राज ठाकरे का हाल तो शिवपाल यादव जैसा लगता है!
राज ठाकरे (Raj Thackeray) के मुंह से योगी आदित्यनाथ की तारीफ सुन कर संजय राउत (Sanjay Raut) का कहना है कि बीजेपी-शिवसेना के झगड़े में किसी तीसरे के लिए स्कोप नहीं है - और शरद पवार (Sharad Pawar) तो MNS नेता को फुल टाइम पॉलिटिशियन ही नहीं मानते.
-
Total Shares
राज ठाकरे (Raj Thackeray) की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की राजनीति दो चीजों पर केंद्रित होती है - एक मराठी मानुष और दूसरा कट्टर हिंदुत्व. मौका देख कर राज ठाकरे का फोकस बदलता भी रहता है. राज ठाकरे की ताजा दिलचस्पी हिंदुत्व की राजनीति में लग रही है, तभी तो मुस्लिमों को नये सिरे से टारगेट किया है.
एमएनएस नेता की ताजा मांग है कि महाराष्ट्र सरकार आदेश जारी कर मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर हटा दे. ऐसा न किये जाने पर राज ठाकरे ने धमकी दी है कि वो मस्जिदों के सामने लाउडस्पीकर लगाकर हनुमान चालीसा बजाएंगे.
मुंबई के शिवाजी पार्क में हुई राज ठाकरे की नयी घोषणा का ट्रेलर भी मनसे दफ्तर में देखने को मिल चुका है. मनसे मुख्यालय परिसर में काफी ऊंचाई पर एक पेड़ पर लाउडस्पीकर लगाया गया और फिर तेज आवाज में हनुमान चालीसा बजाया गया.
अपनी पब्लिक मीटिंग में राज ठाकरे ने कहा, 'मैं नमाज के खिलाफ नहीं हूं... आप अपने घर पर नमाज पढ़ सकते हैं, लेकिन सरकार को मस्जिद के लाउडस्पीकर हटाने पर फैसला लेना चाहिये... मैं अभी चेतावनी दे रहा हूं... लाउडस्पीकर हटाओ वरना मस्जिद के सामने लाउडस्पीकर लगा देंगे - और हनुमान चालीसा बजाएंगे.'
महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार को निशाना बनाने के लिए राज ठाकरे ने यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार की तारीफ तो की ही, लगे हाथ एनसीपी नेता शरद पवार (Sharad Pawar) को भी निशाना बनाया. फिर तो शिवसेना और एनसीपी से तगड़े रिएक्शन आने ही थे.
राज ठाकरे के योगी सरकार की तारीफ करने पर शिवसेना को लगता है कि वो बीजेपी के पक्ष में खड़ा होने की कोशिश रहे हैं, लिहाजा संजय राउत (Sanjay Raut) ने एमएनएस नेता को बीजेपी और शिवसेना के झगड़े से दूर रहने की सलाह दी है - शरद पवार तो राज ठाकरे की बातों को ये कहते हुए खारिज कर रहे हैं कि वो तो फुल टाइम पॉलिटिशियन हैं ही नहीं.
शरद पवार को राहुल जैसे क्यों लगते हैं राज ठाकरे
राज ठाकरे ने शरद पवार पर जातिवाद की राजनीति करने का आरोप लगाया है. एमएनएस नेता का कहना है कि 1999 में एनसीपी की स्थापना के बाद से महाराष्ट्र में जातिवाद को बढ़ावा मिला है और इसके लिए राज ठाकरे ने शरद पवार को जिम्मेदार ठहराया है. राज ठाकरे का आरोप है कि शरद पवार ने जाति के आधार पर लोगों को बांटने का काम किया है.
और फिर जाति की राजनीति को राज ठाकरे हिंदुत्व से जोड़ देते हैं. कहते हैं, 'अगर हम जाति की राजनीति से बाहर नहीं आते हैं तो फिर हिंदू कैसे बनेंगे? हिंदुत्व का कौन सा झंडा हम पकड़ेंगे?'
अब सवाल ये उठता है कि राज ठाकरे को ये राजनीतिक पाठ कहां से हासिल हो रहा है?
सवाल इसलिए भी है क्योंकि ये तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पॉलिटिकल लाइन है जिसमें सभी जातियों को एकजुट करने की कोशिश होती है. एक कुआं, एक श्मशान और एक मंदिर का फॉर्मूला सुझाया जाता है, लेकिन कोई समझने को तैयार ही नहीं होता.
महाराष्ट्र में राज ठाकरे क्या बीजेपी के लिए मददगार बन सकते हैं?
