मोदी के लिए सरदार पटेल उतने ही जरूरी हैं जितना बीजेपी के अस्तित्व के लिए राम मंदिर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरदार पटेल की तरह खुद को मजबूत फैसले लेने वाले नेता के तौर पर पेश करते रहे हैं. ऐसे देखें तो सरदार पटेल मोदी के लिए वैसे ही जरूरी हैं जैसे बीजेपी को अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए राम मंदिर निर्माण.
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उद्धव ठाकरे से लेकर प्रवीण तोगड़िया तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछ रहे हैं - 'पूरी दुनिया घूम आये पर अब तक अयोध्या क्यों नहीं पहुंचे?'
बीजेपी के तमाम नेता अयोध्या मामले पर जल्दी सुनवाई न करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को जी जान से कोसे जा रहे हैं. केंद्र की मोदी सरकार को संघ की सलाह के बाद राम मंदिर निर्माण के लिए बीजेपी और उसके सहयोगी संगठनों में कानून बनाने या अध्यादेश लाने की मांग जोर पकड़ती जा रही है.
राम मंदिर को लेकर मचे इस शोर के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभी तक कोई आग्रह नहीं दिखाया है, बल्कि उससे कहीं ज्यादा दिलचस्पी उनकी सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति में देखने को मिली है - और अब तो दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति स्टैच्यू ऑफ यूनिटी खड़ी भी हो गयी है. संभव है राम मंदिर को लेकर मोदी के मन में कोई और भी अवधारणा हो जो सही वक्त पर सामने आये. अभी तो सरदार पटेल ही प्राथमिकता की पहली पायदान पर नजर आ रहे हैं.
आखिर मोदी के लिए सरदार पटेल कितना मायने रखते हैं? क्या उतना ही जितना बीजेपी को अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण जरूरी है?
न्यू इंडिया और सरदार पटेल
आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के न्यू इंडिया कंसेप्ट में सरदार वल्लभभाई पटेल कैसे और किस रूप में फिट हो सकते हैं? वैसे इस सवाल का जवाब खुद प्रधानमंत्री मोदी ने ही दे दिया है.
गुजरात के केवडिया में सरदार पटेल की मूर्ति का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा - 'ये मूर्ति न्यू इंडिया की अभिव्यक्ति है.'
सरदार पटेल जैसी छवि गढ़ने की कोशिश
प्रधानमंत्री मोदी ने मन की बात सहित कई मौकों पर न्यू इंडिया की चर्चा की है. न्यू इंडिया को लेकर मोदी लोगों के सामने नये भारत का सपना पेश करते हैं. सवाल ये है कि नये भारत का सपना तो ठीक है, लेकिन सपने को हकीकत में बदलने के क्या उपाय हैं? गुड गवर्नेंस.
प्रधानमंत्री मोदी का जोर हमेशा गुड गवर्नेंस पर रहा है. गौर करने वाली बात ये है कि सरदार पटेल को भी गुड गवर्नेंस के लिए ही जाना जाता है. सरदार पटेल की मूर्ति की कल्पना, कल्पना को हकीकत का रूप देकर प्रधानमंत्री मोदी अब यही मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं. गुड गवर्नेंस के जरिये ही वो न्यू इंडिया के सपने को हकीकत में बदल सकते हैं - और इसकी प्रेरणा उन्हें सरदार पटेल से ही मिलती है.
देश को सरदार पटेल के योगदानों की चर्चा करते हुए मोदी ने कहा - 'देश में राजनीतिक तौर पर कितने भी मतभेद हों, लेकिन गुड गवर्नेंस कितना ज़रूरी है, ये सरदार पटेल ने देश को बताया.'
साथ ही मोदी ने लोगों का आभार भी जताया, 'इस प्रतिमा को बनाने के लिए हमने हर किसान के घर से लोहा और मिट्टी ली. इस योगदान को देश याद रखेगा.'
