सोनिया गांधी ने तो सचिन पायलट को भी सिंधिया बनने के लिए छोड़ दिया
ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) जिस मोड़ पर खड़े थे, सचिन पायलट (Sachin Pilot) भी एक अरसे से उसी के ईर्द-गिर्द कांग्रेस में देखे जाते रहे हैं. सिंधिया के बीजेपी ज्वाइन कर लेने पर सचिन पायलट ने सोनिया और राहुल गांधी (Sonia Gandhi and Rahul Gandhi) को मैसेज देने की भी कोशिश की - लगता नहीं कि मैसेज डिलीवर हो पाया है.
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कांग्रेस की ग्रह-दशा अभी तो ऐसी चल रही है कि कोई मामूली ज्योतिषी भी सटीक भविष्यवाणी कर सकता है. कांग्रेस के राज्य सभा उम्मीदवारों की जो सूची सोनिया गांधी ने फाइनल की है वो भी कांग्रेस के भीतर संभावित घटनाओं की तरफ साफ इशारा करती है.
बाकी राज्यों में कांग्रेस नेताओं के अंसतोष को तो टाला भी जा सकता है, लेकिन राजस्थान का मामला काफी नाजुक लगता है. मालूम नहीं राहुल गांधी और सोनिया गांधी (Sonia Gandhi and Rahul Gandhi) हालात की गंभीरता को किस तरह से ले रहे हैं. राजस्थान से राज्य सभा उम्मीदवार तय करने में जिस तरह से सचिन पायलट (Sachin Pilot) की आपत्तियों को खारिज कर अशोक गहलोत की बात मान ली गयी है - ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के कांग्रेस छोड़ कर चले जाने के बाद ये फैसला हैरान करने वाला लगता है. सिंधिया की बगावत के बाद मध्य प्रदेश में कमलनाथ भले ही सरकार कुछ दिन बचा लें लेकिन वे गिनती के ही दिन होंगे.
सिंधिया के कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन करने पर राहुल गांधी ने मीडिया में आकर कहा कि वो उन्हें अच्छी तरह जानते हैं. सही बात है जानते जरूर थे, लेकिन शायद समझने की कोशिश नहीं किये. कुछ तो मजबूरियां रही होंगी. सवाल ये है कि क्या वैसी ही मजबूरियां सचिन पायलट की मुश्किलों को समझने में आड़े आ रही हैं?
सचिन पायलट को कितना जानते हैं राहुल गांधी
2017 के गुजरात चुनाव में राहुल गांधी को नये अवतार में देखा गया था और उन दिनों भी उनके दो साथी करीब ही नजर आते थे - ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट. गुजरात चुनाव खत्म होने के बाद और नतीजे आने से पहले राहुल गांधी ने अध्यक्ष की कुर्सी संभाली थी. तब से सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया की सियासी मुश्किलें ऐसे नजर आयीं जैसे जुड़वां भाइयों की समस्याएं होती हैं. दोनों ही के सामने दो सीनियर और गांधी परिवार के करीबी नेता चुनौती बन गये. दोनों ने विधानसभा चुनाव में बराबर मेहनत की, लेकिन सत्ता हासिल होने पर मलाई खाने दूसरे नेता आ डटे. सचिन पायलट तो डिप्टी सीएम बना दिये गये, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की कौन कहे, उनके किसी समर्थक विधायक को भी ये ओहदा देने के लिए पार्टी नेतृत्व राजी नहीं हुआ - और सिंधिया झोला उठाकर दूसरे फकीरों की टोली में पहुंच गये.
ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने पर जिस तरीके से सचिन पायलट ने रिएक्ट किया है, उस एक ही ट्वीट में राहुल गांधी और सोनिया गांधी के लिए बड़ा संदेश है. अगर राहुल गांधी और सोनिया गांधी जान बूझ कर ऐसी चीजों को नजरअंदाज करते हैं तो ये मान लेना बिलकुल गलत नहीं होगा कि बिगड़ी बातों को बनाने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है.