यूपी चुनाव में संघ की तरफ से जमीनी स्तर पर जोरदार मुहिम चलायी गयी थी और लोगों को सारी बातें भूल कर राष्ट्रवाद के नाम पर वोट देने के लिए समझाने की कोशिश की गयी थी. एक तरफ संघ और दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ भी उसी एजेंडे को आगे बढ़ाते रहे - नतीजा भी सामने आ गया. मायावती की बीएसपी महज एक सीट जीत सकी और अखिलेश यादव तमाम कोशिशों के बावजूद बहुमत से काफी दूर रह गये. मोदी-योगी की बदौलत यूपी से जातीय राजनीति पर हिंदुत्व के हावी होने से संघ को काफी राहत मिली होगी - और आगे की राजनीतिक मुहिम भी उसी हिसाब से तैयार की जाएगी, ऐसा लगता है.
एनसीपी पर राज ठाकरे के हमले का काउंटर शरद पवार ने उनकी राजनीतिक सक्रियता पर सवाल उठाकर किया है. शरद पवार ने राहुल गांधी और राज ठाकरे की राजनीति को एक ही तराजू पर तौल दिया है. याद रहे एक इंटरव्यू में शरद पवार का कहना था कि राहुल गांधी के अंदर राजनीतिक स्थिरता की कमी है.
कोल्हापुर में मीडिया से बात करते हुए, शरद पवार ने कहा, 'राज ठाकरे तीन-चार महीने तक अंडरग्राउंड रहते हैं... और लेक्चर देने के लिए अचानक प्रकट हो जाते हैं... ये उनकी खासियत है... मुझे नहीं पता कि वो महीनों क्या करते रहते हैं.'
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, जिसे लोग मनसे के रूप में भी जानते हैं, के चुनावी प्रदर्शन को लेकर शरद पवार कहते हैं, 'राज ठाकरे की पार्टी लोगों से घुलती-मिलती नहीं है... उनका वोट शेयर इस बात का सबूत है.' दरअसल, महाराष्ट्र विधान सभा में राज ठाकरे की पार्टी के पास एक ही विधायक है.
जातीय राजनीति के राज ठाकरे के आरोपों के जवाब में शरद पवार ने कहा, '... एनसीपी और जाति की राजनीति पर बात की है, लेकिन सच्चाई ये है कि छगन भुजबल और मधुकर राव पिचड़ जैसे नेता एनसीपी के सत्ता में रहने के दौरान विधानसभा में नेता के तौर पर काम किये थे... सभी जानते हैं कि वे किन जातियों से आते हैं.'
लेकिन हाल तो शिवपाल यादव जैसा लगता है
संघ की लाइन पर जातीय राजनीति के बहाने हिंदुत्व की बात करना, मुस्लिम समुदाय को टारगेट करना और यूपी में बीजेपी सरकार की मिसाल देना - आखिर राज ठाकरे किस रणनीति के तहत ये सब कर रहे हैं?
2011 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी हुआ करते थे और तभी राज ठाकरे नौ दिन के दौरे पर गुजरात गये थे. लौट कर राज ठाकरे कहने लगे कि महाराष्ट्र के नेताओं को मोदी के मॉडल से सीख लेनी चाहिये. गुजरात दौरे को लेकर तब राज ठाकरे ने बताया था कि वो जानना चाहते थे कि मोदी कैसे भ्रष्टाचार मुक्त और सक्षम सरकार चलाते हैं. तब महाराष्ट्र में कांग्रेस सत्ता में थी और पृथ्वीराज चव्हाण मुख्यमंत्री थे.
ठीक वैसे ही राज ठाकरे अब उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं - हालांकि, इस बार बीजेपी सरकार की तारीफ राज ठाकरे के अलग इरादे की तरफ इशारा करता है.
राज ठाकरे के मुताबकि, उत्तर प्रदेश योगी आदित्यनाथ के शासन में तरक्की कर रहा है और महाराष्ट्र में भी वो वैसा ही विकास चाहते हैं - लेकिन ये तो तभी मुमकिन हो पाएगा जब महाराष्ट्र में भी बीजेपी की ही सरकार बने.
अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए राज ठाकरे कहते हैं, 'मैं ये देखकर खुश हूं कि उत्तर प्रदेश प्रगति कर रहा है... महाराष्ट्र में भी ऐसा ही विकास चाहते हैं... मैं अयोध्या जाऊंगा, लेकिन आज ये नहीं बताऊंगा कि मैं हिंदुत्व के बारे में भी बात करूंगा.'
लाउडस्पीकर हटाने की राज ठाकरे की मांग पर शिवसेना प्रवक्ता ने पलट कर सवाल पूछ लिया है, 'कौन से बीजेपी शासित राज्य में अजान बंद हो गई... कहां मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटा दिये गये हैं... ये महाराष्ट्र है, जहां देश के कानून का पालन किया जाता है.'
शरद पवार ने भी इस मुद्दे पर रिएक्ट किया है और राज ठाकरे को साफ कर दिया है के जैसा वो चाहते हैं महाराष्ट्र में कभी नहीं होगा. शरद पवार कहते हैं, 'योगी आदित्यनाथ की सरकार के दौरान बहुत कुछ हुआ... अगर ठाकरे उनकी सरकार की तारीफ कर रहे हैं तो मैं और कुछ नहीं कहना चाहता... महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के शासन में ऐसा कभी नहीं होगा.'
