सोनिया के दावे के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व को लेकर सिब्बल के सवाल का जवाब मिसिंग है
कांग्रेस में पूर्णकालिक अध्यक्ष (Congress President) को लेकर उठते सवालों पर सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने चुप्पी तोड़ी है - और खुद को कमांडर-इन-चीफ के तौर पर पेश करते हुए बागी नेताओं (Strong Message to G-23 Leaders) को आगाह किया है कि वे वाया मीडिया बात करने से बाज आयें.
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सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने कांग्रेस की कार्यकारिणी की बैठक बुला कर अपनी तरफ से सवाल उठाने वाले हर तबके को संदेश देने की कोशिश की है - खास तौर पर उन कांग्रेस नेताओं को जो G-23 के नाम से नयी पहचान बना चुके हैं - और उन सबको भी जो ये समझने लगे थे कि कांग्रेस पार्टी में नया नेतृत्व भाई-बहन यानी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की जोड़ी ही है.
CWC की ये मीटिंग चाहे जिन परिस्थितियों में बुलायी गयी हो - यूपी, उत्तराखंड और पंजाब सहित पांच राज्यों में अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनावों को लेकर या G-23 नेताओं के सवालों से तंग आकर उनको खामोश करने के मकसद से, लेकिन ये भी है कि कपिल सिब्बल के कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर पूछे गये सवाल के बाद कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी को पत्र लिख कर कार्यकारिणी की बैठक बुलाने की मांग भी की थी - और सोनिया गांधी ने जिस अंदाज में रिस्पॉन्ड करने की कोशिश की है, क्रिया की प्रतिक्रिया जैसा ही लगता है.
कांग्रेस में पूर्णकालिक अध्यक्ष (Congress President) को लेकर उठाये गये सवालों पर सोनिया गांधी के बेहद सख्त बयान में जो नेता निशाने पर लगते हैं, वे कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद जैसे नेता ही है. ऐसे ही नेताओं को G-23 कांग्रेस नेता (Strong Message to G-23 Leaders) कहा जा रहा है, जब से कांग्रेस के लिए एक पूर्णकालिक और काम करता हुआ नजर आने वाले अध्यक्ष के चुनाव को लेकर सोनिया गांधी को पत्र लिखा गया था. उस पत्र पर कांग्रेस के 23 नेताओं ने हस्ताक्षर किये थे और इसीलिए उनको G-23 कांग्रेस नेता कहा जाने लगा है. बीजेपी ज्वाइन कर यूपी की योगी सरकार में मंत्री बन चुके जितिन प्रसाद भी पहले G-23 नेताओं की जमात में ही शामिल हुआ करते थे.
और कुछ नहीं तो G-23 नेताओं की अतिसक्रियता का असर ये जरूर हुआ है कि कांग्रेस में अध्यक्ष के चुनाव की घोषणा भी कर दी गयी है - और तारीख के साथ एक खास अवधि का भी. खबरों के मुताबिक, चुनाव प्रक्रिया 1 नवंबर, 2021 से शुरू हो जाएगी - और अक्टूबर, 2022 तक कांग्रेस को नया अध्यक्ष भी मिल जाएगा.
लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या कपिल सिब्बल के 'फैसले कौन लेता है' जैसे सवालों का वास्तव में जवाब मिल गया है - या फिर बच्चों राहुल और प्रियंका गांधी वाड्रा के बचाव में सोनिया गांधी ने ये कहते हुए इमोशनल कार्ड खेला है कि सक्रिय तौर पर सारे काम वही तो कर रही हैं?
CWC में सोनिया गांधी के बयान के मायने
दशहरे के ठीक अगले दिन कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक बुलायी गयी - और जब हिस्सा लेने के लिए कांग्रेस नेता पहुंचे तो उनके फोन बाहर ही जमा करा लिये गये, ताकि कोई खबर लीक न हो. फिर भी खबर लीक हुई, लेकिन वही जो कांग्रेस नेतृत्व के फेवर में हो.
कांग्रेस कार्यकारिणी में सोनिया गांधी के जवाब से नये सवाल पैदा हो सकते हैं!
