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Updated: 07 नवम्बर, 2019 05:02 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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24 अक्टूबर के बाद से तो ऐसा लगता है जैसे शिवसेना (Shiv Sena) ने महाराष्ट्र की पूरी राजनीति को ही बंधक बना रखा हो. कोई भी बात जरा सी भी आगे नहीं बढ़ पा रही है. 9 नवंबर तक Maharashtra government formation हो जाना है. मौजूदा महाराष्‍ट्र विधानसभा का कार्यकाल 10 नवंबर को समाप्‍त हो रहा है. यह समय-सीमा बीत जाने के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में होने वाले हर अच्छी और बुरी चीजों के लिए शिवसेना की ही जिम्मेदारी बनती है - ये जिम्मेदारी उसे लेनी भी होगी. महाराष्‍ट्र गवर्नर भगत सिंह कोश्‍यारी (Maharashtra Governor Bhagat Singh Koshyari) के इर्द-गिर्द राजनीतिक हलचल तेज हो गई है. महाराष्‍ट्र का मुख्‍यमंत्री कौन बनेगा? (Maharashtra CM) के नाम पर ही पेंच फंसा हुआ.

महाराष्ट्र के पॉलिटिकल स्टेटस के लिए शिवसेना जिम्मेदार

जब से महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आये हैं, शिवसेना मीडिया की सुर्खियों से हटी नहीं है. लोगों का ध्यान खींचने के लिए शिवसैनिक पहले सड़क पर उतर कर ये काम करते थे. जमाना बदला और शिवसेना ने भी पैंतरे बदल लिये.

एक और खास बात है शिवसेना की ओर से टीवी पर सिर्फ एक चेहरा नजर आता है - और वो लगातार बोलता है. बोलने में उसे बहुत मेहनत भी नहीं करनी होती है. रटी-रटायी दो-तीन बातें हैं बस उन्हीं को कभी आगे तो कभी पीछे बोलते रहना है.

हाल तो बीजेपी का भी वही है, लेकिन लगता है जैसे एजेंडा शिवसेना तय कर रही है और बीजेपी रिएक्ट कर रही है - और एजेंडा के नाम पर भी सिर्फ 50-50 और कुछ भी नहीं. न कम न ज्यादा और गठबंधन धर्म निभाने वाला एक डिस्क्लेमर भी.

1. अगर विधायकों की खरीद फरोख्त होती है : शिवसेना के दावे तो कुछ और कहते हैं और भाव कुछ और. एक तरफ विधायकों की खरीद फरोख्त की चर्चा को आगे बढ़ाना और फिर ये कहना कि शिवसेना में ऐसा हो नहीं सकता - और फिर विधायकों को दो दिन के लिए होटल भेज देना! साफ है शिवसेना को पार्टी टूट जाने का डर सताने लगा है. जब विधायकों को होटल या रिजॉर्ट में भेजने की बात होती है तो संजय राउत भले कह देते हों कि शिवसेना के विधायक ऐसा नहीं होने देंगे.

सामना का संपादकीय शिवसेना का बयान होता है. इसे उद्धव ठाकरे के मन की बात भी समझा जाना चाहिये. सामना में लिखा है कि कुछ लोग नये विधायकों से संपर्क कर 'थैली' की भाषा बोल रहे हैं.

devendra fadnavis with uddhav thackerayबहुमत वाली विधानसभा के साथ त्रिशंकु जैसा व्यवहार!

फर्ज कीजिये परदे के पीछे विधायक सौदेबाजी पर उतर ही आते हैं और डील भी हो जाये तो कौन जिम्मेदार माना जाएगा?

महाराष्ट्र में गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलने के बाद अगर ये सब होने लगे तो लोकतंत्र के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा - और जिम्मेदारी तो पूरी शिवसेना की ही बनती है.

2. अगर जनता की चुनी हुई सरकार नहीं बनती है : विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र के लोगों के सामने दो विकल्प थे - एक बीजेपी-शिवसेना गठबंधन और दूसरा कांग्रेस-एनसीपी. लोगों ने बीजेपी की अगुवाई वाले गठबंधन को स्पष्ट जनादेश दिया है.

चुनाव के दौरान तो शिवसेना ने एक बार भी ये मुद्दा नहीं उठाया जिसे दो हफ्ते से बार बार दोहरा रही है. तब तो शिवसेना ने सार्वजनिक तौर पर कभी ये भी नहीं पूछा कि बीजेपी ने गठबंधन में उसे अपने से कम सीटें क्यों दी? चुनाव होने और नतीजे आ जाने के बाद फिफ्टी-फिफ्टी के नाम पर शिवसेना की नौटंकी पॉलिटिक्स समझ से परे है.