प्रधानमंत्री मोदी ने ये भी याद दिलाया कि अगर सरदार पटेल का संकल्प नहीं होता, तो गीर का शेर देखने, हैदराबाद का चार मीनार और श्रीनगर की वादियां देखने के लिए भी वीजा लेने की जरूरत पड़ती. देश में जम्मू से लेकर कन्याकुमारी तक रेल की सुविधा नहीं होती, अगर सरदार पटेल नहीं होते. साथ ही साथ मोदी ये भी समझाते रहे कि वो खुद भी सरदार पटेल की ही तरह सोचते हैं. मोदी बोले, 'कई बार तो मैं हैरान रह जाता हूं, जब देश में ही कुछ लोग हमारी इस मुहिम को राजनीति से जोड़कर देखते हैं... सरदार पटेल जैसे महापुरुषों, देश के सपूतों की प्रशंसा करने के लिए भी हमारी आलोचना होने लगती है... ऐसा अनुभव कराया जाता है मानो हमने बहुत बड़ा अपराध कर दिया है... ये सब अपराध है क्या?'
मोदी ने विरोधियों में से किसी का नाम तो नहीं लिया लेकिन साफ था मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी ही निशाने पर थे. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तो पटेल की इस मूर्ति को मेड इन चाइना भी बता चुके हैं.
मोदी ये भी याद दिलाया कि अगर सरदार पटेल न होते तो सोमनाथ मंदिर में शिवभक्तों को पूजा करने के लिए भी वीजा की जरूरत पड़ती. ध्यान रहे कांग्रेस इन दिनों राहुल गांधी को शिवभक्त के रूप में प्रोजेक्ट कर रही है.
मोदी को सरदार पटेल की कितनी जरूरत और क्यों?
2014 में चुनाव प्रचार के एक दौर में मोदी अचानक आगे बढ़े और बीजेपी को सत्ता सौंपने की अपील की जगह खुद के नाम पर वोट मांगने लगे - भाइयों और बहनों मुझे वोट दो. ऐसा कहते वक्त वो खुद की तरफ इशारा करते और तब उनका चेहरा आत्मविश्वास से लबालब नजर आता. ऐसा करके मोदी लोगों तक अपना संदेश पहुंचा चुके थे. लोगों ने मोदी को बीजेपी से आगे बढ़ कर देखा - और भरोसे पर मुहर लगा दी. यहीं से बीजेपी के मोदी की जगह, मोदी की बीजेपी की धारणा बनने लगी. अभी तो मोदी-शाह की बीजेपी ही समझी जाने लगी है. वैसे भी मोदी के चेहरे को आगे कर अमित शाह ने बीजेपी के प्रभाव का दायरा लगातार बढ़ाते जा रहे हैं.
मोदी के विरोधी उनके तानाशाही प्रवृत्ति के आलोचक हैं. मोदी-शाह की जोड़ी इसे नया, बड़ा और मजबूत कलेवर देती है. मोदी के अहंकार को भी निशाना बनाया जाता है. खुद मोदी भी कांग्रेस अधयक्ष राहुल गांधी को सबसे बड़ा अहंकारी साबित करने पर तुले रहते हैं. चाहे संसद हो या फिर सड़क राहुल गांधी की गतिविधियों को मोदी अहंकार के नाम पर ही कठघरे में खड़ा करते हैं.
तो क्या ईगो मोदी के लिए वाकई इतनी महत्वपूर्ण है? काफी हद तक. दरअसल, यही ईगो दिखाने के लिए मोदी ने सरदार पटेल की सबसे ऊंची मूर्ति बनवाई है और इसके पीछे उनकी दूरगामी सोच है. किसी लकीर को छोटा करने के लिए उसके मुकाबले बड़ी लकीर खींचना बेहतरीन तरीका माना जाता है. मोदी ने काफी सोच समझ कर ऐसा ही कुछ किया है. सरदार पटेली की ये मूर्ति और मोदी की छवि सापेक्ष है, ऐसी ही अवधारणा की परिकल्पना है जिसे गुजरते वक्त के साथ स्थापित करने की प्रबल आकांक्षा है.
सबसे बड़ा नेता, सबसे बड़ी मूर्ति!
मोदी शुरू से ही खुद की मजबूत छवि गढ़ने की कोशिश करते रहे हैं. जाहिर है शुरुआती दौर में मोदी को एक नामचीन चेहरे की जरूरत महसूस हुई होगी. सरदार पटेल की शख्सित में मोदी ने अपने लिए मकसद हासिल करने की पूरी संभावना देखी होगी.