संजय राउत को लगता है कि राज ठाकरे ये सब बीजेपी की पैरवी में कह रहे हैं. ऐसे में जबकि महाराष्ट्र की राजनीतिक जंग में बीजेपी और शिवसेना खुल कर आमने सामने खेल रहे हैं, संजय राउत का रिएक्शन भी महत्वपूर्ण लगता है.
राज ठाकरे को संजय राउत की सलाह है, '...अक्ल इतनी देर बाद खुली है... भाजपा और शिवसेना में क्या हुआ है वो हम दोनों देख लेंगे - हमें तीसरे की जरूरत नही है.'
देखा जाये तो राज ठाकरे का हाल भी शिवपाल यादव जैसा ही हो रखा है और शायद इसीलिए मिसाल भी उनको यूपी से ही सूझ रहा है. जैसे यूपी में शिवपाल यादव को समाजवादी पार्टी छोड़नी पड़ी, राज ठाकरे के साथ भी वही हाल हुआ. जैसे शिवपाल यादव ने अलग होकर पार्टी बनायी और खुद को खड़ा नहीं कर पाये, राज ठाकरे के साथ भी वैसा ही हुआ है. शिवपाल यादव को तो अभी पांच साल भी नहीं हुए, राज ठाकरे की आंखों के सामने से तो कई पांच साल गुजर चुके हैं और मनसे की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है.
अब जैसे शिवपाल यादव बीजेपी में जाने के लिए हाथ पैर मार रहे हैं, राज ठाकरे को भी तो कोई मजबूत सपोर्ट चाहिये ही होगा. जहां तक समर्थकों का सवाल है राज ठाकरे का सपोर्ट बेस शिवपाल यादव के मुकाबले मजबूत लगता है. शिवपाल यादव के जो समर्थक रहे वे या तो अखिलेश यादव के साथ ही रह गये या फिर कोई उम्मीद नजर न आने पर धीरे धीरे उसी खेमे में लौट गये.
बीजेपी के लिए शिवसेना नहीं बन सकते राज ठाकरे
महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना के विधायकों की तुलना छोड़ दें तो मराठी अस्मिता के नाम पर उद्धव ठाकरे भारी पड़ते हैं. इसलिए भी क्योंकि बीजेपी के लिए अटैक करना मुश्किल होता है. जैसे यूपी और बिहार में बीजेपी नेतृत्व अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव को लेकर कुछ भी बोल देता है, महाराष्ट्र में जोखिम उठाने से पहले सौ बार सोचना पड़ता होगा.
इसमें तो कोई दो राय नहीं कि बीजेपी को महाराष्ट्र में एक गठबंधन पार्टनर की सख्त जरूरत है, लेकिन राज ठाकरे की पार्टी शिवसेना का विकल्प बन पाएगी, ये कहना भी मुश्किल है. अभी तो ये असंभव ही लगता है, बाद की बात और है.
2006 में मनसे के गठन के बाद से राज ठाकरे का झुकाव और दुराव भी बदलता रहा है. 2019 के आम चुनाव से पहले राज ठाकरे महाराष्ट्र में घूम घूम कर मोदी विरोधी मुहिम चला रहे थे. राज ठाकरे के मंच से स्क्रीन पर मोदी के पुराने भाषण दिखाये जाते और लोगों को ये समझाने की कोशिश होती कि मोदी कितना झूठ बोलते हैं.
राज ठाकरे के रुख को चुनावों में उतरे कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के पक्ष में माना गया - और तब मुख्यमंत्री रहे देवेंद्र फडणवीस ने तो सीधे सीधे बोल दिया था कि राज ठाकरे बारामती की स्क्रिप्ट पढ़ रहे हैं. बारामती एनसीपी नेता शरद पवार का इलाका है.
मनसे बनाते वक्त राज ठाकरे की नजर में स्वाभाविक रूप से शिवसेना ही दुश्मन नंबर 1 रही, लेकिन गठबंधन के बावजूद वो बीजेपी के प्रति उनका नजरिया अलग रहा. चुनावों में भी देखने को मिला था कि वो शिवसेना के खिलाफ तो मनसे के उम्मीदवार उतारे लेकिन बीजेपी के साथ वैसा नहीं किया. हालांकि, बाद नोटबंदी और बुलेट ट्रेन जैसे मुद्दों को लेकर मोदी से उनकी नाराजगी बढ़ती चली गयी - अब लगता है नये सिरे से वो बीजेपी के साथ ही अपना भविष्य देख रहे हैं.
इन्हें भी पढ़ें :
महाराष्ट्र बीजेपी और शिवसेना के आमने- सामने होने से गठबंधन सरकार का क्या होगा?
नवाब मलिक की गिरफ्तारी का उद्धव ठाकरे की सरकार पर कितना असर हो सकता है
आपकी राय