शिवसेना को भी ये समझ लेना होगा कि आगे से वो ये नहीं समझा पाएगी कि महाराष्ट्र में सरकार नहीं बन पायी तो उसके लिए शिवसेना नहीं बल्कि कोई और जिम्मेदार है!

3. अगर राष्ट्रपति शासन लगता है : महाराष्ट्र की राजनीति विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने की मियाद के मुहाने पर खड़ी है. निर्धारित समय के अंदर सरकार न बन पाने की स्थिति में संवैधानिक तौर पर स्थिति ऐसी पैदा होगी ही कि राज्यपाल को राष्ट्रपति शासन की सिफारिश के अलावा को चारा नहीं बचेगा.

अब इससे बुरा क्या होगा कि जनादेश सरकार बनाने का हो और महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू हो - दिल्ली में आम आदमी पार्टी की तरह अगर शिवसेना महाराष्ट्र की जनता से भविष्य में इसके लिए माफी भी मांगे तो शायद ही मिल पाये. पब्लिक सब जानती है, ये मालूम तो शिवसेना को भी होगा ही.

4. अगर विधानसभा भंग होती है : मान लेते हैं फिलहाल वक्त बीत जाने के बाद एक बार राष्ट्रपति शासन लागू हो और उसके बाद सरकार बनने की कोई सूरत बन जाये तो नये सिरे से कोशिश हो सकती है.

लेकिन कब तक? राष्ट्रपति शासन छह-छह महीने के लिए आखिर कब तक बढ़ाया जाएगा और इसका मतलब भी क्या है?

5. अगर फिर से चुनाव कराये जाते हैं : अगर विधानसभा भंग हो जाती है तो फिर से चुनाव कराने पड़ेंगे. जनप्रतिनिधियों के पाला बदल लेने की वजह से तो जनता को उपचुनावों का बोझ उठाना पड़ ही रहा है, कैसा होगा अगर महाराष्ट्र में फिर से चुनाव कराने पड़े. ऐसा नहीं है जल्दी जल्दी दोबारा चुनाव नहीं हुए हैं - लेकिन कब? तब जबकि त्रिशंकु की स्थिति हो. महाराष्ट्र विधानसभा में तो ऐसा कुछ है भी नहीं.

स्पष्ट बहुमत के बावजूद सरकार नहीं बन पाना बहुत बुरा है - आगे से लोगों का गठबंधन की राजनीति से धीरे धीरे भरोसा भी उठने लगेगा और ये जिम्मेदारी भी पूरी की पूरी शिवसेना पर ही आएगी.

बीजेपी भी बराबर की जिम्मेदार होगी

चुनाव पूर्व गठबंधन पार्टनर होने के नाते शिवसेना से जुड़ी बातों की जिम्मेदारी से बीजेपी भी बच नहीं सकती. शिवसेना के चलते महाराष्ट्र के लोगों को जो भी नफा-नुकसान होता है, बगैर किन्तु-परन्तु के पूरी की पूरी जिम्मेदारी बीजेपी की भी बनती ही है.

शिवसेना के इस जिद के लिए बीजेपी के अलावा आखिर कौन जिम्मेदार हो सकता है? शिवसेना को फिलहाल जो कुछ भी हासिल हुआ है वो तो बीजेपी की वजह से ही हुआ है. शिवसेना भले ये मानने को तैयार न हो, बीजेपी इस बात का एहसास कराने की कोशिश भी कर रही है - वैसे भी लोगों ने तो एक जैसी विचारधारा वाले दोनों दलों के गठबंधन को वोट दिया है.

हर राजनीतिक दल को अपने फायदे और नुकसान के आकलन और उसी के हिसाब से फैसले का अधिकार है - सरकार बनने में रोड़ा बन जाना तो जनता के अधिकारों को ही उल्लंघन है.

अगर देवेंद्र फडणवीस की वजह से महाराष्ट्र में सरकार नहीं बनती है तो वो ये कह कर तो वो शरद पवार की तरह बयान देकर तो कभी नहीं बच सकते कि विपक्ष में बैठने का जनादेश मिला है. हां, अगर वो कहते हैं कि महाराष्ट्र में सरकार बनने में वो रोड़ा नहीं बनना चाहते इसलिए विपक्ष में बैठने को तैयार हैं तो लोग जरूर समझेंगे.

अब जबकि शिवसेना ने अपने विधायकों को दो दिन के लिए होटल में भेज दिया फिर तो यथास्थिति ही कायम समझी जानी चाहिये. बचे हुए वक्त में भी वही सब होगा जो अब तक होता आ रहा है - और ये सब गठबंधन में मची आपसी खींचतान के चलते ही हो रहा है. जाहिर है जिम्मेदारी दोनों दलों की बनती है, ये बात अलग है कि किसके हिस्से जिम्मेदारी ज्यादा आती है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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