मजदूरों के किराये पर सोनिया गांधी के पास बरसने का मौका था गरजने में ही गंवा दिया
सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने हड़बड़ी में मजदूरों के लिए ट्रेन (Shramik Special Train) के किराये लिये जाने पर मोदी सरकार (Narendra Modi) के खिलाफ बड़ा मौका गंवा दिया है - सोनिया गांधी ने सूझ-बूझ से काम लिया होता तो कांग्रेस को मजदूरों की सहानुभूति के साथ मजबूत सपोर्ट भी मिलता.
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दिहाड़ी मजदूरों को लेकर हुई राजनीति से उनका फायदा ही हुआ है. अगर वे घर लौटने के लिए रेल टिकट (Shramik Special Train) का पैसा दे चुके हैं, अब उनको वापस मिल जाएगा. जो अब तक पैसा न दिये हों उनको लगता नहीं कि अब देने भी पड़ेंगे.
राजनीतिक घमासान के बाद राज्य सरकारें हरकत में आ चुकी हैं. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खर्च उठा ही रहे हैं और बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी पैसा लौटाने की घोषणा कर चुके हैं - जाहिर है बाकी कोई भी राज्य सरकार अब मजदूरों से टिकट के पैसे वसूलने की हिम्मत नहीं ही जुटाएगी.
ये तो साफ है कि अगर सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने कदम नहीं बढ़ाया होता तो बाकी कुछ हो न हो, तस्वीर तो साफ नहीं ही हो पाती कि हो क्या रहा है?
लेकिन ये भी सोचने वाली बात है कि जिस मसले पर सोनिया गांधी केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की सरकार को अच्छी तरह कठघरे में खड़ा कर सकती थीं, हड़बड़ी में बड़ा मौका हाथ से निकल जाने दिया - या जो हुआ बस उतना ही होने देने का मकसद रहा?
सब्सिडी है, मुफ्त सेवा नहीं
श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को लेकर रेलवे का स्टैंड शुरू से ही साफ रहा - सब्सिडी तक की बात तो संभव है, लेकिन मुफ्त में तो कुछ भी नहीं. कतई नहीं. हो सकता है उसके पुराने सर्कुलर में कुछ खामियां रही हों, लेकिन मंशा शुरू से ही साफ रही. सफर का किराया देना होगा और देना ही होगा.
रेलवे की तरफ से सफाई तो आई है, लेकिन औपचारिक नहीं - सिर्फ सूत्रों के हवाले से और उससे गाइडलाइन को लेकर जो तस्वीर उभर रही है, वो है -
1. मजदूरों को भेजने वाले राज्यों को ही किराया देना होगा. ये उस राज्य पर निर्भर करता है कि वो खुद वहन करता है या किसी फंड से व्यवस्था करता है या जिस राज्य में गाड़ी पहुंचनी है उससे पैसे लेता है या उसके साथ शेयर करता है - ये सिर्फ और सिर्फ राज्य सरकार पर निर्भर करता है.
2. राज्य सरकार के अधिकारी ही तय करेंगे कि किन यात्रियों को टिकट देना है और किराया वसूल कर पूरा का पूरा रेलवे को दे देंगे.
3. मीडिया को खबर देने के लिए रेलवे के सूत्रों ने ही बता दिया कि किराये के नाम पर जो भी पैसे लिये जा रहे हैं वे लागत के सिर्फ 15 फीसदी ही हैं क्योंकि 85 फीसदी रेलवे खुद वहन कर रहा है.
बतौर किराया जो रकम ली जानी है वो भी ट्रेनों को सैनिटाइज करने, यात्रियों को खाना, पानी और देने के लिए लिये जा रहे हैं. पहले भी खबर आयी थी कि स्लीपर क्लास का किराया होगा और उसमें 30 रुपये सुपरफास्ट चार्ज और 20 रुपये पानी की बोतल के लिए देने होंगे.
