राफेल डील को लेकर बीजेपी ने राहुल गांधी का झूठ तो बता दिया, लेकिन...
बीजेपी ने राहुल गांधी के 'राफेल-झूठ' की लिस्ट ट्विटर पर जारी कर दी है. अच्छी बात है. अब बीजेपी को चाहिये कि उसी ट्विटर पर राफेल का सच भी रख दे. वरना, शक का दायरा बढ़ता ही जाएगा.
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राफेल डील पर बीजेपी ने राहुल गांधी के झूठे आरोपों की एक लंबी सूची शेयर की है. इसमें हर झूठ के साथ एक तथ्य भी शामिल है - और इसके साथ ही राफेल डील पर खुलासा करने वाले हिंदू अखबार को भी लपेटा है. ये बीजेपी का अपना पक्ष है और इस पर किसी को आपत्ति भी नहीं होनी चाहिये. मगर क्या शोर मचा कर अपने खिलाफ सारी बातों को झूठा बता कर खुद को पाक साफ साबित किया सकता है? क्या जोर शोर से किसी विरोधी नेता और मीडिया को गलत बता कर अपनी बात के सच होने का दावा किया जा सकता है?
जिस दिन अखबार में रिपोर्ट आयी उसके ठीक एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में राफेल के मुद्दे पर लंबा भाषण दिया था. रिपोर्ट आने के बाद राहुल गांधी ने भी प्रेस कांफ्रेंस कर अपने आरोप दोहराये और जोर से बोले - 'चौकीदार ही चोर है'.
बीजेपी ने राहुल गांधी के झूठ तथ्यों के साथ पेश कर दिये - क्या ऐसा कुछ राफेल पर भी सामने नहीं रखा जा सकता? देर सवेर जनता ये सच जरूर जानना चाहेगी - क्योंकि ये जनता का हक है.
राफेल पर बीजेपी सरकार का 'सच' नाकाफी है
राफेल डील पर बीजेपी का दावा है कि उसने सच बता दिया है. राफेल डील को लेकर सच के नाम पर बीजेपी का इतना ही कहना है कि राहुल गांधी झूठ बोल रहे हैं और इसीलिए पार्टी ने हर आरोप के साथ एक तथ्य भी पेश किया है.
बीजेपी का आरोप है राहुल गांधी ने अपने झूठ से भारतीय सैन्य बलों को अपमानित किया है और इसके लिए माफी की मांग की है. बीजेपी ने राहुल गांधी को चुनौती दी है कि वो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएं.
राहुल गांधी के साथ साथ बीजेपी ने अंग्रेजी अखबार द हिंदू में प्रकाशित रिपोर्ट को लेकर भी हमला बोला है और अखबार को 'पार्टनर इन क्राइम' करार दिया है.
बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और इस गुनाह में उनके साथ द हिंदू को अपनी खोज पर भरोसा है तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट में अपील करनी चाहिये, लेकिन वे जानते हैं कि उन्हें खड़ा होने का मौका नहीं मिलेगा.
रिपोर्ट में दावा किया गया था कि रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने राफेल मामले पर पीएमओ द्वारा समानांतर बातचीत को लेकर विरोध जताया था. रिपोर्ट आने के बाद बीजेपी ने वो लेटर का वो हिस्सा भी पेश किया जो अखबार में नहीं छपा था. लेटर के उस हिस्से में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का आपत्ति पर जवाब है.
राहुल गांधी के हमले से इतर देखने की कोशिश करें तो लगता है कि राफेल डील को लेकर संदेह सरकार की ओर से ही पैदा किया गया है. कभी कीमत बताने और न बताने को लेकर तो गोपनीयता के नाम पर. कभी द्विपक्षीय करार बता कर तो कभी कोई और बहाना बना कर सत्ता पक्ष की ओर से हर बार ऐसे ही गोल मोल जवाब आते रहे हैं. राफेल डील को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया जाता है - और फिर मालूम होता है कि उसमें तो पहले से ही टाइपो लोचा रहा.
