सुखविंदर सिंह सुक्खू हिमाचल में कांग्रेस के 'ऑपरेशन-लोटस वैक्सीन' हैं!
सुखविंदर सिंह सुक्खू (Sukhvinder Singh Sukhu) को हिमाचल प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाना कांग्रेस के लिए आसान न था, खासकर प्रतिभा सिंह (Pratibha singh) के इरादे जाहिर करने के बाद - लेकिन अनुराग ठाकुर (Anurag Thakur) को घेरने की तरकीब निकाल कर आलाकमान ने दो तीरों से कई निशाने साध लिये हैं.
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सुखविंदर सिंह सुक्खू (Sukhvinder Singh Sukhu) को मुख्यमंत्री बना कर हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की कई बीमारियों के इलाज की सबसे कारगर दवा खोज ली गयी है - और ऐन उसी वक्त ये बीजेपी को उसी के घर में उलझाये रखने की एक तरकीब भी लगती है.
ऐसा लगता है कई राज्यों में संगठन की चुनौतियों से सबक लेते हुए कांग्रेस नेतृत्व ने आखिरकार उबरने का बढ़िया उपाय ढूंढ निकाला है. अब तक के सारे ही फैसले कांग्रेस के सामने तत्कालीन मुसीबतों को बस टालने वाले देखे जाते रहे हैं, खत्म करने वाले तो कभी नहीं लगे.
आम सहमति से ही सही कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे का ये फैसला बहुत हद तक सही लगता है - आगे जो भी हो. जाहिर है, मल्लिकार्जुन खड़गे के फैसले में सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की सहमति और राहुल गांधी की मंजूरी भी शामिल होगी ही.
अगर इसमें सचिन पायलट की भी सलाहियत है, तो ये भी उनके भविष्य की राजनीति को भी प्रभावित करने वाला लगता है. फिर तो कुछ सोच समझ कर ही राहुल गांधी, दोनों नेताओं यानी सचिन पायलट और अशोक गहलोत को एक साथ ही जयपुर से शिमला ले गये होंगे. सचिन पायलट के पास हिमाचल प्रदेश में बिलकुल वही जिम्मेदारी मिली थी, जो गुजरात में अशोक गहलोत को. मतलब, समझ रहे हैं न आप?
हिमाचल प्रदेश को लेकर कांग्रेस के इस राजनीतिक फैसले में जोखिम तो है, लेकिन उसके लिए बेहद कारगर एहतियाती इंतजाम भी किये गये हैं. मान कर चलना चाहिये प्रतिभा सिंह (Pratibha singh) की मुख्यमंत्री पद पर पहले ही दावेदारी पेश कर देने के बाद वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को भी टटोला गया होगा.
ये चीज ऐसे समझी जा सकती है कि अगर विक्रमादित्य किसी खास परिस्थिति में बीजेपी की तरफ आकर्षित हुए तो क्या हो सकता है? सुखविंदर सिंह सुक्खू को वीरभद्र सिंह के कट्टर विरोधी खेमे का माना जाता रहा है, जिन्हें कमान सौंप कर कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह की विरासत की राजनीति करने वालों को अपना संदेश देने की कोशिश की है.
और सिर्फ सुखविंदर सिंह सुक्खू ही नहीं, डिप्टी सीएम बनाये गये मुकेश अग्निहोत्री भी हिमाचल प्रदेश के उसी इलाके से आते हैं जो बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाता है - हमीरपुर. ध्यान रहे केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर (Anurag Thakur) हमीरपुर से ही सांसद हैं. और उनके पिता पूर्व मुख्यमंत्री प्रेमकुमार धूमल भी हमीरपुर के ही सुजानपुर से 2017 में विधानसभा चुनाव हार गये थे, जिसकी वजह से बीजेपी के सत्ता में आने के बावजूद मुख्यमंत्री की कुर्सी से हाथ धोना पड़ा था. प्रेम कुमार धूमल ने इस बार चुनाव लड़ने से मना कर दिया था, लेकिन असर ये हुआ कि उनके इलाके की सारी ही सीटें कांग्रेस के हिस्से में चली गयीं.
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसा खेल बीजेपी तो बाद में खेलेगी, कांग्रेस ने अनुराग ठाकुर को उनके घर में घुस कर डैमेज करने का इंतजाम पहले ही कर लिया है. मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री दोनों ही अनुराग ठाकुर के संसदीय क्षेत्र में पड़ने वाली विधानसभी सीटों से चुनाव जीते हैं - देखना है गुजरात में बीजेपी की जीत के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ बटोरने वाले बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के पास क्या काउंटर स्टैटेजी होती है?