मास्टर स्ट्रोक से भी बड़ा मौका हाथ से निकल गया
सोनिया गांधी की पहल को मास्टरस्ट्रोक बताया और माना जा रहा है, लेकिन कांग्रेस में मालूम नहीं ये कोई सोच रहा है कि नहीं कि मास्टरस्ट्रोक से भी बड़ा मौका हाथ से निकल गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने में एक बार फिर चूक गयीं सोनिया गांधी
जब कांग्रेस नेताओं ने मजदूरों से किराया लिये जाने का मुद्दा उठाया तो बीजेपी की तरफ से आये संबित पात्रा के बचाव का तरीका ही बड़ा कमजोर रहा. राहुल गांधी को संबोधित अपने जिस ट्वीट में संबित पात्रा ने जवाब दिया वो नाकाफी था. राजनीतिक जवाब के लिए कई बार तथ्यों की जरूरत नहीं पड़ती लेकिन जब तथ्यों को ही आधार बनाया जाये तो वे गुमराह करने वाले नहीं होने चाहिये.
Rahul Gandhi ji,I have attached guidelines of MHA which clearly states that “No tickets to be sold at any station”Railways has subsidised 85% & State govt to pay 15%The State govt can pay for the tickets(Madhya Pradesh’s BJP govt is paying)Ask Cong state govts to follow suit https://t.co/Hc9pQzy8kQ pic.twitter.com/2RIAMyQyjs
— Sambit Patra (@sambitswaraj) May 4, 2020
जिस लाइन पर लाल निशान के साथ संबित पात्रा कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर जवाबी हमला बोल रहे हैं उसमें तो सिर्फ यही बताया गया है कि टिकट स्टेशन पर नहीं बेचे जाएंगे - ये कहां लिखा है कि टिकट बेचे ही नहीं जाएंगे. जब रेलवे पहले से ही कह रहा है कि वो पैसे लेगा राज्य सरकार जाने कि वो कहां से देगी, तो संबित पात्रा का ये जवाब तो वैसा ही जैसा गौरव वल्लभ के 5 ट्रिलियन में शून्यों की संख्या को लेकर रहा.
बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा वाले ही सरकारी कागज को लेकर सीपीआई नेता सीताराम येचुरी ने भी सवाल उठाया है - मोदी सरकार के इस नोट से एक बात साफ है कि केंद्र सरकार मजदूरों के घर जाने का खर्च नहीं उठा रही है. सीताराम येचुरी ने प्रधानमंत्री कोष को लेकर भी कहा है कि चाहे जो दलील दी जाये लेकिन करोड़ों का फंड होने के बावजूद जो सबसे ज्यादा परेशान है उसे नहीं मिल रहा है.
सोनिया गांधी के बयान देने के पहले ही, कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने बीएस येदियुरप्पा सरकार को मजदूरों के लिए एक करोड़ डोनेट करने का ऑफर कर ही दिया था. बाद में ट्विटर पर अहमद पटेल ने भी मदद की औपचारिक घोषणा कर ही दी थी.
As directed by Congress President,in my capacity as Treasuer(AICC) I request Pradesh Congress Committees to mobilise all possible local resources to help migrants purchase tickets to get back home
Let us make this into a ppl’s movement,pls contact AICC if you require assistance
— Ahmed Patel (@ahmedpatel) May 4, 2020
सोनिया गांधी के बयान से सरकार तिलमिला उठी, इसमें कोई दो राय नहीं है. सोनिया गांधी के बयान जारी करने और वीडियो मैसेज के बाद ही सही सरकार के संकटमोचकों को चूक का एहसास हुआ, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व पूरा राजनीतिक फायदा उठाने से चूक गया.
सोनिया गांधी ने कहा, '1947 के बाद देश ने पहली बार इस तरह का मंजर देखा जब लाखों मजदूर पैदल ही हजारों किलोमीटर पैदल ही चल कर घर जा रहे हैं.'
सोनिया गांधी ने सरकार को घेरते हुए कहा कि जब हम लोग विदेश में फंसे भारतीयों को बिना किसी खर्च के वापस ला सकते हैं. गुजरात में एक कार्यक्रम में सरकारी खजाने से 100 करोड़ रुपये खर्च कर सकते हैं. अगर रेल मंत्रालय प्रधानमंत्री राहत कोष में 151 करोड़ रुपये दे सकता है तो मुश्किल वक्त में मजदूरों के किराये का खर्च क्यों नहीं उठाया जा सकता है?