जाहिर है विपक्ष सरकार की इन कमजोरियों का फायदा तो उठाएगा ही. अगर वाकई कहीं कुछ छिपाने को नहीं है तो एक ही बार में तथ्यों को सामने रख दिया जाता और सच मालूम हो जाता.
राफेल का हाल भी बोफोर्स जैसा ही तो नहीं होने वाला...
आखिर 2018 में तीन राज्यों में सरकार गंवाने के बाद भी बीजेपी नेताओं को ये बात क्यों नहीं समझ आ रही है. चुनावों में हर जगह राहुल गांधी 'चौकीदार चोर है' नारे लगवाते रहे - और उसके आगे पीछे बीजेपी नेता उसका काउंटर करते रहे. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी ये किया - लेकिन हासिल क्या हुआ. सत्ता गंवानी पड़ी.
राफेल डील को लेकर सत्ताधारी बीजेपी नेतृत्व को खुद ही पाक साफ होकर निकलना होगा. पहले तो राहुल गांधी ये कहते रहे कि राफेल डील में प्रधानमंत्री मोदी ने दोस्तों को फायदा पहुंचाया. अविश्वास प्रस्ताव के वक्त कहा था कि चौकीदार ही भागीदार है. इस बात का भी प्रधानमंत्री मोदी ने अपने तरीके से प्रतिकार किया. अब तो राहुल गांधी खुलेआम प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं. क्या बीजेपी सिर्फ ये कह कर राफेल का सच बताने का दावा कर सकती है कि पांच साल तक उसने भ्रष्टाचार मुक्त सरकार दिया है?
सवाल सिर्फ राहुल गांधी ही नहीं पूछ रहे हैं
राफेल डील पर राहुल गांधी जितने हमलावर हैं उतने सभी तो नहीं हैं, लेकिन ऐसा करने वाले अकेले सिर्फ वही नहीं हैं. अगर ममता बनर्जी और विपक्ष के बाकी नेताओं की बात करें तो वे भी उसी कैटेगरी में आते हैं जिसमें राहुल गांधी हैं. बात सिर्फ इतनी ही होती तो बीजेपी के लिए फिक्र की उतनी बात नही होती. राफेल डील बीजेपी के लिए चिंता की बात इसलिए हो चुकी है क्योंकि उसकी सहयोगी शिवसेना और तमाम मामलों से दूरी बनाये रखने वाली पार्टी बीजेडी की ओर से भी इस पर सवाल उठा है.
राफेल पर रिपोर्ट के लिए जिस अखबार को बीजेपी पार्टनर इन क्राइम बता रही है, उसे उद्धव ठाकरे की शिवसेना हल्के में तो कतई नहीं ले रही है. द हिंदू की रिपोर्ट को लेकर शिवसेना के मुखपत्र सामना का संपादकीय कहता है, 'इस खबर से यह पता चलता है कि इस सौदे में मोदी की व्यक्तिगत रुचि कितनी ज्यादा थी. इसका क्या मतलब निकाला जाए?'
शिवसेना का तेवर राहुल और ममता से कहीं से भी कम नहीं लग रहा है. प्रधानमंत्री मोदी ने देशभक्ति पर भाषण दिया और सौदे का बचाव किया था और अगले ही दिन कालाचिट्ठा सामने आ गया और उसने नारे लगाने वाले और ताली बजाने वालों को चुप करा दिया.
शिवसेना के सवाल यहीं खत्म नहीं होते, पूछा है - 'इसके लिए विपक्ष को ही क्यों दोषी ठहराया जाना चाहिये'?
शिवसेना सांसद अरविंद सावंत ने तो अरविंद केजरीवाल स्टाइल में ही बीजेपी सरकार को सच का सामना करने की सलाह दे डाली है. सर्जिकल स्ट्राइक के वक्त अरविंद केजरीवाल ने एक वीडियो मैसेज में पाकिस्तान के मुंह पर सूबत दे मारने की सलाह दी थी.