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री ही कांग्रेस के दो तीर हैं और ये मिलकर आने वाले दिनों में बीजेपी के ऑपरेशन लोटस के खिलाफ वैक्सीन का रोल भी निभाएंगे - क्या ये संघ और बीजेपी के खिलाफ राहुल गांधी की शक्ति-पूजा के आगे का एक और अहम कदम है?
कांग्रेस का हिमाचल चैलेंज
हिमाचल प्रदेश में भी विधायकों की बैठक में एक लाइन का प्रस्ताव पास किया गया था, जिसमें आखिरी फैसला कांग्रेस आलाकमान पर छोड़ दिया गया था. कुछ दिन पहले ऐसे ही प्रस्ताव की एक असफल कोशिश राजस्थान में भी हुई थी, जिसके लिए बाद में अशोक गहलोत ने सोनिया गांधी के पास जाकर माफी मांग ली थी.
सुखविंदर सिंह सुक्खू मुख्यमंत्री तो बन गये, अब कांग्रेस के लिए रोल मॉडल बनना होगा
मुख्यमंत्री पद के दावेदार तो कई थी, लेकिन हिमाचल प्रदेश की रेस में सबसे आगे तीन नाम ही थे - प्रतिभा सिंह, सुखविंद सिंह सुक्खू और मुकेश अग्निहोत्री. कांग्रेस के केंद्रीय पर्यवेक्षकों की मैराथन मंत्रणा के बाद फैसला महज 48 घंटे के भीतर ले लिया गया - और सबसे बड़ी बात कि कोई भी विवाद नहीं होने दिया गया.
विवाद तभी होता है, जब विधायकों में नाराजगी होती है. जब उनकी मर्जी के खिलाफ किसी को भी थोप दिया जाता है, या उनके बीच किसी का प्रभाव इतना होता है कि ठीक से भड़का सके. कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में ऐसी तेजी दिखायी कि ये नौबत ही नहीं आने दी. बताते हैं कि करीब दो दर्जन विधायकों ने सुखविंदर सिंह सुक्खू के नाम पर सहमति जाहिर की थी - और सुक्खू को ही सीएम बना कर कांग्रेस आलाकमान ने सब कुछ ताबड़तोड़ निबटा डाला.
परिवारवाद की राजनीति का काउंटर है: सुखविंदर सिंह सुक्खू को मुख्यमंत्री बनाये जाने के कांग्रेस आलाकमान के फैसले के बाद जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह से नाराजगी टटोलने की कोशिश हुई तो वो बड़े अच्छे से टाल गयीं.
मीडिया के सवाल पर प्रतिभा सिंह बोलीं, 'शपथग्रहण में मुझे क्यों नहीं जाना चाहिये? बेशक मैं जाऊंगी. ये मेरा पहला कर्तव्य है कि मैं वहां रहूं जब वो मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे हों.'
प्रतिभा सिंह जैसी ही भावना 2018 में सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया और टीएस सिंहदेव की भी समझी गयी, लेकिन आगे क्या हुआ और अब तक क्या चल रहा है, सबको मालूम है - और ये भी नहीं भूलना चाहिये कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के बीजेपी के ऑपरेशन लोटस का शिकार होने में ज्यादा वक्त भी नहीं लगा था.
मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी जताने से पहले प्रतिभा सिंह ने कहा था कि कांग्रेस को संकट से उबारने के लिए ही वो वीरभद्र सिंह के नाम कार्ड खेली थीं. मतलब ये कि प्रतिभा सिंह हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह की राजनीतिक विरासत को परिवार के पास रखना चाहती थीं, लेकिन नये निजाम को ये कतई मंजूर न था.
कांग्रेस आलाकमान ने वीरभद्र सिंह की राजनीतिक विरासत को परिवार की जगह कांग्रेस को सौंपने का फैसला किया और परिवारवाद की राजनीति को पीछे कर एक ऐसे विधायक को मुख्यमंत्री पद सौंप दिया, जिसके बारे में मीडिया में तमाम रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि कैसे एक बस ड्राइवर का बेटा हिमाचल प्रदेश का मुख्यमंत्री बना है.
कांग्रेस पर बीजेपी के परिवारवाद की राजनीति के आरोपों के खिलाफ ये एक्शन भरा एक मजबूत जवाब है. अगर प्रतिभा सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया होता तो कांग्रेस को बड़ी आसानी से सवालों के कठघरे में खड़ा किया जा सकता था, लेकिन अभी तो ऐसा होने से रहा.
