तीन तलाक बिल विरोधी राजनीति हारी, मुस्लिम महिलाओं की उम्मीदें जीती
तीन तलाक बिल तमाम विरोध के बावजूद भी रोजायसभा में पारित हो गया. इस बिल के खिलाफ कितनी ही बातें कही गईं, लेकिन आखिरकार ये सिद्ध हो गया कि अब वक्त बदल रहा है और मुस्लिम महिलाओं की किस्मत भी.
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तीन तलाक बिल राज्यसभा में एक बहस के बाद आखिरकार पारित हो ही गया. सरकार का मानना है कि न्याय और जेंडर इक्वैलिटी के लिए ये बिल बहुत जरूरी है. सरकार की दलील ये भी थी कि 20 से ज्यादा ऐसे इस्लामिक देश हैं जहां तीन तलाक को असंवैधानिक और गैर इस्लामिक भी करार दिया जा चुका है. यहां तक कि पड़ोसी देश पाकिस्तान में तो 1956 में ही तीन तलाक को बैन कर दिया गया था. लेकिन देर से ही सही 2019 में भारत में भी मुस्लिम महिलाओं के हित में तीन तलाक बिल को पारित कर दिया गया है.
क्या है तीन तलाक बिल के प्रावधान
तीन तलाक बिल के प्रावधानों की बात करें तो इस विधेयक में तीन तलाक को गैर कानूनी बनाने के साथ-साथ इसमें तीन साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है.
- बिल में ये प्रावधान भी है कि अगर मेजिस्ट्रेट चाहें तो पीड़िता की बात सुनने के बाद पति को बेल दी जा सकती है.
- इसके साथ-साथ ही कंपाउंडिग का प्रावधान भी रखा गया है. कंपाउंडिंग यानी दोनों पक्ष मिलकर न्यायिक प्रक्रियाओं को खत्म करके सेटेलमेंट की बात कर सकते हैं.
- भत्ते का भी प्रावधान रखा गया है जिसमें पत्नी पति से अपने बच्चों और खुद के लिए गुजारा भत्ते की मांग कर सकती है.
- पीड़िता छोटे बच्चों की कस्टडी पाने के लिए भी आगे बढ़ सकती है.
ये सारे प्रावधान बहुत महत्वपूर्ण हैं और मुस्लिम महिलाओं के हित को ध्यानमें रखकर ही बनाए गए हैं. और इन्हें पढ़कर ऐसा नहीं लगता कि इसमें कोई कमी या बदलाव की गुंजाइश है. लेकिन विपक्ष लगातार इस बिल पर असहमति जता रहा था.
तीन तलाक पर कानून महिलाओं के खिलाफ कैसे हो सकता है?
बिल पर विपक्ष की असहमति क्यों
विपक्ष के मतभेद इस बिल पर इसलिए थे क्योंकि वो इस बिल के criminal clause यानी इसे आपराधिक करने के खिलाफ थे. उनका कहना था कि अगर पति को जेल हो जाएगी तो वो पीड़िता और उसके बच्चों का ध्यान कैसे और क्यों रखेगा. अधिकत्तर विपक्षी दलों की मांग थी कि बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए. इस बिल को मुस्लिम समुदाय का विरोधी बताया गया. कहा गया कि इससे महिलाएं कहीं की नहीं रहेंगी. यह बिल मुस्लिम घरों की तोड़ने की कोशिश है.
राज्यसभा में तीन तलाक बिल पर बोलते हुए नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा कि मुस्लिम परिवारों को तोड़ना इस बिल का असल मकसद हैं. उन्होंने कहा कि सरकार मुस्लिम महिलाओं के नाम मुसलमानों को निशाना बना रही है. न रहे बांस, न बजेगी बांसुरी, अब इस बिल के जरिए सरकार घर से चिराग से ही घर में आग लगाना चाहती है. घर भी जल जाएगा और किसी को आपत्ति भी नहीं होगी. दो समुदायों की लड़ाई में केस बनता है लेकिन बिजली के शॉट में किसी के जलने पर कोई केस नहीं बनता है.
GN Azad on 'Tripe Talaaq Bill' in RS: This law is politically motivated, so minorities are occupied in fighting amongst themselves.Husband&wife will hire lawyers against each other,land will be sold in order to pay lawyers. By the time jail term will be over, they'll be bankrupt. pic.twitter.com/Tt4bp9NjNT
— ANI (@ANI) July 30, 2019
इस तरह की तमाम बातें हैं जो इस बिल के खिलाफ राज्यसभा में कही गईं. यानी जितने मुंह, उतनी ही बातें. बिल इस्लाम के खिलाफ है, इससे महिलाओं का फायदा हीं नुकसान होगा, इसे विरोध करने वाले कैसे उचित सिद्ध कर सकते हैं. तीन तलाक से बेघर होने वाली महिलाओं को क्या इस्लाम सहारा देता है? क्या वो इन महिलाओं के लिए गुजारा भत्ता देता है या उनके बच्चों को पढ़ाता लिखाता है? नहीं, इस्लाम के कानून में तो मेहर की रकम देकर पति अपनी सारी जिम्मेदारियों से मुक्ति पा लेता है.