कांग्रेस के G-23 शुरू से ही सोनिया गांधी के निशाने पर देखे गये और बैठक से बाहर ही फोन जमा करा लेने की वजह भी उनकी बातों से ही समझ में आ गयी, 'हम सभी यहां पर खुले माहौल में ईमानदारी से चर्चा करते हैं - लेकिन इस चाहरदीवारी से बाहर जो बात जाये वो सीडब्ल्यूसी का सामूहिक फैसला होना चाहिये.'
सोनिया गांधी कार्यकारिणी की बैठक में बेहद अदब और तहजीब के साथ जो बातें कही है, वे लोकतांत्रिक तो नहीं समझी जा सकतीं, सिवा अंग्रेजी भाषा और शब्दों के चयन के लहजा भी अधिकारवादी ही है - और अंदाज तो बागियों की बातों को कुचल डालने जैसा ही लगता है.
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी का पूरा जोर हाल फिलहाल उठाये गये सारे सवालों को खारिज करने पर रहा. सोनिया गांधी कार्यकारिणी की बैठक में मौजूद साथी नेताओं को साफ तौर पर समझाने की कोशिश की वो ही कांग्रेस की सुप्रीम कमांडर हैं - और वे सारे फैसले जिन पर सवाल उठाये जाते रहे, किसी और के नहीं बल्कि उनके ही लिये गये फैसले हैं.
कांग्रेस की तरफ से शेयर किये गये बयान के मुताबिक, सोनिया गांधी ने कहा है, 'अगर आप मुझे ऐसा बोलने की अनुमति मिले तो, मैं ही पूर्णकालिक और पूरी तरह सक्रिय कांग्रेस अध्यक्ष हूं.'
सोनिया गांधी का ये बयान कुछ और नहीं बल्कि महज एक भावनात्मक कथन लगता है. काफी हद तक इमोशनल अत्याचार के दायरे में सिमटा हुआ - और इस बयान से तो साफ साफ लगता है कि ये सिर्फ और सिर्फ G-23 को खामोश करने के लिए पहले लिखा और फिर पढ़ा या कहें कि बोला गया है.
आखिर ये G-23 नेताओं की ही तो डिमांड रही है कि कांगेस को एक फुल टाइम अध्यक्ष की जरूरत है. सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी में बागी करार दिये जाने वाले सीनियर कांग्रेस नेताओं ने यही सलाह तो दी थी.
सोनिया गांधी का ये कहना कि बतौर कांग्रेस अध्यक्ष वो पूरी तरह सक्रिय हैं, ये भी कांग्रेस नेताओं की चिट्ठी में सुझाये गये ऐसे कांग्रेस अध्यक्ष की दरकार का जवाब लगता है, जो अध्यक्ष के तौर पर काम करता हुआ नजर भी आये - जाहिर है कांग्रेस नेताओं ने राहुल गांधी के कुछ महीनों के कार्यकाल को देखते हुए ही ऐसी बात कही थी.
सोनिया गांधी की नजर में राहुल गांधी का जितना भी उम्दा प्रदर्शन रहा हो, मां होने के नाते उनका हक भी बनता है, लेकिन कांग्रेस नेताओं ने तो ऐसा कभी महसूस किया नहीं, तभी तो पत्र लिख कर ऐसी सलाह भरी डिमांड रखी है.
पंजाब कांग्रेस में मचे बवाल के बीच कपिल सिब्बल ने सवाल किया था कि जब कांग्रेस के पास पूर्णकालिक अध्यक्ष है ही नहीं तो फैसले कौन लेता है?
सोनिया गांधी के बयान में कपिल सिब्बल के सवाल के जवाब से ज्यादा स्वयंभू-सुप्रीम कमांडर जैसे ध्वनि सुनायी पड़ रही है. कपिल सिब्बल सिर्फ कहते ही नहीं कि वो जी-23 नेता हैं, जी-हुजूर-23 नहीं, बल्कि पेशे से जाने माने वकील होने के नाते वो ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के संविधान से भी अच्छी तरह वाकिफ होंगी, ऐसा समझा जा सकता है.