जब क्रेडिबिलिटी दांव पर लगी हो तो क्रेडिट आसानी ने नहीं मिलता. सोनिया गांधी को हर बात मालूम है लेकिन गौर करती हैं या नहीं ये वो ही जानें. सार्वजनिक तौर पर सबसे पहले राहुल गांधी ने ही जोरदार तरीके से कोरोना के खतरे के प्रति आगाह कराया था, लेकिन कोरोना वायरस के खिलाफ जंग का श्रेय पूरा का पूरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खाते में गया और राहुल गांधी का 12 फरवरी का वो ट्वीट सिर्फ ऐसे प्रसंगों में चर्चा का हिस्सा भर हो पाता है. सबसे पहले कांग्रेस शासित राज्य ने लॉकडाउन का ऐलान किया, लेकिन राहुल गांधी को भीलवाड़ा मॉडल का क्रेडिट देने की कोशिश में कांग्रेस नेतृत्व ने जग हंसाई को दावत दे डाली. बचा खुचा राहुल गांधी के वीडियो शो पानी फेरने के लिए काफी है.
अगर इतनी ही तत्परता थी तो सोनिया गांधी कांग्रेस के मैनेजरों को बोल देतीं कि जितने भी मजदूरों के टिकट हैं उनके पैसे पार्टी की तरफ से दे दिये जायें. वे मजदूर आराम से जब घर पहुंच जाते और तब सोनिया गांधी का बयान आता तो कितना असरदार होता. फिर तो कांग्रेस नेता घूम घूम कर बताते कि कैसे वे सेवा में यकीन रखते हैं सेवा के प्रदर्शन में नहीं.
ये काम भी बड़ा आसान था. रेलवे ने तो बोल ही दिया था कि राज्य सरकार जैसे चाहे पैसे का इंतजाम करे. जरूरी नहीं कि कांग्रेस ऐसा देश के सभी राज्यों में करती या कर पाती भी, लेकिन तीन राज्य जहां कांग्रेस की सरकारें हैं और वे राज्य जहां ठीक-ठाक हिस्सेदारी है और वे भी राज्य जहां थोड़ा बहुत एक्सेस है - बड़े आराम से कांग्रेस नेता कर सकते थे.
अगर सोनिया गांधी के पास राहुल गांधी को पुनर्स्थापित करने कोई ठोस उपाय नहीं है तो शाम तक उनके भी बयान का कोई नामलेवा बचेगा, कहा नहीं जा सकता. ये भी तो किस्मत की ही बात है कि सोनिया गांधी के बयान पर शराबियों की खबर ने ही पानी फेर दिया है.
हां, अगर सोनिया गांधी का इरादा मोदी सरकार को मजदूरों के नाम पर गिदड़भभकी देना भर ही रहा, फिर तो कोई बात ही नहीं - ऐसे मौके तो हर दूसरे तीसरे आते और जाते भी रहेंगे.
अव्वल तो भूखे-प्यासे दिहाड़ी मजदूरों से घर लौटने के लिए किराये लेना ही बहुत बड़ी नाइंसाफी थी. वे लौट तो इसीलिए रहे हैं क्योंकि जहां हैं वहां उनके खाने पीने के इंतजाम खत्म हो गये हैं. ऐसा भी नहीं कि वे लौट कर घर जा रहे हैं तो वहां सब कुछ पड़ा हुआ है.
मजदूर कभी भी घर से दूर तभी जाता है जब आस पास उसे काम नहीं मिलता. वो वहीं जाता है जहां उसे दिन भर के काम के पैसे मिल जाये. कभी कभी जरूरत पड़ने पर कुछ उधार भी मिल जाये तो जिंदगी का सबसे बड़ा बोनस साबित होता है. बाहर जाने पर भी हर रोज काम मिले ही निश्चित नहीं होता. हर रोज एक नया संघर्ष लेकर आता है. सुबह सुबह दोपहर के लिए रोटी की पोटल लेकर वो लेबर चौक पर पहुंच जाता है और उसे ये कभी नहीं पता होता कि उसके काम की मंजिल किस दिशा में जाती है. अक्सर हर शहर में एक लेबर चौक जरूर होता है - कहीं नाम के साथ घोषित और कहीं अघोषित. मजदूर जहां खड़ा होता है वही मजदूर चौक भी बन जाता है.
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