लेकिन परेशानी सिर्फ तीन तलाक ही नहीं बल्कि इससे जुड़ी और भी चीजें हैं. यानी गु्स्से में तलाक तो दे दिया लेकिन अब बीवी को साथ रखने के लिए हलाला भी करवाना जरूरी है. तलाक और हलाला के चक्कर में न जाने कितनी महिलाओं की जिंदगी जहन्नुम हो रही है. लेकिन अभी तक इन पीड़ित महिलाओं के लिए इस्लामिक कानून ने कुछ नहीं किया.
चंद उदाहरण से समझ लीजिए कि ये बिल जरूरी था
- मामला बरेली का है. पिछले साल अगस्त में दैनिक जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक, एक महिला को उसके पति ने फोन पर तलाक दे दिया. फिर दोबारा निकाह करने के लिए उसका अपने ही ससुर के साथ हलाला करवाया गया. हलाला के बाद ससुर ने महिला को तलाक दे दिया और वो इद्दत पूरी करने लगी. लेकिन पति ने जबरन उसके साथ संबंध बनाए. इद्दत के बाद महिला की शादी पहले पति से करवाई गई. इसके बाद महिला गर्भवती हो गई. पति को पता चला तो उसने पत्नी पर बच्चा गिराने का दबाव बनाया क्योंकि उसे लगता था कि बच्चा उसका नहीं बल्कि ससुर का था. बहरहाल बच्चा होने के बाद अब पति न तो महिला को अपने साथ रख रहा है और न ही अपने बेटे को अपना मान रहा है.
- 2009 में एक महिला का निकाह हुआ. लेकिन दो साल तक बच्चा न होने पर ससुराल वालों ने उसे परेशान करना शुरू कर दिया. देवर ने महिला के साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की. 2011 में महिला के पति ने उसे तीन तलाक दे दिया. महिला के घरवालों के मिन्नतें करने पर ससुरालवालों ने महिला के सामने अपने ससुर के साथ हलाला करने की शर्त रख दी. महिला का निकाह उसके ही ससुर से करा दिया गया. 10 दिनों तक ससुर ने कई बार उसके साथ दुष्कर्म किया. और फिर तलाक दिया. अब महिला के पति ने महिला से दोबारा निकाह किया. लेकिन ससुर इसके बावजूद भी महिला के साथ दुष्कर्म करता रहा. इतना ही नहीं जनवरी 2017 में पति ने उसे दोबारा तलाक दे दिया. और इस बार महिला पर दबाव बनाया जा रहा है कि वो अब अपने देवर के साथ हलाला करे. महिला ने तब जाकर ससुराल वालों के खिलाफ मामला दर्ज किया.
CONGRESS party feels very sad for d pathetic condition of women(as it claims)but d most surprising fact is dat it doesn't try to listen problems of such ladies????who really want justice because party is more worried for Mullas than these.#TripleTalaq "AICC Minority Department" pic.twitter.com/AhcYoRiqCy
— Karuna tyagi (@i_am_karuna) February 7, 2019
ये सब देखकर तो यही लगता है कि मुस्लिम समाज के नियम और कायदे महिलाओं को सिर्फ भोग की वस्तु ही साबित करने में लगे हैं. जहां उसका अस्तित्व सिर्फ उसके शरीर से है. उसके दुख, उसकी भावनाओं की कोई कीमत नहीं. न समाज को और न ही इस्लाम के कानून को. अगर अस्लाम इन महिलाओं के हितों के बारे में सोचता तो शायद इन महिलाओं को अदालत का दरवाजा खटखटाना नहीं पड़ता.
बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने की मांग की जा रही थी, जहां इसपर विस्तार से सोचा-समझा जाता. लेकिन 1986 के शाहबानो मामले के बाद इस मामले पर चर्चा करने, सोचने समझने के लिए 33 सालों का वक्त था. जो इतने सालों में नहीं हो सका वो अब क्या होता. तीन तलाक के मामले न पहले थमें थे और न अब थम रहे हैं. लेकिन इस बिल को पारित होने के बाद तीन तलाक के मामले थमने जरूर लगेंगे. पत्नियों को महज वस्तु समझने वाले अब तीन तलाक बोलने से पहले सौ बार सोचेंगे. कम से कम उनमें जेल जाने का डर तो होगा... इसी डर की जरूरत थी. क्योंकि जो काम प्यार से नहीं हो सका उसे डर से करवाना जरूरी था.
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