जींद उपचुनाव में सुरजेवाला की हार राहुल गांधी के लिए मैसेज है
राहुल गांधी का जींद प्रयोग पूरी तरह फेल हो गया है. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला की हार से राहुल गांधी को सबक तो बड़ा मिला है, लगे हाथ कुछ संभावनाएं भी नये सिरे से दिखायी देने लगी हैं.
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जींद और रामगढ़ उपचुनावों के नतीजे सत्ताधारी पार्टियों के पक्ष में रहे. हरियाणा में सत्ताधारी बीजेपी ने जींद उपचुनाव जीत लिया है, तो राजस्थान के रामगढ़ में कांग्रेस उम्मीदवार ने बाजी मार ली है.
जींद उपचुनाव में कांग्रेस प्रवक्ता और राहुल गांधी के नजदीकी नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला न सिर्फ हारे हैं, बल्कि तीसरे नंबर पर रह गए हैं. जींद उपचुनाव के नतीजे का सबसे महत्वपूर्ण पहलू भी यही है. जींद सीट से सुरजेवाला को उतार कर राहुल गांधी ने इसे प्रतिष्ठा की लड़ाई बनाया था, लेकिन दोनों चूक गये. सुरजेवाला को बीजेपी उम्मीदवार श्रीकृष्ण मिड्ढा ने 12,235 वोटों के अंतर से हराया है.
राजस्थान की रामगढ़ सीट पर कांग्रेस की शाफिया जुबैर खान ने बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ 12,228 वोटों से जीत हासिल की है. शाफिया ने बीजेपी के सुखवंत सिंह को शिकस्त दी है.
ये उपचुनाव मुकाबले में रहे सभी दलों के लिए अलग अलग हिसाब से बेहद महत्वपूर्ण रहे - और आने वाले आम चुनाव को लेकर ये जीत-हार सभी के लिए बहुत मायने रखती है.
कौन कितने पानी में रहा
जींद विधानसभा सीट दो बार से जीतती आ रही चौटाला परिवार की इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) इस बार अपनी जमानत भी नहीं बचा पायी. INLD विधायक हरिचंद मिड्ढा के निधन से खाली हुई सीट से बीजेपी ने उनके बेटे कृष्ण लाल मिड्ढा को टिकट दिया था - और प्रयोग सफल रहा. बीजेपी के बाद चौटाला परिवार से लेकिन नवगठित दल जननायक जनता पार्टी के उम्मीदवार दिग्विजय सिंह चौटाला दूसरे स्थान पर रहे और कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला को तीसरे स्थान पर खिसकना पड़ा.
नतीजे के नफा-नुकसान
जींद चुनाव काफी हद तक हरियाणा में राजनीतिक दलों की हैसियत का पैमाना बन गया था. आने वाले लोक सभा चुनाव के हिसाब से सभी दल अपनी क्षमता का आकलन कर रहे थे. एक बात पर सबकी नजर टिकी थी वो ये कि 1972 के बाद से इस सीट पर कोई जाट उम्मीदवार नहीं जीत सका है. जींद उपचुनाव में हुए चतुष्कोणीय मुकाबले में चारों दलों के लिए जीत और हार के अपने अपने लिए अलग मायने रहे.
1. सुरजेवाला की हार : कांग्रेस के मीडिया सेल के प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला हरियाणा के ही कैथल से विधायक हैं और जींद से चुनाव लड़ने की उनकी कोई इच्छा भी नहीं थी. बल्कि वो तो खुद एक विधायक के बेटे को टिकट दिलाना चाहते थे, लेकिन राहुल गांधी के कहने पर वो चुनाव मैदान में उतरने को मजबूर हुए. दरअसल, राहुल गांधी इस उपचुनाव के जरिये कई चीजें हासिल करना चाहते थे.
राहुल गांधी के लिए सुरजेवाला को चुनाव लड़ाने का सीधा मतलब तो हर हाल में जीत सुनिश्चित करना था. साथ ही, इस चुनाव को जीत कर वो हरियाणा कांग्रेस में गुटबाजी खत्म करना चाहते थे. उपचुनाव के जरिये राहुल गांधी को हरियाणा के लिए मुख्यमंत्री के एक चेहरे की भी तलाश रही. नतीजे से सारी स्कीम पर पानी फेर दिया.
नतीजे आने से एक दिन पहले वैष्णो देवी दर्शन का आशीर्वाद लेने गये थे रणदीप सुरजेवाला
अपनी हार स्वीकार करते हुए सुरजेवाला ने कहा, 'मैं उम्मीद करता हूं कि सीएम मनोहरलाल खट्टर और कृष्णा मिड्ढा जी जींद के लोगों का सपना पूरा करेंगे. मुझे पार्टी की तरफ से एक जिम्मेदारी दी गई थी, जिसको मैंने पूरी क्षमता के साथ पूरा किया. मैं कृष्णा मिड्ढा जी को बधाई देता हूं.' और कुछ हो न हो चुनाव प्रचार में सारे नेता गुटबाजी को दरकिनार कर जुटे देखे गये. कुछ कुछ राजस्थान और मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों की ही झलक देखने को मिली. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हु़ड्डा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर, किरण चौधरी, कुमारी शैलजा सबके सब चुनाव प्रचार में एकजुट दिखे.
चुनाव प्रचार के दौरान हरियाणा सरकार में मंत्री रामविलास शर्मा की एक टिप्पणी की खूब चर्चा है. एक वायरल वीडियो में पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा पर शर्मा की एक टिप्पणी सुनी गयी है - 'आपका कांटा निकल गया.' कहते हैं शर्मा ने हुड्डा से ये बात सुरजेवाला के संदर्भ में कही है. टिप्पणी का अर्थ ये है कि सुरजेवाला की हार के साथ ही हुड्डा की मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी की राह का कांटा भी साफ समझा जाना चाहिये.
