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Updated: 16 सितम्बर, 2016 04:42 PM
सुनील बाजारी
सुनील बाजारी
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चुनाव के मुहाने पर खड़ी समाजवादी पार्टी का सियासी संकट आज उस समय और गहरा गया जब शिवपाल सिंह यादव ने प्रदेश अध्यक्ष और मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इस मामले की शुरूआत तो उसी समय से हो गई थी जब अखिलेश यादव को मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री बनवाया था. उस समय भी शिवपाल मुलायम से सहमत नहीं थे लेकिन उनके फैसले के बाद उन्हें मानना पड़ा था. उस दिन से अखिलेश और शिवपाल सिंह यादव के बीच जो रेखा खिंची वो इन साढ़े 4 सालों में काफी गहरा गई. हालिया घटनाक्रम की बात करें तो इसकी शुरूआत हुई खनन मंत्री गायत्री प्रजापति और पंचायती राज मंत्री राजकिशोर सिंह को हटाए जाने से. दोनों मंत्री सुर्खियों में थे, राजकिशोर सिंह जमीन कब्जाने के मामलों को लेकर आरोपों के घेरे में थे तो प्रजापति अवैध खनन को लेकर चर्चा में थे.

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शिवपाल सिंह यादव ने प्रदेश अध्यक्ष और मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया

मंत्री गायत्री प्रजापति के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामला चल रहा है और कोर्ट ने उनके खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं. अखिलेश के इस कदम को मास्टर स्ट्रोक के रूप में देखा जा रहा था इसी बीच अखिलेश ने मुख्य सचिव दीपक सिंघल को भी हटा दिया. गायत्री प्रजापति और मुख्य सचिव दीपक सिंघल शिवपाल के करीबी माने जाते हैं. सिंघल अमर सिंह और नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव के भी खास माने जाते हैं और इसी कारण अखिलेश ने सख्त नापसंद होने के बावजूद उन्हें मुख्य सचिव बनाया था.

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इसके बाद एकाएक राज्य का सियासी पारा चढ़ा और मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री अखिलेश को सपा प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर शिवपाल सिंह यादव को ये पद दे दिया. इसके कुछ घंटों बाद ही अखिलेश ने एक ऐसा कदम उठाया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. उन्होंने शिवपाल से अहम मंत्रालय छीन लिए. उसी समय से शिवपाल सिंह यादव के इस्तीफे को लेकर चर्चाएं शुरू हो चुकी थीं. सूत्रों के मुताबिक मुलायम ने अखिलेश यादव से शिवपाल के मंत्रालय लौटाने के लिए कहा, लेकिन अखिलेश इसके लिये तैयार नहीं थे. इसी कारण शिवपाल ने आखिरकार इस्तीफा दे दिया हालांकि सीएम ने उनके इस्तीफे को स्वीकार नहीं किया है.

दरअसल अखिलेश लंबे समय से शिवपाल सिंह यादव की पार्टी और सरकार में हावी होने की कवायदों को देख रहे थे. मथुरा के रामवृक्ष यादव के मामले में भी सरकार की काफी किरकिरी हुई थी. इसके बाद मुख्यमंत्री ने मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल के सपा में विलय को भी रोका. शिवपाल यादव इस बात को लेकर काफी नाराज भी हुए थे.

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लब्बो लुआब ये है कि अखिलेश यादव अपनी छवि का बड़ा ध्यान रखते हैं. वो ऐसे किसी भी नेता या अफसर से दूर रहने या उन्हें अपने से दूर रखने का भरसक प्रयास करते हैं जिनकी छवि भ्रष्ट व्यक्ति की हो. सपा सुप्रीमो स्वयं खुले मंच से कई बार अखिलेश सरकार के कामकाज की आलोचना कर चुके हैं लेकिन अखिलेश ने आजतक इस बारे में कभी भी कोई टिप्पणी नहीं की लेकिन राजनैतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि समय के साथ अखिलेश नेताजी की छाया से निकल रहे हैं. दरअसल शिवपाल खुद को मुलायम का राजनैतिक उत्तराधिकारी मानते थे लेकिन अखिलेश को सीएम बना दिया गया. अब जब उनके पर कतर दिए गए तो उन्हें तो ये बात नागवार गुजरनी ही थी. अब तक के सियासी सफर में शिवपाल के लिए ये सबसे बड़ा झटका था.

अब ये अखिलेश की राजनैतिक मजबूरी भी है. आज कड़े फैसले लेकर वो जनता की नजर में हीरो बन सकते हैं और शायद इसका फायदा उन्हें आगामी चुनावों में भी मिल सकता है. टिकट वितरण में भी अखिलेश अपनी इसी छवि का ध्यान रखेंगे तो उनके मार्ग में कांटे कम आएंगे वरना वो दिन दूर नहीं जब सपा में हीं अपनी विरासत के लिए अखिलेश को संघर्ष करना पड़ सकता है. अखिलेश ने 'बाहरी' व्यक्ति का जिक्र किया तो उनका इशारा अमर सिंह की ओर था. उन्होंने हवा में गेंद उछाली थी लेकिन अमर सिंह ने इसे लपक लिया और कहा कि अखिलेश ने उनके लिए इस शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है.

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मीडिया से चर्चा के दौरान रामगोपाल यादव ने माना कि प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने से पूर्व अखिलेश को विश्वास में नहीं लिया गया था. रामगोपाल के इस बयान से ये बात भी सामने निकलकर आई कि नेताजी और अखिलेश में संवादहीनता की स्थिति है. अखिलेश ने भी कहा कि ये मामला सरकार का है परिवार का नहीं, परिवार में सभी नेताजी की बात सुनते हैं लेकिन सरकार में कुछ फैसले मैंने खुद लिए हैं. यानी ये मान लें कि अखिलेश ने ये बताने की कोशिश की है कि सरकार में वो ही होगा जो अखिलेश चाहेंगे. अब देखने वाली बात ये होगी कि नेताजी इस मामले में क्या डैमेज कंट्रोल कर पाते हैं.      

लेखक

सुनील बाजारी सुनील बाजारी @skbazari

लेखक टीवी पत्रकार हैं

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