आपको याद होगा, 2017 के विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'जेल गाड़ी' और 'बेल गाड़ी' जैसी उपमाओं के जरिये गांधी परिवार और वीरभद्र सिंह को टारगेट करते रहे. तब वीरभद्र सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच भी चल रही थी - जाहिर है प्रतिभा सिंह या विक्रमादित्य को मुख्यमंत्री बनाये जाने की सूरत में फिर से वे सवाल खड़े किये जाते, लेकिन कांग्रेस ने उससे आगे का उपाय खोज लिया.
और हां, ये एक तरीके से राहुल गांधी के परिवारवाद की राजनीति से दूरी बना कर चलने की जिद का फिर से इजहार है. ये भी करीब करीब वैसे ही है जिस लाइन पर गैर-गांधी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को बनाया गया है - राहुल गांधी ने अपनी तरफ से बीजेपी को संदेश भेजा है कि कांग्रेस के खिलाफ अब वो कोई नया हथियार तैयार करे.
मठाधीशी की राजनीति नहीं चलेगी: 2018 के राजस्थान विधानसभा के चुनाव कैंपेन के दौरान एक बार राहुल गांधी ने सचिन पायलट और अशोक गहलोत को बाइक पर बिठा कर सड़क पर घुमाया था. तब सचिन पायलट राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे. अशोक गहलोत पीछे बैठे थे और सचिन पायलट बाइक चला रहे थे, लेकिन चुनाव नतीजे आने के बाद राहुल गांधी ने ड्राइविंग सीट अशोक गहलोत को सौंप दी - और सचिन पायलट तो अब कंडक्टर भी नहीं रह गये हैं.
एक बार फिर राहुल गांधी ने जयपुर तक सचिन पायलट और अशोक गहलोत को पहले हेलीकॉप्टर और फिर चार्टर प्लेन से शिमला लेकर गये - सुखविंदर सिंह सुक्खू के शपथग्रहण समारोह में शामिल होने. प्रियंका गांधी वाड्रा और मल्लिकार्जुन खड़गे सहित कई बड़े नेताओं ने भी बड़े दिनों बाद हो रहे जश्न का हिस्सा बनने की तैयारी पहले से ही कर ली थी.
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने पर सचिन पायलट का जो रिएक्शन आया है उसमें भी राजस्थान की राजनीतिक झलक मिल जाती है. सचिन पायलट का कहना रहा, मुझे यकीन है कि सुक्खू जनता से किये गये कांग्रेस के सभी वादों को पूरा करेंगे.'
राजस्थान को लेकर सचिन पायलट की लंबे अरसे तक यही शिकायत रही कि चुनावों में राहुल गांधी ने कांग्रेस की तरफ से राजस्थान के लोगों से जो वादे किये थे, पूरे नहीं किये गये. हालांकि, गांधी परिवार से मिल रहे सपोर्ट के बाद सचिन पायलट कुछ ज्यादा ही संयम बरतने लगे हैं, लेकिन सुक्खू को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते देख सचिन पायलट का खून खौलना भी तो स्वाभाविक ही है.
कहते हैं कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने से सचिन पायलट के समर्थक खासे उत्साहित हैं. राजस्थान पहुंच चुकी भारत जोड़ो यात्रा में भी गहलोत बनाम पायलट विवाद की छाया ठीक ठाक महसूस की जा रही है. यात्रा के दौरान अशोक गहलोत और सचिन पायलट भी लगातार राहुल गांधी के इर्द गिर्द ही देखे जाते रहे हैं.
जब 8 दिसंबर को चुनाव नतीजे आ रहे थे, तभी यूपी कांग्रेस के नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने एक ट्वीट किया था जिसमें अशोक गहलोत और सचिन पायलट को टैग किया गया था. प्रमोद कृष्णम प्रियंका गांधी के करीबी माने जाते हैं, और उदयपुर चिंतन शिविर में प्रियंका गांधी को अध्यक्ष बनाने की मांग पेश कर सबूत भी दे दिया था.
चुनाव नतीजों के रुझान के दौरन ही प्रमोद कृष्णम ने ट्विटर पर लिखा था, युवा नेता सचिन पायलट हिमाचल प्रदेश के ऑब्जर्वर थे और हमारे अनुभवी नेता अशोक गहलोत जी गुजरात के... आगे मुझे कुछ नहीं कहना.'
युवा नेता @SachinPilot हिमाचल के ऑब्ज़र्बर थे और हमारे अनुभवी नेता @ashokgehlot51 जी “गुजरात” के, आगे मुझे कुछ नहीं कहना.