वैसे भी कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक के बाद सार्वजनिक तौर पर बताया यही गया था कि सोनिया गांधी अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर काम करती रहेंगी जब तक कि चुनाव के बाद नया अध्यक्ष कामकाज नहीं संभाल लेता. साल भर बीतने पर जब ये सवाल गंभीर होने लगे तब भी सोनिया गांधी ने इमोशनल कार्ड ही खेला था - ये बोल कर कि वो इस्तीफा देने को तैयार हैं. सोनिया गांधी के ऐसा कहते ही करीबी कांग्रेस नेता मान मनौव्वल में जुट गये. वैसी ही मान मनौव्वल कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भी फिर से कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालने को लेकर करते रहे हैं.
G-23 नेताओं को ही संबोधित करते हुए सोनिया गांधी ने कड़े शब्दों के साथ एक और भी महत्वपूर्ण बात कही है, 'मैंने हमेशा साफगोई की सराहना की है... मुझसे मीडिया के जरिये बात करने की जरूरत नहीं है.'
जो राहुल गांधी और सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर इल्जाम लगाते हैं कि केंद्र सरकार ने देश में बोलने की इजाजत खत्म कर रखी है, वही कांग्रेस नेतृत्व अपने ही साथी नेताओं को खामोश रहने का एकतरफा फरमान जारी कर रहा है.
सवाल ये है कि मीडिया के जरिये बातचीत की जरूरत ही क्यों पड़ी?
G-23 नेताओं का पत्र भी तो इसी वजह से अस्तित्व में आया क्योंकि उनके पास अपनी बात रखने के लिए कोई मंच नहीं मिल रहा था, लिहाजा संचार के उस परंपरागत माध्यम का इस्तेमाल किया जो अब भी मान्य और कारगर समझा जाता है. चिट्ठी को लेकर CWC की जो पहली मीटिंग बुलायी गयी थी उसमें भी गांधी परिवार के कुछ करीबी नेता चिट्ठी लिखने की हिम्मत जुटाने के चलते ही गुस्से में दिखे.
भले ही वो चिट्ठी लिखे जाने के कुछ दिनों बाद मीडिया में लीक हो गयी, लेकिन वो कोई खुला पत्र थोड़े ही था - और G-23 नेताओं को भी इसी बात का मलाल रहा कि कार्यकारिणी में चिट्टी के कंटेंट को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई - और न ही बाद में भी ऐसी कोई कोशिश ही नजर आयी.
कार्यकारिणी की उस बैठक के बाद राहुल गांधी ने गुलाम नबी आजाद से एक बार बात जरूर की थी - और फिर कांग्रेस नेता कमलनाथ की पहल पर एक विशेष मीटिंग और बुलायी गयी जिसमें राहुल गांधी के साथ साथ गुलाम नबी आजाद भी बुलाये गये थे. वो मीटिंग भी सोनिया गांधी की मंजूरी से ही बुलायी गयी थी, लेकिन मीटिंग के बाद जिस तरीके से बयानबाजी हुई, गुलाम नबी आजाद ने मीडिया के सामने कहा था कि मीटिंग बुलाने की जरूरत ही क्या थी?
ऐसी सूरत में कांग्रेस नेताओं के पास अपनी बात मीडिया के जरिये कहने के अलावा रास्ता ही क्या बचता है - और अब तो उस पर भी लगता है एकतरफा बैन लगा दिया गया है.
सोनिया ने सबको जवाब देने की कोशिश की है
अब तो खबर ये आ रही है कि नवजोत सिंह सिद्धू ने आलाकमान से मिलने के बाद पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से दिया अपना इस्तीफा वापस ले लिया है, लेकिन सितंबर, 2021 के आखिर में कैप्टन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद दिल्ली दौरे पर निकले और फिर केंद्रीय केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करने पहुंचे. तभी कपिल सिब्बल ने ये बोल कर हंगामा खड़ा कर दिया कि 'जब कांग्रेस के पास जब कोई चुना हुआ अध्यक्ष है ही नहीं, तो फैसले कौन ले रहा है?'
