कांग्रेस में राहुल गांधी ही बिल्ली के गले में घंटी बांध सकते हैं
कांग्रेस के भीतर से फिर आवाज उठी है और वो नेतृत्व (Rahul Gandhi and Sonia Gandhi) को ही आगाह करने की कोशिश कर रही है. संदीप दीक्षित (Sandeep Dikshit) और शशि थरूर (Shashi Tharoor) के बयानों में भी स्थाई कांग्रेस अध्यक्ष (Search for Congress President) को लेकर ही दर्द है जो पार्टी को मजबूत नेतृत्व दे सके.
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जीत के जोश में जरूरी आवाजें दब जाया करती हैं - हार वो आईना है जो ऐसी बातों को खाद-पानी मुहैया कराता है. दिल्ली चुनाव में कांग्रेस का खाता तक न खुलना भी ऐसी ही एक मिसाल है. तभी तो कांग्रेस के पूर्व सांसद संदीप दीक्षित (Sandeep Dikshit) के जबान खोलते ही, शशि थरूर (Shashi Tharoor) भी सपोर्ट में सामने आ गये हैं.
दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित का कहना है कि कांग्रेस के कई नेता डरते हैं और यही वजह है कि कांग्रेस अध्यक्ष (Search for Congress President) की तलाश पूरी नहीं हो पा रही है. संदीप दीक्षित के मुताबिक डर की वजह ये है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे?
संदीप दीक्षित की नजर में कांग्रेस में अब भी आधा दर्जन से ज्यादा नेता ऐसे हैं जो पार्टी का मजबूती के साथ नेतृत्व कर सकते हैं. अपनी दलील के सपोर्ट में संदीप दीक्षित ने अपनी मां शीला दीक्षित और हरियाणा कांग्रेस के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा का उदाहरण भी दिया है.
संदीप दीक्षित जो इशारे कर रहे हैं वे कहीं कहीं राहुल गांधी के नजरिये से भी मेल खाते लगते हैं - और ऐसे में यही लगता है कि संदीप दीक्षित बिल्ली के गले में जो घंटी बांधने की बात कर रहे हैं वो काम राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ही कर सकते हैं.
जिम्मेदार कौन है कांग्रेस की दुर्गति के लिए
इंडियन एक्सप्रेस को दिये इंटरव्यू में संदीप दीक्षित ने नेताओं के अंदर समाये जिस डर की तरफ इशारा किया है, शशि थरूर ने उसी को एनडोर्स किया है - ये ज्यादातर कांग्रेस नेताओं के मन की बात है.
संदीप दीक्षित ने जो कुछ कहा है उसमें इशारा तो कुछ ही सीनियर नेताओं की तरफ है, लेकिन निशाने पर गांधी परिवार ही है. संदीप दीक्षित की नजर में कई वरिष्ठ कांग्रेस नेता हैं जो चाहते ही नहीं कुछ हो. संदीप दीक्षित का कहना है कि ऐसे नेताओं के पास मुश्किल से चार-पांच साल बचे हैं फिर भी कुछ नहीं कर रहे हैं.
संदीप दीक्षित कहते हैं, 'वरिष्ठ नेताओं ने वास्तव में काफी निराश किया है. निश्चित तौर पर उन्हें सामने आना चाहिये. जो राज्यसभा में हैं, जो फिलहाल मुख्यमंत्री हैं या पहले रह चुके हैं और जो वरिष्ठ हैं - मुझे लगता है कि उन्हें सामने आकर पार्टी के लिए कड़े फैसले लेने का वक्त आ गया है.'
संदीप दीक्षित का मानना है कि कांग्रेस के पास नेताओं की कमी नहीं है, 'अब भी कांग्रेस में कम से कम 6- 8 नेता हैं जो अध्यक्ष बनकर पार्टी का नेतृत्व कर सकते हैं.'