2. खट्टर के लिए राहत : सत्ता में होने के चलते बीजेपी के लिए जींद उपचुनाव हर हाल में जीतना जरूरी था. मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर के लिए ये बड़ी राहत देने वाली खबर रही. ये उपचुनाव जीत कर वो सत्ता विरोधी लहर को कुछ हद तक तो खारिज कर ही सकते हैं. बीजेपी उम्मीदवार कृष्ण लाल मिड्ढा को कुल 50,566 वोट मिले हैं.
जीत के बाद मिड्ढा को इस बात की सबसे ज्यादा खुशी है कि उन्होंने बड़े नेताओं को हराया है. मिड्ढा ने कहा, 'मैं उन सभी लोगों का शुक्रिया अदा करता हूं, जिन्होंने पार्टी और मुझे सपोर्ट किया. ये सभी लोगों की जीत है... चुनाव में हमारे सामने बड़े नेता भी थे, लेकिन हमने उन्हें भी हरा दिया.'
3. जीत न सही, प्रदर्शन तो अच्छा रहा : नयी नवेली जननायक जनता पार्टी के लिए ये चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि उसे फील्ड में खुद को आजमाना था. ईवीएम पर सवाल उठाकर दिग्विजय ने जींद उपचुनाव को भी विवाद से अछूता नहीं रहने दिया.
चुनाव प्रचार के दौरान दिग्विजय और सुरजेवाला को लेकर इलाके में एक वाकये की खूब चर्चा रही. कैथल में आयोजित एक कार्यक्रम में दिग्विजय चौटाला ने कहा था कि वो रणदीप सुरजेवाला को चैलेंज करेंगे. कैथल तो नहीं लेकिन जींद में तो उन्होंने सुरजेवाला को चैलेंज कर ही दिया और खुद रनर अप रहते हुए सुरजेवाला को थर्ड पोजीशन पर धकेल दिया.
दिग्विजय चौटाला ने कहा, 'मैं बीजेपी को इस जीत के लिए बधाई देना चाहता हूं. हमें ईवीएम में कई खामियां मिलीं, इस मामले को पहले पार्टी मीटिंग में उठाया जाएगा और फिर हम मीडिया में बात को लेकर आएंगे.'
4. सबसे ज्यादा घाटे में INLD : जींद सीट पर INLD का दावा तो इसलिए बनता था क्योंकि 2014 में ये सीट उसी ने जीता था - और उससे पहले भी. लेकिन भी नहीं बच सकी. देखा जाये तो इस सीट पर INLD से बेहतर प्रदर्शन चौटाला परिवार के सदस्य का ही रहा है.
कांग्रेस और आप के गठबंधन की संभावना फिर से
जींद की हार में राहुल गांधी के लिए सबक तो है ही, कई राजनीतिक संभावनाएं भी फिर से बनती नजर आ रही हैं. हार से ये तो अंदाजा लग ही गया कि कांग्रेस एक ही मोर्चे पर अकेले चौटाला परिवार और बीजेपी दोनों से नहीं भिड़ सकती. हार का ठीकरा गुटबाजी के सिर भी नहीं फोड़ा जा सकता. मतलब साफ है कांग्रेस चुनावी समीकरणों में अकेले अनफिट है.
फिर कांग्रेस के पास विकल्प क्या है? अकेले चुनाव मैदान में उतरने का विकल्प तो हमेशा है. नतीजे से मिल कर चुनाव लड़ने की संभावना भी प्रबल हो गयी है. जिन राज्यों में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन की चर्चा रही उनमें हरियाणा का नाम भी शामिल रहा. वैसे तो दोनों दलों ने साफ कर दिया है कि अपने अपने दम पर चुनाव लड़ेंगे, लेकिन जींद के नतीजे से ऐसी संभावना उत्पन्न तो हो ही गयी है कि कांग्रेस नेतृत्व और शीला दीक्षित को फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिये - और आप नेता अरविंद केजरीवाल को भी अपने फैसले को लेकर दोबारा सोचना चाहिये.
महीने भर के अंतर पर हुए उपचुनावों की कॉमन बातें
करीब महीने भर के अंतर पर हुए उपचुनावों के नतीजे एक जैसे रहे हैं. दोनों बार दो सीटों पर चुनाव हुए और एक सीट बीजेपी तो दूसरी कांग्रेस के खाते में जा पहुंची है.
दिसंबर में झारखंड की कोलेबिरा विधानसभा सीट के साथ ही गुजरात के जसदण में उपचुनाव हुए थे. कोलेबिरा कांग्रेस के खाते में गया जबकि जसदण में बीजेपी को जीत मिली थी. ठीक वैसे ही इस बार हरियाणा में बीजेपी जीती है तो राजस्थान में कांग्रेस को कामयाबी मिली है.
शाफिया की जीत के साथ राजस्थान कांग्रेस का शतक पूरा
जसदण और जींद दोनों ही उपचुनावों में बीजेपी ने मिलते जुलते प्रयोग किये थे. जींद में बीजेपी ने जहां INLD विधायक के बेटे को झटक लिया वहीं जसदण में कांग्रेस के विधायक को भी भगवा पहना दिया था. कुछ ही महीनों के अंतर पर कुंवरजी बावलिया कांग्रेस की जगह बीजेपी उम्मीदवार बने और दोबारा विधायक बन गये.
एक और खास बात - जसदण की जीत के साथ ही बीजेपी ने गुजरात में विधायकों का शतक पूरा कर लिया था. ताजा उपचुनाव में कांग्रेस ने यही उपलब्धि राजस्थान की रामगढ़ सीट जीत कर हासिल की है.
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