— Acharya Pramod (@AcharyaPramodk) December 8, 2022
ताकि बीजेपी कोई हिमाकत न करे
हिमाचल प्रदेश में पांच साल बाद ही कांग्रेस की वापसी बुरे दिनों में मिले एक बेहतरीन तोहफे जैसी है. और कांग्रेस को इसे हर हाल में संभाल कर रखने की कोशिश करनी होगी. असम से हाथ धोने के बाद कांग्रेस दोबारा हासिल नहीं कर सकी - और मध्य प्रदेश से भी बड़ा ब्लंडर करते हुए पंजाब भी गवां दिया.
कांग्रेस जगह जगह जिन चुनौतियों से जूझ रही है, हिमाचल प्रदेश वैसी ही चुनौतियों के गुलदस्ते जैसा है. खास बात ये है कि इस गुलदस्ते में फूलों से ज्यादा तादाद कांटों की है - और 2014 के बाद से लगातार धक्के खा रही कांग्रेस का 'हाथ' हर दिन बेहद नाजुक होता जा रहा है.
ऐसे मुश्किल हालात में भी कांग्रेस नेतृत्व ने एक बेहतर फैसला लिया है, जो राजनीतिक रूप से काफी दुरूस्त भी लगता है. अगर कांग्रेस नेतृत्व ने बीती गलतियों से सबक लेते हुए आगे भी हड़बड़ी या फैसले लेने में हीलाहवाली नहीं की तो आने वाली मुसीबतों से मुकाबला करना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा.
ये ठीक है कि हिमाचल प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस के वोट शेयर में महज 0.9 फीसदी का ही फर्क है, लेकिन कांग्रेस ने तात्कालिक फैसलों से बीजेपी को अपना संदेश साफ तौर पर देने की कोशिश की है - अगर बीजेपी कांग्रेस मुक्त अभियान चलाती है, तो चुनावों में कांग्रेस बीजेपी मुक्त हिमाचल मुहिम शुरू कर चुकी है.
सत्ता में बारी बारी आने की परंपरा अपनी जगह है, लेकिन बीजेपी को कई इलाकों में बड़े जोर का झटका लगा है. पिछले चार दशक में ऐसा पहली बार हुआ है कि हमीरपुर जिले की सभी पांचों सीटों पर बीजेपी को शिकस्त झेलनी पड़ी है.
ध्यान रहे, हमीरपुर ही केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का संसदीय क्षेत्र है. ये भी ध्यान रहे कि हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की हार को लेकर अनुराग ठाकुर और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा दोनों पर उंगलियां उठी हैं. हालांकि, ये जरूरी नहीं कि दोनों के खिलाफ भी वैसा ही एक्शन हो जैसा दिल्ली विधानसभा चुनावों के बाद और एमसीडी चुनाव के बाद हुआ है. जैसे पहले मनोज तिवारी हटा दिया गये थे, इस बार आदेश गुप्ता पर गाज गिरी है.
हमीरपुर बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेमकुमार धूमल का गृह जनपद भी है. प्रेमकुमार धूमल ही अनुराग ठाकुर के पिता हैं. ये मामला भी अब करीब करीब यशवंत सिन्हा और जयंत सिन्हा जैसा ही लगने लगा है.
1998 में हमीरपुर जिले की सभी पांच सीटें जीतने वाली बीजेपी 2017 में सुजानपुर सहित तीन सीटों से हाथ धो बैठी थी. सुजानपुर से ही तब प्रेम कुमार धूमल बीजेपी उम्मीदवार थे और मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी, लेकिन कांग्रेस के राजेंद्र सिंह राणा से चुनाव हार गये थे.
सिर्फ जिला ही नहीं, हमीरपुर संसदीय क्षेत्र की 17 में से 12 सीटें अब कांग्रेस के पास चली गयी हैं. भले ही जेपी नड्डा और अनुराग ठाकुर वोट शेयर का फर्क चाहे जैसे भी समझाते रहें, लेकिन जमीनी हालत काफी अलग है.
जाहिर है, अनुराग ठाकुर की राजनीति के लिए आगे मुश्किल होने वाली है क्योंकि सीएम सुक्खू और डिप्टी सीएम दोनों हमीरपुर से ही हैं. जाहिर है कांग्रेस ने ये सब सोच समझ कर ही किया है. वीरभद्र सिंह का परिवार सरकार गिराने पर उतारू हो जाये और विक्रमादित्य अगर एकनाथ शिंदे बनने को तैयार हो जायें तो भी साजिशों को नाकाम किया जा सके.
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