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Updated: 28 फरवरी, 2020 01:54 PM
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दिल्ली दंगों (Delhi riots) को लेकर सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने अमित शाह (Amit Shah) का इस्तीफा मांगने के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से गृह मंत्री को पद से हटाने की मांग की है. कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी का आरोप है कि दिल्ली में हिंसा रोकने के लिए केंद्र सरकार ने कुछ भी नहीं किया और उम्मीद जतायी है कि राष्ट्रपति जरूरी कदम उठाएंगे. सोनिया गांधी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ राष्ट्रपति भवन जाकर एक ज्ञापन भी सौंपा है.

राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद डॉ. मनमोहन सिंह ने दिल्ली के दंगों को राष्ट्रीय शर्म करार दिया - और बताया कि कांग्रेस ने राष्ट्रपति से केंद्र सरकार को राजधर्म (Rajdharma for Modi Sarkar) याद दिलाने की अपील की है. कांग्रेस की इस अपील के मायने समझना जरूरी है. खासकर ये कि कांग्रेस नेतृत्व दिल्ली हिंसा को किस नजरिये से देख रहा है या फिर वो इसे किस रूप में प्रोजेक्ट करने जा रहा है?

कांग्रेस के 'राजधर्म' याद दिलाने के मायने?

दिल्ली हिंसा के मामले में मोदी सरकार के लिए 'राजधर्म' याद दिलाये जाने की कांग्रेस की मांग की क्या वजह हो सकती है?

हो सकता है सोनिया गांधी को एहसास हो गया हो कि अमित शाह का इस्तीफा मांगने के मामले में कांग्रेस के सलाहकारों ने जल्दबाजी दिखायी और बात बिगड़ गयी. जैसे ही सोनिया गांधी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के इस्तीफे की मांग की, बीजेपी नेता एक एक कर कांग्रेस पर धावा बोल दिये - और कांग्रेस नेतृत्व को 1984 के सिख दंगे की याद दिलायी जाने लगी. साथ में, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का वो बयान भी याद दिला डाला जिसमें वो कहे थे, जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलने लगती है. ऐसा लगता है कांग्रेस नेतृत्व को ये एहसास बीजेपी नेताओं की तरफ से रिएक्शन आने के बाद हुआ हो.

अगर कांग्रेस नेतृत्व ने अमित शाह के इस्तीफा मांगने पर बीजेपी की तरफ से प्रतिक्रिया का आकलन पहले ही कर लिया होता तो शायद बयान कुछ और होता. कुछ भी सवाल पूछे जा सकते थे और इस्तीफा मांगने से बचा जा सकता था. होने को ये भी हो सकता है कि सोनिया गांधी ने बीजेपी की प्रतिक्रियाओं के बाद भी आगे तक की रणनीति तैयार कर रखी हो. फिर भी एक बात तो साफ है कि दिल्ली के सिख दंगे कांग्रेस की कमजोर कड़ी हैं - और जब भी ये मुद्दा उठता है कांग्रेस के किसी भी नेता को जवाब देते नहीं बनता. राहुल गांधी के साथ ऐसा कई बार हो चुका है कि सिख दंगों का सवाल उठते ही खामोशी अख्तियार करनी पड़ी है.

जहां तक राजधर्म का सवाल है तो निश्चित तौर पर ये प्रेरणा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से ही मिली होगी. असल में गुजरात दंगों के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और जब सवाल उठे तो ये नसीहत वाजपेयी की तरफ से आयी. गुजरात दंगों के कारण मोदी लंबे अरसे तक विरोधियों के निशाने पर रहे और गुजरात जाकर सोनिया गांधी उन्हें 'मौत का सौदागर' तक बोल आयीं. धीरे धीरे हर तरह की जांच में मोदी को क्लीन चिट मिलती गयी - और राजनीतिक नुकसान को देखते हुए कांग्रेस नेतृत्व ने भी वैसी बयानबाजी बंद कर दी.

कांग्रेस की तरफ से भी राजधर्म याद दिलाने वाली बात पहले मनमोहन सिंह से कहलवायी गयी, फिर सोनिया गांधी ने दोहराया. मनमोहन सिंह ने भी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से केंद्र सरकार को राजधर्म याद दिलाने की अपील की है. वैसे भी ऐसा करने के लिए कांग्रेस के पास और कोई चारा भी न था.

sonia gandhi and congress leadersसोनिया गांधी ने मोदी सरकार को घेरने की कहां तक तैयारी कर ली है?

अब सवाल है कि क्या कांग्रेस दिल्ली हिंसा को 2002 के गुजरात दंगे से जोड़ कर देख रही है?

और अगर ऐसा है तो क्या कांग्रेस गुजरात दंगे के नाम पर फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अब अमित शाह को भी घेरने की कोई रणनीति तैयार कर रही है?

बीजेपी को भी लगता है कांग्रेस के अगले कदमों का एहसास हो गया है, तभी तो केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर दंगों के पीछे कांग्रेस का हाथ होने का इल्जाम लगा रहे हैं. प्रकाश जावड़ेकर ने सोनिया गांधी के रामलीला मैदान वाले बयान की याद दिलाते हुए आरोप लगाया है कि ये तैयारी दो महीने से चल रही थी. सोनिया गांधी ने CAA के विरोध में कांग्रेस की रैली में लोगों को घरों से निकलने की अपील की थी.