मोदी का ये कहना कि सरदार पटेल अगर पहले प्रधानमंत्री बने होते तो देश की तस्वीर अलग होती. अब मोदी खुद को सरदार पटेल की विरासत से जोड़ कर पेश कर रहे हैं. सरदार पटेल का अकेला वारिस. यानी जिसे मोदी कांग्रेस के पापों का फल बताते हैं उनसे निजात दिलाने की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर आ पड़ी है. मोदी चाहते हैं कि लोग सरदार पटेल के अधूरे कामों को पूरा करने की उम्मीद सिर्फ और सिर्फ मोदी से करें. लोग मोदी को ही सरदार पटेल का उत्तराधिकारी मानें. लोग से मतलब मोदी का आने वाली पीढ़ियों से ही होगा.
सरदार पटेल का नाम मोदी ने 2003 से लेना शुरू किया था - और 2013 आते आते एकता की मूर्ति की अपनी परिकल्पना सबसे साझा की. सबसे पहले मोदी को पटेलों से कनेक्ट होना था ताकि केशुभाई पटेल का प्रभाव खत्म करना आसान हो. मोदी इसमें कामयाब भी रहे. अब गुजरात में पाटीदार आंदोलन बीजेपी की बड़ी चुनौती है. चुनौती कितनी बड़ी है इसे विधानसभा चुनाव के नतीजों से आसानी से समझा जा सकता है. यानी एक तरीके से सरदार पटेल की विशालकाय मूर्ति बनाकर मोदी ने पाटीदारों के गुस्से को कम करने की कोशिश की है. 2019 में 2017 जैसा नजारा कम से कम गुजरात में न देखने को मिले इसके लिए भी मोदी को सरदार पटेल की फिलहाल बहुत जरूरत है.
पालमपुर प्रस्ताव के बूते कभी दो सांसदों वाली पार्टी कही जाने वाली बीजेपी सत्ता के शिखर पर दोबारा पहुंची है. अभी तो ये हाल है कि देश के सबसे ऊंचे संवैधानिक पदों पर बीजेपी और संघ की विचारधारा वाले लोग ही बैठे हुए हैं. शिखर पर पहुंचने से भी मुश्किल होता है वहां बने रहना. संघ भी बीजेपी की मोदी सरकार से राम मंदिर के लिए कानून बनाने की बात इसीलिए कर रहा है ताकि सत्ता पर आगे भी काबिज रहा जा सके.
जिस तरह हिंदू वोटों के लिए बीजेपी को राम मंदिर की जरूरत महसूस हो रही है, उसी तरह अपनी छवि बनाये रखने के लिए मोदी को सरदार पटेल की जरूरत है.
सरदार पटेल की ऐसी कई खूबियां हैं जिनकी बदौलत मोदी लोगों के बीच अपनी छवि बनाये रखना चाहते हैं - एक, सरदार पटेल का लौह पुरुष के तौर पर जाना जाना. दो, गुड गवर्नेंस के लिए भी सरदार पटेल की मिसाल दिया जाना. मोदी से पहले लालकृष्ण आडवाणी ही लौह पुरुष के रूप में जाने जाते थे, लेकिन मार्गदर्शक मंडल पहुंचा कर मोदी ने हमेशा के लिए अपनी राह साफ कर ली.
सरदार पटेल के साथ साथ मोदी ने भीमराव अंबेडकर और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम का भी खासतौर पर जिक्र किया. ये एक कम्पलीट पॉलिटिकल पैकेज है. अंबेडकर के नाम पर समाज के हाशिये पर के लोगों को मेनस्ट्रीम में जगह सुरक्षित करना. एससी-एसटी एक्ट कानून पर मोदी सरकार का कदम इसी की ओर इंगित करता है. सरदार पटेल की तरह कड़े फैसले लेने वाला राजनेता जो गुड गवर्नेंस देने में सक्षम हो - और नेताजी सुभाषचंद्र बोस की राष्ट्रीयता - सबसे ऊपर देश की सुरक्षा. ऐसे देखने पर तो 2019 का बंदोबस्त पूरा हो चुका लगता है - लेकिन वास्तव में ऐसा है भी क्या?
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