अरविंद सावंत कहते हैं - 'हम पारदर्शी हैं. हमारी सरकार अच्छी है. भ्रष्ट नहीं है. हमें डर किस बात का?'
बोफोर्स और राफेल की तुलना करते हुए सावंत कहते हैं, 'लोग बोफोर्स को अच्छा कहते थे, लेकिन सौदे को खराब बताते थे. ठीक वही हाल राफेल का है.' अरविंद सावंत का कहना है कि बेहतर तो यही होता कि जेपीसी जांच करा देते और सच सामने आ जाता.
2019 के लिए गठबंधन की तमाम गतिविधियों से दूर रहने वाली नवीन पटनायक की बीजेडी के एक सांसद ने तो मांग की कि मोदी सरकार को इस मामले में श्वेत पत्र जारी करना चाहिये.
ये तो बचाव की मुद्रा लगती है
गृह मंत्री राजनाथ सिंह खरी खरी बात कहते हैं. उनकी बुलंद आवाज भी उनके शब्दों को धारदार बनाती है. यहां तक कि बड़े और गंभीर मामलों में भी उनकी कड़ी निंदा काफी असरदार समझी जाती है.
राफेल पर वो तेवर क्यों नहीं दिखता...
2015 में एक सवाल पर राजनाथ सिंह का जोरदार जवाब खासा चर्चित रहा. ये तब की बात है जब आईपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी की मदद करने को लेकर केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के इस्तीफे की मांग जोर पकड़ी थी. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी भी डिग्रियों को लेकर विपक्ष के निशाने पर रहीं.
बीजेपी मंत्रियों के इस्तीफे को लेकर विपक्ष की मांग का जिक्र हुआ तो राजनाथ सिंह ने दो टुक कहा था, 'नहीं, नहीं... इस पर मंत्रियों के त्यागपत्र नहीं होते हैं भैया... ये यूपीए की नहीं, एनडीए की सरकार है.' हालांकि, बाद में एमजे अकबर को मी-टू मुहिम के दौरान आरोपों के चलते इस्तीफा देना ही पड़ा. आत्मविश्वास के साथ आरोपों को सिरे से खारिज करने वाला राजनाथ सिंह का वो अंदाज राफेल के मामले में नजर नहीं आ रहा है. अब तो वो बचाव की मुद्रा में लगते हैं. मोदी के सपोर्ट में दलील पेश करते हैं - ऐसा वो किसके लिए करेंगे?
राजनाथ सिंह कहते हैं, 'मोदी पर भ्रष्टाचार का आरोप तकलीफ पहुंचाने वाले हैं. अरे मोदी किसके लिए पैसे लेंगे, बीवी या बच्चे के लिए लेंगे?'
राजनाथ सिंह आगे कहते हैं, ‘मैंने राजनीति में कभी किसी पर मनगढ़ंत आरोप नहीं लगाये. भाषा और शब्दों की मर्यादा का हमेशा ख्याल रखा है. मैंने हमेशा स्वच्छ राजनीति की. मैं प्रधानमंत्री मोदी को सालों से जानता हूं. हमने मिल कर साथ-साथ काम किया है.'
आखिर ये चरित्र प्रमाण पत्र वाला लहजा क्या इशारा करता है? राजनाथ सिंह सीधे सीधे क्यों नहीं कहते कि ये यूपीए सरकार थोड़े ही है जो प्रधानमंत्री रेनकोट पहनकर स्नान करेगा. ये एनडीए सरकार है और हमारा फकीर हमेशा झोला उठाये रहता है.
वैसे ये सब पूछ कौन रहा है? ऐसी बातों में दिलचस्पी किसकी होगी भला? सीधे सीधे बता दो ना कि सच क्या है? टुकड़े टुकड़े में सच बताना भी संदेह उत्पन्न करता है. टुकड़ों में बिखरा सच भी आधा सच ही लगता है. आखिर दिक्कत क्या है - जैसे राहुल गांधी के झूठ बताये वैसे ही राफेल पर मोदी सरकार का सच भी बता दो. बस इतनी सी तो बात है.
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