सचिन तेंदुलकर जैसी मिसाल पेश करने की सलाह दी है - और सही बात तो ये है कि ये काम भी राहुल गांधी के ही वश की बात भी है. सच में, ऐसा लगता है, संजय झा सच्चे कांग्रेसी हैं. ऐसा भी नहीं है कि संजय झा कोई ऐसे वैसे नेता हैं कि वो चाहें तो सारे राजनीतिक दल उनके लिए नो एंट्री का बोर्ड लगा देंगे. जब कांग्रेस छोड़ने पर प्रियंका चतुर्वेदी को शिवसेना हाथों हाथ ले सकती है और 40 साल तक बीजेपी में रहने के बाद पार्टी छोड़ने पर एनसीपी गले लगा लेती है, तो संजय झा तो मार्केट की डिमांड के हिसाब से सर्वगुण संपन्न की कैटेगरी में आते हैं. कांग्रेस को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लाये जाने में संजय झा के रोल को राहुल गांधी भी खारिज नहीं करेंगे - क्योंकि वो ऐसा नहीं करते.
संजय झा ने, दरअसल, राहुल गांधी के प्रदर्शन को सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट खेलने से जोड़ कर समझने और फिर समझाने की कोशिश की है. सचिन तेंदुलकर ने तो 'पूत के पांव पालने में' ही दिखा दिये थे, लेकिन खेलते खेलते एक वक्त ऐसा भी आया जब टीम इंडिया की कमान उनको सौंप दी गयी. बाकी सब तो ठीक ही था, लेकिन कप्तानी के दबाव के चलते सचिन तेंदुलकर के खेल पर असर पड़ने लगा और साफ तौर पर नजर भी आने लगा. फिर काफी सोच समझ कर सचिन तेंदुलकर ने कप्तानी छोड़ दी और खेल पर फोकस किया - और खूब खेले. खेले कि लोक फुटबाल वाले पेले की तरह सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट के भगवान की तरह मानने लगे.
राहुल गांधी अगर संजय झा के भाव को समझें तो बड़ी बात समझ आएगी, लेकिन शब्दों पर गये तो संजय झा दुश्मन नंबर वन ही नजर आएंगे. संजय झा ने राहुल गांधी को याद दिलाया है कि कैसे सचिन तेंदुलकर, नये कप्तान सौरव गांगुली के नेतृत्व में खेलते और खिलते गये - और एक दिन वो भी आया जब वो अपने से 8 साल छोटे महेंद्र सिंह धोनी की अगुवाई में विश्व कप जीतने का सपना भी पूरा कर पाये.
आखिर संजय झा, राहुल गांधी को राजनीति में सफल होने के लिए क्रिकेट में कामयाबी का कारगर हुआ नुस्खा क्यों बता रहे हैं? सीधी सी बात है, क्रिकेट संजय झा के लिए 'फर्स्ट क्रश' है. राजनीति तो संजय झा के लिए भी राहुल गांधी की तरह थोड़ी बेहतर तफरीह की जगह है.
कांग्रेस में कोई बनेगा क्या - सचिन तेंदुलकर का 'दादा'?
राहुल गांधी के नाम अंग्रेजी अखबार में लिखे अपने पत्र में संजय झा दीवारों पर हैंग किये जाने वाले पोस्टर 'गीता सार' का भी हवाला देते हैं - 'परिवर्तन संसार का नियम है!'
संजय झा के भाव को समझना जरूरी है क्योंकि, लिखा है - 'बदलाव' 'चॉकलेट केक' की तरह है, ये अच्छी चीज है.
संभव है संजय झा की सलाहियत भी राहुल गांधी के लिए कांग्रेस के उन नेताओं की राय जैसी ही साबित हो जो रद्दी की टोकरी में डाल दिये जाते हैं. ऐसे कई मौके आये हैं जब कांग्रेस के कई सीनियर नेता सिर्फ CWC ही नहीं, खुलेआम भी सुझाव दे डालते हैं कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बात बात पर टारगेट नहीं करना चाहिये. हमले के लिए खास मौके का इंतजार करना चाहिये. नीतियों की ढंग से आलोचना करनी चाहिये, लेकिन निजी हमलों से पूरी तरह बचना चाहिये.
मालूम नहीं क्यों राहुल गांधी ऐसे सुझावों पर बिफर उठते हैं. कहने लगते हैं - मैं किसी से नहीं डरता. मुझे किसी का डर नहीं है.
राहुल गांधी को ऐसा क्यों लगता है कि शशि थरूर, जयराम रमेश और अभिषेक मनु सिंखवी जैसे नेता किसी तरह के भय के चलते ऐसे सुझाव देते हैं? शायद इसलिए क्योंकि लगता है राहुल गांधी अपने साथी नेताओं की बातों के भाव तक पहुंचने की कोशिश नहीं करते. बातों के मर्म को नहीं समझ पाते. शब्दों के शाब्दिक अर्थ समझ कर आपे से बाहर हो उठते हैं - और फिर जैसे जिम जाकर कोई वर्कआउट करता है, राहुल गांधी सार्वजनिक रूप से प्रकट होते ही प्रधानमंत्री मोदी की कमियां गिनाने लगते हैं. राहुल गांधी के ऐसे सार्वजनिक रूप से प्रकट होने का स्थाई माध्यम तो ट्विटर है, लेकिन कभी कभी ये मीडिया का कैमरा भी होता है.
संजय झा ने अपने पत्र में कई वाकयों का भी जिक्र किया है. मसलन, लिखते हैं - 'पिछले साल के आखिरी महीनों में मैं अचानक एक महिला से मिला जो देश में चल रही नकारात्मक राजनीति से तंग थी... मैं उसकी निराशा को देखते हुए पूरा ठीकरा बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर फोड़ दिया - लेकिन उस महिला ने हताशा में कहा कि बीजेपी तो वही कर रही है जो वो करना चाहती है, मिस्टर झा क्या आप कर रहे हैं? आइडिया ऑफ इंडिया को नुकसान पहुंचाने के लिए कांग्रेस भी बराबर की जिम्मेदार है.'
राहुल गांधी को संजय झा ने राजनीति में उनके ही 'पकड़' मंत्रा की याद दिलायी है. दिल्ली में अखिल भारतीय प्रोफेशनल्स कांग्रेस के कार्यक्रम की याद दिलाते हुये संजय झा बताते हैं कि कैसे राहुल गांधी ने ही 'पकड़' फैक्टर पर विस्तार से बात की थी.
बेहद निराश हो चुके संजय झा कहते हैं, 'कांग्रेस में दुर्भाग्य से पकड़ का मतलब पैसा और मसल पावर समझा गया... नतीजा ये हुआ कि कई अच्छे कांग्रेसी उम्मीदवार को टिकट नहीं मिले - और कई राज्यों में विधायक आसानी से बीजेपी के ऑपरेशन लोटस के साथ हो लिये.'
और फिर पूछते भी हैं, 'नेहरू और गांधी की पार्टी में अब डील मेकर्स का जलवा है... विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता? उसका क्या हुआ?'
एकबारगी तो ऐसा लगता है, राहुल गांधी को भी संजय झा अपना कोई 'मनमोहन सिंह' तलाश लेने की सलाह दे रहे हैं - और फिर सियासत की बिसात पर राहुल गांधी को वो चमकते सितारे के तौर पर देखने के ख्वाब देख रहे हैं.
सबसे बड़ा सवाल तो ये है - कांग्रेस में कितने लोगों को राहुल गांधी से सचिन तेंदुलकर जैसी अपेक्षा है?
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