'शिव भक्त' राहुल को छोड़ आखिर प्रियंका चतुर्वेदी शिव-सैनिक क्यों बन बैठीं, जानिए...
लोकसभा चुनावों के दौरान प्रियंका चतुर्वेदी का पार्टी छोड़कर जाना ये बता देता है कि पार्टी के मुखिया के तौर पर राहुल गांधी नाकाम साबित हुए हैं. सवाल उठता है कि जब वो पार्टी ही नहीं संभल सकते तो देश कैसे संभालेंगे?
-
Total Shares
लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. कई अहम मौकों पर पार्टी की तरफ से दो दो हाथ करके विपक्ष से मोर्चा लेने वाली प्रियंका चतुर्वेदी ने कांग्रेस से हाथ छुड़ाकर शिवसेना का दामन थामा है. शिवसेना ज्वाइन करने से पहले प्रियंका कांग्रेस की प्रवक्ता थीं जिन्होंने सूझ-बूझ का परिचय देते हुए कई बार पार्टी को बड़ी मुसीबतों से बचाया था. पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे की मौजूदगी में शिवसेना से जुड़ने वाली प्रियंका ने पत्रकारों से हुई बातचीत में कहा है कि मैं मुंबई में पली बढ़ी हूं. पिछले कुछ दिनों से मैं मुंबई से कट गई थी, मगर अब मैं वापस यहां जुड़ना चाहती हूं. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि जब मैंने लौटने का मन बनाया तो इस संगठन के अलावा कोई और संगठन ध्यान में नहीं आया.
प्रियंका के शिव सेना में आने से कांग्रेस की बेचैनी बढ़ना लाजमी है
लगभग 2 दशकों तक पार्टी की सेवा करने के बाद पार्टी छोड़ने के फैसले पर प्रियंका ने अपने साथ हुई अभद्रता का भी जिक्र किया. प्रियंका ने कहा कि उन्होंने बदसलूकी से नाराज होकर कांग्रेस पार्टी छोड़ी है. पत्रकारों से मुखर होकर प्रियंका ने कहा कि मैनें आत्म सम्मान की लड़ाई लड़ी ऐसा इसलिए क्योंकि मेरी नजर में हमेशा से ही किसी भी महिला का सम्मान एक बड़ा मुद्दा रहा है.
कौन हैं प्रियंका चतुर्वेदी
वर्तमान में शिवसेना का दामन थमने वाली प्रियंका चतुर्वेदी कांग्रेस पार्टी की प्रवक्ता रह चुकी हैं. ट्विटर के सेलिब्रिटियों में शुमार प्रियंका कई अख़बारों और मैगजीनों के लिए कॉलम भी लिखती हैं. प्रियंका को एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी जाना जाता है. ये दो अलग अलग एनजीओ से भी जुड़ी हैं जिसका मुख्य काम बच्चों कि शिक्षा को आगे ले जाना, महिला सशक्तिकरण और स्वास्थ्य है.
बात अगर प्रियंका चतुर्वेदी की पढ़ाई लिखाई की हो तो मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मथुरा से जुड़ाव रखने वाली प्रियंका चतुर्वेदी मुंबई में जन्मी हैं और यहीं के नरसी मोंजी कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स से इन्होंने अपना ग्रेजुएशन किया है. बताया जाता है कि इन्होंने 2010 में कांग्रेस ज्वाइन की थी और एक बड़ी जिम्मेदारी के तहत इन्हें 2012 में पार्टी ने उत्तर-पश्चिम मुंबई का महासचिव नियुक्त किया था.
जैसा कि हम बता चुके हैं प्रियंका का शुमार ट्विटर के सबसे सक्रिय लोगों में होता है और पूर्व में ऐसे तमाम मौके आए हैं जब इन्होंने ट्विटर पर अपने आलोचकों को धूल चाटने पर मजबूर किया था. बात अभी हाल की हो तो भाजपा नेता स्मृति ईरानी के डिग्री विवाद पर भाजपा को सबसे ज्यादा परेशान इन्होंने ही किया था.
पत्रकारवार्ता के दौरान अपने साथ हुई बदसलूकी से प्रियंका बहुत आहत थीं
क्या हुआ था प्रियंका के साथ
ध्यान रहे कि बीते दिनों उत्तर प्रदेश के मथुरा में इनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान हंगामा करने वालों को दोबारा पार्टी में बहाल करने के फैसले पर प्रियंका ने सार्वजनिक तौर पर आपत्ति जताते हुए उसकी आलोचना की थी. उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने उनकी शिकायत के बाद उन पार्टी कार्यकर्ताओं को निलंबित कर दिया था. लेकिन, कांग्रेस के पश्चिमी यूपी के प्रभारी की सिफारिश पर उन सभी पार्टी कार्यकर्ताओं को दोबारा बहाल कर दिया गया था.
