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Updated: 13 जून, 2021 11:17 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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शरद पवार (Sharad Pawar) और प्रशांत किशोर (Prashant kishor) की लंबी मुलाकात ने बीजेपी नेतृत्व के कान तो खड़े कर ही दिये होंगे. हालांकि, बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने तमाम संभावनाओं और कयासों को फौरन ही खारिज करने की कोशिश की है. देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि ऐसी मुलाकातों से बीजेपी को कोई फर्क नहीं पड़ता और 2024 में भी केंद्र की सत्ता में बीजेपी ही आएगी - प्रधानमंत्री तो नरेंद्र मोदी ही बनेंगे.

असल में विपक्षी खेमे को लेकर कई सारे सवाल हैं - अगर विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश है तो 2019 से कितना अलग होगा?

विपक्षी एकता में सबसे बड़ा पेंच कांग्रेस नेतृत्व को सबको साथ रखने के लिए राजी करना है. कांग्रेस यूपीए का नेतृत्व करती है. सोनिया गांधी शुरू से अब तक यूपीए की चेयरपर्सन बनी हुई हैं. शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत यूपीए को एनजीओ बता डालते है - और एनसीपी प्रमुख शरद पवार को नेतृत्व सौंपने की मांग कर रहे हैं. मतलब, साफ है अगर ऐसा नहीं होता तो विपक्षी दलों का एक और फोरम बनेगा, जिसमें गैर बीजेपी और गैर कांग्रेसी दल शामिल किये जाएंगे. अभी अकाली दल बादल, जगनमोहन रेड्डी, नवीन पटनायक, ममता बनर्जी जैसे नेता यूपीए के बाहर हैं.

ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जैसे नेता केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी से स्पष्ट दूरी बनाये हुए हैं और वो कांग्रेस के भी नजदीक नहीं होते. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी भले एनडीए में न हों, लेकिन हाल ही में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के ट्वीट जिस तरह से जगनमोहन ने खतरे में डालने वाला बताया था, समझना मुश्किल नहीं है कि वो कहां है - और संजय राउत भले ही उनका नाम एनडीए में न होने के चलते यूपीए से बाहर गिनायें, लेकिन उनका स्टैंड कोई अस्पष्ट है, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता.

अब सवाल ये है कि क्या कांग्रेस शरद पवार को यूपीए का नेतृत्व सौंपने को तैयार होगी - और सवाल ये भी है कि क्या कांग्रेस सबको साथ लेने को भी राजी हो पाएगी? जैसे अब तक वो अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ पेश आती रही है.

अगर ऐसा नहीं हो पाता तो कैसे समझा जाये कि विपक्ष एकजुट हो सकता है. फिर तो सिर्फ तीसरे मोर्चे की ही संभावना बनती है जिसमें गैर बीजेपी और गैर कांग्रेसी दल शामिल हों.

सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या कांग्रेस नेतृत्व ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के लिए कोलकाता से दिल्ली तक ग्रीन कॉरिडोर बनने देगा?

विपक्ष एकजुट होगा या तीसरा मोर्चा बनेगा

तीसरा मोर्चा अब तक कभी भी ठीक से खड़ा नहीं हो पाया है - और ऐसा न हो पाने की भी खास वजह रही है. देखा जाये तो हर बार आम चुनाव से पहले शुरू और खत्म हो जाने वाले प्रयासों के पीछे एक ही फैक्टर नजर आता है.

अब अगर सवाल ये है कि क्या आगे भी तीसरा मोर्चा खड़ा नहीं किया जा सकता?

जवाब हां या ना में नहीं हो सकता क्योंकि ये कई चीजों पर निर्भर करता है. अब तक ये इसलिए संभव नहीं हो पाता है क्योंकि जिस किसी ने भी इसकी पहल की, उसकी एक ही महत्वाकांक्षा रही - प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने की. आखिरी बार ऐसी खुलेआम कोशिश मुलायम सिंह यादव की तरफ से हुई थी.

लेकिन अगर ऐसे लोग तीसरे मोर्चे की तैयारी करें जिनका मकसद खुद प्रधानमंत्री बनना न हो तो संभावना बढ़ जाती है. 2019 के आम चुनाव के दौरान ऐसे दो नाम सामने आये थे - एक शरद पवार, और दूसरा, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा.

अगर तीसरे मोर्चे की कोशिश शरद पवार और प्रशांत किशोर मिल कर करते हैं तो क्या स्थिति हो सकती है?

क्या प्रशांत किशोर की प्रधानमंत्री बनने की इच्छा नहीं होगी?

बेशक हो सकती है. प्रशांत किशोर ने तो ये भी साफ कर दिया है कि आगे से वो चुनाव रणनीति तैयार करने का काम नहीं करने वाले हैं. प्रशांत किशोर के जवाबों से समझें तो अब वो मुख्यधारा की राजनीतिक का हिस्सा बनना चाहते हैं, लेकिन उनका कार्यक्षेत्र बिहार के इर्द गिर्द ही हो सकता है.

sharad pawar, mamata banerjee, prashant kishorशरद पवार और प्रशांत किशोर की मुलाकात के बाद ममता बनर्जी के लिए अब दिल्ली कितनी दूर रह गयी होगी?

अब इससे इतना तो साफ हो जाता है कि शरद पवार और प्रशांत किशोर मिल कर बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लाइक-माइंडेड दलों को एक मंच पर इकट्ठा करने की कोशिश करने जा रहे हैं.