Unfortunate to see @JM_Scindia parting ways with @INCIndia. I wish things could have been resolved collaboratively within the party.
— Sachin Pilot (@SachinPilot) March 11, 2020
सोनिया गांधी और राहुल गांधी मां-बेटे जरूर हैं, लेकिन दोनों के कुर्सी पर होते कांग्रेस के भीतर की तमाम चीजें एक दूसरे के उलट ही देखने को मिली हैं. राहुल गांधी ने कुर्सी संभालते ही जिस तरह पुराने नेताओं को ठिकाने लगा दिया था, सोनिया गांधी ने भी वही व्यवहार किया है. नतीजा ये हुआ है कि राहुल गांधी की वजह से कांग्रेस में दबदबा रखने वाले नेता उनके कुर्सी छोड़ते ही असुरक्षित महसूस करने लगे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया से पहले हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अशोक तंवर के मामले में जो हुआ सबके सामने ही है. अशोक तंवर तो सोनिया के भी करीबी हुआ करते थे, लेकिन एक झटके में सब खत्म हो गया.
सचिन पायलट भी बस मुहाने पर ही हैं, जहां से सिंधिया आगे बढ़े और बीजेपी के हो गये
हरियाणा के साथ ही महाराष्ट्र चुनाव भी हुए थे और तब ज्योतिरादित्य सिंधिया महाराष्ट्र के चुनाव प्रभारी बनाये गये थे. जरा याद कीजिये संजय निरूपम ने प्रेस कांफ्रेंस करके क्या कहा था. संजय निरूपम के निशाने पर भी कांग्रेस के बुजुर्गों की टीम ही रही. मिलिंद देवड़ा भी तो जब तक ऐसे मुद्दे उठाते रहे हैं. आम चुनाव के दौरान जितिन प्रसाद ने भी तो बागी रुख अख्तियार कर ही लिया था. नवजोत सिंह सिद्धू भी तो कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन के ही शिकार लगते हैं. कुछ नेताओं की अपनी अलग मजबूरी हो सकती है, लेकिन सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा के मामले में तो कम से कम ऐसा नहीं लगता.
क्या ऐसा नहीं लगता कि सोनिया गांधी ने राहुल गांधी की टीम के ज्यादातर नेताओं को सिंधिया बनने के लिए छोड़ दिया है - और सचिन पायलट भी मुहाने पर ही खड़े हैं. अब ये राहुल गांधी को ही देखना होगा कि वो सचिन पायलट को कितना जानते हैं और कितना समझना चाहते हैं.
ये तो बहुत नाइंसाफी है
अगर राहुल गांधी ये कहते हैं कि राज्य सभा चुनाव में उनका कोई रोल नहीं रहा तो क्या उनके करीबी नेताओं को सिर्फ नाम पर ही टिकट दे दिया गया, जबकि एक एक टिकट के लिए तगड़ी रेस लगी रही. आखिर कैसे राजस्थान से केसी वेणुगोपाल टिकट पा गये और तारिक अनवर से लेकर राजीव अरोड़ा और भंवर जितेंद्र सिंह से लेकर गौरव वल्लभ तक बस मुंह देखते रह गये. आखिर कैसे राजीव साटव महाराष्ट्र से बाजी मारने में कामयाब रहे और मुकुल वासनिक और रजनी पाटिल मन मसोस कर रह गये. आखिर ये दोनों नेता टिकट पाने में सफल तो राहुल गांधी के कारण ही रहे. ऐसा कैसे हो सकता है कि एक बार भी राहुल गांधी से उनकी राय न पूछी गयी हो - राहुल गांधी भले ही कहते फिरें कि वो वायनाड के सांसद भर हैं, लेकिन जिस तरीके से दिल्ली चुनाव और दंगे प्रभावित इलाकों में भाषण देते रहे, वायनाड क्या केरल का कोई नेता या कांग्रेस का ही दूसरा कोई नेता बोल सकता है क्या?