ये बोलना ही भर था कि कपिल सिब्बल गांधी परिवार के करीबियों के निशाने पर आ गये - और विरोध का आलम तो ये रहा कि दिल्ली कांग्रेस के कार्यकर्ता उनके घर तक पहुंच गये, हाथों में तख्तियां लिये, जिन पर लिखा था - 'गेट वेल सून सिब्बल.' हंगामे के बीच कांग्रेस कार्यकर्ता नारेबाजी भी कर रहे थे - 'गद्दारों को पार्टी से बाहर निकालो.' कपिल सिब्बल के साथ हुए ऐसे व्यवहार के बाद कई कांग्रेस नेताओं ने घटना की आलोचना भी की और ऐसी ही अपेक्षा राहुल गांधी और सोनिया गांधी से भी रही, लेकिन वे चुप ही रहे. यहां तक कि गांधी परिवार के करीबी समझे जाने वाले पी.
चिदंबरम ने भी ट्विटर पर लिखा, 'जब पार्टी फोरम पर हम सार्थक संवाद की शुरुआत नहीं कर सकते - और जब हम कांग्रेस कार्यकर्ताओं को एक साथी नेता के घर के बाहर नारेबाजी करते देखते हैं तो मैं खुद को असहाय पाता हूं.' जब हालात ऐसे हो चले हों, फिर भी कांग्रेस नेतृत्व साथी नेताओं से कहे कि मीडिया के जरिये बातचीत की जरूरत नहीं है तो क्या कहा जाये? कार्यकारिणी की बैठक में बात होगी नहीं, चिट्ठी लिखे जाने पर भी न चर्चा होगी न जवाब मिलेगा तो कांग्रेस नेता क्या करेंगे?
पंजाब कांग्रेस विवाद के बीच तीन प्रमुख चीजें देखने को मिलीं - एक नवजोत सिद्धू को पीसीसी अध्यक्ष बनाया जाना, कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के लिए कहना और राज्य कांग्रेस के नेताओं की नाराजगी खत्म किये बगैर चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का नया मुख्यमंत्री बनाया जाना. जब एक के बाद एक ये ताबड़तोड़ फैसले सामने आये तो माना जाने लगा कि प्रियंका गांधी वाड्रा की पहल पर राहुल गांधी की सहमति से सोनिया गांधी ऐसे फैसलों को मंजूर कर रही हैं - और निष्कर्ष ये निकाला जाने लगा कि दोनों भाई-बहन यानी राहुल और प्रियंका ही अब कांग्रेस आलाकमान बन चुके हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि कैप्टन के विरोध के बावजूद विधानसभा चुनाव से कुछ ही महीने पहले नवजोत सिंह सिद्धू को पीसीसी की कमान सौंप दी गयी और फिर सिद्धू के मनमाफिक कैप्टन से इस्तीफा मांग लिया गया. एक तरफ ये सब कयास लगाये जा रहे थे और तभी कपिल सिब्बल ने भी सवाल उठा दिये - और अब सोनिया गांधी ने एक साथ सभी सवालों का जवाब देने की कोशिश की है, लेकिन ये जवाब भी अधूरा ही लगता है.
कांग्रेस नेतृत्व के ऐसे ही रवैया का नतीजा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव, लुईजिन्हो फलेरियो और ललितेशपति त्रिपाठी जैसे नेता एक एक के कांग्रेस छोड़ते जा रहे हैं - और दूसरी तरफ कपिल सिब्बल जैसे नेता भी हैं जो कांग्रेस में रह कर ही सवाल उठा रहे हैं. सोनिया गांधी के कार्यकारिणी की बैठक में बयान पर भले ही कुछ नेता वाह-वाह किये हों और ताली भी बजाये हों, लेकिन मुद्दे की बात तो यही है कि G-23 के सवालों के जवाब देने की जगह एक बार फिर टाल दिया गया है - और ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व को नये चैलेंज के लिए तैयार रहना होगा.
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