मोदी सरकार पर शिवसेना के बाउंसर राष्ट्रपति चुनाव में हैट्रिक का इशारा हैं
मोदी सरकार के तीन साल के कामकाज पर भी शिवसेना की नाराजगी कम नहीं हो रही. शिवसेना आम लोग के साथ साथ अब किसानों और जवानों के नाम पर बीजेपी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रही है.
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राष्ट्रपति चुनाव में शिवसेना दो बार एनडीए की लाइन छोड़कर अलग स्टैंड ले चुकी है. बीजेपी के लाख सावधानी बरतने के बावजूद मोदी सरकार पर शिवसेना के हमले तेज होते जा रहे हैं.
मोदी सरकार के तीन साल के कामकाज पर भी उसने नाराजगी जताई है - आम लोग के साथ साथ किसानों और जवानों के नाम पर कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रही है.
शिवसेना के इरादे
बीजेपी को शिवसेना की कितनी जरूरत है ये बात महाराष्ट्र के निकाय चुनावों के नतीजों के बाद साफ हो चुकी है - शिवसेना सिमट रही है और बीजेपी पांव पसार रही है.
पिछले तीन साल में मुश्किल से गिनती के मौके आये होंगे जब शिवसेना ने केंद्र की मोदी सरकार की तारीफ की हो. केंद्र और महाराष्ट्र की सत्ता में बीजेपी के साझीदार होने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर शिवसेना के निशाने पर देखे गये हैं.
ताजा हमले में शिवसेना मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने पर होने वाले जश्न को बेमानी बता रही है. हमेशा की तरह हमलों का लांच पैड बना है शिवसेना का मुखपत्र सामना.
सामना का संपादकीय कहता है, ‘लोग तकलीफ में हैं, किसान आत्महत्या कर रहे हैं और जवान शहीद हो रहे हैं. अगर कोई अब भी समारोह मनाना चाहता है तो मतलब यही होगा कि वो इन मुद्दों के प्रति उदासीन है.’
संपादकीय में सरकारी कार्यक्रमों और विज्ञापनों पर भी सवाल उठाया गया है. मोदी सरकार पर इल्जाम लगाया गया है कि देशभर में होने वाले जश्न पर सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये खर्च किए जाएंगे.
शिवसेना का कहना है, ‘स्वच्छ भारत अभियान पर हजारों करोड़ रुपये खर्च किये गये, देश साफ हुआ? गंगा नदी को साफ करने के लिए भारी-भरकम कार्यक्रम शुरू हुआ. गंगा साफ हो रही है या सरकारी खजाना ही खाली होता जा रहा है?’
किसानों के लिए कुछ भी...
अब उद्धव ठाकरे भी बीजेपी को घेरने के लिए वही मुद्दे उठा रहे हैं जिसका सहारा कांग्रेस या उसके दूसरे विरोधी लेते हैं. वो नोटबंदी का भी जिक्र करते हैं - कहते हैं, नोटबंदी के कारण लोग सकते में आ गये और भ्रष्टाचार, ब्लैक मनी और महंगाई जैसे मसलों से उनका ध्यान हट गया.
उद्धव एक साथ केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को निशाने पर लेते हैं. न तो उन्हें मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन की कोई उपयोगिता नजर आती है और न ही नागुपर-मुंबई 8 लेन वाले प्रस्तावित रोड की - ऊपर से तोहमत ये कि खेती की जमीन का कबाड़ा निकाल दिया.
उद्धव ठाकरे का कहना है कि उन्हें सत्ता की जरा भी परवाह नहीं - एक मिनट भी नहीं लगेगा छोड़ने में, बस वो किसानों का कर्ज माफ कर दें. इस मुद्दे पर उनका आशय देवेंद्र फडणवीस की महाराष्ट्र सरकार से है.
बीजेपी को टारगेट करते हुए उद्धव ठाकरे कहते हैं - वो मध्यावधि चुनाव चाहते हैं. वो चाहते हैं कि उन्हें ज्यादा सीटें आ जाएं और वो ज्यादा ताकतवर बन जायें - उद्धव का कहना है कि उन्हें सरकार में बने रहने का कोई शौक नहीं है. वो बस किसानों का कर्ज माफ कर दें - हम बड़े आराम से बाहर से समर्थन दे देंगे.
महाराष्ट्र में किसानों के नाम पर उद्धव बीजेपी को अलग अलग थलग करने की कोशिश में हैं. किसानों को लेकर शिवसेना ने नासिक में जो रैली बुलाई थी उसका मकसद भी साफ था - गैर-बीजेपी और गैर-एनसीपी पार्टी समर्थकों को एक मंच पर जुटाना. बीजेपी के लिए नुकसान ये रहा कि इसमें किसान नेता और सांसद राजू शेट्टी भी शामिल हुए. शेट्टी भी कुछ दिनों से किसानों के मुद्दे पर मोदी सरकार पर हमले कर रहे हैं - दबी जबान में उनके शिवसेना से हाथ मिलाने की भी बात चल रही है.
शिवसेना के साथ रिश्तों में खटास और लगातार हमलावर तेवर के बावजूद बीजेपी हमेशा संयम बरत रही है - और हर मोड़ पर संभल कर चल रही है. माना जा रहा है कि ये सब राष्ट्रपति चुनाव के चलते हो रहा है.
शिवसेना सांसद रविंद्र गायकवाड़ के चप्पलबाजी एपिसोड को जिस तरह से बीजेपी ने हैंडल किया वो इसकी मिसाल है. सदन में सांसदों के साथ साथ शिवसेना कोटे से मंत्री बने अनंत गीते ने जिस तरह बीजेपी नेता और नागरिक उड्डयन मंत्री अशोक गजपति राजू को घेरा वो कोई मामूली बात नहीं थी. फिर भी मोदी सरकार शिवसेना की हर बात मानती गयी, लेकिन शिवसेना पर ऐसी बातों का कोई फर्क नहीं पड़ा है.
चंद्रबाबू नायडू की नाराजगी की आशंका के बावजूद बीजेपी ने विपक्षी खेमे से वाईएसआर कांग्रेस नेता जगनमोहन रेड्डी को भले झटक लिया हो, शिवसेना ने भी राजू शेट्टी को साथ लेकर बीजेपी एक तरह से झटका ही दिया है.
साफ है शिवसेना ने राष्ट्रपति चुनाव में इस बार भी एनडीए से अलग लाइन लेने का मन बना चुकी है, बस उसे एक मजबूत बहाने की तलाश है.
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