एनसीपी प्रवक्ता नवाब मलिक भी ऐसा ही कह रहे हैं, 'प्रशांत किशोर एक राजनीतिक रणनीतिकार हैं. उनका एक अलग अनुभव है... शरद पवार को उस अनुभव और देश के राजनीतिक हालात से अवगत कराया है... पवार देश के सभी विपक्षी दलों को एकजुट करना चाहते हैं.'

ममता के लिए दिल्ली कितनी दूर

महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार बन जाने के बाद शरद पवार ने दो महत्वपूर्ण बातें कही थी. एक तो विपक्ष को एकजुट करने को लेकर और दूसरी राहुल गांधी को लेकर. शरद पवार के समझाने का मतलब रहा कि महाराष्ट्र जैसे प्रयोग का दायरा बढ़ाने के लिए वो राष्ट्रीय स्तर पर काम करने का इरादा कर चुके हैं.

महाराष्ट्र सरकार के गठन में राहुल गांधी की जीरो भूमिका बता कर वो ये भी जता दिये थे कि वायनाड से कांग्रेस सांसद की विपक्षी खेमे में भूमिका को लेकर वो क्या राय रखते हैं.

पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान ममता बनर्जी ने विपक्षी खेमे के जिन नेताओं से मदद मांगी थी, एक नाम शरद पवार का भी था. एनसीपी की तरफ से संकेत भी दिये गये थे कि वो पहले दिल्ली, फिर कोलकाता जाएंगे. मगर ऐसा नहीं हुआ. पवार-प्रशांत मुलाकात के बाद नवाब मलिक ने इस पर भी सफाई दी, 'पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले शरद पवार को बंगाल जाना था... तबीयत खराब होने के कारण वे नहीं जा सके - लेकिन देश की तमाम विपक्षी पार्टियां एकजुट होने जा रही हैं.'

लगे हाथ नवाब मलिक ने साफ साफ बताया है कि बीजेपी के खिलाफ एनसीपी एक मजबूत मोर्चा बनाने की कोशिश कर रही है और ऐसा होने में अब ज्यादा वक्त नहीं लगने वाला है.

आम चुनाव के दौरान विपक्षी खेमे के काफी सीनियर नेता एक्टिव दिखे थे - कुछ फ्रंट पर तो, कुछ परदे के पीछे. फ्रंट पर तो टीडीपी नेता एन. चंद्रबाबू नायडू और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव रहे, परदे के पीछे की लिस्ट काफी लंबी रही. नायडू और केसीआर की कोशिशों में फर्क ये था कि एक गैर बीजेपी गठबंधन के पक्ष में थे तो दूसरे गैर कांग्रेस और गैर बीजेपी गठबंधन के फेवर में. परदे के पीछे जिन नेताओं की सक्रियता देखी गयी थी उनमें से एक तो अब टीएमसी ज्वाइन ही कर चुके हैं - यशवंत सिन्हा. यशवंत सिन्हा को टीएमसी का उपाध्यक्ष बनाया गया है. यशवंत सिन्हा काफी दिनों तक बीजेपी में रहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बागी रुख अख्तियार किये हुए थे, लेकिन जब कोई भाव नहीं मिला तो पार्टी ही छोड़ दिये. यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा पिछली मोदी सरकार में मंत्री भी बने थे लेकिन अब तो बस बीजेपी में ही बने रहने की कोशिश कर रहे हैं.

प्रशांत किशोर और शरद पवार की मुलाकात महत्वपूर्ण होने के साथ साथ ममता बनर्जी के ही इर्द गिर्द घूमती भी नजर आती है. ऐसा लगता है कि 2019 के बाद बंगाल चुनावों के लिए अभिषेक बनर्जी के जरिये प्रशांत किशोर को जो ठेका मिला था - 2024 तक के लिए बढ़ा दिया गया है. चुनाव जीत कर ममता बनर्जी के फिर से सरकार बना लेने के बाद भी तृणमूल कांग्रेस की बैठकों में प्रशांत किशोर की मौजूदगी तो यही बता रही है. टीएमसी की जिस मीटिंग में अभिषेक बनर्जी को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाने का फैसला लिया गया और घोषणा हुई उसके चश्मदीद प्रशांत किशोर भी रहे - क्या ऐसी बैठकों में कोई बाहरी मौजूद रह सकता है?

अब तो लगता है अभिषेक बनर्जी के अस्पताल जाकर मुकुल रॉय की पत्नी का हाल जानने और उनके बेटे शुभ्रांशु के बीजेपी पर हमला बोलने से लेकर उनकी घर वापसी तक - ये सारे वाकये प्रशांत किशोर की लिखी स्क्रिप्ट के हिसाब से ही हो रहे हैं.

तो क्या स्क्रिप्ट में 2024 का स्क्रीनप्ले और डायलॉग लिखे जा चुके हैं - और ममता बनर्जी को लीड रोल में रख कर प्रशांत किशोर ने शरद पवार के लिए कोई खास कैरेक्टर रोल भी लिख डाला है? तीन घंटे से ज्यादा चली शरद पवार और प्रशांत किशोर की मुलाकात के बाद अब ट्रेलर का इंतजार है - क्योंकि सियासत में पिक्चर तो हमेशा बाकी ही रहती है!

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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