पार्टी के इस फैसले पर प्रियंका बहुत आहत थीं और उन्होंने पार्टी नेतृत्व पर निशाना साधते हुए कहा था कि कांग्रेस ने पार्टी के लिए खून पसीना बहाने वालों की बजाय उन लोगों को प्राथमिकता दी जो ‘गुंडे’ हैं. गौरतलब है कि पार्टी द्वारा लिए गए फैसले से आहत प्रियंका चतुर्वेदी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को एक पत्र पत्र भी लिखा था. पत्र में उन्होंने इस बात का उल्लेख किया था कि वो भारी मन से इस्तीफ़ा दे रही हैं.
I am absolutely overwhelmed and grateful with the love and support I have got across board from the nation in the past 3 days. I consider myself blessed with this immense outpouring of support. Thank you to all who have been a part of this journey. pic.twitter.com/WhUYYlwHLj
— Priyanka Chaturvedi (@priyankac19) April 19, 2019
यदि पत्र का अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि इसमें प्रियंका ने लिखा है कि, उन्होंने 10 साल तक पार्टी में रहकर पूरी लगन से काम किया है. साथ ही उन्होंने ये भी लिखा कि, 'पिछले कुछ दिनों में हुए कुछ खास घटनाओं ने पूरा भरोसा दिला दिया कि संगठन में मेरी सेवाओं का संगठन में कोई मूल्य नहीं है. अब लगता है, जितना समय पार्टी में बिताऊंगी, मेरे आत्मसम्मान की कीमत पर होगा. दुःख इस बात का है, महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान और सशक्तीकरण की जिस बात का पार्टी प्रचार करती है, और आप खुद आह्वान करते हैं, वैसा पार्टी के कुछ सदस्यों के व्यवहार में नज़र नहीं आता.'
बहरहाल पार्टी छोड़ने की ये बड़ी वजह मुंबई की उत्तर-पश्चिम सीट को भी बताया जा रहा है. माना जा रहा है कि प्रियंका इस सीट से चुनाव लड़ जनसेवा करना चाहती थी. मगर 10 साल तक पार्टी की सेवा करने वाली और आए रोज किसी न किसी बात को लेकर ट्विटर पर ट्रोल होने वाली प्रियंका चतुर्वेदी की कुर्बानियां जाया ही गयीं और पार्टी ने इस सीट से कांग्रेस नेता संजय निरूपम को टिकट दिया. पार्टी का ये फैसला वाकई हैरत में डालने वाला था.
दिलचस्प बात ये है कि जहां एक तरफ प्रियंका विपक्ष से लोहा लेने के लिए मशहूर थीं तो वहीं निरूपम का शुमार उन लोगों में होता है जिन्होंने अपने बयानों से अक्सर ही पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी की है जिसका खामियाजा भी पार्टी ने खूब भुगता है.
कांग्रेस ने पाले से उठकर मातोश्री जाने वाली प्रियंका चतुर्वेदी का आगे का राजनीतिक भविष्य कैसा होगा ? इसका फैसला वक़्त करेगा. मगर जिस तरह लोक सभा चुनावों के दौरान पार्टी के फैसले से आहत होकर प्रियंका शिवसेना में गयीं हैं. वो ये साफ कर देता है कि बात जब महिलाओं और उनके सम्मान की होती है तो कांग्रेस का चाल चरित्र और चेहरा अलग है.
कह सकते हैं कि समस्या उतनी भी बड़ी नहीं थी जितनी बड़ी इसे दर्शाया गया. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी यदि चाहते तो बड़ी ही आसानी के साथ इस समाधान कर सकते हैं और अब जबकि प्रियंका जा चुकी हैं तो आलोचक यही कह रहे हैं कि जो व्यक्ति एक मुखिया के तौर पर अपने परिवार को नहीं संभाल सकता. कैसे मान ले कि उस व्यक्ति के अन्दर देश संभालने की काबिलियत है और वो आगे कुछ बड़ा कर सकता है.
ये भी पढ़ें -
प्रियंका चतुर्वेदी के गुनाहगारों को माफ करके कांग्रेस ने 'गुनाह' ही किया है!
औरत व दलित-विरोध का दूसरा नाम आजम खान
साध्वी प्रज्ञा उम्मीदवार भोपाल की, मुद्दा कश्मीर में
आपकी राय