क्या बदले हुए नाजुक हालात में भी राहुल गांधी को एक बार नहीं लगा कि सचिन पायलट की बातों को बार बार नजरअंदाज नाइंसाफी नहीं तो क्या है?
सचिन पायलट हमेशा से मुखर रहे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुद्दे पर तो बोला ही है, जब सोनिया गांधी ने कोटा अस्पताल भेज कर ग्राउंट रिपोर्ट मांगी थी वो पहुंचे और मौके पर भी बरस पड़े. अपनी ही सरकार और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सारी गलतियों का जिम्मेदार बता डाला था.
राजस्थान से कांग्रेस के दो उम्मीदवार तय किये गये हैं - केसी वेणुगोपाल और नीरज डांगी. पता चला है कि सचिन पायलट को जैसे ही राज्य सभा के लिए उम्मीदवारों की फाइल सूची का पता चला, वो सक्रिय हो गये और विरोध करने लगे. सचिन पायलट को केसी वेणुगोपाल को लेकर आपत्ति का तो मतलब भी नहीं था, लेकिन नीरज डांगी को लेकर कड़ा ऐतराज जताया. इतना ही नहीं, सचिन पायलट ने अपनी तरफ से एक नाम का भी सुझाव दिया था, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया.
सचिन पायलट ने नीरज डांगी की जगह कुलदीप इंदौरा का नाम सुझाया था. दिलचस्प बात ये रही कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत के सुझाये नामों में बहुत सारी समानता देखने को मिलती है.
1. नीरज डांगी तीन बार और कुलदीप इंदौरा दो बार विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं और दोनों में कोई भी जीत नहीं पाया.
2. नीरज डांगी और कुलदीप इंदौरा दोनों ही राजस्थान प्रदेश युवक कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं.
3. नीरज डांगी के पिता दिनेशराय डांगी और कुलदीप इंदौरा के पिता हीरालाल इंदौरा भी राजस्थान सरकार में मंत्री रह चुके हैं.
4. नीरज डांगी और कुलदीप इंदौरा दोनों ही अनुसूचित जाति से आते हैं.
दोनों के करियर ग्राफ पर गौर करें तो और भी कई समानताएं नजर आती हैं, बड़ा फर्क सिर्फ ये है कि सचिन पायलट ने जिसका नाम सुझाया था वो दो बार विधानसभा चुनाव हार चुका है और अशोक गहलोत ने जिसका सपोर्ट किया वो तीन बार.
देखा जाये तो भी सचिन पायलट का कैंडीडेट, अशोक गहलोत के उम्मीदवार से थोड़ा बेहतर रहा - लेकिन सोनिया गांधी ने अशोक गहलोत के उम्मीदवार पर ही मुहर लगायी है. ये कोई बहुत बड़ी बात भी नहीं है, लेकिन जब मालूम है कि पार्टी की स्थिति डांवाडोल है और छोटी छोटी चीजों से बात बिगड़ सकती है तो ये महंगा भी पड़ सकता है.
जैसा कि राहुल गांधी बता रहे थे कि वो ज्योतिरादित्य सिंधिया को अच्छी तरह जानते हैं, बिलकुल वैसे ही न सही लेकिन जानते तो सचिन पायलट को भी होंगे ही. सचिन पायलट की विचारधारा को भी जानते ही होंगे. सचिन पायलट के सामने भी वैसे ही राजनीतिक हालात हैं जैसे सिंधिया के पास रहे. जिस तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनावों में शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ मैदान में डटे रहे, सचिन पायलट भी वैसे ही वसुंधरा राजे के खिलाफ मोर्चे पर बने रहे और मुकाबले करते रहे. बीजेपी के हिसाब से सोचें तो मध्य प्रदेश की ही तरह राजस्थान की हर गतिविधि पर वैसी ही पैनी नजर है. बस एक मौके की तलाश है.
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