संदीप दीक्षित ने नेताओं के नाम लेकर भी सवाल पूछे हैं. संदीप दीक्षित पूछते हैं कि अमरिंदर सिंह, अशोक गहलोत और कमलनाथ आखिर क्यों नहीं मिलते? एके एंटनी, पी. चिदंबरम, सलमान खुर्शीद और अहमद पटेल का भी नाम लेते हैं. कहते हैं इन नेताओं ने कांग्रेस पार्टी के लिए काफी कुछ किया है. ये अपने करियर की ढलान पर हैं लेकिन बौद्धिक ज्ञान तो दे ही सकते हैं. पूछते हैं ये लोग निकलते क्यों नहीं - ऐसे नेता नये नेताओं की चयन प्रक्रिया में तो योगदान दे ही सकते हैं - केंद्र के लिए भी और राज्यों के लिए भी.
राहुल गांधी अगर कांग्रेस को डुबाने की तोहमत झेल सकते हैं तो उबारने का श्रेय भी हासिल कर सकते हैं
महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव के दौरान भी ऐसी ही बातें हो रही थीं. मुंबई में कांग्रेस नेता संजय निरूपम भी ऐसे ही सीनियर कांग्रेस नेताओं की बात कर रहे थे. संजय निरूपम के कहने का मतलब तो यही था कि नेतृत्व भी ऐसे ही नेताओं की बातें सुनता है. सोनिया गांधी हों या राहुल गांधी ऐसे ही नेताओं की सलाह से काम करता है. संदीप दीक्षित भी तो यही कह रहे हैं कि ये नेता न खुद काम करते हैं न किसी को करने देते हैं.
तो क्या जिन नेताओं की तरफ राहुल गांधी इशारा कर रहे थे, जिन नेताओं को प्रियंका कांग्रेस पार्टी के दफ्तर में बैठे हत्यारे समझ रही थीं, संदीप दीक्षित, शशि थरूर और संजय निरूपम भी गिनती के उन्हीं नेताओं की बात कर रहे हैं?
What @SandeepDikshit said openly is what dozens of party leaders from across the country are saying privately, incl many w/ responsible positions in the Party. I renew my appeal toCWC to hold leadership elections to energise workers&inspire voters. https://t.co/cotzJsRZnm
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) February 20, 2020
मतलब कांग्रेस नेतृत्व भी समझता है कि कौन कांग्रेस को डुबोने में लगा हुआ है लेकिन खामोश रह जाता है - आखिर ऐसी खामोशी की वजह क्या हो सकती है?
फिर क्या समझा जाये? शशि थरूर कांग्रेस के अंदरखाने की जिस आवाज की बात कर रहे हैं वो चंद सीनियर नेताओं के खिलाफ है या फिर गांधी परिवार के खिलाफ? सवाल ये भी है कि पार्टी के अंदर कांग्रेस नेताओं की आवाज सिर्फ चंद नेताओं के खिलाफ उठ रही है या फिर गांधी परिवार के खिलाफ भी?
राहुल गांधी के हाथ में है वो जादू
ये तीसरा मौका है जब शशि थरूर किसी मुद्दे पर खुल कर कांग्रेस नेतृत्व को आगाह करने की कोशिश कर रहे हैं. इससे पहले शशि थरूर नागरिकता संशोधन कानून पर कांग्रेस की राज्य सरकारों के प्रस्ताव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निजी हमले न करने की भी सलाह दे चुके हैं. धारा 370 को लेकर भी कांग्रेस में नेतृत्व के स्टैंड पर कई नेताओं ने अपना विरोध जताया था. मोदी के खिलाफ निजी हमलों पर शशि थरूर की सलाह भला क्या मायने रखती है, दिल्ली चुनाव में ही तो राहुल गांधी का 'डंडा मार' सड़क से लेकर संसद तक बखेड़ा खड़ा किये हुए था.
जो सोनिया गांधी कांग्रेस की सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष होने का रिकॉर्ड रखती हैं उनकी ही अंतरिम पारी बेअसर साबित हो रही है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने सरकार तो बना ली, लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ के खिलाफ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया आंदोलन करने की धमकी दे रहे हैं. कमलनाथ भी कह रहे हैं कि जो करना चाहते हैं कर लें. हो सकता है कमलनाथ को गांधी परिवार से मजबूत कनेक्शन पर ज्यादा यकीन हो - क्योंकि मध्य प्रदेश से दूर करने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को महाराष्ट्र का चुनाव प्रभारी बनाने के पीछे भी तो कमलनाथ का ही हाथ माना जा रहा था.
राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट कैसे मिलजुल कर काम कर रहे हैं उसका नजारा तो कोटा अस्पताल के मामले में देखा ही जा चुका है. पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू की लड़ाई ने क्या रूप लिया सभी गवाह हैं. अगर कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर कोई मजबूत नेतृत्व बैठा होता तो भी क्या ऐसा ही होता? किसी भी पार्टी के भीतर गुटबाजी तो कोई नहीं रोक सकता, लेकिन मजबूत नेतृत्व का फायदा ये होता है कि पार्टी को नुकसान नहीं उठाना पड़ता.
संदीप दीक्षित ने दो नेताओं का खास तौर पर नाम लिया है - शीला दीक्षित और भूपेंद्र सिंह हुड्डा. शीला दीक्षित को किस तरह कांग्रेस ने मिस किया वो तो दिल्ली चुनाव में कांग्रेस के कैंपेन में साफ साफ देखा गया. असल बात तो ये रही कि कांग्रेस के पास दिल्ली में बताने के लिए शीला दीक्षित के अलावा कुछ रहा ही नहीं.
संदीप दीक्षित इन दोनों नेताओं को जिम्मेदारी दिये जाने के बाद के असर की ओर ध्यान दिलाने की कोशिश कर रहे हैं. शीला दीक्षित को दिल्ली की जिम्मेदारी दिये जाने का असर ये हुआ कि कांग्रेस ने बीजेपी से मुकाबले में आम चुनाव में आम आदमी पार्टी को तीसरी पोजीशन पर पहुंचा दिया था. अब जाकर भले ही आम आदमी पार्टी अब अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में सत्ता में दोबारा वापसी कर चुकी हो.
हरियाणा चुनाव में भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कमाल ही कर दिया था. आखिर माना तो सभी ने कि अगर हुड्डा को लेकर फैसला थोड़ा पहले लिया गया होता तो नतीजे कुछ और ही होते. आखिर हुड्डा ने बीजेपी को बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने से पहले तो रोक ही दिया था.
हाल फिलहाल रह रह कर राहुल गांधी की वापसी की भी चर्चा हो रही है. जिस तरह से राहुल गांधी ने तय किया है कि वो गांधी परिवार से इतर ही किसी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने के पक्ष में हैं, लगता नहीं कि वो इतनी जल्दी अपना इरादा बदलने वाले हैं. अगर राहुल गांधी मां सोनिया गांधी और बहन प्रियंका गांधी वाड्रा के दबाव में फिर से कमान संभालने को तैयार भी हो जाते हैं तो उसका असर लगातार उनके काम पर पड़ना तय है.
अगर वास्तव में राहुल गांधी चाहते हैं कि गांधी परिवार से बाहर का ही कोई कांग्रेस अध्यक्ष बने तो वो उसके लिए भी रास्ता बना सकते हैं. राहुल गांधी ने ही कहा था कि नये अध्यक्ष का चुनाव कांग्रेस कार्यसमिति करेगी, लेकिन जब लगा कि कमान गांधी परिवार के हाथ से फिसल सकती है तो सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष के रूप में सामने कर बीच का रास्ता निकाला गया.
ऐसा भी नहीं कि राहुल गांधी के पास दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा है. ये राहुल गांधी ही हैं जो कांग्रेस को इस स्थिति से उबार सकते हैं. गांधी परिवार से होना अगर राहुल गांधी की कमजोरी बन रही है तो वही उनकी ताकत भी है. ये राहुल गांधी ही हैं जो नये कांग्रेस अध्यक्ष बनने में सबसे बड़े मददगार साबित हो सकते हैं. ये राहुल गांधी ही हैं जो कांग्रेस नेताओं का डर खत्म कर सकते हैं. ये राहुल गांधी ही हैं जो बिल्ली के गले में घंटी बांध सकते हैं!
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