सोनिया गांधी के मोर्चा संभालने का मतलब?

दिल्ली हिंसा को लेकर जिस तरह से कांग्रेस एक्शन में आयी है उसमें कई ऐसी चीजें हैं वो ध्यान खींच रही हैं. महत्वपूर्ण मौकों पर सोनिया गांधी आगे आती हैं और बयान जारी करती रही हैं. रामलीला मैदान में तो पूरा परिवार ही मंच पर मौजूद रहा. कांग्रेस के स्थापना दिवस पर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने अलग अलग जगहों से मोर्चा संभाला था - लेकिन अब मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चे पर सबसे आगे सोनिया गांधी ही नजर आ रही हैं.

सोनिया गांधी के अलावा दिल्ली हिंसा को लेकर प्रियंका गांधी वाड्रा पार्टी के नेताओं के साथ कांग्रेस मुख्यालय से गांधी स्मृति तक शांति मार्च पर निकली थीं, लेकिन रास्ते में ही रोक लिया गया. बाद में पता चला कांग्रेस नेताओं का ये मार्च अमित शाह का इस्तीफा मांगने के लिए था. चूंकि ये बात ट्विटर पर कांग्रेस के हैंडल से शेयर की गयी इसलिए किसी का ध्यान नहीं गया. बवाल तब शुरू हुआ जब CWC की बैठक के बाद सोनिया गांधी ने मीडिया के सामने खुद अमित शाह से इस्तीफा देने को कहा. फिर ट्विटर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गृह मंत्री अमित शाह को हटाने की मांग शुरू हुई और अब ये मांग राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद तक पहुंचायी गयी है.

जो चीज सबसे ज्यादा ध्यान खींचने वाली है, वो है - राहुल गांधी का सीन से गायब होना?

सोनिया गांधी सीधे मैदान में उतर कर मोदी सरकार को घेर रही हैं, प्रियंका गांधी वाड्रा भी सड़क पर शांति मार्च के लिए निकलती हैं - लेकिन राहुल गांधी की राजनीति सिर्फ ट्विटर तक सिमटी नजर आ रही है. राहुल गांधी ने दिल्ली हिंसा को लेकर एक ट्वीट किया था और उनका ताजा ट्वीट दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस मुरलीधर राव के तबादले को सीबीआई के विशेष जज बीएच लोया की मौत से जोड़ कर हुआ है. हाल फिलहाल राहुल गांधी के बयानों को लेकर विवाद भी खूब हुआ है - और मोदी सरकार पर बेअसर भी लगने लगा है. राहुल गांधी का ऐसा आखिरी बयान प्रधानमंत्री मोदी को लेकर 'डंडा मार...' रहा है.

सोनिया गांधी को लेकर, इस बीच, मनीष तिवारी का भी एक बयान आया है. इकनॉमिक टाइम्स से बातचीत में कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा है कि सोनिया गांधी अगर कांग्रेस की अध्यक्ष बनी रहती हैं तो ये पार्टी के लिए अच्छा है. मनीष तिवारी का ये बयान शशि थरूर के उस बयान के बाद आया है जिसमें उन्होंने राहुल गांधी के दिलचस्पी न लेने की स्थिति में कांग्रेस के लिए स्थायी अध्यक्ष होने पर जोर दिया था. उनसे पहले कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने भी कांग्रेस के सीनियर नेताओं को खरी-खोटी सुनाते हुए कहा था कि कांग्रेस में करीब आधा दर्जन नेता ऐसे हैं जो पार्टी को मजबूत नेतृत्व दे सकते हैं.

अब तो ऐसा लग रहा है राहुल गांधी को पीछे कर सोनिया गांधी ने खुद आगे बढ़ कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह से दो-दो हाथ करने का फैसला कर लिया है - अमित शाह का इस्तीफा मांगने के बाद राष्ट्रपति से मिलकर मोदी-शाह को नये सिरे से घेरने की तैयारी कर ली है. जाहिर है सोनिया गांधी इस बात के लिए भी तैयार होंगी कि बीजेपी हमले करेगी ही और उसका काउंटर करने के उपाय खोजने होंगे.

राहुल गांधी के पीछे हट जाने और अध्यक्ष की कुर्सी पर न लौटने के फैसले पर अड़े रहने से कांग्रेस वैसे भी लड़खड़ाने लगी थी. कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर ही सवाल उठने लगे थे. हाल के चुनावों से दूर रहीं सोनिया गांधी को दिल्ली हिंसा ने राजनीति आगे बढ़ाने का मौका दे दिया है और वो मौके का पूरा फायदा उठाने लगी हैं.

सोनिया के नये अवतार में सिर्फ राहुल गांधी ही नहीं, विपक्षी नेताओं की गैरमौजूदगी भी दर्ज हो रही है. ऐसे मौकों पर सोनिया गांधी को विपक्षी नेताओं को साथ लेकर चलते देखा गया है, लेकिन राष्ट्रपति से मुलाकात में सिर्फ कांग्रेस के नेता ही साथ रहे - ये बात भी विशेष रूप से ध्यान देने वाली है.

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