हार का डर या वर्चस्व की कवायद तजीन फातिमा के स्वार से पर्चे ने सारी दास्तां खुद बता दी है!
भाजपा के सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) के हैदर अली खान के आगे हार का डर या वर्चस्व बरकरार रखने की कवायद। बेटे अब्दुल्ला के बाद तजीन फातिमा के स्वार से पर्चा भरने ने सारी दास्तां खुद ब खुद बयां कर दी है.
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उत्तर प्रदेश के सियासी रण के लिए बिगुल बज चुका है. भले ही बसपा-कांग्रेस, सपा- भाजपा, एआईएमआईएम और निर्दलीय सियासी रणभूमि में अपनी किस्मत आजमाने वाले हों. लेकिन जो उत्तर प्रदेश और यूपी की राजनीति को समझने वाले राजनीतिक पंडित हैं. उनका कयास यही है कि यूपी में मुकाबला सपा बनाम भाजपा होगा. दिलचस्प ये कि इस बात को यूपी के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी समझते हैं और अखिलेश भी इससे अवगत हैं. तो दोनों के पत्ते सेट हैं. चाहे वो टिकट बंटवारा हो या फिर रणनीतियां. जैसी स्थिति है, साफ है कि चाहे वो समाजवादी पार्टी हो या फिर भाजपा दोनों ही दलों के लिए हालात करो या मरो वाले हैं. भाजपा ने तो जकड़ ही रखा है. समजवादी पार्टी भी उन सीटों के प्रति खासी फिक्रमंद है जहां उनका कब्जा है. ऐसी सीटों को बचाने की रणनीतियां कितनी और किस हद तक पेंचीदा है इसे समझना हो तो रामपुर के स्वार विधानसभा सीट का रुख कर लीजिए. बात शीशे की तरह साफ हो जाएगी. स्वार में बेटे अब्दुल्ला आजम के साथ साथ मां तजीन फातिमा ने भी पर्चा भरा है. आजम खान की पत्नी तजीन की कोशिश यही है कि इस सीट पर जो वर्चस्व खान परिवार ने बनाया है, वो ख़त्म न हो.
स्वार से तजीन फातिमा के ऊपर अब पति आजम खान और बेटे अब्दुल्ला आजम खान की इज्जत बचाने की जिम्मेदारी है
एक ऐसे समय में जब 100 के आसपास मामलों में सीतापुर की जेल में बंद समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान को रामपुर सीट से प्रत्याशी बनाकर सपा ने एक नई डिबेट खड़ी की हो. उनके बेटे अब्दुल्ला आजम खान का भी स्वार से टिकट चर्चा का विषय बना है. जनता अभी आजम खान और अब्दुल्ला आजम के टिकट पर विमर्श कर भी नहीं पाई थी. ऐसे में आजम खान की पत्नी तजीन फातिमा का स्वार से पर्चा भरना सूबे में सियासी सरगर्मियां तेज करता नजर आ रहा है.
अब इसे हार का डर कहें या वर्चस्व बरकरार रखने की कवायद.बेटे अब्दुल्ला के बाद तजीन फातिमा के स्वार से पर्चा भरने ने सारी दास्तां खुद ब खुद बता दी है. बताते चलें कि तजीन फातिमा मौजूदा समय में रामपुर विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी की विधायक हैं. बात अगर सपा की हो तो रामपुर बचाने के लिए न केवल समाजवादी पार्टी ने अपनी सारी ताकत लगा दी है. बल्कि कई ऐसे फैसले भी किये हैं जो हैरत में डालने वाले हैं.
2022 के इस उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में सपा ने अपने कद्दावर नेता आजम खान को रामपुर सीट से चुनावी मैदान में उतारा है. वहीं, आजम के बेटे अब्दुल्ला आजम को सपा ने स्वार से टिकट दिया है. वहीं आजम खान की पत्नी तजीन फातिमा का बतौर निर्दलीय प्रत्याशी अपना नामांकन करना इस बात की तस्दीख कर देता है कि रामपुर खुद जेल में सजा काट रहे आजम खान और पूरे परिवार के लिए अपना वर्चस्व दिखाने का केंद्र बन गया है
मां तजीन ने बेटे अब्दुल्ला की सीट पर पर्चा क्यों भरा? सवाल हर उस शख्स को परेशान करेगा जिसकी थोड़ी भी रुचि उत्तर प्रदेश की सियासत में होगी. ऐसा क्यों हुआ? इसकी वजह बस इतनी है कि जैसे मामले हैं स्वार से अब्दुल्ला आजम का पर्चा खारिज हो सकता है.
गौरतलब है कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा में अब्दुल्लाह आजम खान ने काजिम अली खान को करीब 65000 वोटों के मार्जिन से हराया था.लेकिन दो जन्म बर्थ सर्टिफिकेट और दो पैन कार्ड होने के कारण इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उनकी विधायकी हाई कोर्ट ने रद्द कर दी थी. माना जा रहा है कि इसी बात को आधार मानते हुए शायद फिर से अब्दुल्ला आजम का पर्चा रद्द हो जाए.
चूंकि बात इज्जत और परंपरागत सीट बचाने की है इसलिए तंज़ीन फातिमा को मैदान में आना पड़ा है. गौरतलब है कि करीब 2 साल जेल में बिताने के बाद अब्दुल्लाह आजम को जमानत अभी हाल ही में मिली है वहीं तंज़ीन पहले ही जेल से बाहर आ गई थीं. बात अगर आजम खान की हो तो उनकी जमानत नहीं हो पाई है और जेल से ही उन्होंने अपना पर्चा दाखिल किया है.
समाजवादी पार्टी और पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के संरक्षण में आजम खान और उनका पूरा परिवार जैसी कवायद रामपुर में कर रहा है उसने इतना तो बता दिया है कि भले ही किसी ज़माने में रामपुर में उनकी टूटी बोलती थी लेकिन अब समीकरण वैसे नहीं हैं. हार का डर उनको भी सत्ता रहा है. बाकी राजनीति एक हद तक वर्चस्व का खेल है. अपनी सीटों पर आजम खान और उनका परिवार इसलिए भी साम दाम दंड भेद एक कर रहा है क्योंकि अगर 2022 के वो अपनी सीटें नहीं बचा पाए तो कल नयी सरकार आने के बाद सूबे में कोई नामलेवा नहीं होगा.
कुल मिलाकर आजम खान और समाजवादी पार्टी के परिदृश्य में ये कहना भी अतिश्योक्ति न होगा कि यूपी का चुनाव एक तरफ आजम खान और उनके परिवार का चुनाव दूसरी तरफ. आजम खान के लिए ऊंट किस करवट बैठेगा इसका फैसला तो वक़्त करेगा लेकिन अभी उनके लिए चुनौती खोई हुई इज्जत को दोबारा हासिल करना है और उसका रास्ता स्वार से ही होकर जाता है.
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